राष्ट्रपति का कार्यकाल
भारत के राष्ट्रपति की शक्तियां और कार्य
1. राष्ट्रपति की कार्यपालिका शक्तियाँ -
- राष्ट्रपति को प्रशासनिक और सैनिक शक्तियाँ भी प्राप्त है। राष्ट्रपति तीनों सेवाओं का अध्यक्ष होता है। सैनिक बलों की सभी नियुक्तियाँ राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की भी नियुक्ति करता है तथा प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्री परिषद के सदस्यों की नियुक्ति करता है। इसके अलावा राष्ट्रपति भारत के अटार्नी जनरल, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, विशेष आयोग के सदस्यों की नियुक्ति तथा कार्यपालिका राज्यों के राज्यपालों की भी नियुक्ति करता है। प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति अपने विवेक से नहीं करते बल्कि लोक सभा के बहुमत प्राप्त दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है।
- राष्ट्रपति सैनिक बलों का कमाण्डर इन चीफ़ होता है। वह थल सेना, वायु सेना और जल सेना के अध्यक्षक्षों की नियुक्ति करता है। उन्हें युद्ध की घोषणा करने और शांति बहाल करने का अधिकार दिया गया है। लेकिन वे ये सब अधिकार संसद की अनुमति के बिना इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 243 राष्ट्रपति को अधिकार देता है कि वह केन्द्र शासित क्षेत्रों का प्रशासन राज्यपालों या मुख्य कमिश्नरों या अपने द्वारा मनोनीत किसी अन्य सत्ताधारी के द्वारा चलाए। वह किसी संघीय क्षेत्र का प्रबंध चलाने के लिए पड़ोसी राज्य के राज्यपाल को भी कह सकता है। ऐसा राज्यपाल सदैव ही राष्ट्रपति के निर्देशों के अनुसार कार्य करता है। राष्ट्रपति के पास यह भी अधिकार है कि वह अनुसूचित कबीली क्षेत्रों का प्रशासन चलाए। वह राज्यों के बीच झगड़ों के निपटारे के लिए पूर्ण रूप से जांच करने पर परामर्श देने के लिए अन्तर्राज्यीय परिषद् की स्थापना कर सकता है। राष्ट्रपति अंडमान और निकोबार टापुओं के संघीय क्षेत्रों के शान्ति, उन्नति और उनके अच्छे प्रशासन के लिए नियम बना सकता है।
2. राष्ट्रपति की ऐच्छिक शक्तियाँ
- जब लोकसभा में किसी दल को बहुमत नहीं मिलता, कोई गठबंधन या अन्य कोई बहुमत प्राप्त गठबंधन भी न हो या न बन सके या बहुमत के समर्थन वाला कोई भी उम्मीदवार न हो जिसको प्रधानमंत्री नियुक्त किया जा सकता हो, तो राष्ट्रपति अपनी इच्छा के अनुसार कार्यवाही कर सकता है और प्रधानमंत्री की नियुक्ति के लिए लोकसभा में अकेली सबसे अधिक सीटों वाली पार्टी के नेता को सरकार-निर्माण का निमंत्रण दे सकता है।
- राष्ट्रपति लोकसभा भंग करने के लिए कुछ परिस्थितियों में अपनी इच्छा के अनुसार कार्य कर सकता है (अनुच्छेद 85)।
इन दो अपवादों के अतिरिक्त राष्ट्रपति अपनी सभी शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के परामर्श के अनुसार ही करता है।
3. राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियाँ
राष्ट्रपति के पास कुछ वित्तीय शक्तियाँ भी हैं-
- कोई भी धन बिल राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति बिना संसद में पेश किया जा सकता।
- प्रत्येक वित्तीय वर्ष के आरंभ में राष्ट्रपति द्वारा संसद के सामने वार्षिक वित्तीय लेखा (बजट) रखा जाता है जिसमें आने वाले वित्तीय वर्ष के लिए केन्द्र सरकार की आय और खर्च के अनुमानों का विवरण होता है।
- राष्ट्रपति द्वारा आकस्मिक व्ययों की निधि (Contingency Fund of India) पर नियंत्रण रखा जाता है। राष्ट्रपति के पास यह अधिकार है कि वह आकस्मिक व्ययों को पूर्ण करने के लिए इस पंफड में से खर्च करने की आज्ञा दे।
- समय-समय पर राष्ट्रपति वित्त आयोग नियुक्त करता है, जो केन्द्र और राज्यों के बीच राजस्व/आय के बंटवारे के बारे सिफारिशें करता है।
4. राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियाँ
राज्य के मुखिया के रूप में राष्ट्रपति निम्नलिखित मामलों में माफी दे सकता है, दण्ड मापफ कर सकता है या बदल सकता है या घटा सकता है या सामान्य माफी दे सकता है-
- वह अपराधी जिनको मृत्यु दण्ड दिया गया हो।
- संघीय और साझी सूची के अधीन बनाए गए कानूनों के विरुद्व किए अपराधों के सम्बन्ध में, और
- सैनिक न्यायालय के द्वारा दिए गए दण्ड के सभी मामले।
दया की सभी अपीलों से निपटते समय राष्ट्रपति स्वेच्छा से कार्य कर सकता है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति किसी भी कानूनी मामले या सार्वजनिक महत्व के किसी बिल के सम्बन्ध में भारत के सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श ले सकता है। सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति द्वारा मांगे गए परामर्श देने के लिए पाबंद होता है (अनुच्छेद 43)। परन्तु राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा दिए गए परामर्श को स्वीकार करने के लिए पाबंद नहीं होता।
5. राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियाँ
संविधान के 18वें भाग में संकटकालीन व्यवस्थाएँ हैं और यह राष्ट्रपति को विशेष संकटकाल स्थिति से निपटने की शक्तियाँ देती हैं। इन्हें राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियाँ कहा जाता है। तीन प्रकार के संकटकाल की स्थितियाँ सूचीबद्व की गई हैं-
(i) अनुच्छेद 352 के अधीन राष्ट्रीय संकटकाल अर्थात् युद्ध या बाहरी आक्रमण या देश में आंतरिक सशस्त्र विद्रोह के कारण उत्पन्न संकटकाल
(ii) अनुच्छेद 356 के अधीन किसी राज्य या कुछ राज्यों में संवैधानिक संकटकाल अर्थात् राज्य में संवैधानिक मशीनरी पेफल हो जाने के कारण पैदा हुए संकटकाल की स्थिति और
(iii) अनुच्छेद 360 के अधीन वित्तीय संकटकाल अर्थात् देश के वित्तीय संकट के रूप में पैदा हुए संकटकाल की स्थिति।
इन तीन प्रकार के संकटकालों में राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है कि वह संकटकाल की स्थिति की घोषणा करें और संकटकाल की स्थिति से निपटने के लिए उचित कदम उठाए।
संवैधानिक रूप में तीन प्रकार के संकटकालों से निपटने के लिए राष्ट्रपति के पास व्यापक शक्तियाँ हैं, परन्तु ऐसी शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए अनेकों संवैधानिक प्रतिबंध लगाए गए हैं। राष्ट्रपति संकटकालीन शक्तियों का प्रयोग भी प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के परामर्श से ही करता है।
इस प्रकार भारत के राष्ट्रपति के पास कार्यपालिका, वैधानिक, वित्तीय, न्यायिक और संकटकालीन शक्तियाँ हैं।