शिक्षा प्रबंधन का अर्थ, परिभाषा एवं सामान्य विशेषताएँ

शिक्षा प्रबंधन मनुष्य द्वारा की जाने वाली प्रत्येक क्रिया किसी न किसी प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न होती है। इसी प्रकार शिक्षा की अवधारणा में दो प्रकार के परिवर्तन हुये हैं। (1) शिक्षा, मानव विकास की सशक्त प्रक्रिया के साथ-साथ राष्ट्र विकास एवं जनशक्ति नियोजन का आधार बन गई है। (2) यह एक मानवीय व्यवसाय के रूप में विकसित हो रही है। यह व्यवसाय, अन्य व्यवसायों से भिन्न है। इसमें शिक्षक, शिक्षा के द्वारा मानव विकास के लिये किये गये श्रम का मूल्य लेता है। यह व्यवसाय एक मिशन (सेवा कार्य) के रूप में है जिसका सम्पूर्ण लाभ समाज तथा राष्टं को मिलता है। अन्य व्यवसायों में लाभ व्यक्ति या संस्था को मिलता है और कर्मचारियों को केवल सेवा मूल्य प्राप्त होता है। शिक्षण-व्यवसाय (Teaching Profession) में प्रबंधन का विशेष महत्व है। 

शैक्षिक प्रबंधन की अवधारणा को हम इस प्रकार समझ सकते हैं-

1. शिक्षण एक व्यवसाय है-हैनी (Heney) के शब्दों में-’व्यवसाय वस्तुओं तथा सेवाओं के उस नियमित रूप व्य-विव्य, हस्तान्तरण अथवा विनिमय को कहते हैं जो लाभ कमाने के लिये किया जाता है। इस परिभाषा के अनुसार शिक्षा एक व्यवसाय है इसमें शिक्षक अपने ज्ञान तथा कौशल की सेवाएं, मान के बदले, छात्रों को देता है। छात्र, शिक्षण द्वारा प्रदान किये गये ज्ञान तथा कौशल उपयोग करके अपनी क्षमताओं का विकास करते हैं। 

व्यवसाय में क्रय-विक्रय, विनिमय, सेवाओं का लेन-देन, लाभ, प्रयोजन तथा प्रतिफल की अनिश्चितता, जोखिम एवं विनिमय में निरन्तरता के लक्षण पाये जाते हैं। उद्योग तथा व्यवसाय में लाभ उत्पादक को मिलता है। शिक्षा में उक्त सभी लक्षण पाये जाते हैं किन्तु इसमें जोखिम कम है। इसका लाभ व्यक्ति तथा समाज को मिलता है।

2. शिक्षा एक प्रबंधन (Management) है-शिक्षा, यद्यपि जीवन-पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया की सफलता उत्तम प्रबंधन पर निर्भर करती है। यदि प्रबंधन निरंकुश है तो शिक्षा की प्रक्रिया में अवरोध आएगे। यदि वह अिमानायकवादी है तो एक व्यक्ति या संस्था का वर्चस्व रहेगा। यदि मुक्त है तो अराजकता की संभावना बढ़ेगी। इसलिये शिक्षा-उद्योग अर्थात् शिक्षा संस्थाओं की सफलता उसके प्रबंधन पर निर्भर करती है। ओलीवर शैल्डेन के शब्दों में-’प्रबंधन, उद्योग (विद्यालय तथा शिक्षा) की वह जीवनदायिनी शक्ति है जो संगठन को शक्ति देता है, संचालित करता है एवं नियंत्रित करता है।’ इसी प्रकार थियोहेमेन ने लिखा है-प्रबंधन एक विज्ञान के रूप में, प्रबंधन एक उच्च स्तरीय प्रबंधन समूह के रूप में तथा प्रबंधन एक सामाजिक प्रक्रिया के रूप में व्यक्त किया जाता है।’ 

दूसरे शब्दों में प्रबंधन एक कार्यकारी समूह है, यह समूह कार्य का संचालन, निर्देशन, नियन्त्रण एवं समन्वय करता है। इसलिये वह (प्रबन्धक) प्रशासक कहलाता है। प्रबन्धक या प्रशासक छ:’ तत्वों (1) मानव (2) मशीन (3) माल (4) मुद्रा बाजार (5) प्रबंधन (6) तथा संगठन का समन्वय करता है। पीटर डंकर के अनुसार-’प्रबन्धक, प्रत्येक व्यवसाय का गत्यात्मक तथा जीवनदायी अवयव है। इसके नेतृत्व के अभाव में उत्पादन के सामान, केवल सामान मात्र ही रह जाते हैं, कभी उत्पादन नहीं बन पाते हैं।

विद्यालयी प्रबंधन में मानव (शिक्षक, छात्र), मशीन (विद्यालयी उपकरण) माल (शैक्षिक प्रक्रिया) तथा निष्पनि, मुद्रा बाजार (शुल्क, अर्थ व्यवस्था तथा मानव शक्ति नियोजन), प्रबंधन (समन्वय) तथा संगठन (प्रबन्धक, प्रधानाचार्य, शिक्षक, कर्मचारी, छात्र, अभिभावक, सामान) आदि निहित हैं। इन सबको गतिशील बनाये रखने में प्रबन्धक की भूमिका महत्वपूर्ण है।

