समाज कार्य एक विकसित व्यवसाय है जिसका निश्चित ज्ञान, प्रविधियाँ और कौशल होते है ओैर जिन्हें सीखना प्रत्येक सामाजिक कार्यकर्ता के लिए आवश्यक है। व्यावसायिक सामाजिक कार्यकर्ता में विशेषताएं होनी आवश्यक है।
समाज कार्य के कार्य सामान्यतया समाज कार्य के चार प्रकार है -
- प्रविधियों तथा कार्यविधियों से युक्त एक ऐसा ज्ञान जिसे षिक्षण प्रषिक्षण द्वारा सीखा जा सकें और जो सैद्धान्तिक के साथ-साथ व्यावहारिक भी हो।
- व्यवसाय में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति में व्यवसाय के प्रति निष्ठा तथा समन्वय चेतना और व्यावसायिक ईमानदारी होनी चाहिए।
- व्यवसाय जनहित की ओर प्रवृत्त हो और प्रत्येक काम समाज की भलाई को ध्यान में रख कर सम्पन्न किया जाए। विधियाँ अन्य व्यवसायों की भांति समाज कार्य की भी विधियाँ विकसित है, और उनका परीक्षण हो चुका है।
वें विधियाँ है :
- सामाजिक वैयक्तिक कार्य
- सामाजिक समूह कार्य
- सामुदायिक संगठन
- सामाजिक क्रिया
- समाज कल्याण प्रशासन
- समाज कार्य अनुसंधान
- बाल विकास
- महिला विकास एवं सषक्तिकरण
- युवा विकास
- सामाजिक प्रतिरक्षा
- सामुदायिक विकास
- बाधितों के लिए कल्याण सेवाए
- चिकित्सीय एवं मनचिकित्सकीय सामाजिक कार्य
- कमजोर वर्गो के व्यक्तियों का विकास
अर्थात समाजकार्य एवं व्यावसायिक सहायता है जो व्यक्ति अथवा समुदाय को व्यावसायिक विधियों के माध्यम से प्रदान की जाती है। इसके अन्तर्गत मानव-व्यवहार, व्यक्ति या समूहों की आवष्यकताओं और निहित क्षमताओं का अध्ययन तथा जानकारी प्राप्त करना आवश्यक होता है। यह लोगों के साथ व्यावसायिक कार्य करने की प्रक्रिया है इसका लक्ष्य अपनी सहायता स्वयं करने मे लोगों की मदद करना है। समाज कार्य के लिए एक ऐसा व्यक्ति अपेक्षित है जो लोगों के साथ काम करने की व्यवसायगत प्रविधियों तथा कुशलताओं में प्रषिक्षित हो। यह ज्ञान और कुशलताएं विधिवत् प्रषिक्षण द्वारा प्राप्त की जाती है। समाज कार्य में व्यक्ति या समूह या समुदायों की सहायता के लिये काम किया जाता है।
• प्रारम्भ में धर्म के सन्दर्भ में पाप-पुण्य की भावना से प्रेरित होकर ही समाज के सदस्यगण अन्य समस्याग्रत व्यक्ति को वैज्ञानिक ज्ञान व व्यावसायिक निपुर्णता के बिना ही में सहायता प्रदान करने का प्रयास किया जाता था।
• प्रारम्भ में धर्म के सन्दर्भ में पाप-पुण्य की भावना से प्रेरित होकर ही समाज के सदस्यगण अन्य समस्याग्रत व्यक्ति को वैज्ञानिक ज्ञान व व्यावसायिक निपुर्णता के बिना ही में सहायता प्रदान करने का प्रयास किया जाता था।
• आज का समाज कार्य वैज्ञानिक ज्ञान, कौशल, निपुणता, आचार-संहिता, सिद्धान्त, दर्शन एवं मानवीय मूल्यों पर आधारित व्यावसायिक सेवा है जो प्रषिक्षण प्राप्त समाज कार्यकर्ता किसी कल्याणकारी संस्था के माध्यम से समस्या ग्रस्त व्यक्तियों, समूहों अथवा समुदायों को इस प्रकार सहायता प्रदान करता हैं कि वे अपनी सहायता स्वयं कर सकें तथा समाज में सुचारु रुप से समायोजित होकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इस प्रकार सम्बन्ध स्थापन व व्यवहार करें जिससे वें स्वयं अपनी तथा समाज के विकास व कल्याण में सक्रिय रुप से भाग ले सकें।
