शैक्षिक पर्यवेक्षण का अर्थ, प्रकार, मुख्य विशेषताएँ

पर्यवेक्षण शब्द अंग्रेजी के शब्द ‘सुपरविजन’ का हिन्दी रूपान्तर है जिसका अर्थ होता है कि वह श्रेष्ठ दृष्टि जो स्थिति का सही आंकलन कर सम्बन्धित क्षेत्र का भावी विकास कर सके। सूक्ष्म श्रेष्ठ निरीक्षण के आधार पर प्राप्त तथ्यों के विवेचन से भावी शैक्षणिक गुणवत्ता का विकास करना। विद्यालयों को ज्ञान का केन्द्र स्वीकार किया जाता है। अत: इनसे उचित अध्यापन व अधिगम की अपेक्षा है। यह आश्वस्त होने के लिए कि विद्यालयों में समुचित अध्ययन अध्यापन होता है, शिक्षक अध्यापन के योग्य है, अधिगम के लिए समुचित पर्यावरण है, विद्यार्थियों की प्रगति पर समुचित ध्यान दिया जाता है, पर्यवेक्षण की आवश्यकता स्वत: स्पष्ट हो जाती है। प्रभावी पर्यवेक्षण के बिना शिक्षा के लक्ष्य को पूरा करना सम्भव नहीं है। 

अत: प्रभावी पर्यवेक्षण राष्ट्रीय शैक्षिक विकास के लिए अपरिहार्य आवश्यकता है। निरन्तर बढ़ते हुए विद्यालयों और उनमें विद्यार्थियों की बढ़ती हुई संख्या व वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास ने पर्यवेक्षण कार्य को अत्यंत जटिल बना दिया है। अत: वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रभावी पर्यवेक्षण व कुशल पर्यवेक्षक दोनों ही शैक्षिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।

पर्यवेक्षण की आधुनिक संकल्पना

आधुनिक युग के लगभग सभी शिक्षाशास्त्री यथा-वसबी (1957) हैरिस (1963) कुर्टिन (1964) विल्स (1967) हैराल्ड एवं मूर (1968) इस बात को स्वीकार करते हैं कि पर्यवेक्षण का लक्ष्य शिक्षण में सुधार से सम्बन्ध रखता है। नीगेल एवं इवांस इनसे और भी एक कदम आगे चलकर स्वीकार करते हैं। उनके अनुसार पर्यवेक्षण के क्षेत्र के अन्तर्गत न केवल शिक्षक एवं विद्याभिभावक के शैक्षिक विकास को भी सम्मिलित करते हैं। विलियम मेकाइवर भी लगभग इन्हीं के समर्थक हैं। 

विल्स लिखते हैं कि आधुनिक पर्यवेक्षण, अध्यापन व अधिगम के श्रेष्ठ विकास में सहायक है। लगभग यही राय हैराल्ड एवं मूर की है। वे स्वीकारते हैं कि पर्यवेक्षण में वे प्रवृतियां आती हैं जिनका मूलत: सम्बन्ध उन परिस्थितियों के अध्ययन व सुधार से होता है जो प्रत्यक्षत: अधिगम, छात्र व शिक्षक के विकास से जुड़ी होती हैं। 

शैक्षिक अनुसंधान के क्षेत्र में हुए अनुसंधान इस बात पर एकमत हैं कि पर्यवेक्षण मुख्य रूप से अनुदेशों में सुधार से सम्बन्ध रखता है। बारबर्टन तथा ब्रूकनर ने आधुनिक पर्यवेक्षण की परिभाषा दी है जो अधिक व्यापक है। उन्होंने पर्यवेक्षण में निम्न तथ्यों को सम्मिलित किया है-

  1. यह एक विशेष तकनीकी सेवा है, जिसका मुख्य उद्देश्य उन सभी तथ्यों का सामूहिक रूप से अध्ययन करना है, जिससे बालक की प्रगति व विकास हो सके।
  2. पर्यवेक्षक शिक्षा के सामान्य उद्देश्यों के अनुरूप निर्देशन देता है।
  3. पर्यवेक्षण समग्र अधिगम-अध्ययन प्रक्रिया को प्रभावी बनाने में योग देता है, तथा इसमें
  4. सभी शिक्षक सहयोगी की भांति अधिगम में सुधार के लिए परस्पर सहयोग करते हैं।