शैक्षिक प्रबंधन एक विशेष क्रिया है। मानव समूह तथा संस्थाओं के संचालन के लिये अर्थात् विद्यालय के कर्मियों तथा विद्यालयी संस्था के संचालन के लिये शैक्षिक प्रबंधन का होना अत्यन्त आवश्यक है। उद्योग तथा व्यापार के क्षेत्र में व्यवस्था की यह प्रक्रिया प्रबंधन कहलाती है तो शिक्षा के क्षेत्र में यह प्रक्रिया प्रशासन कहलाती है। प्रशासन की प्रक्रिया में व्यक्ति अपने मद के अनुसार भूमिका का निर्वाह करता है। इसलिये प्रबंधन तथा प्रशासन को समानाथ्र्ाी कहा जाता है। प्रचलित अवस्था में ‘प्रबन्ध’ शब्द उद्योग तथा व्यवसाय के क्षेत्र में उपयोग किया जाता है।

शिक्षा-प्रबंधन की परिभाषा

शिक्षा-प्रबंधन की प्रमुख परिभाषा इस प्रकार हैं-

1. किम्बाल एवं किम्बाल-प्रबंधन उस कला को कहते हैं जिसके द्वारा किसी उद्योग में मनुष्यों और माल को नियन्त्रित करने के लिये लागू आर्थिक सिद्धान्त को प्रयोग में लाया जाता है।

2. कुन्ट्ज-औपचारिक समूहों में संगठित लोगों से काम कराने की कला का नाम ही प्रबंधन है।

3. स्टेन्लेवेन्स-प्रबंधन सामान्य रूप से निर्णय लेने एवं मानवीय क्रियाओं पर नियंत्रण रखने की विधि है जिससे पूर्व निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके।

4. पीटरसन तथा प्लोमैन-प्रबंधन से आशय उस तकनीक से है जिसके द्वारा एक विशेष मानवीय समूह के उद्देश्यों का निर्धारण, स्पष्टीकरण तथा क्रियान्वयन किया जाता है। प्रबंधन यह जानने की कला है कि आप व्यक्तियों से वास्तव में क्या काम लेना चाहते हैं? और फिर यह देखना कि वे उसको सबसे मितव्ययी तथा उत्तम ढंग से पूरा करते हैं।

शिक्षा प्रबंधन की सामान्य विशेषताएँ

1970 से शिक्षा प्रबंधन तथा प्रशासन के क्षेत्र में नये युग का सूत्रपात हुआ। यह सूत्रपात इस प्रकार है-

  1. शिक्षा प्रबंधन के सिद्धान्त तथा व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है।
  2. सैद्धान्तिक स्तर नवीन शब्दावली का निर्माण हो रहा है।
  3. शैक्षिक प्रशासन के लिए शैक्षिक प्रबंधन, शैक्षिक संगठन जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
  4. शैक्षिक प्रबंधन ज्ञान की नवीन शाखा के रूप में विकसित हो रहा है।
  5. वाणिज्य तथा उद्योग के क्षेत्र में जिसे प्रबंधन कहते हैं, शिक्षा के क्षेत्र में उसे प्रशासन कहते हैं।

शिक्षा प्रबंधन का क्षेत्र

टेलर के शब्दों में-’वैज्ञानिक प्रबंधन के आधारभूत सिद्धान्त हमारे साधारण से साधारण व्यक्तिगत कार्यों को लेकर हमारे विशाल निगमों के कर्मो तक लागू होते हैं।’ इस दृष्टि से शैक्षिक प्रबंधन के नौ क्षेत्र हैं।

  1. उत्पादक प्रबंधन-इसके अन्तर्गत उत्तम शैक्षिक उपलब्धि को दृष्टिगत रखा जाता है।
  2. वित्तीय प्रबंधन-शिक्षा संस्थाओं के संचालन के लिये वित्तीय प्रबंधन किया जाता है।
  3. विकास प्रबंधन-विद्यालयों को प्रोन्नत करने के लिये विकास की व्यवस्था की जाती है।
  4. वितरण प्रबंधन-विद्यालयी संसाधनों का वितरण किया जाता है।
  5. क्रय प्रबंधन-विद्यालयों में सामान्य क्रय करने का प्रबन्ध किया जाता है।
  6. परिवहन प्रबंधन-विद्यालय में सामान, छात्रों, स्टाफ के लाने-ले जाने की व्यवस्था की जाती है।
  7. संस्थापन प्रबंधन-संस्था के भवन, उपकरण, अन्य सामानों का प्रबंधन किया जाता है।
  8. सेवी वर्गीय प्रबंधन-शिक्षक, कर्मचारी आदि की व्यवस्था, पद एवं भूमिका का निर्धारण किया जाता है।
  9. कार्यालय प्रबंधन-प्रत्येक विद्यालय में रिकार्ड की व्यवस्था करने के लिये कार्यालय होता है जिसके प्रबंध की आवश्यकता होती है।

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