उदारवाद का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं एवं सिद्धांत

उदारवाद क्या है

उदारवाद शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘Liberalism’ का हिन्दी अनुवाद है। इसकी उत्पत्ति अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘Liberty’ से हुई है। इस दृष्टि से यह स्वतन्त्रता से सम्बन्धित है। इस अर्थ में उदारवाद का अर्थ है ‘व्यक्ति की स्वतन्त्रता का सिद्धान्त।’ ‘Liberalism’ शब्द लेटिन भाषा के ‘Liberalis’ शब्द से भी सम्बन्धित माना जाता है। इस शब्द का अर्थ भी स्वतन्त्रता से है। 

उदारवाद को परिभाषित करने से पहले यह जा लेना भी जरूरी है कि उदारवाद अनुदारवाद का उल्टा नहीं है, क्योंकि यह अनुदारवादी किसी भी प्रकार के परिवर्तन का तीव्र विरोध करते हैं, जबकि उदारवादी उन परिवर्तनों के समर्थक हैं जिनसे मानवीय स्वतन्त्रता का पोषण होता है। 

उदारवाद के बारे में यह कहना भी गलत है कि यह व्यक्तिवाद है। 19वीं सदी के अन्त तक तो उदारवाद और व्यक्तिवाद में कोई विशेष अन्तर नहीं था तथा व्यक्ति के जीवन में हस्तक्षेप न करने के सिद्धान्त को ही उदारवाद कहा जाता था, लेकिन आज व्यक्ति की बजाय समस्त समाज के कल्याण पर ही जोर देने की बात उदारवाद का प्रमुख सिद्धान्त है। 

इसी तरह उदारवाद और लोकतन्त्र भी समानार्थी नहीं है क्योंकि उदारवाद का मूल लक्ष्य स्वतन्त्रता है जबकि लोकतन्त्र का समानता है। सत्य तो यह है कि उदारवाद का सम्बन्ध स्वतन्त्रता से है जो बहुआयामी होता है अर्थात् जिसका सम्बन्ध जीवन के सभी क्षेत्रों से होता है। 

उदारवाद को परिभाषित करते हुए मैकगवर्न ने कहा है-’’राजनीतिक सिद्धान्त के रूप में उदारवाद को पृथक-पृथक तत्वों का मिश्रण है। उनमें से एक लोकतन्त्र है और दूसरा व्यक्तिवाद है।’’

उदारवाद की परिभाषा

1. डेरिक हीटर के अनुसार-’’स्वतन्त्रता उदारवाद का सार है। स्वतन्त्रता का विचार इतना महत्वपूर्ण है कि उदारवाद की परिभाषा सामाजिक रूप में स्वतन्त्रता का संगठन करने और इसके निहितार्थों का अनुसरण करने के प्रभाव के रूप में की जा सकती है।’’

2. हेराल्ट लॉस्की के अनुसार-’’उदारवाद कुछ सिद्धान्तों का समूह मात्र नहीं बल्कि दिमाग में रहने वाली एक आदत अर्थात् चित्त प्रकृति है।’’

3. डॉ0 आशीर्वादम् के अनुसार-’’उदारवाद एक क्रमबद्ध विचारधारा न होकर किसी निर्दिष्ट युग में कुछ देशों में व्यक्त की गई विविधतापूर्ण तथा परस्पर विरोधी चिन्तन- धाराओं से युक्त ऐतिहासिक प्रवृत्ति मात्र है।’’

4. इनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका के अनुसार-’’दर्शन या विचारधारा के रूप में, उदारवाद की परिभाषा प्रशासन की रीति और नीति के रूप में समाज के संगठनकारी सिद्धान्त और व्यक्ति व समुदाय के लिए जीवन-पद्धति में स्वतन्त्रता के प्रति प्रतिबद्ध विचार के रूप में की जा सकती है।’’

5. सारटोरी के अनुसार-’’उदारवाद व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, न्यायिक सुरक्षा तथा संवैधानिक राज्य का सिद्धान्त तथा व्यवहार है।’’

6. लुई वैसरमैन के अनुसार-’’उदारवाद को भावात्मक तथा वैचारिक दृष्टि से एक ऐसे आन्दोलन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की अभिव्यक्ति में समर्पित रहा है।’’
साधारण शब्दों में उदारवाद एक ऐसा दर्शन या विचाधारा है जो सत्ता के केन्द्रीयकरण का प्रतिनिधित्व करने वाली किसी भी व्यवस्था का विरोध तथा व्यक्ति की स्वतन्त्रता का जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समर्थन करती है। अपने संकीर्ण अर्थ में उदारवाद अर्थशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र जैसे विषयों तक ही सरोकार रखता है जहां पर वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन व वितरण और शासकों के चुनने व हटाने की वकालत करता है। 