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि पर्यवेक्षण समग्र अध्यापन व अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करता है। इसमें विद्यार्थी, शिक्षक व प्रशासक (पर्यवेक्षक) सभी का विकास सन्निहित है।

शैक्षिक पर्यवेक्षण की प्रकृति

अमेरिका के राष्टींय शिक्षा संगठन (NEA) के प्राचार्यो के संगठन के अनुसार शिक्षा पर्यवेक्षण में निम्नलिखित बातों का समावेश किया जाता है। (1) शिक्षण की कुशलता तथा बालकों की आवश्यकताओं का ज्ञान व सीखने की संस्थितियों का मूल्यांकन (2) शिक्षकों के शिक्षण में सुधार (3) बालकों की जांच (4) सहायक सामग्री का निर्माण (5) पाठ्यक्रम सुधार तथा निर्माण के लिए शोध, तथा (6) शिक्षकों का व्यावसायिक नेतृत्व व सहयोग। इस प्रकार पर्यवेक्षण, शिक्षा प्रशासन का एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण अंग है, जो समग्र अध्यापन व अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करता है। यही कारण है कि राष्टींय शिक्षा आयोग (1964&66) ने इसे रीढ़ की हड्डी स्वीकार किया है। 

इसका आशय यह है कि यदि पर्यवेक्षण पर ध्यान दिया जाये तो समग्र शिक्षण परिस्थितियों में सुधार हो सकता है और इसके विपरीत यदि ध्यान नहीं दिया गया तो समग्र शैक्षिक ढांचा लड़खड़ा सकता है, क्योंकि पर्यवेक्षक (प्रशासक) के स्तर से लेकर बालक के स्तर तक सभी इस प्रक्रिया से प्रभावित होते हैं।

आधुनिक पर्यवेक्षण की मुख्य विशेषताएँ

  1. पर्यवेक्षण में परस्पर उचित मानवीय सम्बन्ध आवश्यक हैं।
  2. यह जनतन्त्रीय दर्शन पर आधारित है अत: जनतंत्रीय मूल्यों यथा-समानता, सहकार, व्यक्ति का सम्मान, सहयोग, तथा सहभागिता का पर्यवेक्षण में ध्यान रखना आवश्यक है।
  3. यह वैज्ञानिक है अत: पर्यवेक्षण में वैमाता, विश्वसनीयता तथा तथ्यों में क्रमब)ता आवश्यक है। पर्यवेक्षण निष्कर्ष संदेह से परे होने आवश्यक हैं।
  4. यह आधुनिक टैक्नोलॉजी पर आधारित है, अत: निरीक्षण आदि में आधुनिक तकनीकों एवं शैक्षिक टैक्नोलॉजी का प्रयोग आवश्यक है तथा पर्यवेक्षण के विविध कौशलों का ज्ञान पर्यवेक्षण के लिए आवश्यक है।
  5. इसमें परस्पर सहयोग आवश्यक है अत: प्रत्येक कार्यकर्ता के लिए कोई न कोई पर्यवेक्षण का दायित्व स्वीकार करना आवश्यक है।
  6. इसका क्षेत्र मात्र कक्षा-कक्ष तक नहीं है, वरन् व्यापक है।
  7. प्रभावी परिणाम के लिए उचित प्रशिक्षण व नेतृत्व आवश्यक है।
  8. स्टाफ की नयी शिक्षण तकनीकों में अनुस्थापना आवश्यक है।
  9. नियमित प्रगति के लिए क्रियात्मक अनुसंधान अनवरत आवश्यक होते हैं।

