सामाजिक नियंत्रण क्या है सामाजशास्त्रियों ने सामाजिक नियंत्रण के अलग-अलग साधन बताये है

बचपन से व्यक्ति माता-पिता और परिवार के बड़े-बूड़ों के नियंत्रण में रहता है, और शिक्षक या शिक्षण संस्था के नियंत्रण में रहता है। राज्य के सदस्य होने के कारण उस पर कानून एवं विधि का नियंत्रण होता है। अपने जीवन में उसे धर्म के नियंत्रण को स्वीकार करना पड़ता है और और अधिक सामाजिक अन्तःक्रियाओं के दौरान उसे यह देखकर स्वयं आश्चर्य होता है कि वह कितने प्रकार से सामाजिक विश्वासों, जनरीतियों, आचारों, परम्पराओं और प्रथाओं के द्वारा हर पल नियंत्रित होता है । नियंत्रण के बिना जीवन-व्यवस्था और समाज-व्यवस्था तहस-नहस हो जायेगी। मानव अपने स्वभाव से ही स्वार्थी है, हिंसा, द्वेष की भावना और अपने स्वाथों की सर्वप्रथम पूर्ति के लिये प्रयास करते रहना मानवीय व्यक्तित्व की कुछ सामान्य और स्वाभाविक विलक्षणताऐं हैं। ऐसी स्थिति में मानव को यदि पूर्ण स्वतंत्रता दी जाये तो वह अपनी मनमानी से समाज की व्यवस्था को बिगाड़ कर एक असभ्य समाज बना देगा। समाज द्वारा लगाये गये प्रतिबंधों को ही सामाजिक नियंत्रण कहते हैं।

सामाजिक नियंत्रण की परिभाषा

विभिन्न समाजशास्त्रियों नें सामाजिक नियंत्रण की अलग-अलग परिभाषायें दी है। कुछ प्रमुख समाजशास्त्रियों की प्रमुख परिभाषायें है।

आगबर्न तथा निमकाॅफ ने कहा है, ‘‘व्यवस्था और स्थापित नियमों को बनाये रखने के लिये किसी भी समाज द्वारा डाले गये दबाव के प्रतिमान को उस समाज की नियन्त्रण व्यवस्था कहा जाता है।‘‘ 

राॅस के कथनों में, ‘‘सामाजिक नियन्त्रण का तात्पर्य उन समस्त शक्तियों से है जिनके द्वारा समाज अपने सदस्यों को मान्य व्यवहार-प्रतिमानों के अनुरुप बनाता है।‘‘ 

गुरविच और मूरे “सामाजिक नियंत्रण का सम्बन्ध उन सभी प्रक्रियाओं और प्रयत्नों से है जिनके द्वारा समूह अपने आंतरिक तनावों और संधर्षो पर नियंत्रण रखता है और इस प्रकार रचनात्मक कार्यो को और बढाता है।”

राँस “इस प्रकार सामाजिक नियंत्रण में रीति रिवाज, सामाजिक धर्म, व्यैक्तिक आदर्श, लोकमत, विधि, विश्वास, उत्सव, कला, ज्ञान, सामाजिक मूल्य आदि वे सभी तत्व आते है, जिनसे व्यक्ति पर समूह का अथवा समूह पर समाज का नियंत्रण रहता है। इससे समाज में व्यवस्था बनी रहती है और व्यक्तिगत व्यवहार की मर्यादायें निश्चित रहती हे। इसके बिना समाज का जीवन नही चल सकता।”

ब्राइटली, “सामाजिक नियंत्रण नियोजित अथवा अनियोजित प्रक्रियाओं और ऐजेन्सियों के लिए एक सामुहिक शब्द है जिनके द्वारा व्यक्तियों को यह सिखाया जाता है, उनसे आग्रह किया जाता है अथवा उनको बाध्य किया जाता है कि वे अपने समूह की रीतियों तथा सामाजिक मूल्यों के अनुसार ही कार्य करे।”

मानहीम के अनुसार, “सामाजिक नियंत्रण उन विधियों का योग है जिनके द्वारा समाज व्यवस्था को स्थिर रखने हेतु मानवीय व्यवहार को प्रभावित करने का प्रयत्न करता है।”

लैडिंस के अनुसार, “सामाजिक नियंत्रण एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति को समाज के प्रति उत्तरदायी बनाया जाता है एवं सामाजिक संगठन को निर्मित एवं संरक्षित किया जाता है।”

रूक के अनुसार, “उन प्रक्रियाओं और अभिकरणों (नियोजित अथवा अनियोजित) जिनक द्वारा व्यक्तियों को समूह के रिति-रिवाजों एवं जीवन मूल्यों के समरूप व्यवहार करने हेतु प्रशिक्षित, प्रेरित अथवा बाधित किया जाता है वह सामाजिक नियंत्रण है।”

