आत्मकथा का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं एवं तत्व

आत्मकथा लेखन में लेखक के द्वारा कही गयी बातों पर विश्वास करते हुए उस को सच माना जाता है, क्यों कि उस के लिए लेखक स्वयं साक्षी एवं जिम्मेदार होता है। आत्मकथा लेखन आत्मकथाकार के जीवन के व्यक्तित्व उद्घाटन, ऐतिहासिक तत्वों की प्रामाणिकता तथा उद्देश्य के कारण महान होता है। आत्मकथा का उद्देश्य लेखक द्वारा स्वयं का आत्मनिर्माण करना, आत्मपरीक्षण करना तथा उस के साथ-साथ अतीत की स्मृतियों को पुनर्जीवित करना होता है। आत्मकथा लेखक इस के द्वारा आत्मॉकन, आत्मपरिष्कार तथा आत्मोन्नति भी करना चाहता है। इस का लाभ अन्य लोगों को भी मिलता है। इस से अन्य पाठक भी कुछ प्रेरणा ग्रहण कर सकते हैं।

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आत्मकथा का अर्थ

आत्मकथा के लिए अंग्रेजी में ‘Autobiography’ शब्द प्रचलित है। जब लेखक स्वयं के जीवन का क्रमिक ब्यौरा प्रस्तुत करता है, तो उसे आत्मकथा कहा जाता है। आत्म कथा में स्वयं की अनुभूति होती है। इस में लेखक उन तमाम बातों का विवरण देता है, जो बातें उस के जीवन में घटी होती हैं। आत्मकथा में लेखक अपने अन्तर्जगत को बहिर्जगत के सामने प्रस्तुत करता है, इस में आत्मविश्लेषण होता है। 

आत्मकथा में लेखक अपने जीवन के बारे में लिखता है तथा समाज के सामने स्वयं को प्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत करता है। जिस से समाज उस के जीवन के पहलुओं से परिचित होता है। आत्मकथा विधा के कई पयार्यवाची नाम भी मिलते हैं। 

आत्मकथा को परिभाषित करने से पहले हम को इस शब्द की उत्पत्ति एवं अर्थ को जान लेना चाहिए। ‘‘आत्म यह शब्द आत्मन शब्द से उत्पन्न हुआ है। इस का अर्थ लिया जाता है ‘स्वयं का’ आत्मचरित, आत्मकथा, आत्मकथन इन शब्दों का सामान्यत: एक ही अर्थ लिया जाता है। ‘‘अंग्रेजी के Autobiography को ही हिन्दी में आत्मकथा या आत्मवृत्त कहा जाता है। आधुनिक हिन्दी शब्दकोश में ‘‘आत्मकथा शब्द ‘स्त्री लिंगी’ संज्ञा में लिया गया है, तथा उस का अर्थ ‘स्वयं’ द्वारा लिखा गया जीवन चरित्र, जीवनी, आपबीती, आत्मकहानी’’ आदि विकल्प स्वरूप लिया गया है।

आत्मकथा की अवधारणा पर अनेक विद्वानों ने अपने विचार रखे हैं इन विचारों के आधार पर यह कहा जाता है कि जो आत्मकथाकार होता है वह अपने जीवन की प्रमुख घटनाओं, मानवीय अनुभूतियों, भावों विचारों तथा कार्यकलापों को निष्पक्षता एवं स्पष्टता से आत्मकथा में समाहित करता है। इस में उस के जीवन की उचित एवं अनुचित घटनाओं का सच्चा चित्रण होता है। इस में लेखक स्वयं के जीवन की स्मृतियों को प्रस्तुत करता है, जो आत्मनिरीक्षण, आत्मज्ञान तथा आत्म-न्याय के आधार पर होती है। इसलिए आत्मकथा को हम सम्पूर्ण व्यक्तित्व के उद्घाटन की विधा के रूप में भी स्वीकार करते हैं।

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आत्मकथा की परिभाषा

1. एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार- आत्मकथा, व्यक्ति के जिये हुए जीवन का ब्यौरा है, जो स्वयं उस के द्वारा लिखा जाता है।

2. कैसेल ने एनसाइक्लोपीडिया ऑफ लिटरेचर में आत्मकथा को परिभाषित करते हुए कहा है कि- आत्मकथा व्यक्ति के जीवन का विवरण है, जो स्वयं के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इसमें जीवनी के अन्य प्रकारों से सत्य का अधिकतम समावेश होना चाहिए।

3. हरिवंशराय बच्चन कहते हैं - आत्मकथा, लेखन की वह विधा है, जिस में लेखक ईमानदारी के साथ आत्मनिरीक्षण करता हुआ अपने देश, काल, परिवेष से सामंजस्य अथवा संघर्ष के द्वारा अपने को विकसित एवं प्रस्थापित करता है।