समाज कार्य का विकास विभिन्न समाजों में उनकी अपनी विशिष्टताओं के अनुसार भिन्न-भिन्न रुपों में हुआ है। किसी समाज में इसका समुचित विकास व्यावसायिक सेवा के रुप में हुआ है जो कहीं यह दान, दया, और मानवता के आधार पर मात्र अर्थदान के रुप में विकसित हुआ है। हैलन क्लार्क ने अपनी पुस्तक “प्रिंसीपल एण्ड प्रेक्टिस ऑफ सोषल वर्क” में समाज कार्य को तीन युगों के आधार पर वर्गीकृत करके स्पष्ट करने का प्रयास किया है।
1. प्राचीन काल - श्रीमती हैलन क्लार्क के अनुसार समाज कार्य की जड़े मानव समाज की उत्पित्त्ा के साथ प्राचीन काल से जुड़ी है। उस युग में समाज कार्य का रुप आज के व्यावसायिक समाज कार्य से भिन्न था। प्राचीन काल में निर्बल, निर्धन, अपाहिज, रोगग्रस्त, अनाथ, वृद्ध तथा निराश्रित व्यक्तिओं की सहायता व सहानुभूति की भावना से प्रेरित होकर अर्थदान या वस्तुदान के द्वारा व्यक्ति उनकी सहायता करने का प्रयास करतें थें।
2. मध्यकाल -अठ्ठारहवी शताब्दी में मानववादी दृष्टिकोण की उत्पति हुई। इस काल में समाज सेवा की प्रेरणा धर्म या दया की भावना का फल न होकर मानवतावाद पर आधारित पायी गई थी। मानव-मानव के प्रति जागरुक हुआ और उसने मनो-सामाजिक, आर्थिक एवं शारीरिक कठिनाइयों से पीड़ित व्यक्तियों की सहायता करना अपना कर्तव्य समझा, अपनी क्षमता के अनुरूप जन सेवा में भाग लिया।
3. आधुनिक काल - इस काल में दया, धर्म व मानवता के प्रति कर्तव्य की मानव के आधार पर सेवा कार्य का प्रचलन नाम मात्र ही रह गया है और इसके स्थान पर समाज कार्य एक व्यावसायिक सेवा के रुप में विकसित हुआ। समाज कार्य की विशिष्ट विधियों एवं प्रविधियों तथा सिद्वान्तों का विकास हुआ जिसके द्वारा समस्या ग्रस्त व्यक्तिओं को अपनी सहायता स्वयं करने हेतु प्रेरित व निर्देषित किया जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण समाज कार्य के वैज्ञानिक दृष्टिकोण के सन्दर्भ में हैलन विटमर ने समाज कार्य को एक सामाजिक संस्था के रुप में स्वीकार किया है तथा निम्नलिखित तत्वों पर प्रकाश डाला है।
फ्रीडलैण्डर (1955) समाज कार्य एक व्यावसायिक सेवा है जो मानवीय सम्बन्धों के बारे में वैज्ञानिक ज्ञान व निपुणओं पर आधारित है जो व्यक्तियों की अकेले एवं समूहों में इस प्रकार सहायता करता है कि वे सामाजिक एवं व्यक्तिगत संतुश्टि तथा आत्म निर्भरता प्राप्त कर सकें। फ्रीडलैण्डर के मतानुसार भी समाज कार्य एक व्यावसायिक सेवा है परन्तु इन्होनें क्लार्क की भांति पर्यावरण को अधिक महत्व न देकर वैज्ञानिक व मानवीय सम्बन्धों को महत्वपूर्ण माना है तथा इसके आधार पर प्रदान की जाने वाली सेवाओं का उद्देश्य सामाजिक व व्यक्तिगत सन्तुश्टि तथा आत्म निर्भरता की प्राप्ति में व्यक्तियों की सहायता करना बताया है।
