नीरजा माधव का जीवन परिचय, प्रमुख रचनाएं, उपलब्धियाँ

नीरजा माधव का जीवन परिचय

नीरजा माधव का जीवन परिचय

नीरजा माधव का जन्म 15 मार्च 1962 में ग्राम- कोतवालपुर (सरेमू), पोस्ट- मुफ्तीगंज, जिला- जौनपुर, उत्तर प्रदेश में एक शिक्षक पिता के घर में हुआ। नीरजा माधव के पिता का नाम श्री मथुरा प्रसाद और माताजी का नाम श्रीमती विमला देवी है। पिता जी पेशे से एक सरकारी विद्यालय के हिन्दी अध्यापक थे। माँ विमला देवी कुशल गृहिणी थी। मथुरा प्रसाद जी को अपनी पुत्र नीरजा से विशेष स्नेह था। वे लेखिका को पढ़ने-पढ़ाने के भिन्न-भिन्न तरीकों का इस्तेमाल करते। तरह-तरह की किताबें लाते और उन्हें पढ़ने के लिए कहा करते थे। 

पिता को भी हिन्दी साहित्य में रूचि थी, उन्होंने हिन्दी में एम.ए. की उपाधि ली थी।

नीरजा माधव की कक्षा तीसरी तक की शिक्षा घर परिवेश में पिता द्वारा ही सम्पन्न हुई। छोटी बहन रानी की असमय मृत्यु के कारण माँ के मन में एक भय-सा पनप गया था कि कही मेरी बेटी बेबी (नीरजा) को भी कुछ हो न जाए। दादी और माँ के लाड-दुलार के कारण पहली से तीसरी तक की शिक्षा घर में ही पूरी की। गाँव की सरकारी पाठशाला में चौथी कक्षा में प्रवेश दिलाया गया। पढाई में अच्छी होने के कारण कक्षा का मॉनिटर बना दिया गया। पिता की सरकारी नौकरी के नाते उनका तबादला गाँव के आस-पास के क्षेत्रों में होता रहता था। इसी कारण पिता की पोस्टिंग जहाँ हुआ करती थी नीरजा साथ चल देती थी। ऐसा सिलसिला कक्षा आठ तक चलता रहा। एक बार पिता का तबादला सिधोरा गाँव में हुआ जो कि ग्राम कोतवाल से 35 किमीसुदूर था। 

पिता नीरजा को साइकिल पर बिठाता और तरह-तरह के प्रश्न करते कभी हिन्दी का वाक्य अंग्रेजी में अनुवाद के लिए, तो कभी स्पेलिंग, तो किसी शब्द का अर्थ ही पूछ लिया करते।

पिता की ऐसी तालिम के कारण नीरजा की अंग्रेजी और हिन्दी भाषा पर गहरी पकड़ है। आठवÈ कक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत नीरजा ने बनारस के आर.एल. महिला कॉलेज से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा 1977 में पीयूसी (प्री यूनिवर्सिटी कोर्स) में प्रवेश लिया। आर.एल. महिला कॉलेज से ही बी.ए. की परीक्षा पास की। बी.एच.यू. से एम.ए. (अंग्रेजी) की डिग्री ली तथा पीएच.डी. (अंग्रेजी) - ‘सरोजनी नायडू की कविताओं’ पर शोध कार्य पूर्ण कर डॉक्ट्रेट की उपाधि ली। नीरजा की उत्कृष्ट इच्छी थी कि वे आई.ए.एस. या पी.सी.एस की परीक्षा पास कर उच्च अधिकारी पद पर कार्य करें। पिता की इच्छा थी कि वे शिक्षक बने इसलिए पिता की इच्छा पूरी करने तथा उनके आग्रह पर नीरजा ने बी.एड. भी कर लिया। बी.एड. के उपरांत उन्हें कभी अध्यापन का अवसर न मिला।