व्यापक अर्थ में यह एक ऐसा मानसिक दृष्टिकोण है जो मानव के विभिन्न बौद्धिक, नैतिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संबंधों के विश्लेषण एवं एकीकरण का प्रयास करता है। सामाजिक क्षेत्र में यह धर्म निरपेक्षता का समर्थन करके धार्मिक रूढ़िवाद से मानवीय स्वतन्त्रता की रक्षा करता है। 

आर्थिक क्षेत्र में यह मुक्त व्यापार का समर्थक है। बुर्जुआ उदारवादियों के रूप में यह राज्य को आवश्यक बुराई बताकर व्यक्तिवाद का समर्थन करता है तो समाजवादियों के रूप में यह उत्पादन और वितरण पर राज्य के नियन्त्रण की वकालत करता है। इस तरह उदारवाद दो विरोधी प्रवृत्तियों के बीच में फंसकर रह जाता है। राजनीतिक क्षेत्र में भी यह व्यक्ति को अधिक से अधिक छूट देने का पक्षधर है ताकि व्यक्ति के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास हो। 

उदारवाद राजनीतिक क्षेत्र में संसदीय प्रजातन्त्र का समर्थक है तथा शक्तियों के पृथक्करण, कानून का शासन, न्यायिक पुनरावलोकन जैसी व्यवस्थाओं का पक्षधर है  अत: उदारवाद अपने हर रूप में व्यक्ति की स्वतन्त्रता का ही पोषक है। यह जीवन के किसी भी क्षेत्र में किसी भी प्रकार के दमन का विरोधी है चाहे वह नैतिक हो या धार्मिक, सामाजिक हो या राजनीतिक, आर्थिक हो या सांस्कृतिक। अपने इस रूप में यह गतिशील दर्शन है जिसका ध्येय मानव की स्वतन्त्रता है और परिवर्तनशील परिस्थितियों में इस ध्येय की प्राप्ति के लिए अनुकूल मार्ग का अनुसरण करता है।

उदारवाद का विकास

उदारवाद की अवधारणा के बीज सुकरात व अरस्तु के चिन्तन में ही सर्वप्रथम देखने को मिलते हैं। सबसे पहले इन यूनानी चिन्तकों ने ही चिन्तन की स्वतन्त्रता और राजनीतिक स्वतन्त्रता के विचार का प्रतिपादन किया था। मध्य युग में ईसाइयत के धर्म-गुरुओं ने दासता का विरोध एवं धार्मिक स्वतन्त्रता का समर्थक करके उदारवाद के सिद्धान्तों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। कुछ विचारकों का मत है कि उदारवाद का उदय पहले धार्मिक प्रभुत्व और बाद में राजनीतिक प्राधिकारवाद की शक्तियों के विरूद्ध प्रतिक्रिया के रूप में हुआ जिसने व्यक्तिवादी परम्पराओं को समाप्त करना चाहा था। इस नाते यह पहले पुनर्जागरण और धर्म सुधार आन्दोलनों में प्रकट हुआ जिनका उद्देश्य मनुष्य को धार्मिक अन्धविश्वासों की बेडियों से मुक्त कराना और उसके प्राचीन युग की जिज्ञासु भावना का संचार करना था, यह प्रभुसत्तात्मक राष्ट्र-राज्य के समर्थन में भी प्रकट हुआ। 

इसका यह कारण था कि आधुनिक राज्य पोप के सर्वशक्तिमान अधिकार के विरूद्ध सम्भावी चुनौतियों के रूप में उभर कर आया जो निरंकुशतन्त्र का साकार रूप बन गया था। जब राजसत्ता निरंकुशवाद के मार्ग पर अग्रसर हुई तो उदारवाद राजसत्ता के आलोचक के रूप में उभरा। इसका उदाहरण हमें आधुनिक युग के उन सभी जन-आन्दोलनों में देखने को मिलता है जो नई राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना का प्रयास थे। उदारवाद के विकास के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि यह औद्योगिकरण के कारण उत्पन्न पूंजीपति वर्ग को आर्थिक क्षेत्र में खुली प्रतिस्पर्धा करने की छूट देता है। 

इसी कारण लॉस्की ने कहा है कि ‘‘मध्यकाल के अन्त में नवीन आर्थिक समाज के उदय के कारण ही उदारवार की उत्पत्ति हुई।’’ पुनर्जागरण काल में यह बौद्धिकता के विकास के कारण धार्मिक अन्धविश्वासों को समाप्त करने के प्रतिनिधि के रूप में विकसित हुआ। धर्म सुधार आन्दोलनों ने व्यक्ति को ही राजनीतिक चिन्तन का केन्द्र बना दिया। चर्च की सत्ता का लोप हो गया। व्यक्ति चर्च की दासता से मुक्त हो गया और चर्च की निरंकुश सत्ता का अन्त हो गया। आधुनिक युग में यह निरंकुश सत्ता के विरूद्ध एक प्रतिक्रिया या आन्दोलन का प्रतिनिधि है जिसने व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का महत्व प्रतिपादित किया है।