1. प्राचीन काल - श्रीमती हैलन क्लार्क के अनुसार समाज कार्य की जड़े मानव समाज की उत्पित्त्ा के साथ प्राचीन काल से जुड़ी है। उस युग में समाज कार्य का रुप आज के व्यावसायिक समाज कार्य से भिन्न था। प्राचीन काल में निर्बल, निर्धन, अपाहिज, रोगग्रस्त, अनाथ, वृद्ध तथा निराश्रित व्यक्तिओं की सहायता व सहानुभूति की भावना से प्रेरित होकर अर्थदान या वस्तुदान के द्वारा व्यक्ति उनकी सहायता करने का प्रयास करतें थें।
2. मध्यकाल -अठ्ठारहवी शताब्दी में मानववादी दृष्टिकोण की उत्पति हुई। इस काल में समाज सेवा की प्रेरणा धर्म या दया की भावना का फल न होकर मानवतावाद पर आधारित पायी गई थी। मानव-मानव के प्रति जागरुक हुआ और उसने मनो-सामाजिक, आर्थिक एवं शारीरिक कठिनाइयों से पीड़ित व्यक्तियों की सहायता करना अपना कर्तव्य समझा, अपनी क्षमता के अनुरूप जन सेवा में भाग लिया।
3. आधुनिक काल - इस काल में दया, धर्म व मानवता के प्रति कर्तव्य की मानव के आधार पर सेवा कार्य का प्रचलन नाम मात्र ही रह गया है और इसके स्थान पर समाज कार्य एक व्यावसायिक सेवा के रुप में विकसित हुआ। समाज कार्य की विशिष्ट विधियों एवं प्रविधियों तथा सिद्वान्तों का विकास हुआ जिसके द्वारा समस्या ग्रस्त व्यक्तिओं को अपनी सहायता स्वयं करने हेतु प्रेरित व निर्देषित किया जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण समाज कार्य के वैज्ञानिक दृष्टिकोण के सन्दर्भ में हैलन विटमर ने समाज कार्य को एक सामाजिक संस्था के रुप में स्वीकार किया है तथा निम्नलिखित तत्वों पर प्रकाश डाला है।
- समाज कार्य एक ऐसी व्यावसायिक सेवा है जो विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा विशिष्ट पद्धतियों के माध्यम से प्रदान की जाती है।
- विशिष्ट प्रक्रियाओं एवं विशिष्ट पद्धतियों का उपयोग संगठित तथा विशेष रुप से व्यक्तियों के निर्दिष्ट समूहों द्वारा किया जाता है।
- व्यक्तियों का यह निर्दिष्ट समूह समाज कार्य के विशिष्ट मूल्यों, आदर्शों एवं दर्शन के आधार पर सहायता कार्य करता है। आधुनिक युग में समाज कार्य एक व्यवसाय के रुप में विकसित हुआ है, और विज्ञान तथा कला के रुप मे स्वीकार किया जा चुका है।
समाज कार्य की परिभाषा
समाज कार्य कला तथा विज्ञान के रुप में मान्यता प्राप्त एवं व्यावसायिक शास्त्र है जिसका सम्बन्ध मानवीय व्यवहारों, क्रिया-कलापों, सम्बन्धों एवं समस्याओं से होता है जिसके कारण इसका स्वरुप क्षेत्र, विशय वस्तु, प्रवृति एवं क्रिया कलाप अत्यन्त जटिल प्रतीत होता है। अत: समाज कार्य की विशेषताएँ तीन भागों में विभक्त की जा सकती है।- समाज कार्य सहायता करने की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका क्रियान्वयन उन समस्याओं के निराकरण के लिये किया जाता है, जिसके कारण व्यक्तियों, परिवारों तथा समूहों को सामाजिक व आर्थिक कल्याण के न्यूनतम स्तर प्राप्ति में बाधांए व अवरोध उत्पन्न होते है।
- समाज कार्य एक सामाजिक क्रिया है जो सामुदायिक आवष्यकताओं की पूर्ति के लिये राजकीय अथवा स्वैच्छिक दोनों प्रकार की कल्याणकारी संस्थाओं द्वारा आयोजित की जाती है ताकि समुदाय के वे सदस्य जिन्हे सहायता की आवष्यकता है उसके द्वारा लाभान्वित हो सकें।