विद्यालय पर्यवेक्षण- विद्यालय पर्यवेक्षण, शैक्षिक पर्यवेक्षण का ही एक भाग है। इसके अन्तर्गत विद्यालय के अध्यापन-अधिगम संस्थितियों के पर्यवेक्षण के साथ-साथ विद्यालय की अनुप्रवृतियों यथा-खेल-कूद, सांस्छतिक कार्यकलाप, विद्यालय, कार्यालय, भवन आदि विद्यालय से सम्बन्धित सभी भौतिक एवं मानवीय संसाधनों का पर्यवेक्षण सम्मिलित है।

विद्यालय पर्यवेक्षण के उद्देश्य

  1. समाज की विद्यालय से उपेक्षाओं के अनुरूप विद्यालय के उद्देश्यों से शिक्षकों को परिचित कराना।
  2. विद्यालय संसाधनों के प्रभावी अध्यापन व अधिगम प्रवृतियों में लगाना।
  3. शिक्षकों एवं छात्रों की समस्याओं से निकट का परिचय प्राप्त करना।
  4. छात्रों की समस्याओं (आधुनिक, बाल-विकास, समायोजना आदि) के निदान व उपकरण के लिए कदम उठाना।
  5. शिक्षकों की समस्याओं का सहानुभूतिपूर्वक समाधान खोजना तथा शैक्षिक विकास में योग देना।
  6. शिक्षकों की विशेष योग्यताओं के विकास के अवसर प्रदान करना।
  7. मानवीय सम्बन्धों में परस्पर विश्वास उत्पन्न करना व सहयोग को बढ़ावा देना।
  8. भावी अधिगम सम्बन्धी चुनौतियों के लिए छात्रों को तैयार करना।
  9. शिक्षकों को व्यावसायिक विकास के अवसर प्रदान करना।
  10. विद्यालय विकास की योजनाओं में तथा कार्यक्रमों में शिक्षकों का नियमित सहयोग प्राप्त करना।
  11. नवीन शिक्षण कौशलों एवं विधियों से परिचित कराना तथा उनमें अनुस्थापना करना।
  12. सेवारत प्रशिक्षण कार्यक्रमों का नियमित आयोजन करना।
  13. विद्यालय व उसके कार्यो के प्रति निष्ठा जगाने के लिए उचित पर्यावरण सृजित करना।
  14. विद्यालय, समुदाय तथा राष्ट्र के प्रति शिक्षक की स्वयं की भूमिका के प्रति सचेत करना।

शैक्षिक पर्यवेक्षण के प्रकार

पर्यवेक्षण के अनेक प्रकार हैं यहां कुछ प्रकारों का वर्णन किया जा रहा है-

1. व्यक्तिगत पर्यवेक्षण-यह पर्यवेक्षण प्राय: संगठन के अधिकारी द्वारा होता है। विद्यालयों में यह कार्य प्रधानाध्यापक को स्वयं करना पड़ता है। प्रधानाध्यापक के अकेले पर्यवेक्षण करने के अनेक कारण हैं उनमें से प्रमुख हैं कि प्राय: अन्य व्यक्ति के पर्यवेक्षण करने पर शिक्षक आपनियां उठाते हैं।

2. विषय विशेषज्ञों द्वारा पर्यवेक्षण-यह पर्यवेक्षण वहीं सम्भव होता है, जहां एक विषय के अनेक शिक्षक हों। यह कार्य केवल उसी को प्रदान किया जाता है, जो विषय का अध्यक्ष भी है तथा साथ-साथ वह अकादमिक दक्षता भी रखता हो। इस प्रकार के पर्यवेक्षण बड़े विद्यालयों में सम्भव हो पाते हैं।

पर्यवेक्षण की कठिनाइयां-हमारे विद्यालयों में प्राय: यह देखने में आता है कि पर्यवेक्षण का कार्य नियमित एवं सुचारू रूप से नहीं चल पाता है। कभी-कभी तो यह औपचारिकता मात्र ही रह जाता है। पर्यवेक्षण करने में क्या-क्या कठिनाइयां आती हैं, इस सम्बन्ध में मुखर्जी के अध्ययन से दो निम्नांकित तथ्य सामने आते हैं-

