रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन परिचय

रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन परिचय

रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका जन्म 23 दिसम्बर 1899 ई0 को गाँव बेनीपुर, थाना कटरा, जिला मुजफ्फरपुर , बिहार में हुआ था। रामवृक्ष बेनीपुरी का पूरा नाम रामवृक्ष शर्मा ‘रामवृक्ष बेनीपुरी’ था। ‘रामवृक्ष बेनीपुरी’ उपनाम इन्होंने अपने गाँव के नाम पर रख लिया और जाँति-पाँति की भावना को दूर रखने के लिए ‘शर्मा’ शब्द अपने नाम से हटा लिया। 

रामवृक्ष बेनीपुरी के पिता का नाम श्री फुलवन्त सिंह तथा पितामह का नाम श्री यदुनन्दन सिंह था। इनके पिता एक साधारण किसान थे और इनका परिवार एक औसत दर्जे का किसान परिवार था।

रामवृक्ष बेनीपुरी जब लगभग 5 वर्श के थे तभी इनकी माता जी का निधन हो गया। इसके बाद इनकी देखभाल इनकी मौसी, जो कि इनके चाचा से ही ब्याही गयी थीं, ने की । इनके नौ वर्श की उम्र में ही इनके पिता का देहान्त हो गया। इस प्रकार बचपन में ही इन्होंने अपने माता-पिता खो दिये।

रामवृक्ष बेनीपुरी का अक्षरारम्भ बेनीपुर में ही हुआ। पिता की मृत्यु के उपरान्त इनके मामा इनको इनके ननिहाल बंशीपचड़ा लेकर चले गये जहाँ इन्होंने 15 वर्श व्यतीत किया। इस प्रकार इनकी प्राथमिक शिक्षा बशींपचड़ा में हुई। वहाँ लोअर प्राइमरी पाठशाला की पढ़ाई समाप्त करके रामवृक्ष बेनीपुरी ने उर्दू का अध्ययन भी किया। रामवृक्ष बेनीपुरी के जीवन और साहित्य पर बंशीपचड़ा के रंगीन वातावरण का बहतु प्रभाव रहा है। 

रामवृक्ष बेनीपुरी ने लिखा है- “एक अजीब बात देखता हूँ, अब भी जब उपन्यास, कहानी या स्केच लिखता हूँ बंशीपचड़ा का ही वातावरण उसमें प्रमुखता पा जाता है - वहाँ के लोग, वहाँ के खेत, वहाँ के पेड़-पौधे जैसे जबरदस्ती मुझसे अपना चरित्र-चित्र खिंचवा लेते हैं। सपने में भी वे मेरा पिंड नहीं छोड़ते।”

बंशीपचड़ा में शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त, इनके बहनोई इन्हें आगे की शिक्षा के लिए अपने साथ सुरसंड लिवा ले गए और इनका नाम मिडिल स्कूल में लिखा दिया। तथा इन्हें उर्दू के स्थान पर अंग्रेजी की शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित किया। यहाँ आकर इनका नए-नए अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं से सम्पर्क हुआ और पत्रिकाओं ने तो खासतौर पर इनका मन ही मोह लिया। यहीं पर इनका देश की राजनैतिक, विश्व युद्ध और नये ज्ञान विज्ञान की खबरों से पाला पड़ा, जो कि इन्हें विचित्र खबर मालूम पड़ती थी। देशभक्ति नाम की नई चीज भी इन्हें मालूम पड़ी । इन्होंने यह भी सुना कि हमारा देश गुलाम है और हम अंग्रजों से लड़ रहे हैं। रामवृक्ष बेनीपुरी लिखते हैं-”मेरा छोटा सा दिमाग अजीब ढंग से आंदोलित रहने लगा । पुराना पूजा-पाठ दूर हुआ, नई भक्ति जागी। मैं अनुभव करता जैसे मेरा कायाकल्प हो रहा है।”

बहनोई के निधन के बाद इनका जीवन एक बार फिर चंचल हुआ और फिर इन्होंने कई स्कूलों मे दौड़ने के उपरान्त अपने जिले के सदरमुकाम में आकर सिलसिले से पढ़ाई शरु की। वहाँ इनके विचारों में परिपक्वता के साथ ही साहित्य में इनकी प्रवृत्ति भी अधिक झुकी। उन्हीं दिनों इन्होंने हिन्दी साहित्य सम्मले न की प्रथमा और मध्यमा की परीक्षा दी और विशारद बने। इस प्रकार 15 वर्श की उम्र में ही ये विशारद बने तथा इसके पहले से ही पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कविताएं छपी। इनकी पहली कविता ही उस समय की प्रतिश्ठित पत्रिका ‘प्रताप’, जिसके सम्पादक गणेश शकंर ‘विद्यार्थी’ जी थे, में छपी थी।