- समाज कार्य की तीसरी अन्तर्राष्ट्रीय विशेषता यह है कि यह एक सम्पर्क सम्बन्धी क्रिया है जिसके द्वारा ऐसे व्यक्ति, परिवार एवं समूह की सहायता की जाती है जो सामाजिक सुविधाओं से समुचित रुप से लाभाविंत होने में असमर्थ होते है ताकि वे अपनी असन्तुश्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये समाज में उपलब्ध सामुदायिक साधनों का पूर्णतय: प्रयोग करके समुचित लाभ उठा सकें तथा समाज के अन्य व्यक्तियों, समूहों एवं परिवारों की भांति उपलब्ध सामुदायिक साधनों का उपयोग करके आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें।
फ्रीडलैण्डर (1955) समाज कार्य एक व्यावसायिक सेवा है जो मानवीय सम्बन्धों के बारे में वैज्ञानिक ज्ञान व निपुणओं पर आधारित है जो व्यक्तियों की अकेले एवं समूहों में इस प्रकार सहायता करता है कि वे सामाजिक एवं व्यक्तिगत संतुश्टि तथा आत्म निर्भरता प्राप्त कर सकें। फ्रीडलैण्डर के मतानुसार भी समाज कार्य एक व्यावसायिक सेवा है परन्तु इन्होनें क्लार्क की भांति पर्यावरण को अधिक महत्व न देकर वैज्ञानिक व मानवीय सम्बन्धों को महत्वपूर्ण माना है तथा इसके आधार पर प्रदान की जाने वाली सेवाओं का उद्देश्य सामाजिक व व्यक्तिगत सन्तुश्टि तथा आत्म निर्भरता की प्राप्ति में व्यक्तियों की सहायता करना बताया है।
समाज कार्य की विशेषताएं
- समाज कार्य एक व्यावसायिक सेवा है। इसमें विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक ज्ञान, प्राविधियो, निपुणताओं तथा दार्शनिक मूल्यों का प्रयोग किया जाता है।
- समाज कार्य सहायता समस्याओं का मनो-सामाजिक अध्ययन तथा निदानात्मक मूल्यांकन करने के पष्चात् प्रदान की जाती है।
- समाज कार्य समस्याग्रस्त व्यक्तियों को सहायता प्रदान करने का कार्य है। यह समस्याएं व्यक्ति की प्रभावपूर्ण क्रिया के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करती है। अपनी प्रकृति में ये समस्याएं मनो-सामाजिक होती है।
- समाज कार्य सहायता किसी अकेले व्यक्ति, समूह अथवा समुदाय को प्रदान की जा सकती है।
- समाज कार्य सहायता का अन्तिम उद्देश्य समस्याग्रस्त सेवाथ्र्ाी में आत्म सहायता करने की क्षमता उत्पन्न करना होता है।
- समाज कार्य सहायता प्रदान करते समय सेवाथ्र्ाी की व्यक्तित्व सम्बन्धी संरचना एवं सामाजिक व्यवस्था दोनो में परिवर्तन लाते हुए कार्य किया जाता है।
समाज कार्य के उद्देश्य
- मनो - सामाजिक समस्याओं का समाधान करना।
- मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना।
- सामाजिक सम्बन्धों को सौहादपूर्ण एवं मधुर बनाना।
- व्यक्तित्व में प्रजातांत्रिक मूल्यों का विकास करना।
- समाजिक उन्नति एवं विकास के अवसर उपलब्ध करना।
- लोगो में सामाजिक चेतना जागृत करना।
- पर्यावरण को स्वस्थ एवं विकास के अनुकूल बनाना।
- सामाजिक विकास हेतु सामाजिक व्यवस्था में अपेक्षित परिवर्तन करना।
- स्वस्थ जनमत तैयार करना।
- सामाजिक परिस्थितियों की आवष्यकताओं के अनुसार विधानों का निर्माण करना तथा वर्तमान विधानो में वाच्छित संशोधन कराना।
- लोगों में सामंजस्य की क्षमता विकसित करना।
- लागों की सामाजिक क्रिया को प्रभावपूर्ण बनाना।
