कला शिक्षा विद्यार्थियों के सृजनात्मक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण उपयुक्त माध्यम के रूप में पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा है। यह शिक्षा मुख्यत: दो तथ्यों पर आधारित है। प्रथम तथ्य है कि प्रत्येक विद्यार्थी अनेकों छुपी हुई सृजनात्मक योग्यताओं से परिपूर्ण होता है एवं द्वितीय तथ्य है कि कला शिक्षा बालक की इन सृजनात्मक योग्यताओं को परिपूर्ण करने में सहायक होती है। ये कलायें ही विद्यार्थी की उत्सुकता, कल्पना, सृजन, सौन्दर्यानुभूति को विकसित कर सकती हैं। विभिन्न कलायें जैसे चित्रकला, मूर्तिकला, सज्जात्मक कला, संगीत, नृत्य, थियेटर, ड्रामा आदि के माध्यम से बालक को उसकी वंशानुगत क्षमताओं को प्रकट करने एवं अभिव्यक्त करने का अवसर प्राप्त होता है।
चाक्षुष (Visual Art) कला के अंतर्गत चित्रकला, मूर्तिकला एवं स्थापत्यकला सम्मिलित होती हैं।
प्रदर्शनकारी (Performing Art) कला के अंतर्गत संगीत, नृत्य, नाटक (ड्रामा), फिल्म, काव्य आते हैं। कला, मानव की मानसिक आवश्यकता है। चाक्षुष एवं प्रदर्शनकारी कलाओं के मूल में भावनाओं की सहज, सौन्दर्यपूर्ण, सृजनात्मक अभिव्यक्ति निहित होती है। जब से मानव का अस्तित्व इस दुनिया में आया है तब से लगातार अलग-अलग रूपों, आकारों से मानव उसे अभिव्यक्त करता आ रहा है। आदिकाल से मानव अपनी बातों को रंगों, रेखाओं, मुद्राओं, सुर, ताल, हाव-भावों से प्रदर्शित करता आ रहा है और अपनी संस्कृति एवं सभ्यता को अपने माध्यम से संजो रहा है।
प्रदर्शनकारी (Performing Art) कला के अंतर्गत संगीत, नृत्य, नाटक (ड्रामा), फिल्म, काव्य आते हैं। कला, मानव की मानसिक आवश्यकता है। चाक्षुष एवं प्रदर्शनकारी कलाओं के मूल में भावनाओं की सहज, सौन्दर्यपूर्ण, सृजनात्मक अभिव्यक्ति निहित होती है। जब से मानव का अस्तित्व इस दुनिया में आया है तब से लगातार अलग-अलग रूपों, आकारों से मानव उसे अभिव्यक्त करता आ रहा है। आदिकाल से मानव अपनी बातों को रंगों, रेखाओं, मुद्राओं, सुर, ताल, हाव-भावों से प्रदर्शित करता आ रहा है और अपनी संस्कृति एवं सभ्यता को अपने माध्यम से संजो रहा है।
कला शिक्षा के अध्ययन के प्रमुख उद्देश्य
कला शिक्षा उसके व्यक्तिगत गुणों का ही नहीं; सामाजिक गुणों का भी संस्कार पैदा करती है। अंततोगत्वा सामाजिक संस्कार परिष्कृत होकर हमारी संस्कृति का संरक्षक बन जाती है। कला के प्रति सृजनात्मक दृष्टिकोण को विकसित करने की दृष्टि से सामान्य शिक्षा के पाठ्यक्रम में सभी स्तरों पर कला शिक्षा का समावेश किया गया है। शिक्षक प्रशिक्षण के स्तर पर कला शिक्षा के अध्ययन को प्रारंभ करने के पीछे पाठ्यचर्या 2005 के प्रमुख उद्देश्य ‘रचनात्मकता’ पर कार्य करने हेतु शिक्षकों को दक्ष करना है। यह उम्मीद की जाती है कि कला-शिक्षा के शिक्षण के पूर्व, न केवल कला विषय के शिक्षक, अपितु समस्त विषयों के शिक्षकों में इस योग्यता का विकास हो जाए कि व े ‘विषय-ज्ञान’ का े ‘जीवन-कौशल’ में परिवर्तित कर सकें।
कला शिक्षा के अध्ययन से समाज और संस्कृति को सजाने-संवारने वाले लोक कलाकारों तथा उनकी कला के प्रति सद्भावना का भाव उत्पन्न कर सकेंगे। कला-शिक्षा के अध्ययनापेरांत निम्नलिखित उद्देश्यों को प्राप्त करने की योग्यता विकसित कर सकेंगे:-
- सृजनात्मक अभिव्यक्ति प्रदान करना।
- भारतीय संस्कृति एवं पारंपरिक कलाआंे के प्रति अभिरुचि जागृति करना।
- पारंपरिक कलाआंे एवं शैलियां े के संरक्षण हेतु दायित्व बोध करवाना।
- सौंदर्य चेतन जागृत करना तथा लोक कला एवं कलाकारों के प्रति अनुराग उत्पन्न करना।
- नवीन एवं आधुनिक साधनों और तकनीक द्वारा सृजनात्मक अभिव्यक्ति के अवसर प्रदान करना।
- बालकों में वातावरणीय सौंदर्य को अनुभूत कर पहचानने की क्षमता उत्पन्न करना।
- कलात्मक संवदेना को दैनिक जीवन में भी बनाये रखना।
- बालकों को सर्वांगीण विकास के अवसर प्रदान करना।
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कला शिक्षा
Good information,Thanks
ReplyDeleteवुरुु
ReplyDeleteकला पर ऐसे ही लिखते रहें , संसार को उत्थान और शांति के लिए कला प्रसार की बहुत आवश्यकता है ।धन्यवाद
ReplyDeleteमेरी वेबसाइट - www.artandhumansociety.com
sorry, my website is - www.artandhumansociety.in
ReplyDeletewhat above I mentioned is wrong.
Nice to kala
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