शाब्दिक रूप में मनोविज्ञान दो पदों से मिलकर बना है, मन एवं विज्ञान । इस दृष्टि से यदि देखें तो वैज्ञानिक तरीकों से मन का अध्ययन ही मनोविज्ञान है। मानसिक प्रक्रियाओं एवं व्यवहार के अध्ययन का विज्ञान ही मनोविज्ञान है।
मानसिक प्रक्रियायें - चिंतन, समस्या समाधान, निर्णय, प्रत्यक्षण, विचार आदि मानसिक प्रक्रियाओं के विभिन्न उदाहरण हैं।
आधुनिक मनोवैज्ञानिकों द्वारा मनोविज्ञान को अधिक वैज्ञानिक एवं वस्तुनिष्ठ रूप से परिभाषित करने की कोशिश की गयी। इन लोगों ने मनोविज्ञान को व्यवहार का अध्ययन (study of behaviour) का विज्ञान माना है। मनोविज्ञान को व्यवहार के अध्ययन के विज्ञान के रूप में परिभाषा जे.बी. वाटसन (J.B. Watson) ने सर्वप्रथम दिया था। व्यवहार को एक ठोस एवं प्रेक्षणीय (observable) पहलू के रूप में परिभाषित किया गया।’’
अत: यह आत्मा, मन तथा चेतना आदि से काफी भिन्न था क्योंकि ये सभी कुछ ऐसे थे जो आत्मनिष्ठ (subjective) थे तथा जिनका प्रेक्षण (observation) भी नहीं किया जा सकता था। इसको विषय-वस्तु व्यवहारात्मक प्रक्रियाएँ (behaviour processes) माना गया जिसे आसानी से प्रक्षेण किया जा सकता है। सीखना, प्रत्यक्षण, हाव-भाव आदि जिनका वस्तुनिष्ठ अध्ययन संभव है, उसका ही अध्ययन मनोविज्ञान करता है। साथ-ही-साथ मनोविज्ञान उन मानसिक प्रक्रियाओं (mental processes) का भी अध्ययन करता है जिनका सीधे प्रेक्षण तो नहीं किया जाता है परन्तु उसके बारे में आसानी से व्यवहारात्मक एवं मनोवैज्ञानिक आँकड़ों के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है। इन तथ्यों को ध्यान में रखकर मनोविज्ञान की एक उत्तम परिभाषा सैनट्रोक (Santrock, 2000) के अनुसार, ‘‘मनोविज्ञान व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन है।’’’
मनोविज्ञान का अर्थ
मनोविज्ञान का अर्थ मनोविज्ञान (Psychology) दो ग्रीक शब्दों, 'Psyche'
तथा 'Logos' के मिलने से बना है। 'Psyche' का अर्थ ‘आत्मा’
तथा 'Logos' का अर्थ अध्ययन करना अथवा ‘विवेचना’ करना
होता है। अत: इस शाब्दिक अर्थ के अनुसार मनोविज्ञान को आत्मा
का अध्ययन करने वाला विषय माना गया है।’’ आरंभिक ग्रीक दार्शनिकों जैसे अरस्तू (Aristotle) तथा प्लेटो
(Plato) ने मनोविज्ञान को आत्मा का ही विज्ञान कहा।
17वीं
शताब्दी के दार्शनिकों जैसे लिबिनिज (Leibinitz), लॉक
(Locke) आदि ने 'Psyche' शब्द का अधिक उपयुक्त अर्थ ‘मन’
(mind) से लगाया। और इस तरह से इन लोगों ने मनोविज्ञान को
मन के अध्ययन (study of mind) का विषय माना। परन्तु आत्मा
या मन ये दोनों ही कुछ पद ऐसे थे जिनका स्वरूप अप्रेक्षणीय
(unobservable) तथा अदर्शनीय था।
अत: इन दोनों तरह की
परिभाषाओं को वैज्ञानिक अध्ययन के लिए स्वीकार्य नहीं माना
गया। इसके बाद लोगों ने मनोविज्ञान को चेतना या चेतन अनुभूति के अध्ययन को विज्ञान कहा।
मनोविज्ञान की परिभाषा
1. बेरोन (Baron, 2001) के अनुसार, ‘‘मनोविज्ञान
संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं एवं व्यवहार के विज्ञान के रूप में उत्तम
ढंग से परिभाषित किया जाता है।’’
2. बोरिंग बोरिंगंग लैगफेल्ड व वेल्ड- ‘‘मनोविज्ञान मानव प्रकृति का अध्ययन है।’’