- लोगों में आत्म सहायता करने की क्षमता विकसित करना।
- लोगों को उनके जीवन में सुख एवं शान्ति का अनुभव कराना।
- समाज में शान्ति एवं व्यवस्था को प्रोत्साहित करना।
समाज कार्य की मौलिक मान्यताऐं
- व्यक्ति एवं समाज अन्योन्याश्रित है, इसलिए व्यक्ति, समूह अथवा समुदाय के रुप में सेवाथ्र्ाी की समस्याओं के समाधान हेतु सामाजिक दषाओं एवं परिस्थतियों का अवलाकन एवं मूल्याकंन आवश्यक होता है।
- व्यक्ति तथा पर्यावरण के बीच होने वाली अन्त:क्रिया में आने वाली बाधाएं समस्या का मुख्य कारण होती है, इसलिए समाज कार्य की क्रिया विधि का केन्द्र बिन्दु अन्त क्रियाएं होती है।
- व्यवहार तथा दृष्टिकोण दोनों ही सामाजिक शक्तियों के द्वारा प्रभावित किये जाते है, इसलिए सामाजिक शक्तियों में सामाजिक हस्तक्षेप करना आवश्यक होता है।
- व्यक्ति एक सम्पूर्ण इकाई है इसलिए उनसे सम्बन्धित आन्तरिक तथा बाह्य दोनों प्रकार की दषाआं का अध्ययन आवश्यक है।
- समस्या के अनेक स्वरुप होते है, इसीलिए इनके समाधान हेतु विविध प्रकार के कौशल की आवश्यकता होती है।
समाज कार्य के प्रमुख अंग
समाज कार्य के तीन प्रमुख अंग है - कार्यकर्त्ता, सेवाथ्र्ाी तथा संस्था, जिसमें समाज कार्यकर्त्ता का प्रमुख स्थान होता है। यह कार्यकर्त्ता वैयक्तिक समाज कार्यकर्त्ता, सामूहिक समाज कार्यकर्ता अथवा सामुदायिक संगठन कार्यकर्त्ता हो सकता है। कार्यकर्त्ता की भूमिका समस्या की प्रकृति पर निर्भर करती है। कार्यकर्त्ता को मानव व्यवहार का समुचित ज्ञान होता है। उसमें व्यक्ति, समूह तथा समुदाय की आवश्यकताओं, समस्याओं एवं व्यवहारों को समझने की क्षमता एवं योग्यता होती है। जब सेवाथ्र्ाी एक व्यक्ति है तो अधिकांश समस्याएं मनो-सामाजिक अथवा सामाजिक क्रिया से सम्बन्धित होती है और कार्यकर्त्ता वैयक्तिक समाज कार्य प्रणाली का प्रयोग करते हए सेवाएं प्रदान करता है। जब सेवाथ्र्ाी एक समूह होता है तो प्रमुख समस्याएं प्रजातांत्रिक मूल्यों तथा नेतृत्व के विकास, सामूहिक तनावों एवं संघर्षों के समाधान तथा मैत्री एवं सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों के विकास से सम्बन्धित होती है। जब सेवाथ्र्ाी एक समुदाय होता है समुदाय की अनुभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ-साथ सामुदायिक एकीकरण का विकास करने का प्रयास किया जाता है।एक सामुदायिक संगठनकर्त्ता समुदाय में उपलब्ध संसाधनों एवं समुदाय की अनुभूत आवष्यकताओं की पूर्ति करने के साथ-साथ सामुदायिक एकीकरण का विकास करने का प्रयास किया जाता है। समाज कार्य में संस्था का महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि सेवाएं संस्था के तत्वावधान में ही प्रदान की जाती है। ये संस्थाएं सार्वजनिक अथवा निजी हो सकती है। संस्था द्वारा किये गये काम इसके उद्देष्यों पर निर्भर करते है। संस्था के तत्वावधान में कार्य करने वाले समाज कार्यकर्त्ता के लिये संस्था के उद्देष्यों, नीतियों, कार्यरीतियों,
योजनाओं तथा कार्यक्रमों की समुचित जानकारी आवश्यक है।