लॉस्की का मानना है कि ‘‘मध्यकाल के अन्त में नवीन आर्थिक समाज के उदय के कारण ही उदारवाद का जन्म हुआ।’’ आधुनिक युग में उदारवाद के दर्शन इंग्लैण्ड में होते हैं। वाल्टेयर, लॉक, रुसो, कॉण्ट, एडम स्मिथ, मिल, जैफरसन, माण्टेस्कयू, लॉस्की, बार्कर जैसे विचारकों को उदारवाद को महत्वपूर्ण विचारक माना जाता है। इन सभी राजनीतिक दार्शनिकों का ध्येय विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता तथा आर्थिक क्षेत्र में यद्भाव्यम् नीति (Laissez Faire) का समर्थन करना रहा है। 

इन विचारकों ने राज्य को एक आवश्यक बुराई के रूप में देखा है और व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर कम-से-कम नियन्त्रण की बात पर जोर दिया है। एक सिद्धान्त के रूप में उदारवाद इंग्लैण्ड की 1688 की गौरवपूर्ण क्रान्ति तथा फ्रांस की 1789 की क्रान्ति का परिणाम माना जाता है। लॉक को व्यक्तिवादी उदारवाद का पिता माना जाता है। 

एडम स्मिथ की पुस्तक ‘राष्ट्रों की सम्पत्ति’ (1776) जो अमेरिका की स्वतन्त्रता के घोषणापत्र के समय प्रकाशित हुई को आर्थिक उदारवाद की बाइबल माना जाता है। माक्र्सवादी उदारवाद का विकास बेन्थम तथा जेम्स मिल के द्वारा किया गया है। माण्टेस्कयू की रचना ‘The spirit of laws’ भी उदारवाद के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। रुसो का यह कथन कि ‘व्यक्ति स्वतन्त्र पैदा हुआ है, लेकिन उसके पैरों में हर जगह बेड़ियां हैं’ उदारवाद के प्रति उसके आग्रह को व्यक्त करता है। लॉक की ‘लोकप्रिय प्रभुसत्ता की अवधारणा’ भी उदारवादी दर्शन से सरोकार रखती है। 
उदार आदर्शवादी विचारक टी0एच0 ग्रीन को 20वीं सदी के उदारवाद का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। बीसवीं सदी का उदारवाद अपने प्राचीन रूप से कुछ विशेषताएं समेटे हुए हैं समसामयिक या आधुनिक उदारवाद निर्बाध व्यक्तिगत स्वतन्त्रता राज्य के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण का समर्थक नहीं है। 

आधुनिक उदारवाद व्यक्ति की स्वतन्त्रता और राज्य के साथ उसके सम्बन्ध एक कार्यक्षेत्र के बारे में सकारात्मक दृष्टिकोण लिए हुए है। आधुनिक समय में उदारवाद व्यक्ति की बजाय समाज के हित को प्राथमिकता देता है। इसी कारण आज राज्य को ‘कल्याणकारी राज्य के लक्ष्य’ को प्राप्त करने के लिए उदारवादी विचारक स्वतन्त्रता प्रदान करते हैं, चाहे इसके लिए राज्य को मानव की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का कुछ हनन ही क्यों न करना पड़े। इस प्रकार नवीन उदारवाद का दृष्टिकोण राज्य के प्रति सकारात्मक है, नकारात्मक नहीं।

उदारवाद की प्रमुख विशेषताएं व सिद्धांत

1. मानवीय स्वतन्त्रता का समर्थक – उदारवाद मनव की स्वतन्त्रता को बढ़ाना चाहता है। उदारवाद की प्रमुख मान्यता यह है कि स्वतन्त्रता व्यक्ति का जन्म सिद्ध अधिकार है। यह व्यक्ति की स्वतन्त्रता का निरपेक्ष समर्थन करता है। इसका मानना है कि मनुष्य अपने विवेक के अनुसार कार्य करने व आचरण करने के लिए स्वतन्त्र है। इसी कारण उदारवाद जीवन के सभी क्षेत्रों में पूर्ण वैयक्तिक स्वतन्त्रता का समर्थक है।

2. मानवीय विवेक में आस्था – उदारवादी विचारक मानवीय विवेक में विश्वास रखते हैं। उनका मानना है कि मनुष्य ने अपने विवेक से ही आरम्भ से लेकर आज तक जटिल सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं तकनीकी परिस्थितियों के बीच विकास एवं मानवता का मार्ग निर्धारित एवं विकसित किया है। मनुष्य ने अपने विवेक के बल पर ही स्थापित परम्पराओं का अन्धानुकरण करने की बजाय पुनर्जागरण का सूत्रपात किया है। उसने अप्रासांगिक मान्यताओं की जड़ता से मुक्त होने की मानवीय चेतना के चलते ही स्वतन्त्र चिन्तन का विकास किया है। मनुष्य ने सदैव ऐसे विचार को ही महत्व दिया है। जिसकी उपयोगिता बुद्धि की कसौटी पर खरी उतरती हो। मनुष्य ने ऐसे विचार को छोड़ने में कोई संकोच नहीं किया है जिसकी उपयोगिता बुद्धि से परे हो।

