कृषि यंत्रीकरण से आप क्या समझते हैं कृषि यंत्रीकरण के लाभ व हानियों की विवेचना?

कृषि यंत्रीकरण

वह प्रक्रिया मनुष्य अथवा पशुओं की सहायता से किया जाने वाला कार्य मशीनों द्वारा किया जाता है कृषि यंत्रीकरण कहते है।

कृषि यंत्रीकरण का आशय

कृषि यंत्रीकरण का आशय खेती में पशु और मनुष्य की जगह यथासंभव यंत्र का प्रयोग है। अर्थात जहां तक संभव हो पशु तथा मानवशक्ति को यंत्रीकरण द्वारा प्रतिस्थापित किया जाए। हल चलाने का कार्य ट्रैक्टरों द्वारा होना चाहिए। बुवाई और उर्वरक डालने का कार्य ड्रिल द्वारा करना चाहिए। इसी तरह से फसल काटने का कार्य भी मशीनों द्वारा किया जाना चाहिए। कृषि के पुराने औजारों की जगह मशीनों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

यंत्रीकरण का अर्थ खेती की सभी क्रियाओं में हल चलाने से लेकर फसल काटने तथा अनाज निकालने में मशीनों का प्रयोग होता है।

कृषि यंत्रीकरण की परिभाषा

जी. डी. अग्रवाल के शब्दों में, “ खेतों का यंत्रीकरण - शब्दों का प्रयोग बेहद व्यापक ढंग से किया जाता है। इसमें केवल बड़ी या छोटी, चल या अचल, बिजली से चलने वाली और जुताई, कटाई तथा मड़ाई के काम में लाई जाने वाली मशीनें ही शामिल नहीं, बल्कि सिंचाई का काम करने वाली भारी भरकम बिजली की मशीनें, खेतों की उपज ढोने वाले ट्रक, प्रसंस्करण मशीनें, क्रीम, मक्खन आदि जैसी चीजें बनाने वाले डेरी उपकरण, तेल निकालने वाली, कताई करने वाली, चावल छीलने वाली मशीनें भी शामिल हैं। इसके अलावा इसमें रेडियो, प्रेस, कपड़े धोने की मशीनों, वैक्युम क्लीनर तथा हॉट प्लेट जैसे बिजली के उपकरण भी शामिल हैं। 

सी.बी. मेमोरिया के अनुसार, “इसका (यंत्रीकरण) मतलब है, कृषि के काम में, जहां तक संभव हो, जानवरों तथा श्रमिकों के श्रम की जगह मशीनी शक्ति का इस्तेमाल करना या इस काम में मशीनों की सहायता लेना।“ यंत्रीकरण आंशिक या पूर्ण हो सकता है। जब खेत में आधा काम मशीनों द्वारा किया जाए तो उसे आंशिक यंत्रीकरण कहते हैं। जब बिना श्रमिकों या जानवरों की सहायता से, केवल बिजली द्वारा चलने वाली मशीनें खेतों में काम करती हैं तो इसे पूर्ण यंत्रीकरण कहा जाता है। व्यापक तौर पर कृषि यंत्रीकरण के दो रूप होते हैं - चल यंत्रीकरण तथा अचल यंत्रीकरण। पहला, कृषि के कामों में जानवर शक्ति के स्थान पर इस्तेमाल किया जाता है, जिसपर कृषि सदियों से निर्भर करता आ रहा है जबकि दूसरा खेतों में आदमियों और जानवरों के संयोजन द्वारा की जाने वाली कड़ी मेहनत को कम करने की कोशिश करता है।

भारत में कृषि यंत्रीकरण से लाभ

कृषि यंत्रीकरण (मशीनीकरण) कृषि तकनीक में परिवर्तन की आधारशिला है। भारत में कृषि यंत्रीकरण के पक्ष में मुख्यत: तर्क दिये जाते हैं।

1. कृषि श्रम की कुशलता में वृद्धि - फार्म पर यांत्रिक साधनों से कृषि करने पर श्रमिकों की कार्य कुशलता एवं क्षमता में वृद्धि होती है, जिससे प्रति श्रमिक उत्पादन में मात्रा में वृद्धि होती है।

2. उत्पादन में वृद्धि - जैसा कि आप जानते हैं कि कृषि में मशीनों के प्रयोग करने से कृषि कार्यों की गति बढ़ जाती है, मानवीय शक्ति का प्रयोग कम हो जाता है और खेतों का आकार बड़ा रखा जाने लगता है। मशीनीकरण के फलस्वरुप गहन व सधन जुलाई करना सम्भव हो पाता है। इसके कारण प्रति हेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि हो जाती है।