रामवृक्ष बेनीपुरी मैट्रिक में पहुँचे ही थे कि गाँधी जी के आºवाहन पर असहयोग आंदोलन की धूम में इन्होंने भी नियमित शिक्षा का परित्याग कर दिया और फिर आन्दोलन के बाद भी कभी नियमित शिक्षा नहीं ग्रहण की। इनके इस फैसले पर इनके स्कूल के प्रधानाचार्य ने इन्हें बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन रामवृक्ष बेनीपुरी अपने फैसले पर अडिग रहे।

15-16 वर्श की अवस्था में ही रामवृक्ष बेनीपुरी की शॉदी उमारानी जी से हो गयी। इनके तीन पुत्र तथा एक पुत्री क्रमश: हुए- देवेन्द्र कुमार रामवृक्ष बेनीपुरी, जितेन्द्र कुमार रामवृक्ष बेनीपुरी, महेन्द्र कुमार रामवृक्ष बेनीपुरी तथा प्रभा रामवृक्ष बेनीपुरी। रामवृक्ष बेनीपुरी की पत्नी बहुत ही पतिपरायण तथा देशभक्त महिला थीं। अनेकों कश्ट झेलते हुए इन्होंने रामवृक्ष बेनीपुरी के जेल जाने पर सारा घर संभाला और हमेशा देश-सेवा के लिए बेनीपुरी को प्रोत्साहित किया। इन्होंने भारतीय नारी का गौरवशाली और अतुलनीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।

गाँधी जी के असहयोग आन्दालेन के तूफान में पड़कर बेनीपुरी ने पढ़ाई छोड़ी और इसके बाद पूरे 25 वर्षों तक ये इस तूफान में चक्कर खाते रहे बार-बार जेल जाते और इनका जीवन सदा संकटमय बना रहता। घर की आर्थिक स्थिति दिन-दिन बिगड़ती जाती थी। नियमित शिक्षा के परित्याग के उपरान्त रामवृक्ष बेनीपुरी ने पत्रकारिता के क्षेत्र मे पैर रखा। पत्रकारिता को इन्होंने अन्त: प्रेरणा से अपनाया। इनकी शुरुआत 1921 ई0, ‘तरुण भारत’ (साप्ताहिक) के सहकारी सम्पादक के रुप में हुआ । इसके पश्चात् ये 1922 ई0 में-ं ‘किसान मित्र‘ (साप्ताहिक) के सहकारी सम्पादक बने। 1924 ई0 में इन्होंने ‘गाले माल’ नामक हास्य-व्यंग्य (साप्ताहिक) के सहकारी सम्पादक का काम किया। 1926 ई0 में इन्होंने ‘बालक’ (मासिक) पत्रिका का सम्पादन शुरु किया। इस पत्रिका से इन्हें काफी लोकप्रियता मिली। 

1928-29 ई0 में रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपने मित्र गंगाशरण सिंह और रामानन्दन मिश्र के साथ मिलकर पटना में, पटना कालेज के सामने ‘युवक आश्रम’ की स्थापना की जो कि छात्रों और युवकों को संगठित कर राष्ट्रीय आन्दालेन से जाडेने का एक मचं था। इस संगठन की ओर से 1929 ई0 में बेनीपुरी ने ‘युवक’ नामक मासिक-पत्र का प्रकाशन अपने सम्पादकत्व मे किया। इस पत्र द्वारा इन्होंने किसान आन्दाले न का समर्थन किया। 

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में इस पत्रिका की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी और देश-प्रेम तथा राष्ट्रीयता की भावना के प्रचार-प्रसार में इस पत्रिका ने महती योगदान किया। 1930 ई0 में इन्हें 6 महीने की सजा हुई और इन्हें हजारीबाग जेल भेज दिया गया। यह इनकी पहली जेल यात्रा थी। यहाँ इन्होंने ‘कैदी’ नाम से एक हस्तलिखित पत्रिका निकाली।

सन् 1932 ई0 में इन्हें डेढ़ वर्ष की सजा हुई जो कि इन्होंने हजारीबाग और पटना कैंप जेल में काटा। सन् 1934 ई0 में इन्होंने मुजफ़्फ़रपुर से प्रकाशित ‘लाके संग्रह’ और खंडवा (म0प्र0) से प्रकाशित ‘कर्मवीर’ में भी कुछ दिनों तक पं0 माखनलाल चतुर्वेदी के साथ कार्यकारी संपादक की हैसियत से काम किया। फिर सन् 1935 ई0 में इनके संपादन में पटना से साप्ताहिक ‘योगी’ का प्रकाशन आरम्भ हुआ, किन्तु, अपनी प्रखर राजनैतिक विचारधारा और ईमानदारी के कारण ‘योगी’ में ये नहीं टिक सके। 