3. सिस्सरेल्ली एवं मेअर (Ciccarelli - Meyer, 2006) के अनुसार, ‘‘मनोविज्ञान व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करता है।’’
4. क्रो एवं क्रो- ‘‘मनोविज्ञान मानव व्यवहार आरै मानव संबंधों का अध्ययन है।’’
5. वुडवर्थर्- ‘‘मनोविज्ञान वातावरण के संबंध में व्यक्तियों की क्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन है।’’
6. जेम्स- ‘‘मनोविज्ञान की सर्वोत्तम परिभाषा चेतना के वर्णन और व्याख्या के रूप में की जा सकती है।’’
मनोविज्ञान का स्वरूप
मनोविज्ञान विषय का महत्व मनोविज्ञान के स्वरूप को समझने पर ही पता चलता है। मनोविज्ञान के स्वरूप को समझने के लिए हमें जानना होगा कि मनोविज्ञान क्या है, मनोविज्ञान किस प्रकार का विज्ञान है, मनोविज्ञान की कौन-कौन-सी शाखाएँ हैं, मनोविज्ञान के उद्देश्य क्या हैं और इसकी समस्याएँ क्या हैं। मनोविज्ञान के अनुसार मनुष्य क्या है और मनोविज्ञान की मानव जगत को क्या-क्या देन है, इन बातों का अध्ययन करने से भी मनोविज्ञान के स्वरूप को भली प्रकार समझा जा सकता है।प्रारम्भ में शताब्दियों तक मनोविज्ञान दर्शनशास्त्र का ही एक अंग बना रहा। गत पचास वर्षों में मनोवैज्ञानिकों ने मनोविज्ञान को एक स्वतंत्र विषय के रूप में प्रस्तुत करके विज्ञान का एक स्वरूप दिया। इसी कारण अब विश्वविद्यालयों में मनोविज्ञान के पृथव्फ विभाग खुल गये हैं और इसे स्वतंत्र विषय के रूप में पढ़ाया जाता है।
मनोविज्ञान का जो वर्तमान स्वरूप हमारे सामने है, प्रारम्भ में मनोविज्ञान का स्वरूप इससे भिन्न था। इसे शुरू-शुरू में आत्मा का शास्त्र माना जाता था। उस समय इस विषय का उद्देश्य आत्मा के सम्बन्ध में अन्वेषण करना और इसी सम्बन्ध में चिन्तन करना था। इस प्रकार मनोविज्ञान आध्यात्मवाद से सम्बन्धित था और दर्शनशास्त्र का अंग था। सोलहवीं शताब्दी तक मनोविज्ञान आत्मा का विज्ञान बना रहा। लोग आत्मा को प्रत्यक्ष रूप में न तो देख सके और न उसे परिभाषित कर सके, अतः इसे आत्मा का विज्ञान मानने में लोगों को आपत्ति होने लगी। इसमें परिवर्तन लाने की दृष्टि से लोगों ने इसे मन का विज्ञान कहना शुरू किया। परन्तु मन का स्वरूप भी आत्मा की भाँति निश्चित और परिभाषित नहीं किया जा सका। इसलिए मनोविज्ञान को मन का विज्ञान स्वीकार नहीं किया गया और मनोविज्ञान को अभी तक शुद्ध विज्ञान जैसा स्थान नहीं मिल सका।
मनोवैज्ञानिकों ने गहन अध्ययन करके देखा कि मनुष्य के व्यवहार में चेतना का प्रभाव रहता है। अतः मनोविज्ञान को चेतना का विज्ञान मान लिया गया, परन्तु कुछ मनोवैज्ञानिकों ने पाया कि व्यक्ति सभी व्यवहार चेतना के वशीभूत होकर नहीं करता, वह अचेतन से भी व्यवहार करता है। इसलिए मनोविज्ञान को अचेतना का विज्ञानमान लिया गया, परन्तु आगे चलकर मनोविज्ञान की यह परिभाषा भी लोगों को मान्य न रही और मनोविज्ञान का स्वरूप बदलता चला गया।
अब मनोविज्ञान को मानव और पशु के व्यवहार का विज्ञान माना जाता है। मनोविज्ञान के अन्तर्गत मानव व्यवहार का अध्ययन करना ही लक्ष्य होता है, परन्तु इस अध्ययन का आधार पशु व्यवहार को भी बनाया जाता है। पहले मनोविज्ञान की सहायता से पशुओं के व्यवहार का प्रयोगात्मक अध्ययन कर लिया जाता है और बाद में मानव व्यवहार के साथ पशु व्यवहार की तुलना करके मानव का अध्ययन करने में सफलता प्राप्त कर ली जाती है। मानव व्यवहार स्वाभाविक तथा अर्जित या अध्गिमित दो प्रकार का होता है। इन दोनों ही प्रकार के व्यवहारों का अध्ययन आधुनिक मनोविज्ञान में किया जाता है।