  1. स्वयं प्रधानाध्यापक का पर्यवेक्षण के क्षेत्र में अयोग्य होना।
  2. प्रधानाध्यापक के पास अधिक प्रशासनिक कार्यो का होना। ‘क्रर्मा’ के शोध अध्ययन के अनुसार पर्यवेक्षण की मुख्य कठिनाइया अधोलिखित पाई गई –
  1. प्रशासनिक कार्यो की अधिकता से पर्यवेक्षण की आवृनि बहुत कम हो पाती है।
  2. प्रधानाध्यापक सभी विषयों का पर्यवेक्षण करने में अपने आप को योग्य नहीं पाता।
  3. जो सुझाव शिक्षकों को दिये जाते हैं वे अमल में नहीं आते। इसका एक कारण यह भी है कि कार्यभार अधिक है। एक शिक्षक को आठ में से 7 कलांश प्रति दिवस लेना पड़ता है।
  4. शिक्षकगण पर्यवेक्षण का स्वागत नहीं करते। उनका सहयोगात्मक रुख नहीं होता।
  5. पर्यवेक्षण अधिकारियों का रुख बजाए सहयोग के आलोचनात्मक होता है।
  6. प्रधानाध्यापक के अतिरिक्त कमेटी, पैनल अथवा किसी भी प्रकार के अन्य पर्यवेक्षण का विरोमा होता है, अत: प्रगतिशील पर्यवेक्षण की विधिया काम में नहीं आती हैं।

मुखर्जी एवं क्रर्मा दोनों के ही अध्ययन इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं कि अकेला प्रधानाध्यापक प्रशासनिक कार्यो में उलझे रहने के कारण पर्यवेक्षण प्रभावशाली ढंग से नहीं कर पाता। इसी कारण गुजरात और महाराष्टं सरकारों ने 10 कक्षाओं पर एक पर्यवेक्षक की नियुक्ति का मानदण्ड निर्धारित किया है। वास्तव में यदि हमें प्रभावपूर्ण पर्यवेक्षण करना है तो विद्यालयों में आवश्यक सुविधाएं प्रदान करनी होंगी। देश के शेष राज्यों में भी गुजरात और महाराष्टं शिक्षा विभाग का अनुकरण करना होगा।

शैक्षिक पर्यवेक्षण के अन्य प्रकार

शैक्षिक शब्दकोष (डिक्शनरी ऑफ एजुकेशन) में पर्यवेक्षण के प्रकारों का उल्लेख है। जैसे-निरंकुश, सहयोगी, समन्वयात्मक, रचनात्मक,लोकतंत्रीय, राज्य निर्देशित आदि। यहां भूमिका और दृष्टिकोण के आधार पर कतिपय पर्यवेक्षण प्रकारों का वर्णन किया जा रहा है।

1. भूमिका और दृष्टिकोण के आधार पर-पर्यवेक्षण के दृष्टिकोण एवं भूमिकाओं में अन्तर के आधार पर पर्यवेक्षण के कई प्रकार किये जा सकते हैं। बर्टकी के अनुसार पर्यवेक्षण का प्रकार, आयोजन के उद्धेश्य एवं परिस्थितियों पर निर्भर करता है। एक सैनिक पर्यवेक्षण के कार्यकलाप, प्रधानाध्यापक के कार्यकलाप से सदैव भिन्न होंगे। यहां हम बर्टकी के ही पर्यवेक्षण के प्रकारों का उल्लेख कर रहे हैं-

  1. क्लिनिकल पर्यवेक्षण
  2. निरीक्षणात्मक पर्यवेक्षण
  3. नियंत्रणात्मक अथवा निरोधात्मक पर्यवेक्षण
  4. सहयोगी लोकतंत्रीय पर्यवेक्षण
  5. वैज्ञानिक पर्यवेक्षण
  6. रचनात्मक पर्यवेक्षण।