किम्बाल यंग ने सामाजिक नियंत्रण को परिभाषित करते हुए कहा है कि, “किसी समूह का दूसरे के ऊपर अथवा समूह का अपने सदस्यों के ऊपर अथवा व्यक्तियों का दूसरे के ऊपर आचरण के निर्धारित नियमों का क्रियान्वित करने हेतु दमन, बल, बंधन, सुझाव अथवा अनुनय का प्रयोग है। इन नियमों का निर्धारण स्वंय सदस्यों द्वारा यथा आचरण की व्यवसायिक संहिता में अथवा किसी विशाल समविष्ट समूह द्वारा किसी अन्य छोटे समूह के नियंत्रण हेतू किया जा सकता है।”

बोटोमोर के अनुसार, ‘‘ सामाजिक नियन्त्रण का तात्पर्य मूल्यों तथा आदर्श नियमों की उस व्यवस्था से है जिसके द्वारा व्यक्तियों और समूहों के बीच के तनाव व संघर्ष दूर अथवा कम किये जाते हैं।‘‘ 

सामाजिक नियंत्रण के साधन

समाज को संगठित रखने में सामाजिक नियंत्रण की एक प्रमुख भूमिका होती है। समाज के कई ऐसे नियम या अभिकरण है जो समाज में सामाजिक नियंत्रण को बनाये रखते है। ये ऐसे साधन है जो व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करके समूह के मूल्यों नियमों एचं रिति रिवाजों का पालन करने के लिए बाध्य करते है। सामाजशास्त्रियों ने सामाजिक नियंत्रण के अलग-अलग साधन बताये है।
  1. ई0 ए0 रॉस ने जनमत, कानून, प्रथा, धर्म, नैतिकता, लोकाचार तथा लोकरितीयों को सामाजिक नियंत्रण का प्रमुख साधन माना है।
  2. ई0 सी0 हेज ने सामाजिक नियंत्रण के रूप में शिक्षा, परिवार, सुझाव, अनुकरण, पुरूष्कार एवं दण्ड प्रणाली को नियंत्रण का सबसे प्रभावी साधन एवं महत्वपूर्ण अभिकरण माना है।
  3. लूम्ले ने सामाजिक नियंत्रण के साधन को दो वर्ग बल पर आधारित तथा प्रतीकों पर आधारित में विभक्त किया है। जिसमें शाररिक बल तथा पुरूष्कार, प्रशंसा, शिक्षा, उपहास, आलोचना, धमकी, आदेश तथा दण्ड सम्मिलित है।
  4. लूथर एल0 बर्नाड ने सामाजिक नियंत्रण के साधन को अचेतन एवं चेतन के रूप में बाटा है। अचेतन साधनों मे प्रथा, रिति रिवाज एवं परम्परायें है। चेतन साधन में दण्ड, प्रतिकार तथा धमकी आदि है।

सामाजिक नियंत्रण के प्रकार

विभिन्न समाजशास्त्रियों ने सामाजिक नियंत्रण के स्वरूप को अनेकों प्रकार से वर्गीकृत किया है।

कार्ल मैनहीम ने सामाजिक नियंत्रण के दो प्रकार बताये है।
  1. प्रत्यक्ष सामाजिक नियंत्रण।
  2. अप्रत्यक्ष सामाजिक नियंत्रण।
1. प्रत्यक्ष सामाजिक नियंत्रण - प्रत्यक्ष सामाजिक नियंत्रण प्राय: प्राथमिक समूहों में पाया जाता है। जैसे परिवार, पड़ोस तथा खेल समूह। यह नियंत्रण व्यक्ति पर उन व्यक्तियों द्वारा किये गये व्यवहार तथा प्रक्रियाओं का प्रभाव है जो उसके सबसे करीबी हो। क्योंकि व्यक्ति पर समीप रहने वाले व्यक्ति के व्यवहार का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। यह नियंत्रण प्रशंसा, निन्दा, आलोचना, सुझाव, पुरस्कार, आग्रह तथा सामाजिक बहिष्कार आदि के द्वारा लगाया जाता है तथा प्रत्यक्ष रूप से लगाया गया सामाजिक नियंत्रण का प्रभाव स्थायी होता है तथा व्यक्ति इसको स्वीकार भी करता है।

2. अप्रत्यक्ष सामाजिक नियंत्रण - अप्रत्यक्ष या परोक्ष सामाजिक नियंत्रण व्यक्ति पर द्वितीयक समूहों द्वारा लगाये गये नियंत्रण से है। विभिन्न समूहों, संस्थाओं, जनमत, कानूनों तथा प्रथाओं द्वारा व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित कर एक विशेष प्रकार का व्यवहार करने को बाध्य किया जाता है। व्यक्ति इस नियंत्रित व्यवहार को धीरे-धीरे अपनी आदतों में शामिल कर लेता है यही अप्रत्यक्ष सामाजिक नियंत्रण है। समाज एवं समूह को व्यवस्थित एवं संगठित रखने के लिए अप्रत्यक्ष सामाजिक नियंत्रण का विशेष महत्व है तथा यह समूह के कल्याण में अपनी विशेष भूमिका का निर्वहन करते है।

चाल्र्स कूले ने सामाजिक धटनाओं के आधार पर सामाजिक नियंत्रण के प्रकारों को स्पष्ट किया है। कूले के अनुसार सामाजिक धटनायें दो प्रकार से समाज को नियंत्रित करती है।