3. उत्पादन लागत में कमी - राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद के नमूना सर्वेक्षण के अनुसार टै्रक्टर से खेती करने की प्रति एकड़ लागत 100 रुपये आती है जबकि वही कार्य यदि बैलों की सहायता से किया जाता है तो लागत 160 रुपये आती है। इस प्रकार यान्त्रिक कृषि उत्पादन लागत कम करने में सहायक है।

4. समय की बचत - कृषि यंत्रों का प्रयोग करने से किसान अपना कार्य शीघ्रता से कर लेते हैं और समय भी बच जाता है। जो कार्य एक जोड़ी हल व बैल से पूरे दिन भर किया जाता है उसे एक टै्रक्टर द्वारा एक घण्टे से भी कम समय में कर लिया जाता है।

5. व्यापारिक कृषि को प्रोत्साहन - कृषि यन्त्रों के प्रयोग से व्यापारिक कृषि को प्रोत्साहन मिलता है। उद्योगों को कच्चा माल पर्याप्त मात्रा में कृषि क्षेत्र द्वारा उपलब्ध कराया जा सकता है। भूमि के बहुत बड़े-बड़े खेत कम समय व कम लागत में जोते जा सकते हैं, जिसके फलस्वरुप बड़ी मात्रा में उत्पादन मण्डी तक पहुॅचाया जा सकता है। खाद्यान्न फसलों, के साथ-साथ व्यापारिक फसलों को भी प्रोत्साहन मिलता है। कृषि उपज की बिक्री न केवल अपने देश के बाजारों में बल्कि विदेशी बाजारों तक भी होती है।

6. भारी कार्यों को सुगम बनाना - कृषि यंत्रों की सहायता से भारी कार्य जैसे ऊॅची नीची व पथरीली भूमि, बंजर भूमि तथा टीलों को आसानी से साफ व समतल कर कृषि योग्य बनाया जा सकता है। इस तरह कृषि योग्य भूमि में वृद्धि कर कृषि उत्पादन कृषि में यंत्रों का प्रयोग कर किया जाता है।

7. रोजगार के अवसरों में वृद्धि - कृषि यंत्रीकरण के परिणामस्वरुप दीर्घकालीन रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है। यंत्रीकरण के कारण कृषि यंत्रो से सम्बन्धित उद्योग धन्धों व सहायक यन्त्रों का विस्तार होने लगता है। कृषि यंत्रीकरण से उद्योग एवं परिवाहन में रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं, जैसे ट्रैक्टर।

8. किसानों की आय में वृद्धि - जैसा कि आप जानते हैं कि कृषि यंत्रो की सहायता से किसान कम समय व कम लागत में अधिक कृषि उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं, इसके फलस्वरुप किसानों की आय में वृद्धि होती हैं।

9. उपभोक्ताओं को लाभ - कृषि में यंत्रीकरण से उत्पादन लागत कम आती है जिसके परिणामस्वरुप उपभोक्ताओं को कृषि उपजों का मूल्य कम देना पड़ता है।

10. परती भूमि का उपयोग - गहरी जुताई करने, भू-संरक्षण, भूमि सुधार, गहरे पानी वाले क्षेत्रों से पानी उठाने के कार्य यंत्रों की सहायता से सरलतापूर्वक किये जा सकते है।

11. बहु फसली खेती को प्रोत्साहन - कृषि यंत्रीकरण से बहुफसली खेती को प्रोत्साहन मिलता है और फसल चक्र में वांछित परिवर्तन करना सम्भव होता है। कृषक वर्ष में दो-तीन विभिन्न प्रकार की फसलें उत्पादित कर पाते हैं।

12. ऊर्जा, बीज व उवर्रक की बचत - तकनीकि विकास महानिदेशालय द्वारा गठित, तकनीकि विकास सलाहकार समूह ने यह अनुभव किया कि बीज सहित उवर्रक ड्रिल (Seed-Cum fertiliser drill) न केवल ऊर्जा की बचत रहती है बल्कि 20 प्रतिशत बीज को भी बचत करती है और 15 प्रतिशत तक उत्पादन बढ़ाने में सहायक होती है। इससे उर्वरक व बीज का प्रयोग अधिक प्रभावशाली ढंग से हो पाता है।