3. प्राकृतिक अधिकारों की धारणा में विश्वास – उदारवादियों का मानना है कि जीवन, सम्पत्ति एवं स्वतन्त्रता के अधिकार प्राकृतिक अधिकार हैं। स्वतन्त्रता के अन्तर्गत वैयक्तिक, नागरिक, आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक राजनीतिक आदि समस्त प्रकार की स्वतन्त्रताएं शामिल हैं। 

हॉब्स हाऊस ने अपनी पुस्तक ‘Liberalism’ में नौ प्रकार की स्वतन्त्रताओं का वर्णन किया है। हॉब्स हाऊस का कथन है कि ये सभी स्वतन्त्रताएं व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए अक्षुण्ण महत्व की है। उदारवादियों का कहना है कि नागरिक के रूप में व्यक्ति के साथ किसी अन्य व्यक्ति या सत्ता को मनमाना आचरण करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। 

हॉब्स हाऊस तो अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में भी स्वतन्त्रता की बात करता है। उदारवादियों के प्राकृतिक अधिकारों के तर्क को इस बात से समर्थन मिल जाता है कि आज सभी प्रजातन्त्रीय देशों में मौलिक अधिकारों को विधि के अधीन संरक्षण प्रदान किया गया है।

4. इतिहास तथा परम्परा का विरोध – उदारवाद ऐसी परम्पराओं और ऐतिहासिक तथ्यों का विरोध करता है जो विवेकपूर्ण नहीं है। मध्ययुग में उदारवादियों ने उन सभी धार्मिक परम्पराओं का विरोध किया था जो सभी के विशेषाधिकारों की पोषक थी। उदारवाद का उदय भी मध्ययुगीन सामाजिक व्यवस्था तथा राज्य व चर्च की निरंकुश सत्ता के विरूद्ध प्रतिक्रिया के रूप में हुआ है। 

उदारवादियों का मानना है कि प्राचीन व्यवस्था और परम्पराओं ने व्यक्ति को पंगु बना दिया है, इसलिए उदारवादी विचारक पुरातन व्यवस्था के स्थान पर परम्परायुक्त नवीन समाज का निर्माण करने की वकालत करते हैं। 

इंग्लैण्ड, फ्रांस और अमेरिका की क्रान्तियां इसी का उदाहरण हैं।

5. धर्म-निरपेक्षता में विश्वास –  उदारवाद धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण का समर्थक है। उदारवाद का जन्म ही मध्ययुग में रोमन कैथोलिक चर्च के निरंकुश धार्मिक आधिपत्य के विरूद्ध प्रतिक्रिया के कारण हुआ था। उस समय चर्च और राजा दोनों व्यक्ति धार्मिक अन्धविश्वासों की आड़ लेकर अत्याचार करते थे। 

चर्च और राजसत्ता के गठबन्धन ने व्यक्ति को महत्वहीन बना दिया था। इसलिए उदारवाद की वकालत करने वाले सभी समाज सुधारकों व विचारकों ने धार्मिक अन्धविश्वासों के पाश से व्यक्ति को मुक्त कराने के लिए धर्म-निरपेक्ष के सिद्धान्त का प्रचार किया, मैकियावेली, बोंदा और हॉब्स जैसे विचारकों ने धर्म और राजनीति में अन्तर का समर्थन किया। इसी सिद्धान्त पर चलते हुए आज उदारवादी विचारक इस बात के प्रबल समर्थक हैं कि राज्य को धर्म-निरपेक्ष दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और व्यक्ति को धार्मिक मामलों में पूरी छूट मिलनी चाहिए।

6. आर्थिक क्षेत्र में यद्भाव्यम् अथवा अहस्तक्षेप की नीति का समर्थन – उदारवादियों का मानना है कि आर्थिक क्षेत्र में व्यक्ति को स्वतन्त्रतापूर्वक अपना कार्य करने की छूट दी जानी चाहिए। उनका मानना है कि आर्थिक क्षेत्र में समाज और राज्य की ओर से व्यक्तियों के उद्योगों और व्यापार में कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। व्यक्ति को इस बात की पूरी छूट मिलनी चाहिए कि अपनी इच्छानुसार कोई भी व्यवसाय करें और उसमें पूंजी लगाए। व्यवसाय के सम्बन्ध में राज्य को चिन्ता नहीं करनी चाहिए। राज्य को संरक्षण की प्रवृत्ति से दूर ही रहना चाहिए। राज्य का दृष्टिकोण भी सम्पत्ति के अधिकार के बारे में निरपेक्ष ही होना चाहिए। 