सन् 1937 ई0 में बेनीपुरी ने सोशलिस्ट पार्टी की पत्रिका ‘जनता’ (साप्ताहिक) का संपादन किया। इनके संपादन में ‘जनता’ के ‘किसान अंक’ और ‘ॉाहीद अंक’ को ऐतिहासिक महत्व मिला। सन् 1937 मे इन्हे तीन महीने की सजा हुई जो इन्होंने हजारीबाग जेल में काटा। तत्पश्चात् 1938 में दो दिन हाजत में सिटी जेल और पटना जेल में और सन् 1940 इर्0 में एक वर्श की सजा हजारीबाग जेल में काटी । इसी दरम्यान एक मुकदमें के सिलसिले में छपरा जेल और सीवान जेल भी गये। सन् 1941 ई0 में 6 महीने की सजा हाजीपुर और मुज़फ्फ़रपुर जेल में काटा। 

सन् 1942 ई0 के आंदोलन में गिरफ्तार होकर ये पुन: हजारीबाग जेल में रखे गय ें इस बार इन्होंने वहाँ से ‘तूफान’ नामक हस्तलिखित पत्रिका निकाली । सन् 1942 में डेढ़ साल की सजा, सीतामढ़ी जेल, 6 महीने की सजा मधुबनी जेल और दरंभगा जेल में काटी । तत्पश्चात् अगस्त 1942 से जुलाई 1945 तक हजारीबाग जेल में तीन वर्ष तक नजरबंद रहे। इस प्रकार रामवृक्ष बेनीपुरी ने बिहार के लगभग सभी जेलों में सजा काटी।

सन् 1946 ई0 में आचार्य शिवपजून सहाय के साथ मिलकर रामवृक्ष बेनीपुरी ने ‘हिमालय’ (मासिक) का संपादन शुरु किया। सन् 1948 ई0 में आचार्य नरेन्द्र देव के साथ इन्होंने ‘जनवाणी’ (मासिक) का संपादन किया। सन् 1950 ई0 में ‘नई धारा’ (मासिक) जैसी पत्रिका के ये प्रधान संपादक हुए, साथ ही इन्होंने ‘चुन्नू- मुन्न’ू (मासिक) नामक बाल-पत्रिका का भी संपादन किया। सन् 1951 ई0 में ‘जनता’ (दैनिक) के ये प्रधान संपादक बने।

बेनीपुरी कई संस्थाओं से संबंधित  रहे  हैं। 1919 ई0 में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मले न की स्थापना में इन्होंने सहयोग दिया तथा उसके सहकारी और संयुक्त मंत्री रहे। सन् 1946 से सन् 1950 तक ये उसके प्रधानमत्रं ी रहे तत्पश्चात् सन् 1951 ई0 में ये सभापति नियुक्त हुए। 

सन् 1929 ई0 में रामवृक्ष बेनीपुरी अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रचार मंत्री बने। उस समय गणेश शकर विद्यार्थी सभापति थे। रामवृक्ष बेनीपुरी सन् 1920 से सन् 1946 तक कांग्रेस के मेम्बर रहे। ये पटना शहर, कांग्रेस कमेटी के सभापति भी हुए तथा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी रहे सन् 1926 इर्0 में बिहार राजनीतिक कान्फ्रंसे (मुंगरे ) में पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव रामवृक्ष बेनीपुरी ने पेश किया और यह प्रस्ताव पास होने में सफल रहा। इसी प्रकार फैजपरु कांग्रेस में जमींदारी उन्मूलन का प्रस्ताव रामवृक्ष बेनीपुरी ने ही पेश किया था। रामवृक्ष बेनीपुरी सन् 1937 के आम चुनाव के बाद दिल्ली में संयोजित नेशनल कान्वेंशन के सदस्य बने। ये ‘बिहार सोशलिस्ट पार्टी’, जो कि सन् 1931 में बनी, के संस्थापकों में थे। 

ये अखिल भारतीय कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की पहली कार्य- समिति के सदस्य भी रहे इसके साथ ही ये सोशलिस्ट पार्टी (बिहार) के पार्लियामंटेरी बाडेर् के अध्यक्ष भी निर्वाचित हुए। बिहार के किसान आंदोलन में रामवृक्ष बेनीपुरी ने महती भूमिका निभाई। ये बिहार प्रांतीय किसान सभा के सभापति तथा भारतीय किसान सभा के उप-सभापति भी रह चुके हैं। 