(1) क्लिनिकल पर्यवेक्षण- पर्यवेक्षण का यह संप्रत्यय मेडीकल साइन्स से लिया गया है। इस संप्रत्यय में एक कक्षा को ‘क्लिनिक’ समझा जाता है। कोगन 1950 ने सर्व प्रथम इस शब्द का प्रयोग किया तथा संप्रत्यय का विकास किया। कोगन तथा एन्डरसन ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में क्लिनिकल पर्यवेक्षण प्रक्रिया को और सशक्त किया। बाद में गोल्डामेर एन्डरसन तथा व्रेफजेविस्को (1980) ने इस संप्रत्यय को और समृद्ध किया। आज यह शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अनुशासन बनकर उभरा है। 

विद्यालयी परिप्रेक्ष्य में एक क्लिनिकल पर्यवेक्षण की प्रक्रिया में तीन अंग होते हैं-पर्यवेक्षण की योजना, क्रियान्वयन तथा मूल्यांकन योजनान्तर्गत विद्यालय के लक्ष्य, लक्ष्यों की वरीयता (प्रायोरिटी) शिक्षकों के निष्पनि का मानदंड, शिक्षक की योजना तथा अनुदेशन प्रणाली को लिया जाता है। क्रियान्वयन में लक्ष्यों के परिप्रेक्ष्य में शिक्षकों की निश्चित उत्कृष्ट शिक्षण के मानदण्ड के अनुरूप शिक्षण की क्रियान्विति तथा अन्त में निष्पनि-निष्कर्ष लिये जाते हैं।

क्लिनिकल पर्यवेक्षण की विशेषताएं

एन्डर्सन तथा व्रेफजेवस्की ने क्लिनिकल पर्यवेक्षण संप्रत्यय की विशेषताओं का उल्लेख किया है-

  1. यह अनुदेशन सुधार की तकनीक है।
  2. यह लक्ष्य आधारित कार्यक्रम है जिसमें विद्यालय और पर्यवेक्षक की विकास सम्बन्धी आवश्यकताओं को मिलाकर चला जाता है।
  3. एक कार्यकारी सम्बन्ध पर्यवेक्षक व शिक्षकों के सम्पर्क में स्थापित किये जाते हैं।
  4. शिक्षक और पर्यवेक्षक के मध्य परस्पर विश्वास की अपेक्षा की जाती है।
  5. यह प्रणालीब) प्रक्रिया है जिसमें लचीली तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
  6. यह मानकर चला जाता है कि पर्यवेक्षक, शिक्षकों से अनुदेशन व अधिगम के सम्बन्ध में अधिक जानता है।
  7. इस प्रणाली में पर्यवेक्षक के लिए प्रशिक्षण आवश्यक है।

क्लिनिकल पर्यवेक्षण विधि का एक आब्जर्वेशन चव् है जिसे क्लिनिकल आब्जर्वेशन चव् कहा जाता है। इस चक्र में पाच चरण होते हैं-

  1. पर्यवेक्षण/आब्जर्वेशन से पूर्व विचार-क्रिमर्श कॉन्फे्रन्स-इसमें पर्यवेक्षण से पूर्व पर्यवेक्षक व शिक्षक, पर्यवेक्षण के निश्चित उद्धेश्यों के बारे में बात करते हैं।
  2. पर्यवेक्षण (ओब्जर्वेशन) के अन्तर्गत कक्षा शिक्षण-विषय के अन्तर्गत होने वाले क्रिया-प्रतिक्रिया सम्बन्धी दनों को एकत्रित किया जाता है।
  3. विश्लेषण संव्यूहन निर्माण सत्र-इसके अन्तर्गत एकत्रित दनों की समीक्षा, विश्लेषण किया जाता है तथा इन्हें शिक्षण सिद्धान्तों और अनुसन्धानों की पृष्ठभूमि में देखा जाता है।
  4. विचार-क्रिमर्श (कॉन्प्रेफन्स) के अन्तर्गत निरीक्षण और प्राप्त तथ्यों के आधार पर पुनर्वलन (Feed back) दिया जाता है।
  5. निरीक्षण के बाद की समालोचना-इसके अन्तर्गत पर्यवेक्षण की उपयोगिता पर अनुदेशन पर पड़ने वाले प्रभाव पर शिक्षक व पर्यवेक्षक मिलकर चर्चा करते हैं। क्लिनिकल पर्यवेक्षण से आप क्या समझते हैं?