समाज की सत्ता को आर्थिक उत्पादन, वितरण, विनिमय आदि का नियमन नहीं करना चाहिए और न ही वस्तुओं के मूल्य-निर्धारण या बाजार-नियन्त्रण आदि में कोई हस्तक्षेप करना चाहिए। लेकिन आधुनिक समय में समाजवाद की बढ़ती लोकप्रियता ने उदारवाद की इस मान्यता को गहरा आघात पहुंचाया है। समसामयिक उदारवादी विचारक ‘राज्य के कल्याणकारी’ विचार को सार्थक बनाने के लिए अब राज्य के आर्थिक क्षेत्र में हस्तक्षेप की बात स्वीकार करने लगे हैं। अत: आधुनिक उदारवाद में आर्थिक क्षेत्र में यद्भाव्यम् नीति का सिद्धान्त ढीला पड़ता जा रहा है।

7. लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली का समर्थन – उदारवादी लोकतन्त्र के प्रबल समर्थक हैं। उदारवाद की विचारधारा अपने जन्म से ही उस विचार का प्रतिपादन करती आई है कि स्वतन्त्रता व उसके अधिकारों की रक्षा का सर्वोत्तम उपाय यही है कि शासन की शक्ति जनता के हाथों में हो तथा कोई व्यक्ति या वर्ग जनता पर मनमाने ढंग से शासन न करें। लोक प्रभुसत्ता के सिद्धान्त के मूल में भी व्यक्ति की स्वतन्त्रता का ही विचार निहित है। उदारवाद की मूल मान्यता ही इस बात का समर्थन करती है कि व्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए लोकप्रभुसत्ता पर आधारित लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली ही उचित शासन प्रणाली है। 

इंग्लैण्ड, फ्रांस व अमेरिका की क्रान्तियों का उद्देश्य भी राजसत्ता का लोकतन्त्रीकरण करवा रहा है ताकि मानव की स्वतन्त्रता में वृद्धि हो सके। 

आज भी उदारवाद के समर्थक साम्यवादी या अधिनायकवादी शासन प्रणालियों का विरोध करते हैं यदि उनसे व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर कोई आंच आती हो तथा लोक प्रभुसत्ता पर आधारित प्रजातन्त्रीय शासन प्रणाली को कोई हानि होती हो। अधिकार उदारवादी आज लोकतन्त्र के आधार स्तम्भों-निर्वाचित संसद, व्यस्क मताधिकार प्रैस की स्वतन्त्रता एवं स्वतन्त्र व निष्पक्ष न्यायपालिका की वकालत करते हैं।

8. लोक कल्याणकारी राज्य व्यवस्था का समर्थन –  उदारवाद के आरिम्भक काल में उदारवादी विचारक व समर्थक मानव जीवन के राज्य के हस्तक्षेप का विरोध करते थे। उनका मत था कि व्यक्ति के जीवन में राज्य का हस्तक्षेप अनुचित है व मानवीय स्वतन्त्रता पर कुठाराघात करने वाला है। राज्य के कार्यों और उद्देश्यों के प्रति उदारवादियों का दृष्टिकोण लम्बे समय तक नकारात्मक ही रहा है। लेकिन वर्तमान समय में उदारवादियों का पुराना दृष्टिकोण बदल चुका है। अब सभी उदारवादी यह बात स्वीकार करने लगे हैं कि राज्य का उद्देश्य सामान्य कल्याण की साधना करना है। राज्य का उद्देश्य या कार्य किसी व्यक्ति या वर्ग विशेष तक ही सीमित न होकर सम्पूर्ण मानव समाज के हितों के पोषक हैं। राज्य ही वह संस्था है जो परस्पर विरोधी हितों में सामंजस्य स्थापित करके सामान्य कल्याण में वृद्धि करता है। आधुनिक उदारवादी आज के समय में लोक कल्याणकारी राज्य के विचार के प्रबल समर्थक हैं। समाजवाद के विकास से इस विचार को प्रबल समर्थन मिला है। इसी कारण आज की सरकारें लोककल्याण के लिए ही कार्य करती देखी जा सकती है।

9. राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के सिद्धान्त का समर्थन – उदारवाद निरंकुशतावाद के किसी भी सिद्धान्त का प्रबल विरोधी है। उदारवादियों को प्रारम्भ से ही साम्राज्यवाद का भी प्रबल विरोध किया है। उदारवाद की प्रमुख मान्यता यह है कि प्रत्येक देश का शासन उस देश के निवासियों की इच्छा से ही संचालित होना चाहिए। इससे ही व्यक्ति की स्वतन्त्रता बनी रह सकती है। अत: उदारवाद राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार का प्रबल समर्थक है। यह स्वशासन के सिद्धान्त का ही समर्थन करता है।