4. डॉ0 नगेन्द्र ने आत्मकथा को इस प्रकार परिभाषित किया है - आत्मकथाकार अपने संबंध में किसी मिथक की रचना नहीं करता कोई स्वप्न सृष्टि नहीं रचता, वरन् अपने गत जीवन के खट्टे-मीठे, उजाले अंधेरे, प्रसन्न-विषण्ण, साधारण-असाधारण संचरण पर मुड़कर एक दृष्टि डालता है, अतीत को पुन: कुछ क्षणों के लिए स्मृति में जी लेता है और अपने वर्तमान तथा अतीत के मध्य सूत्रों का अन्वेषण करता है।

5. डॉ0 कुसुम अंसल ने कहा है- आत्मकथा लिखना अपने अस्तित्व के प्रति कर्ज चुकाने जैसी प्रक्रिया या संसार चक्र में फॅसे अपने अस्तित्व की डोर को उधेड़ लेने का साहित्यिक प्रयास है।

6. डॉ0 शान्तिखन्ना के अनुसार- जब लेखक किसी अन्य व्यक्ति के जीवन चरित्र को चित्रित करने की अपेक्षा अपने ही व्यक्तित्व का विश्लेषण विवेचन पूर्ण रूप से करता है, तब वह आत्मकथा कहलाती है। आत्मकथा का नायक लेखक स्वयं होता है, इस में लेखक जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन करता है। आत्मकथा लेखक आत्मविवेचन, आत्मविश्लेषण के दृष्टिकोण से लिखता है। इस के साथ वह आत्मप्रचार की भावना से भी व्यक्तिगत जीवन का विवेचन करता है। वह चाहता है कि उस के अनुभवों का लाभ अन्य लोग भी उठा सकें, इस प्रकार गद्य साहित्य में इस विधा का महत्वपूर्ण स्थान है। 

अत: स्पष्ट है कि जब लेखक अपने जीवन का विश्लेषण, विवेचन स्पष्ट रूप से करता है, तब वह आत्मकथा कहलाती है। जीवनीपरक साहित्य का वह अन्यतम भेद है। आत्मकथा लेखक साहित्यिक, राजनीतिक, धार्मिक कोई भी हो सकता है परन्तु लेखक का सर्वप्रतिष्ठित एवं सर्वमान्य होना आवश्यक है।

7. डॉ0 साधना अग्रवाल के अनुसार- आत्मकथा लिखने की शर्त है ईमानदारी से सच के पक्ष में खड़ा होना और अपनी सफलता-असफलताओं का निर्ममता पूर्वक पोस्टमार्टम करना।

8. डॉ0 त्रिगुणायत ने आत्मकथा की परिभाषा इस प्रकार दी है- आत्मकथा लेखक की दुर्बलताओं-सबलताओं आदि का वह संतुलित और व्यवस्थित चित्रण है जो उस के संपूर्ण व्यक्तित्व के निष्पक्ष उद्घाटन में समर्थ होता है। इसी परिभाषा से मेल खाती हुई परिभाषा डॉ0 चंद्रभानु सोनवणे की है। वे कहते हैं- आत्मकथा वह गद्य विधा है जिस में लेखक निजी जीवन एवं व्यक्तित्व का सर्वांगीण अध्ययन तटस्थ एवं संतुलित दृष्टि से करता है।

9. डॉ0 श्यामसुंदर घोष के अनुसार- आत्मकथा समय-प्रवाह के बीच तैरने वाले व्यक्ति की कहानी है। इसमें जहॉ व्यक्ति के जीवन का जौहर प्रकट होता है वहॉ समय की प्रवृत्तियॉ और विकृतियॉ भी स्पष्ट होती हैं। इन दोनों घात प्रतिघात से ही आत्मकथा में सौन्दर्य और रोचकता का समावेश होता है। 

डॉ0 “यामसुंदर घोष की परिभाषा से यह बात स्पष्ट होती है कि आत्मकथा से न केवल उस व्यक्ति की जीवन-कहानी का पता चलता है बल्कि समसामयिक परिस्थितियों के ऐतिहासिक तथ्यों के साथ व्यक्तित्व के गढ़ने में उन के सहयोग का भी पता चलता है।

आत्मकथा की विशेषताएं

1. आत्मविश्लेषण- आत्मकथा में लेखक खुद का विश्लेषण करता है। अपनी अच्छाइयों और बुराइयों का विश्लेषण करता है। इस में लेखक उन तथ्यों को भी उजागर करता है जिस से उस के जीवन में सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव पड़ा। आत्मकथा लेखन को काफी हिम्मत का काम माना जाता है। क्यों कि हर व्यक्ति में इतना साहस नहीं होता कि वह अपनी कमजोरियों को समाज के सामने रख सके, शायद इसीलिए हिंदी में आत्मकथा लेखन का उद्भव काफी बाद में हुआ।