इस प्रकार मनोविज्ञान का स्वरूप अध्यात्मवाद से हटाकर मानव और पशु के व्यवहार पर केन्द्रित हुआ।
मनोविज्ञान के लक्ष्य
(Goals of Psychology)
मनोविज्ञान मानव एवं पशु के व्यवहार एवं संज्ञानात्मक
प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करता है। ऐसे अध्ययन के पीछे
उसके कुछ छिपे लक्ष्य (goals) होते हैं। मनोविज्ञान के मुख्य लक्ष्य
निम्नांकित तीन हैं -
- मापन एवं वर्णन
- पूर्वानुमान एवं नियंत्रण
- व्याख्या
किसी भी मनोवैज्ञानिक
परीक्षण या प्रविधि में कम-से-कम दो गुणों का होना अनिवार्य है
- विश्वसनीयता (reliability) तथा वैधता (validity)
विश्वसनीयता से तात्पर्य इस तथ्य से होता है कि बार-बार मापने
से व्यक्ति के प्राप्तांक में कोई परिवर्तन नहीं आता है।
वैधता से
तात्पर्य इस बात से होता है कि परीक्षण वही माप रहा है जिसे
मापने के लिए उसे बनाया गया है। मापने के बाद मनोवैज्ञानिक
उस व्यवहार का वर्णन करते हैं। जैसे - बुद्धि परीक्षण द्वारा बुद्धि
मापने पर यदि किसी व्यक्ति का बुद्धि लब्धि (intelligence
quotient) 150 आता है तो मनोवैज्ञानिक यह समझते हैं कि
व्यक्ति तीव्र बुद्धि का है और वह विभिन्न परिस्थितियों में
बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहार कर सकता है।’’
2. पूर्वानुमान एवं नियंत्रण - मनोविज्ञान का दूसरा लक्ष्य
व्यवहार के बारे में पूर्वकथन करने से होता है ताकि उसे ठीक ढंग
से नियंत्रित किया जा सके। जहाँ तक पूर्वकथन का सवाल है,
इसमें सफलता, मापन (measurement) की सफलता पर निर्भर
करता है। सामान्यता: मनोवैज्ञानिक व्यवहार के मापन के आधार
पर ही यह पूर्वकथन करते हैं कि व्यक्ति अमुक परिस्थिति में क्या
कर सकता है तथा कैसे कर सकता है? जैसे अगर हम किसी छात्र
के सामान्य बौद्धिक स्तर का मापन करके उसके बारे में सही-सही
जान लें तो हम स्कूल में उसके निष्पादन (performance) के
बारे में पूर्वकथन आसानी से कर सकते हैं।
जैसे व्यक्ति की
अभिरुचि को मापकर मनोवैज्ञानिक यह पूर्वानुमान लगाते हैं कि
व्यक्ति को किस तरह के कार्य (job) में लगाना उत्तम होगा ताकि
उसे अधिक-से-अधिक सफलता प्राप्त हो सके।
पूर्वकथन तथा
नियंत्रण साथ-साथ चलता है और मनोवैज्ञानिक जब भी किसी
व्यवहार के बारे में पूर्वकथन करता है तो उसका उद्देश्य उस व्यवहार को नियंत्रित भी करना होता है।’’
3. व्याख्या - मनोविज्ञान का अंतिम लक्ष्य मानव व्यवहार की
व्याख्या करना होता है। व्यवहार की व्याख्या करने के लिए
मनोवैज्ञानिक कुछ सिद्धान्तों का निर्माण करते हैं ताकि उनकी
व्याख्या वैज्ञानिक ढंग से की जा सके। ऐसे सिद्धान्त ज्ञात स्त्रोतों
से तथ्यों को संगठित करते हैं और मनोवैज्ञानिक को उस
परिस्थिति में तर्कसंगत अनुमान लगाने में मदद करते हैं जहाँ वे
सही उत्तर नहीं जान पाते हैं।
मानव व्यवहार की व्याख्या करना
मनोविज्ञान का सबसे अव्वल लक्ष्य हैं क्योंकि जब तक
मनोवैज्ञानिक यह नहीं बतला पाते हैं कि व्यक्ति अमुक व्यवहार