10. व्यक्ति साध्य तथा राज्य साधन – उदारवादी विचारक व समर्थक इस बात पर जोर देते हैं कि व्यक्ति अपने हितों का निर्णायक है। मनुष्य अपने जीवन के हर कार्य में प्राकृतिक रूप से स्वतन्त्र है। इसी आधार पर यह एक साध्य है। राज्य तथा अन्य संस्थाएं उसके विकास का साधन है। आधुनिक उदारवादी विचारकों ने व्यक्ति और राज्य के बीच की खाई को कम करना शुरू कर दिया है। आधुनिक उदारवाद व्यक्ति और राज्य के बीच सामंजस्यपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने की वकालत करते हैं।

11. राज्य एक कृत्रिम संस्था है और उसका उद्देश्य व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करना है –  उदारवादियों का मत है कि राज्य कोई ईश्वरीय व प्राकृतिक संस्था नहीं हैं यह एक कृत्रिम संस्था है जिसका निर्माण व्यक्तियों ने अपने हितों के लिए एक संविदा (Contract) के तहत किया है। हॉब्स, लॉक व रुसो का चिन्तन इसी मत का समर्थन करता है। बर्क, ग्रीन, कॉण्ट जैसे विचारक भी इसी मत की पुष्टि करते हैं। 

बेंथम का मत है कि राज्य एक उपयोगितावादी संस्था है जिसका कार्य ‘अधिकतम व्यक्तियों को अधिकतम सुख’ प्रदान करना है। इस तरह उपयोगितावादी विचारक राज्य का आधार समझौते की बजाय इसकी उपयोगिता को मानते हैं। 

इस वर्णन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि चाहे राज्य का जन्म कैसे भी हुआ हो, वह एक कृत्रिम संस्था ही है जिसका उद्देश्य व्यक्ति को अधिकतम स्वतन्त्रता प्रदान करके उसके व्यक्तिगत का विकास करना ही है लेकिन आधुनिक उदारवादी व्यक्ति की बजाय सारे समाज के कल्याण को ही प्राथमिकता देते हैं। इस अर्थ में राज्य का उद्देश्य व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास की बजाय सम्पूर्ण समाज के विकास से है।

12. संवैधानिक शासन का समर्थन – उदारवाद विधि के शासन को उचित महत्व देता है। उदारवादियों का मानना है कि विधि के शासन के अभाव में व्यक्ति की स्वतन्त्रता का हनन होता है और समाज में अराजकता फैल जाती है जिससे बलवान व्यक्तियों के हितों का ही पोषण होने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। इसलिए उदारवादी सीमित सरकार तथा कानून के शासन को उचित महत्व देते हैं। उदारवाद के समर्थक चाहे वे 19वीं सदी के हों या वर्तमान सदी के, सभी संवैधानिक शासन को ही मान्यता देते हैं।

13. विश्व शान्ति में विश्वास – सभी उदारवादी विचारक विश्व बन्धुत्व की भावना का प्रबल समर्थन करते हैं। उनका मानना है कि विश्व समाज के विकास से ही प्रत्येक देश का भला हो सकता है। इसलिए वे एक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र की अखण्डता व सीमाओं का आदर करने की बात पर जोर देते हैं। उदारवादी अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में शक्ति प्रयोग के किसी भी रूप का विरोध करते हैं। इसी आधार पर उदारवादी विश्व शांति के विचार को व्यवहारिक बनाने पर जोर देते हैं।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि उदारवाद मानवीय स्वतन्त्रता का पोषक है। वह मानवीय विवेक में आस्था व्यक्त करते हुए व्यक्ति के कार्यों में राज्य के अनुचित हस्तक्षेप पर रोक लगाने की वकालत करता है। आधुनिक समय में उदारवादी धर्म- निरपेक्षता के विचार का समर्थन करते हुए विश्व-शांति के विचार का पोषण करते हैं। आधुनिक उदारवाद राज्य के प्रति उदारवादियों द्वारा अपनाए गए नकारात्मक दृष्टिकोण को बदल रहा है। आधुनिक उदारवादी व्यक्ति की बजाय सम्पूर्ण समाज के हितों पर ही बल देते हैं। आधुनिक उदारवादी राज्य के लोक कल्याण के आदर्श को प्राप्त करने के लिए आर्थिक क्षेत्र में भी राज्य के हस्तक्षेप को उचित ठहराते हैं।