नीरजा माधव कुल चार बहन-भाई हैं। बड़ी दीदी का देहांत हो चुका है। आपके बड़े भाई रेल्वे में इंजीनियर पद पर कार्यरत थे, अब रिटायर हो चुके हैं। छोटा भाई गाँव के इंटर कॉलेज में अध्यापक हैं और गाँव में घर की खेती-वाड़ी का कार्यभार भी संभाला है। नीरजा माधव को घर में प्यार से बेबी पुकारा जाता है।

नीरजा जी और डॉ. बेनी माधव जी ने प्रेम-विवाह किया है। माधव जी महाबोधी कॉलेज सारनाथ में प्रिंसिपल पद पर कार्यरत हैं। माधव जी उत्तर प्रदेश के अवध-अयोध्या क्षेत्र से हैं। माधव जी का सरनेम मिश्रा है किंतु वे मिश्रा सरनेम को कभी अपने नाम के उपरांत प्रयोग नही किया करते। नीरजा जी कहती हैं कि डॉ. बेनी माधव और उनका सम्पूर्ण परिवार बहुत ही सहज, सरल, निश्छल, सहयोगी, दूसरों के साथ छल-कपट न करने वाले व्यक्तित्व के हैं। प्रेम विवाह होने पर भी सभी ने उन्हें बड़े स्नेहपूर्वक अपनाया और किसी भी तरह की बंदिशें या पाबंदियों की बेड़ियों में न जकड़ा। नीरजा की सास उन्हें अपनी बेटी जेसा स्नेह करती थी। 

नीरजा जी कहती हैं, ‘‘एक बार गाँव जाने पर हमने अपनी ननद की साड़ी पहन ली, जिससे गाँव के लोग परिवार के लिए किसी तरह का व्यंग्य न करे। किन्तु जेसे ही सास ने देखा कि नीरजा ने साड़ी पहनी है तुरंत ही कहा, बेटा तुम्हें आदत नही है, जाओ सलवार-सूट पहन लो।”40 सास सदैव यही सोचती कि उनकी बहु को किसी चीज की कमी न होने पाए।

डॉ. नीरजा माधव और डॉ. बेनी माधव की दो संतानें हैं। बड़ी बेटी कुहू और बेटा केतन। बेटी कुहू बी.एच.यू. से ए.एस.सी. भूगर्व विज्ञान (ज्यूलॉजी) से तथा बेटा केतन एम.एस.सी. (बॉटनी) में बी.एच.यू. से ही कर रहा है।

कुहू का ONGC में भूगर्भ वैज्ञानिक (ज्यूयोलॉजिस्ट) के लिए चयन हो चुका है। कुहू की इच्छा है कि वह बी.एच.यू. में प्रोफेसर बने। वह व्छळब् का कार्यभार संभालेगी, यदि उसे अवसर मिला तो वह प्रोफेसर बनना पसंद करेगी।

नीरजा जी को पढ़ने और साहित्य लेखन के अतिरिक्त संगीत से बेहद लगाव है। क्लासिकल और सेमी क्लासिकल म्यूजिक सुनना और गाना बहुत पसंद है। संगीत आपकी बहुत बड़ी कमजोरी है। सुबह उठते ही पूरे घर का वातावरण संगीतमय हो जाता है। आपके गायन का रेडियो पर आर्टिस्ट के रूप में प्रसारण हुआ करता था। महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, वृंदावनलाल वर्मा, भगवती चरण वर्मा आदि की कविताएँ पढ़ना पसंद है। पाश्चात्य लेखकों में आपको ब्राऊनी और तोल्स्टॉय का साहित्य प्रिय है। समकालीन लेखकों में विद्यानिवास मिश्र का साहित्य अति प्रिय है।