क्यों कर रहा है, अमुक मापन प्रविधि क्यों काम में ले रहा है तो वे
सही ढंग से न तो उस व्यवहार के बारे में पूर्वकथन ही कर सकते हैं
और न ही ठीक ढंग से नियंत्रण ही संभव है।’’
मनोविज्ञान की शाखाएं
उद्देश्यों को दृष्टि में रखते हुए मनोविज्ञान को दो प्रमुख शाखाओं में विभक्त किया जा सकता है-
- सामान्य मनोविज्ञान
- असामान्य मनोविज्ञान
सामान्य मनोविज्ञान में मनुष्य और पशु के सभी व्यवहारों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है, परन्तु असामान्य मनोविज्ञान में मनुष्य की अस्वस्थ या असामान्य अवस्था का अध्ययन किया जाता है। ये दोनों शाखाएँ आगे चलकर अन्य प्रतिशाखाओं में बाँट दी गयी हैं। जैसे सामान्य मनोविज्ञानको शुद्ध वैयक्तिक सामूहिक और व्यावहारिक आदि प्रतिशाखाओं में विभक्त कर दिया गया है।
असामान्य मनोविज्ञान को केवल वैयक्तिक तथा सामूहिक मनोविज्ञानों में बांटा गया है। इन प्रतिशाखाओं के अतिरिक्त भी इनकी और प्रतिशाखाएँ निकली हैं जिनका यहाँ उल्लेख नहीं किया जा सकेगा। व्यावहारिक मनोविज्ञान से यही कार्य-क्षेत्र प्रभावित हुए हैं।
जैसे व्यावहारिक मनोविज्ञान के अन्तर्गत शिक्षा मनोविज्ञान औद्योगिक मनोविज्ञान धार्मिक मनोविज्ञान आदि प्रशाखाएँ हैं।
मनोविज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता क्यों है?
मनोविज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता क्यों है? इस प्रश्न का उत्तर हम सभी को अपने जीवन में झांकने से प्राप्त होता है। हम सभी अपने जीवन में जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त विभिन्न प्रकार के अनुभवों से गुजरते हैं, एवं जिनमें घटनाओं को समझना, चुनौतियों से निबटना, संबंधों का विकास, रोग आदि सम्मिलित होते हैं। इन अनुभवों के प्रकाश में हम जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों में निर्णय लेते हैं। हमारे ये निर्णय कभी सही साबित होते हैं कभी गलत। कुछ परिस्थितियों में हमें स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि हम सही निर्णय कर रहे हैं वही कुछ परिस्थितियों में हम अस्पष्ट होते हैं। हमारे निर्णयों का सही एवं गलत होना हमें प्राप्त सूचनाओं की समझ एवं उनकी विश्लेषण कर पाने की क्षमता पर निर्भर करता है।इसके साथ ही हमारी भाव दशा एवं पूर्व अनुभव भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सही निर्णय हमें सही परिणाम प्रदान करते हैं एवं हमें हमारे लक्ष्य की प्राप्ति होती है। सही निर्णय हमारे जीवन को बेहतर बनाते हैं। ऐसी परिस्थिति में यह प्रश्न उठता है कि यह निर्णय लेने की प्रक्रिया किस प्रकार घटित होती है? कौन से कारक इसमें बाधक होते हैं? एवं कौन से कारक इसमें सहायक होते हैं? यदि इन प्रश्नों का समुचित उत्तर हमें प्राप्त हो सके तो हम निर्णय करने की प्रक्रिया को समझ सकते हैं।
सार रूप में यदि कहें तो अपने दैनिक जीवन में हम अपनी मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं द्वारा संचालित होते हैं जिनके बारे में हमें निश्चित रूप से जानना चाहिए। इसी कारण मनोविज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता है।
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