समकालीन उदारवाद

मानव की स्वतन्त्रता व गरिमा की रक्षा करना उदारवाद का प्रारम्भ से ही ध्येय रहा है। उदारवाद का पुराना और नया दोनों रूप ही मानव के चयन और निर्णय के क्षेत्र में वृद्धि करके उसके व्यक्तित्व के विकास के प्रबल समर्थन में जुटे रहते हैं। उदारवाद का समकालीन रूप भी परम्परागत उदारवाद की तरह ही निरंकुशवाद विरोधी है। उदारवाद का सारयुक्त लक्षण मानवतावाद है। यह कमजोर का समर्थक और दमनकारी का विरोधी है। समय में परिवर्तन को देखते हुए उदारवादियों ने भी स्वतन्त्रता के नए-नए सूत्र खोजने के प्रयास किए हैं। प्राचीन उदारवाद जहां राज्य व व्यक्ति की स्वतन्त्रता के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण के लिए हुए था, वहीं समकालीन उदारवाद राज्य और व्यक्ति के बीच सामंजस्यपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करके सकारात्मक दृष्टिकोण का परिचय देता है। 

प्राचीन उदारवाद आर्थिक क्षेत्र में निजी उद्यम की स्वतन्त्र का पोषक रहा जबकि आधुनिक उदारवाद व्यक्ति व समाज के हितों के लिए आर्थिक क्षेत्र में भी राज्य के उचित हस्तक्षेप का पक्षधर है। इसका प्रमुख कारण बदली हुई सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियां मानी जाती है। उदारवादियों की नई पीढ़ी ने आर्थिक उदारवाद के परम्परागत सिद्धान्त का खण्डन किया। समाजवाद ने आगमन ने आर्थिक उदारवाद के नए सिद्धान्त को जन्म दिया और नए उदारवाद ने भी समाजवादी सिद्धान्तों के प्रति अपनी आस्था प्रकट की है। उदारवाद को नए रूप में लाने का श्रेय बेंथम मिल तथा ग्रीन जैसे विचारकों को जाता है। बैंथम व मिल का उपयोगिता वाद का सिद्धान्त ही ‘अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख’ के मार्ग में आने वाली बाधाओं को हटाने के लिए व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर भी प्रतिबन्ध लगाता है। 

बैंथम का कहना है कि देश की राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों में परिवर्तन लाने के लिए राज्य का हस्तक्षेप आवश्यक है। मिल भी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का समर्थक होने के बावजूद अहस्तक्षेप की नीति का विरोध करता है। ग्रीन ने भी उदारवाद को जो नया रूप दिया है, वह आधुनिक उदारवाद में ‘सामूहिक कल्याण’ के विचार का पोषक है। 

ग्रीन भी व्यक्ति के जीवन को अच्छा बनाने के लिए राज्य की मदद की वकालत करता है। ग्रीन ने लोक कल्याण के विचार का समर्थन किया है जो आधुनिक उदारवाद का प्रमुख सिद्धान्त है। लॉस्की ने भी सामाजिक हित में उद्योगों पर राज्य द्वारा नियन्त्रण लगाने की बात कही है। लॉस्क तथा मैकाइवर ने भी ग्रीन की तरह ही लोककल्याण पर ही अधिक बल दिया है।

आधुनिक उदारवाद का प्रमुख जोर इस बात पर है कि स्वतन्त्रता केवल एक अभाव नहीं है। उपयुक्त रूप में गठित सवैंधानिक तन्त्र के माध्यम से व्यक्ति प्रभावी राजनीतिक क्षमता व्यक्त करने योग्य होना चाहिए। आधुनिक उदारवाद चाहता है कि उपेक्षित वर्गों को नया जीवन देकर उनकी राजनीतिक उदासीनता दूर की जाए और सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया जाए। इसके लिए संसदीय व्यवस्था का पुनर्निर्माण किया जाए और अन्तर्राष्ट्रीय निकायों-जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ आदि को सुदृढ़ करके राज्यों की प्रभुसत्ता को सीमित किया जाए। इसी कारण आज उदारवादी राष्ट्रीय आत्मनिर्णय के सिद्धान्त को सीमित करना चाहते हैं और अन्तर्राष्ट्रीयता व विश्व शांति के विचार का समर्थन करते हैं। आज उदारवाद मुक्त मानव के सिद्धान्त का विरोध करता है और समाज हित में राज्य के अधिकाधिक हस्तक्षेप को उचित ठहराता है। 

आज उदारवाद जैसे सकारात्मक राज्य के सिद्धान्त का पोषक है जो समाजवाद को आगे बढ़ाने वाला है। आज समाजवाद को ही ‘उदारवाद का वैद्य उत्तरराधिकारी’ माना जाता है। आधुनिक उदारवादी राज्य को लोककल्याण का एक साधन मानते हैं अर्थात् उनकी दृष्टि में राज्य सामान्य हित साधन की एक प्रमुख संस्था है। समकालीन उदारवाद राज्य व व्यक्ति की स्वतन्त्रता के विरोधी दावे में संतुलन कायम करता है।