(2) निरीक्षणात्मक पर्यवेक्षण – यह पर्यवेक्षण का परम्परागत स्वरूप है, जिसमें यह मानकर चला जाता है कि पर्यवेक्षण अधिकारी सर्व ज्ञाता होता है, उसका उद्धेश्य केवल त्रुटियों का पता लगाना होता है। इस पर्यवेक्षण में यह भी माना जाता है कि भिन्न-भिन्न परिस्थितियों व विषयों की भिन्न विधियां हैं, जिनके प्रयोग से शिक्षण को प्रभावशाली बनाया जा सकता है। अधिकारियों का दृष्टिकोण छिद्रान्वेषण का होता है, अत: इसे अधिकारिक पर्यवेक्षण भी कहते हैं। इस पर्यवेक्षण में आज्ञा, निर्देश, नियमों पर विशेष बल होता है। 

पर्यवेक्षण की एक पारम्परिक कार्य विधि होती है। इस पर्यवेक्षण में पूर्व नियोजित, निश्चित विशेष शिक्षण विधियों के क्रियान्वयन पर अधिक जोर होता है, अत: शिक्षक पर्यवेक्षण के समय उन्हीं विधियों को अपनाते देखे जाते हैं। पर्यवेक्षण के बाद, पर्यवेक्षक निर्धारित मानदण्डों व विधियों के आधार पर शिक्षण की सफलता या प्रशासन की सफलता को आंकता है। निश्चित विधियों और कार्य प्रणालियों में दक्ष शिक्षकों की प्रशंसा की जाती है। उन कार्य विधियों की निन्दा की जाती है, जिन्हें पर्यवेक्षक उपयुक्त नहीं समझते।

इस पर्यवेक्षण के लाभ

  1. निश्चित कार्यविधि, कार्य-व्यवस्था की दृष्टि से उपयुक्त होती है।
  2. अधिकारी के आने के भय से कार्यक्रम नियमित व विधिपूर्वक सम्पन्न होते हैं।
  3. दण्ड के भय से तथा सेवा में उन्नति के अवसरों में विपरीत निरीक्षण रिपोर्ट के परिणामस्वरूप विकास में बाधा के कारण शिक्षक पूर्ण निष्ठा और लगन से कार्य करते हैं।
  4. समय व सामानों की बचत होती है।
  5. कार्य प्रणाली में सुधार शीघ्रता से होता है।

दोष-इस पर्यवेक्षण प्रकार की आज के युग में सर्वाधिक आलोचना की जाती है। उसका मुख्य कारण इसकी दार्शनिक पृष्ठभूमि है। अत: इसके प्रमुख दोष निम्नानुसार हैं-

  1. यह छिद्रान्वेषी है
  2. संकुचित मनोवृनि पर आधारित है।
  3. अविश्वास पर आधारित है।
  4. वैयक्तिक सृजनशीलता में बाधक है।
  5. मानवीय मूल्यों के विपरीत है।
  6. इसमें शिक्षकों की मौलिकता व स्वत्व का हास होता है।
  7. विद्यालय में नीरस पर्यावरण को जन्म देता है।
  8. शिक्षकों के मनोभावों को दबाया जाता है, उनकी अभिव्यक्ति में बामाक है।
  9. आधुनिक जनतंत्रीय मूल्यों यथा-समानता, सहकार, स्वतन्त्र अभिव्यक्ति आदि में बामाक है।
  10. आत्मविश्लेषण, समालोचना का अभाव है।
  11. संकीर्ण मनोवृनि पर आधारित है।
  12. मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के विपरीत है।