साहित्य लेखन की प्रेरणा : बचपन से ही नीरजा की पढ़ाई में विशेष रूचि थी। बहुत ही विवेकशील बालिका रही है। पिता के प्रोत्साहन और सहयोग से छठी-सातवÈ कक्षा से ही कविताएँ, कहानियाँ विशेषकर महादेवी वर्मा और जयशंकर प्रसाद की कविताएँ पढ़ना आरंभ कर दिया था। पिता शिक्षक थे और उनका भी साहित्य के प्रति झुकाव था इसलिए अकसर हिन्दी के उपन्यास जेसे मृगनयनी, झांसी की रानी आदि स्वयं के पढ़ने के लिए लाते किंतु घर में आते ही हम बच्चों को पढ़ने के लिए कह देते। पिता की आज्ञा का पालन करते हुए आप उन उपन्यासों को पढ़ डालती। ‘‘घर में रेडियो सुनना मर्यादा का अतिक्रमण था। कभी-कभी पिताजी से छुप-छुपकर रेडियो पर गाने सुना करती थी। यदि गलती से रेडियो सुनते देख लेते तो कहते, ‘‘रेडियो सुना जा रहा है, पढ़ाई नही हो रही।”

उपन्यास पढ़ना अच्छा लगता था किन्तु महादेवी वर्मा को पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता जैसे किसी रहस्यमयी दुनिया के द्वार में प्रवेश कर लिया हो। उनकी कविताओं को अभिव्यक्त कर पाना मुमकिन है, लेकिन पढ़ने के बाद ऐसा लगता कि हमारा उनकी रचना की ऊँचाई के स्तर तक लिख पाना मेरे लिए मुश्किल है।”

नीरजा माधव अपने साहित्य लेखन की प्रेरणा का श्रेय अपने पिता मथुरा प्रसाद, कवयित्री महादेवी वर्मा, विख्यात कवि जयशंकर प्रसाद, वृंदावनलाल वर्मा, भगवती चरण वर्मा आदि को मानती है। कार्यक्षेत्र : नीरजा जी ने बी.एच.यू. से एम.ए. (अंग्रेजी), पीएच.डी. (अंग्रेजी) तथा बी.एड. की उपाधि ली। बी.एड. के उपरांत उन्हें ऐसा मौका ही न मिला कि वे शिक्षक पद पर कार्य करें, क्योंकि यू.पी. (पी.सी.एस.) करने पर आपको शिक्षा विभाग के लिए क्लास-प्प् डेस्क पोस्ट के लिए चयन हो गया। शिक्षा विभाग में अधिकारी पद का कार्य भार संभाला ही था कि संघ लोक सेवा आयोग के लिए आकाशवाणी के लिए क्लास-प्प् के अधिकारी पद के लिए चयन हुआ। आकाशवाणी के चयन से पिता को बेहद हर्ष हुआ। पिता की इच्छा थी कि उनकी संतान में से कोई एक रेडियो आकाशवाणी में पदाधिकारी पद पर चयनित किया जाए। 

आकाशवाणी से जुड़े पिता के स्वप्न के विषय में नीरजा जी कहती हैं, ‘‘जब पिता जी टीचर थे तो उन्हें रेडियो स्टेशन घूमाने के लिए ले जाया गया। आकाशवाणी के स्टूडियो में सबको चुपकराया गया। कोई बोले न, क्योंकि स्टूडियो में लाइव (सीधा प्रसारण) प्रोग्राम चल रहा था। मेरे पिताजी अपने साथियों के साथ चुपचाप खड़े होकर प्रोग्राम देख रहे थे कि किस तरह सीधा प्रसारण किया जाता है। उस समय रेडियो का बड़ा क्रेज था। रेडियो के लोग जेसे दूसरी दुनिया से आए हुए लोग हैं। तभी उनके मन में स्वप्न जागृत हुआ कि मेरी संतानों में से कोई एक रेडियो में आ जाती।”

आकाशवाणी में नीरजा का अधिकारी के रूप में चयन के उपरांत पिता को ऐसा लगा जेसे वर्षों पूर्व देखा स्वप्न पूरा हो गया। वैसे नीरजा जी बी.एच.यू. में पढ़ते समय ही रेडियो आकाशवाणी से एक आर्टिस्ट के तौर पर जुड़ चुकी थी। उन्होंने आकाशवाणी में एक ऑडिशन दिया और उनकी आवाज को सराहा गया। कार्यक्रम आदि के लिए रेडियो की तरफ से बुलाया जाता था और फिर उसी आकाशवाणी में एक अधिकारी के रूप में चयन हो गया। 