उदारवाद का मूल्यांकन

यद्यपि उदारवाद एक महत्वपूर्ण विचारधारा है जो व्यक्ति की स्वतन्त्रता व लोककल्याण के आदर्श के बीच संतुलन कायम करती है। अपने समसामयिक रूप में यह स्वतन्त्रता, समानता, लोकतन्त्रीय शासन का समर्थन, लोक कल्याणकारी राज्य एवं धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण में विश्वास व्यक्त करता है, लेकिन फिर भी उदारवादी दर्शन की काफी आलोचनाएं हुई हैं-
  1. कुछ आलोचकों ने समकालीन उदारवाद पर प्रथम आरोप यह लगाया कि रॉल्स जैसे विचारकों द्वारा वितरणात्मक न्याय पर नये सिरे से बल देने के कारण यह बुर्जुआ व्यवस्था का समर्थक है जिसका निहितार्थ यह है कि व्यक्ति को अधिक आर्थिक स्वतन्त्रता दी जाए। प्रो0 मिल्टन फ्राइडमैन का कहना है कि ‘‘मुक्त मानव समाज में आर्थिक स्वतन्त्रता पर अधिक जोर दिए जाने के कारण समसामयिक उदारवाद समाजवाद से काफी दूर हो गया है।’’
  2. एडमण्ड बर्क का उदारवाद पर प्रमुख आरोप यह है कि यह इतिहास और परम्परा का विरोधी है। किसी भी समाज और विचारक के लिए परम्परा व इतिहास से अचानक नाता तोड़ना न तो सम्भव है और न ही उचित।
  3. अनुदारवादियों का प्रमुख आरोप यह है कि उदारवाद समाज व राज्य को कृत्रिम मानता है। उदारवादियों की दृष्टि में संविदा द्वारा राज्य के निर्माण की बात स्वीकार करना और प्राकृतिक अधिकारों की धारणा में विश्वास करना गलत है। अनुदारवादियों का कहना है कि राज्य व्यक्ति की सामाजिक प्रवृत्तियों का विकसित रूप है, कृत्रिम नहीं।
  4. आदर्शवादियों का उदारवाद पर प्रमुख आरोप यह है कि व्यक्ति की निरपेक्ष स्वतन्त्रता का विचार गलत है। लेकिन आधुनिक उदारवादी राज्य द्वारा नियमित स्वतन्त्रता को ही वास्तविक स्वतन्त्रता मानते हैं। इसी कारण आदर्शवादियों की यह आलोचना अधिक प्रासांगिक नहीं है।
  5. मार्क्सवादियों का उदारवाद पर प्रमुख आरोप यह है कि यह ऐतिहासिक परम्पराओं की उपेक्षा करता है, राज्य को कृत्रिम मानता है, व्यक्ति की निरपेक्ष स्वतन्त्रता का समर्थन करता है तथा अहस्तक्षेप या यद्भाव्यम् की नीति का समर्थन करता है। आर्थिक क्षेत्र में खुली प्रतिस्पर्धा समाज को दो वर्गों में बांट देती है और इससे पूंजीवाद का ही पोषण होता है। लेकिन समसामयिक उदारवाद मुक्त आर्थिक व्यवस्था पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रबल समर्थक है। इसलिए मार्क्सवादियों की इस आलोचना में भी कोई दम नहीं है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि उदारवाद एक आदर्शवादी विचारधारा है। लेनिन तो सभी उदारवादियों को आरामकुर्सी पर बैठे रहने वाले मूर्ख कहता है। कुछ विचारक इसे विरोधाभासी दर्शन भी कहते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि उदारवाद महत्वहीन विचारधारा है। उदारवाद के व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, मानव अधिकार, विधि का शासन धर्म-निरपेक्ष दृष्टिकोण आदि सिद्धान्त उसके महत्व को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं। मानवतावाद का समर्थन होने के कारण आज भी उदारवाद शाश्वत् महत्व की विचारधारा है। स्वतन्त्रता व समानता के आदर्श पर जोर देने के कारण यह सभी प्रजातन्त्रीय शासन प्रणाली वाले देशों में समर्थन को प्राप्त है। अन्तर्राष्ट्रीयता और विश्व-शांति के विचार पर जोर देने के कारण यह अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में भी अपना स्थान बनाए हुए है। 

साम्राज्यवाद व निरंकुशवाद के किसी भी रूप का विरोधी होने के कारण यह अपने जीवन के प्रारम्भिक क्षणों से ही मानव चिन्तन का प्रमुख केन्द्र बिन्दू रही है। सत्य तो यह है कि उदारवादी दर्शन ने अपने विकास की लम्बी यात्रा मे समय-समय पर आर्थिक नीति निर्धारकों, राजनीतिज्ञों व समाज सुधारकों के चिन्तन को प्रभावित किया है। आधुनिक समय में यह समाजवाद की विचारधारा से गहरा सरोकार रखती है।

8 Comments

Previous Post Next Post