3. निरोधात्मक पर्यवेक्षण-यह पर्यवेक्षण, प्रधानाध्यापक एवं शिक्षक दोनों की कठिनाइया जानने के लिए होता है। पर्यवेक्षक शिक्षकों की कठिनाइयों के निराकरण में योग देता है। पर्यवेक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने क्षेत्र में पर्याप्त अनुभवी हो। यह पर्यवेक्षण भी आिमाकारिक पर्यवेक्षण के समान है। अन्तर सिर्फ इतना है कि पर्यवेक्षण शिक्षकों की कठिनाइयों को जानकर, उनके आधार पर सुधारों के लिए कार्य करता है। इसके लिए वैयक्तिक पर्यवेक्षक या निश्चित उपकरणों का भी प्रयोग किया जा सकता है। अत: पर्यवेक्षक न केवल अनुभवी परन्तु निरीक्षण/पर्यवेक्षण तकनीकों में भी दक्ष होना चाहिए।

4. लोकतन्त्रीय पर्यवेक्षण-इस पर्यवेक्षण को सहयोगी पर्यवेक्षण भी कहा जाता है। इस प्रकार के पर्यवेक्षण में प्रधानाध्यापक, शिक्षक, विशेषज्ञ आदि सभी संब) व्यक्ति परस्पर सहयोग से योजनानुसार एक-दूसरे की समस्या निदान एवं सुलझाने में योग देते हैं। यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि शिक्षक यह जानता है कि पर्यवेक्षण उसके शैक्षिक एवं व्यावहारिक विकास के लिए है, उसका उद्धेश्य मात्र त्रुटि निकालने के लिए और उनका उपयोग उसके विरुण् करने के लिए नहीं है।

वस्तुत: यह पर्यवेक्षण आधुनिक दर्शन के अनुरूप है जिसमें हर व्यक्ति को सम्मान से देखा जाता है। जनतंत्रीयता दर्शन में समानता, सहकार, सहयोग, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता मुख्य रूप से आते हैं। अत: स्वाभाविक है कि इस प्रकार के पर्यवेक्षण में लोकतन्त्र के आदर्शो का ध्यान दिया जाए। इस पर्यवेक्षण की विशेषताएं हैं-

  1. यह पर्यवेक्षण नेतृत्व के गुणों का विकास करता है।
  2. इस पर्यवेक्षण में समग्र शिक्षण, प्रशिक्षण सम्बन्धी परिस्थितियों का व्यापक मूल्यांकन होता है।
  3. अध्यापन सम्बन्धी समस्याओं का निराकरण सम्भव होता है।
  4. सामूहिक सहयोग से लिये गये निर्णयों की क्रियान्विति सम्भव होती है, क्योंकि वे निर्णय स्वयं उनके ही होते हैं।
  5. लोकतंत्रीय मूल्यों का सम्मान किया जाता है।
  6. शिक्षक के व्यक्तित्व का सम्मान किया जाता है।

यों तो यह पर्यवेक्षण सर्वोनम माना जाता है, किन्तु फिर भी इसकी कतिपय सीमाएं हैं-

  1. पर्यवेक्षकों का कम योग्य होना,
  2. अप्रशिक्षित अध्यापकों की संख्या अधिक होना,
  3. अल्पकालीन प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापक,
  4. अध्यापकों के ज्ञान और मौलिकता में कमी का होना एवं
  5. कुशल पर्यवेक्षकों की तुलना में अध्यापकों की संख्या अधिक होना।

5. वैज्ञानिक पर्यवेक्षण-आधुनिक पर्यवेक्षण वैज्ञानिक है। वैज्ञानिक पर्यवेक्षण का अर्थ हुआ कि यह क्रमब), वैमा तथा अविश्वसनीय है। इसकी आधुनिक तकनीक, पूर्णतया वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर विकसित हुई है क्योंकि विज्ञान की उपलब्धियों का प्रभाव पर्यवेक्षण की तकनीक पर भी पड़ा है। अव्यर ने इस पर्यवेक्षण के बारे में कहा है कि फ्वैज्ञानिक पर्यवेक्षण वह है जिसमें अनुदेशों में सुधार के लिए मापने योग्य नियन्त्रित विधियों का प्रयोग होता है तथा ये विधियां वैमा एवं विश्वसनीय हैं।,