चयन के उपरांत पिता ने अपने स्वप्न की बात नीरजा के समक्ष उजागर की तथा शिक्षा विभाग की नौकरी छोड़कर आकाशवाणी ज्वाइन करने को कहा।

नीरजा माधव की प्रमुख रचनाएं

उपन्यास

  1. यमदीप
  2. तेभ्य: स्वधा
  3. गेशे चम्पा
  4. ईहा मृग
  5. अवर्ण महिला कानस्टेबल की डायरी

कहानी संग्रह

  1. चिटके आकाश का सूरज
  2. अभी ठहरो अन्धी सदी,
  3. आदिम गंध तथा अन्य कहानियाँ
  4. पथदंश
  5. चुप चन्तारा रोना नही
  6. चौराहा वाया पांडेपुर

कविता संग्रह

  1. प्रस्थानगयी
  2. जोहराुुआ

ललित निबन्ध एवं अन्य विधाएँ

  1. रेडिया का काला पक्ष
  2. चैत चित्त मन महुआ

अनुवाद

  1. ‘यमदीप’ उपन्यास का उड़िया में अनुवाद
  2.  कुछ कहानियों का उर्दू और बुल्गारियाई भाषा में अनुवाद
  3. ‘गेशे चम्पा’ उपन्यास का अंग्रेजी एवं तिब्बती भाषा में अनुवाद किया गया।

नीरजा माधव की उपलब्धियाँ

  1. सन् 1997 में ‘चिटके आकाश का सूरज’ कृति के लिए ‘सर्जना पुरस्कार’ उ. प्र. हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा पुरस्कृत किया गया।
  2. सन् 1998 में ‘‘अभी ठहरो अन्धी सदी” के लिए ‘यशपाल’ पुरस्कार उत्तर प्रदेश संस्थान, लखनऊ द्वारा सम्मानित किया।
  3. ‘समग्र लेखन’ हेतु नीरजा जी को ‘भारतेन्दु प्रभा’ भारतेन्दु अकादमी, वाराणसी द्वारा पुरस्कृत किया गया।
  4. ‘साहित्यिक योगदान’ के लिए ‘पहरूआ सम्मान’ शम्भुनाथ सिंह रिसर्चुाउंडेशन, वाराणसी द्वारा सम्मानित किया गया।
  5. ‘युवा प्रतिभा सम्मान’ अखिल भारतीय विद्वत प्ररिषद, वाराणसी द्वारा पुरस्कृत किया गया। 
  6. ‘पत्रकारिता भूषण’ प्रतीक संस्थान, वाराणसी द्वारा सम्मानित।
  7. ‘श्री तुलसी सम्मान’ सनातन धर्म परिषद और तुलसी जन्मभूमि सूकर खेत विकास समिति द्वारा पुरस्कृत किया गया।

5 Comments

  1. बहुत अच्छी जानकारी,,, क्या आप किसी पुस्तक के बारे में बता सकते हैं जिसमें नीरजा जी के साहित्य के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त हो सके।आपकी अति कृपा होगी

    ReplyDelete
    Replies
    1. Neerja Madhav shrujan ke aayam doctor BrijBala Singh
      University publication nai Delhi

      Delete
  2. https://www.pustak.org/index.php/books/authorbooks/Niraja%20Madhav
    https://www.prabhatbooks.com/author/neerja-madhav.htm
    https://kgpbooks.com/author/281
    https://books.google.co.in/booksid=wINtCwAAQBAJ&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false

    ReplyDelete
  3. So many importent aspects of Neerja's introduction are missing . How can be added ?

    ReplyDelete
Previous Post Next Post