2. आत्मालोचन- आत्मलोचन आत्मकथा की काफी महत्वपूर्ण विशेषता है। आत्मकथा लेखक खुद को काफी करीब से देखता है। तथा अपने सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलुओं का काफी निकटता से अवलोकन करता है। अपने जीवन की घटनाओं को काफी निकट से देखता है, जिन घटनाओं ने उस के जीवन को प्रभावित किया या उस के जीवन के विकास में योगदान दिया।

3. लेखक का समाज से परिचय- आत्मकथा में लेखक का समाज से परिचय भी होता है। समाज लेखक की आत्मकथा को पढ़कर उस के जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त करता है। इस से समाज का लेखक के जीवन की उन घटनाओं और तथ्यों से परिचय होता है, जिस से समाज आज तक अनभिज्ञ था। इस में बहुत बार वो बातें सामने आती हैं जिन के बारे में किसी को पता नहीं होता। इस बातों का परिचय आत्मकथा से ही होता है। आत्मकथाएं बहुत बार समाज को प्रेरणा प्रदान करने का काम भी करती हैं। 

समाज जब उन महान व्यक्तियों की आत्मकथा पड़ता है, जिन्होंने समाज के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया या जिन्होंने तमाम संघर्षों के बाद अपने जीवन में सफलता पाई, इस प्रकार की आत्मकथाओं से समाज को प्रेरणा ही मिलती है, जो भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का काम करती हैं।

4. घटनाओं का विवरण- आत्मकथा में लेखक अपने जीवन में घटित घटनाओं का विवरण भी प्रस्तुत करता है। उस के साथ जो घटनाएं होती हैं, लेखक अपनी आत्मकथा में उस का सिलसिलेवार विवरण देता है। आत्मकथा उस के जीवन की घटनाओं को बयाँ करती है।

5. वास्तविक जीवन से परिचय- आत्मकथा लेखक के जीवन से वास्तविक परिचय कराती है। क्यों कि उस में उन बातों का भी विवरण होता है, जिन बातों से पाठक वर्ग अनभिज्ञ होता है। क्यों कि हर आदमी के जीवन में वे बातें होती हैं, जो बस उसी से संबंधित होती हैं। उन बातों को लेखक अपनी आत्मकथा में उकेरता है। इसलिए आत्मकथा पाठक वर्ग को लेखक के वास्तविक जीवन से परिचय कराती है।

आत्मकथा के तत्व

किसी भी विधा को समझने के लिए उस के तत्वों को समझना आवश्यक है। जिस के आधार पर हम उस को अन्य विधाओं से अलग कर सकें। आत्मकथा की परिभाषाओं से उस की विधा का पता चलता है। पर इस को और अधिक स्पष्ट करने के लिए हम आत्मकथा के तत्वों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। 

विभिन्न विद्वानों ने आत्मकथा के अनेक तत्व बतलाए हैं, हम डॉ0 शान्तिखन्ना के द्वारा बताये गये आत्मकथा के तत्वों पर चर्चा कर रहे हैं। डॉ0 शान्तिखन्ना ने आत्मकथा के प्रमुख तत्व बताये हैं।
  1. वण्र्य विषय
  2. चरित्र-चित्रण
  3. देशकाल
  4. उद्देश्य
  5. भाषा-शैली
1. वण्र्य विषय -  आत्मकथा में इस तत्व को प्रमुख रूप में स्वीकार किया गया है। आत्मकथा में लेखक अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं और विषयों का वर्णन करता है। लेखक द्वारा आत्मकथा में वर्णित विषय में सत्यता का होना जरूरी है। आत्मकथा लेखक का वण्र्य विषय काल्पनिक नहीं वरन् यथार्थ पर आधारित होना चाहिए। आत्मकथा लेखक अपने जीवन की घटनाओं के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों का भी वर्णन करता है। आत्मकथा लेखक को इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि आत्मकथा में अनावश्यक आत्मविस्तार तथा शील संकोच न आने पाए। अत: आत्मकथा के वण्र्य विषय में सच्चाई और ईमानदारी का होना आवश्यक है। अन्य महत्वपूर्ण गुण जो कि वण्र्य विषय को रोचक बनाता है वह है संक्षिप्तता। 

आवश्यकता से अधिक विस्तार विषय को नीरस बना देता है। अत: आत्मकथा में रोचकता, स्पष्टवादिता, यथार्थता, सत्यता, स्वभाविकता एवं संक्षिप्तता होनी चाहिए जिससे आत्मकथा श्रेष्ठ होती है।