वैज्ञानिक पर्यवेक्षण की विशेषताएं

  1. व्यवस्थित, क्रमब), वैमा तथा विश्वसनीय विधियों का प्रयोग होता है।
  2. निष्कर्ष विश्वसनीय होते हैं, अत: सभी को मान्य होते हैं।
  3. निष्कर्ष पर्यवेक्षण सिद्धान्तों के विकास में योग देते हैं।
  4. अविश्वास की स्थिति में प्रक्रिया की पुनरावृत्ति की जा सकती है।
  5. सर्वमान्य शैक्षिक विकास के लिए आधार प्रस्तुत करते हैं।

परिसीमाए

  1. अध्यापकों एवं पर्यवेक्षकों का इन विधियों में दक्ष न होना।
  2. अनेक परिस्थितियों का यथा बातचीत के अतिरिक्त व्यवहार के बारे में निर्णय न दे पाना।
  3. अनेक उपकरण तथा विडियो टेप, सी. सी. टी. वी., कम्प्यूटर का आसानी से उपलब्ध न होना, आदि अनेक बाधाएं हैं, जो सामान्य स्तर पर पर्यवेक्षण में इन विधियों के प्रयोग को रोकती हैं।
  4. अभी तक इन विधियों का प्रयोग परीक्षण के तौर पर ही हुआ है।

6. रचनात्मक पर्यवेक्षण-निरीक्षणात्मक अथवा आिमाकारिक पर्यवेक्षण में जहां वैयक्तिक सृजनता, उसके कार्य की मौलिकता को आघात पहुँचता है, इसके विपरीत रचनात्मक पर्यवेक्षण वैयक्तिक सृजनता व मौलिकता के विकास का आधार प्रस्तुत करता है। इस पर्यवेक्षण में परिवीक्षण अधिकारी स्टाफ के कर्मचारियों के उन गुणों का पता लगाकर जो किसी क्षेत्र विशेष में उल्लेखनीय हैं, उन गुणों के विकास के लिए समुचित पर्यावरण, सुविधाएं तथा प्रोत्साहन प्रदान करता है।

उदाहरणार्थ नवीन शैक्षणिक विधियों शैक्षणिक प्रयोगों को प्रशंसा के भाव से देखा जाता है। इससे उसके स्टाफ में उच्च रचनात्मकता का विकास होता है।

रचनात्मक पर्यवेक्षण की विशेषताए-

  1. शिक्षकों और छात्रों के सृजनशील गुणों का विकास होता है।
  2. नई-नई शिक्षण विधियों के प्रयोग परीक्षण के अवसर प्राप्त होते हैं।
  3. शिक्षकों को अपनी नवीनता के कार्य के प्रति सन्तोष होता है, जब उसके कार्य को सराहा जाता है।
  4. छात्रों और शिक्षकों की रुचियों में संशोधन होता है। उनके सृजनशील गुणों का विकास होता है।
  5. नवीन कार्य करने के प्रति एक स्वस्थ प्रतिद्विन्द्वता का विकास होता है।
  6. नवीन प्रयोग, विधियां, शिक्षक समुदाय तथा शिक्षा जगत के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण होती हैं।

सीमाए-

  1. विद्यालय, शिक्षा विभाग और बोर्ड के नियम और निदेशों के अनुरूप चलते हैं जिसमें नवीन प्रयोगों के लिए अवसर प्राप्त नहीं है।
  2. हर नया प्रयोग चाहे शिक्षण विधिया ही क्यों नहीं, भौतिक व वित्तीय संसाधनों की मांग करता है, जिसका अभाव प्राय: विद्यालय में रहता है।
  3. सृजनशील नेतृत्व के बिना इस प्रकार का पर्यवेक्षण संभव नहीं है।
  4. नेतृत्व परिवर्तन के साथ, नये प्रयोग, रचनाएं समाप्त हो जाती हैं।
  5. प्रशासन में तानाशाही प्रभाव व्याप्त होने से सार्थक सहयोग का अभाव ही रहता है।

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