कृषि यंत्रीकरण के दोष

1. बेरोजगारी में वृद्धि - जैसा कि आप को ज्ञात हे कि भारत की जनसंख्या का आकार बहुत बड़ा है और प्रतिवर्ष इसमें वृद्धि होती जा रही है। इसीलिए यंत्रीकरण के विरोध में तर्क देने वालों का मत है कि भारत में वैसे ही बेरोजगारी की समस्या विद्यमान है, कृषि में आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग करने से कृषि श्रमिकों की मांग घट जाएगी क्योंकि यंत्रो की सहायता से कम समय अधिक काम हो सकता है। इससे कृषि श्रमिकों और अधिक संख्या में काम नहीं मिल पाएगा। चूंकि देश में अभी भी 60 प्रतिशत जनसंख्या रोजगार के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से कृषि पर ही निर्भर करती है। अत: यदि कृषि में बड़े पैमाने पर यंत्रीकरण करने से बेरोजगारी को बढ़ावा ही मिलेगा। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कृषि यंत्रीकरण बहुत अधिक उपयुक्त नहीं है। इसका सीमित मात्रा में ही प्रयोग होना चाहिए।

2. कृषि जोतों का छोटा आकार - हमें ज्ञात है कि भारत में लघु व सीमान्त जोतों का आकार बहुत ही छोटा है। यहॉ लगभग 61.58 प्रतिशत जोंतें हैं एक हेक्टेयर से कम तथा 80.31 प्रतिशत जोते दो हेक्टेयर से कम है। भारत में जोत का औसत आकार 1.41 हेक्टेयर है जबकि अमेरिका में 60 हेक्टेयर और कनाडा में 188 हेक्टेयर है। इसके अतिरिक्त यहॉ पर भूमि उपविभाजन के कारण जोते बिखरी हुई हैं। छोटी व बिखरी जोतों पर टै्रक्टर का प्रयोग कृषकों के लिए लाभकारी नहीं हो सकता। भारत में अनार्थिक जोतों यंत्रीकरण के मार्ग में एक बड़ी बाधा है।

3. पूंजी की कमी - यांत्रिक साधनों को जुटाने के लिए कृषकों को अधिक पूंजी कीे आवश्यक्ता होती है। जिसे जुटा पाना अधिकांश कृषकों के लिए सम्भव नहीं है क्योंकि भारत में सामान्य कृषक निर्धन हैं। भारत में सम्पन्न किसान ही यंत्रीकरण का लाभ उठा सकते हैं।

4. तकनीकी ज्ञान का अभाव - यान्त्रिक साधनों के उपयोग के लिए आवश्यक तकनीकों ज्ञान का कृषकों में अभाव होने के कारण, उन्हें छोटी-छोटी कमियों को दूर कराने के लिए मििस़्त्रयों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे दूसरों पर निर्भरता बढ़ती है और कार्य समय पर पूरा नहीं हो पाता है। कृषि यंत्रों की कार्य प्रणाली अनपढ़ कृषकों को समझाना भी कठिन होता है।

5. भूमिहीन श्रमिकों की संख्या में वृद्धि - यान्त्रिक कृषि अपनाने से बड़े किसान, लघु कृषकों की भूमि क्रय कर लेते हैं जिससे इससे बड़े किसानों की जोतों का आकार बड़ा हो जाता है इसलिए भूमिहीन श्रमिकों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही हैं।

6. ईधन की समस्या - कृषि यंत्रों जैसे टै्रक्टर, ट्यूबवेल, थे्रशर आदि चलाने के लिए पैट्रोल, डीजल व बिजली की आवश्यक्ता होती है। इसकी आपूर्ति कम होने तथा कीमतें अधिक होने से सामान्य कृषक की क्रय शक्ति के बाहर हो जाती है। इसके अतिरिक्त अधिकांश राज्यों में बिजली की आपूर्ति 24 घण्टे नहीं है, किसानों को कृषि यंत्रों के प्रयोग में बाधा आने लगती है और मशीनें बेकार पड़ी रहती है।

7. गॉवों में वर्कशॉप का अभाव - ग्रामीण क्षेत्रों में यन्त्रों एवं उपकरणों की मरम्मत की सुविधा तथा स्पेयर पार्टस की उपलब्धता का अभाव पाया जाता है, ऐसी स्थिति में कृषि यंत्रो का प्रयोग करने में बाधा आने लगती है।
उपर्युक्त कठिनाइयों के कारण देश में यान्त्रिक कृषि के विकास की गति बहुत धीमी रही है।

संदर्भ-
  1. एस0पी0 (2012), कृषि अर्थशास्त्र, साहित्य भवन, पब्लिकेशन्स, आगरा।
  2.  एन0 एल (2000), भारतीय कृषि का अर्थतन्त्र, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर।
  3. एस0के0, पुरी वी0के0 (2007), भारतीय अर्थव्यवस्था, खेती में मशीनीकरण,हिमालय पब्लिशिंग हाउस, बम्बई।
  4. आर0एन (2010), भारतीय कृषि का मशीनीकरण, विशाल पब्लिशिंग कं0जालंधर।
  5. https://agricoop.nic.in/

1 Comments

  1. आपने अच्छी जानकारी दी है धन्यवाद।
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