2. चरित्र-चित्रण - आत्मकथा साहित्य कर दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है चरित्र-चित्रण इस का सम्बन्ध पात्रों से होता है। आत्मकथा लेखन में आत्मकथाकार ही खुद प्रमुख पात्र होता है। अत: आत्मकथा लेखक खुद के चरित्र के सभी पक्षों का विश्लेषण भी आत्मकथा में करता है। आत्मकथाकार के लिए यह नितांत आवश्यक है कि कि वह निष्पक्ष एवं निर्दोष भाव से आत्मविवेचन करें। स्पष्ट है कि आत्मकथाकार को गुण दोषों का विवेचन सत्यता के धरातल पर करना चाहिए। उसके आत्मप्रकाशन में किसी तरह का मोह नहीं होना चाहिए। इस तरह की आत्मकथा ही सच्ची आत्मकथा है। प्राय: आत्मकथाकार अपने व्यक्तित्व को स्पष्ट करने के लिए उन व्यक्तियों का भी वर्णन करता है जिन का उस के जीवन पर प्रभाव पड़ा अथवा जिन व्यक्तियों से उस का संबंध रहा है। 

बच्चन ने अपनी आत्मकथा में अपने पिता जी के स्वभाव का भी वर्णन किया हैं। उन के सम्बन्ध में कहा है - मेरे पिता की अपने लड़कों के बारे में कोई महत्वाकांक्षा न थी। मेरे मैट्रिकुलेशन में फेल होने के बाद अगर उन की चलती तो मुझे नौकरी करने को बाध्य कर देते। स्पष्ट है कि लेखक प्रसंगानुसार उन सभी लोगों का वर्णन करता है जिन का उस से सम्बन्ध रहा है। जिस से उस के खुद को व्यक्तित्व को समझने में सहायता मिलती है।

4. देशकाल - आत्मकथा में सजीवता लाने के लिए इस में देशकाल का होना आवश्यक माना गया है। देश काल का असर प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व पर पड़ता है। इस से उस की उन सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, साहित्यिक प्रभाव क्षेत्र का पता चलता है जिस से वह आता है। इस प्रकार गौण रूप में तत्कालीन परिस्थितियों का पता भी चलता है।

5. भाषा-शैली - आत्मकथा में भाषा शैली का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। संप्रेषणीयता के लिए भाषा शैली का अच्छा होना बहुत जरूरी है। शैली अनुभूत विषयवस्तु को सजाने के उन तरीकों का नाम है, जो विषयवस्तु की अभिव्यक्ति को सुंदर एवं प्रभावपूर्ण बनाते हैं। इसमें असामान्य अधिकार के अभाव में लेखक की सफलता संभव नहीं। आत्मकथा की शैली में प्रभावोत्पादकता का होना अति आवश्यक है। इसी के कारण आत्मकथा पाठक के मन में अपना प्रभाव डाल पाती है। इसलिए लेखक को नि:संकोच रूप से अपने जीवन का वर्णन करना चाहिए जिस का पाठक के ऊपर प्रभाव पड़ता है। लेखक को जीवन के उत्थान-पतन तथा गुण-दोषों का विवेचन इस प्रकार करना चाहिए कि वह पाठक को रूचिकर लगे। 

लेखक को अपने समस्त जीवन का वर्णन इस प्रकार करना चाहिए जिस से अनावश्यक विस्तार भी न हो। और साथ में गठित भी हो। क्रमानुसार वर्णन अधिक रोचक होता है। आत्मकथाएँ विभिन्न शैलियों में लिखी जाती हैं। ये शैलियां आत्मनिवेदनात्मक, भावात्मक, विचारात्मक, वर्णनात्मक, ऐतिहासिक तथा हास्य प्रधान आदि हैं।

अत: कहा जा सकता है कि आत्मकथा में प्रभावोत्पादकता, लाघवता, नि:संकोच आत्मविश्लेषण, सुसंगठितता तथा स्पष्टता आदि गुणों को होना चाहिए। आत्मकथा में जहाँ तक भाषा की बात है, भाषा भावाभिव्यक्ति का साधन होती है। आत्मकथा में भाषा को भावानुकूल और विषयानुकूल होना चाहिए। लेखक की भाषा को शुद्ध, स्पष्ट, परिष्कृत और परिमार्जित होना चाहिए जिस से वह पाठकों को प्रभावित कर सकता है। 

भाषा को श्रेष्ठ बनाने के लिए शब्दों का चयन विषय एवं भावों के अनुकूल होना चाहिए, तथा भाषा का प्रयोग पात्रों एवं परिवेश के अनुरूप होना चाहिए। जिसे आत्मकथा पाठकों को प्रभावित करती है।

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