समाज कार्य के कार्य सामान्यतया समाज कार्य के चार प्रकार है -
- उपचारात्मक
- सुधारात्मक
- निरोधात्मक
- विकासात्मक
उपचारात्मक कार्य के अन्तर्गत समस्या की प्रकृति के अनुसार चिकित्सकीय सेवाओं, स्वास्थ्य सेवाओ, मनोचिकित्सकीय एवं मानसिक आरोग्य से सम्बन्धित सेवाओं अपंग एवं निरोग व्यक्तियों के लिये सेवाओं तथा पुर्नस्थापना सम्बन्धी सेवाओं को सम्मिलित किया जा सकता है। सुधारात्मक कार्य के अन्तर्गत व्यक्ति सुधार सेवाओं, सम्बन्ध सुधार सेवाओं तथा समाज सुधार सेवाओं को सम्मिलित किया जा सकता है। व्यक्ति सुधार सेवाओं में कारागार सुधार सेवाओं, प्रोबेषन, पैरोल तथा कानूनी सेवा सम्बन्धी सेवाओं का उल्लेख किया जा सकता है। सम्बन्ध सुधार सेवाओं के रूप में परिवार कल्याण सेवाओं, विद्यालय समाज कार्य एवं औद्योगिक समाज कार्य का निरुपण किया जा सकता है। समाज सुधार सम्बन्धी सेवाओं के रूप में रोजगार सम्बन्धी सेवा, वेष्यावृति निवारण कार्यों, भिक्षावृति निवारण सम्बन्धित कार्यों, दहेज उन्मूलन सम्बन्धी कार्यों तथा एकीकरण को प्रोत्साहित
करने से सम्बन्धित सेवाओं का उल्लेख किया जा सकता है।
निरोधात्मक कार्यों के अन्तर्गत सामाजिक नीतियों, सामाजिक परिनियमों, जन चेतना उत्पन्न करने से सम्बन्धित, प्रौढ़ शिक्षा जैसे कार्यक्रमों विभिन्न प्रकार के कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रमों तथा समाज सुरक्षा सेवाओं को उल्लेख किया जाता है। विकासात्मक कार्य के अन्तर्गत आर्थिक विकास के विविध प्रकार के कार्यक्रमों तथा उत्पादकता की दर में वृद्धि करने, राश्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाने आर्थिक स्थानों का साम्यपूर्ण वितरण करने, उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण करने इत्यादि तथा सामाजिक विकास के अनेक कार्यक्रमों जैसे-पेयजल, पौश्टिक आहार, स्वास्थ्य सेवाओं, षिक्षा एवं प्रषिक्षण सम्बन्धी सेवाओं, सेवायोजन सम्बन्धी सेवाओं, मनोरंजन सम्बन्धी सेवाओं इत्यादि का वर्णन किया जा सकता है।
निरोधात्मक कार्यों के अन्तर्गत सामाजिक नीतियों, सामाजिक परिनियमों, जन चेतना उत्पन्न करने से सम्बन्धित, प्रौढ़ शिक्षा जैसे कार्यक्रमों विभिन्न प्रकार के कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रमों तथा समाज सुरक्षा सेवाओं को उल्लेख किया जाता है। विकासात्मक कार्य के अन्तर्गत आर्थिक विकास के विविध प्रकार के कार्यक्रमों तथा उत्पादकता की दर में वृद्धि करने, राश्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाने आर्थिक स्थानों का साम्यपूर्ण वितरण करने, उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण करने इत्यादि तथा सामाजिक विकास के अनेक कार्यक्रमों जैसे-पेयजल, पौश्टिक आहार, स्वास्थ्य सेवाओं, षिक्षा एवं प्रषिक्षण सम्बन्धी सेवाओं, सेवायोजन सम्बन्धी सेवाओं, मनोरंजन सम्बन्धी सेवाओं इत्यादि का वर्णन किया जा सकता है।
aap bahut achha karya kar rahe hai Gud Luck
ReplyDeleteमें नारायण वरकड़े BSW का छात्र बैतूल
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