सन् 1954-1956 ई0 में बेनीपुरी अपनी रचनाओं को ग्रन्थावली के रुप में प्रकाशित करने में व्यस्त रहे इन्होंने अपनी रचनाओं को दस खण्डों में निकालने की योजना बनाई थी। सन् 1953 ई0 के अंत तक रामवृक्ष बेनीपुरी ग्रंथावली का प्रथम खण्ड तथा दो साल बाद द्वितीय खण्ड प्रकाशित हुआ । किन्तु र्दुभाग्य से इस कड़ी में ये दो ही खंड प्रकाशित हो सके। सन् 1998 में बेनीपुरी के लगभग संपूर्ण साहित्य को ‘रामवृक्ष बेनीपुरी ग्रंथावली’ नाम से आठ भागों में प्रकाशित किया गया जिसके संपादक सुरेश शर्मा हैं।

सन् 1957 ई0 में बिहार विधान सभा के सदस्य के रुप में रामवृक्ष बेनीपुरी निर्वाचित हुए । सन् 1958 में ये बिहार विश्वविद्यालय सिंडिकेट के सदस्य बनें इन्होंने सन् 1959 में बागमती कॉलेज और गाँधी-भूमि की स्थापना के लिए जोरदार प्रयत्न किया। छठें दशक के शुरु में बेनीपुरी ने सोवियत संघ, तुर्की, इराक, सीरिया, बर्मा, थाईलैंड, चीन तथा विभिन्न यूरोपीय देशों की यात्राएं भी की।

बेनीपुरी को 1967 में अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा ‘साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि से सम्मानित किया गया तथा जनवरी सन् 1968 में बिहार-राष्ट्रभाशा- परिशद् द्वारा वयोवृद्ध साहित्यिक पुरस्कार एवं सम्मान से इन्हें अलंकृत किया गया।

रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपने क्षेत्र बागमती में कालेज खोलने और गाँधी-स्वाध्याय-मंदिर की स्थापना के लिए आवश्यक धनराशि एकत्र करने के लिए रात-दिन गाँव-गाँव चक्कर लगाया और अथक परिश्रम किया। सन् 1959 ई0 के दिसंबर में राष्ट्रपति डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद के बिहार दौरे के कार्यक्रम में रामवृक्ष बेनीपुरी उनके हाथों जनाढ़ ( मुज़फ़्फरपुर ) में गाँधी-स्वाध्याय-मंदिर का शिलान्यास कराना चाहते थे और इस आशय से इन्होंने राष्ट्रपति से इस बात की स्वीकृति भी ली। किन्तु स्थानीय कांग्रेसी नेतागण और अधिकारियो ने इस कार्यक्रम को स्थगित करने का प्रयत्न करते हुए रामवृक्ष बेनीपुरी के साथ असहयोग किया। किन्तु रामवृक्ष बेनीपुरी के अथक प्रयत्न और राजेन्द्र बाबू की सदाशयता से यह कार्यक्रम सम्पन्न हुआ और जनाढ़ में राष्ट्रपति द्वारा गाँधी-स्वाध्याय-मंदिर की नींव रखी गयी ।

रामवृक्ष बेनीपुरी की मृत्यु

मानसिक तनाव और दौड़-भाग के कारण रामवृक्ष बेनीपुरी का रक्तचाप काफी बढ़ गया और ये पक्षाघात के शिकार हो गये। वाणी ने इनका साथ छोड़ दिया और इनकी स्मरण-शक्ति लुप्त हो गयी। राष्ट्रपति जब गाँधी स्वाध्याय मंदिर का शिलान्यास करने आये तो रामवृक्ष बेनीपुरी स्वागत के दो शब्द भी नहीं बोल पाये। मंच पर होते हुए भी ये मौन रहे। इनकी आँखें खुशी से रो रही थी और राजेन्द्र बाबू के प्रति कृतज्ञता में दोनों हाथ जुड़े हुए थे। राष्ट्रपति ने भी इनके राजनैतिक जीवन-संघर्ष, त्याग-तपस्या और रचना-कर्म की प्रशंसा की और इनके अचानक बीमारी पर चिंता व्यक्त की। समारोह के बाद ये राजेन्द्र बाबू के साथ ही मुज़फ़्फरपुर लौटे और अस्पताल में दाखिल हुए। तत्पश्चात् पटना और दिल्ली में भी इलाज हुआ पर ये स्वस्थ न हो सके। इसी दारुण स्थिति मे लगभग सात-आठ वर्षों तक ये ज़िन्दगी व मौत से जूझते रहे। एक दिन तबीयत काफी बिगड़ जाने पर बेहोशी की हालत में इन्हें मुज़फ्फ़रपुर लाया गया और वही पर 7 सितम्बर 1968 ई0 में इनका निधन हो गया।

रामवृक्ष बेनीपुरी के निधन के पश्चात् इनकी इच्छानुसार पार्थिव शरीर को गाँव ले जाया गया और ‘माटी की मूरतो के बीच इन्ही के द्वारा रापे गये मौलसिरी वृक्ष की छाया में इनकी चिता जली।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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