1. चेतन नियंत्रण - मनुष्य अपने जीवन में अपने समूह के लिए कई कार्य तथा व्यवहार जागरूक अवस्था में सोच समझ कर करता है। यह चेतन अवस्था कहलाती है। जागरूक अवस्था में किया गया कोई भी कार्य चेतन नियंत्रण कहलाता है।

2. अचेतन नियंत्रण - प्रत्येक समाज या समूह की अपनी संस्कृति, प्रथायें, रीति रिवाज, लोकाचार, परम्परायें तथा संस्कारों से निरन्तर प्रभावित होकर उनके अनुरूप ही समाज व समूह के प्रति व्यवहार करता है, इन प्रथाओं रीति रिवाजों या धार्मिक संस्कारों के प्रति व्यक्ति अचेतन रूप से जुड़ा रहता है और जीवन पर्यन्त वह उसकी अवहेलना नहीं कर पाता जो समाज व समूह को नियंत्रित करने में अपनी प्रमुख भूमिका निभाते है। यह अचेतन नियंत्रण कहलाता है।

किम्बाल यंग ने सामाजिक नियंत्रण को सकारात्मक नियंत्रण एवं नकारात्मक नियंत्रण दो भागों में विभाजित किया है।

1. सकारात्मक नियंत्रण -  सकारात्मक नियंत्रण में पुरस्कारों के माध्यम से व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित किया जाता है। प्रोत्साहन या पुरस्कार व्यक्ति की कार्यक्षमता को तो बढाता ही है साथ ही अच्छे कार्यों के लिए प्रेरित भी करता है। प्रथाओं और परम्पराओं का पालन करने की कोशिश करता है जो समाज उसे एक सम्मानजनक स्थिति प्रदान करता है। उदाहरण के लिए स्कूल कालेजों में विद्यार्थियों को तथा समाज में उत्कृष्ट कार्य करने के व्यक्ति को पुरस्कार द्वारा सम्मानित करना।

2. नकारात्मक नियंत्रण - जहां एक ओर समाज में प्रोत्साहन या पुरस्कारों द्वारा व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित किया जाता है वही दूसरी ओर दण्ड के माध्यम से भी व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित किया जाता है। समाज द्वारा स्वीकृत नियमों, आदर्शों, मूल्यों तथा प्रथाओं का उल्लंघन करने पर व्यक्ति को अपराध के स्वरूप के आधार पर सामान्य से मृत्यु दण्ड तक दिया जाता है। यही कारण है कि व्यक्ति आदर्शों के विपरीत आचरण नहीं करते या करने से डरतें है। इस प्रकार के नियंत्रण को नकारात्मक नियंत्रण कहते है। जैसे कि जाति के नियमों के विरूद्ध आचरण करने वाले व्यक्ति को जाति से बहिष्कृत कर दिया जाता है।

गुरविच और मूरे ने सामाजिक नियंत्रण को संगठित, असंगठित, सहज नियंत्रण तीन भागों में विभाजित किया है।

1. संगठित नियंत्रण - इस प्रकार के निंयंत्रण में लिखित नियमों के द्वारा व्यक्तियों के व्यवहारों को नियंत्रित करकिया जाता है। जैसे- राज्य के कानून इसके उदाहरण है। 

2. असंगठित नियंत्रण - विभिन्न प्रकार के संस्कारों, प्रथाओं, लोकरीतियां तथा जनरीतियों द्वारा स्थापित नियंत्रण असंगठित नियंत्रण कहलाता है।

3. सहज नियंत्रण - प्रत्येक व्यक्ति की अपनी आवश्यकतायें, नियम, मूल्य, विचार एवं आदर्श होते है अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समय पर निर्भर रहना पड़ता है और इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यक्ति स्वीकृत नियमों के अन्दर रहकर ही करता है। इस प्रकार का नियंत्रण सहज सामाजिक नियंत्रण कहलाता है। 

जैसे- धार्मिक रीति रिवाजों का पालन सहज सामाजिक नियंत्रण का उदाहरण है।

4. औपचारिक नियंत्रण - औपचारिक नियंत्रण के अन्तर्गत समाज में स्थापित एक ऐसी व्यवस्था जिसकी स्थापना राज्य तथा समाज मे व्याप्त औपचारिक संगठनों द्वारा बनाये गये स्वीकृत नियमों के आधार पर समूह के व्यक्तियों के व्यवहार पर नियंत्रण रखना होता है। इस प्रकार के नियमों का उल्लधंन करने पर दण्ड व्यवस्था का भी प्रा
विधान रखा जाता है। 

जैसे - कानून, न्यायपालिका, पुलिस, प्रचार प्रसार संगठन आदि।

5. अनौपचारिक नियंत्रण - अनौपचारिक नियंत्रण में किसी प्रकार के लिखित कानूनों की आवश्यकता नहीं होती बल्कि समाज में व्याप्त स्वीकृत नियम, आर्दश,मूल्य, जनरीतियां, प्रथायें, लोकाचार तथा नैतिक नियमों के आधार पर नियंत्रण रखा जाता है।

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