पलायन के मुख्य कारण और प्रकार

सामान्य शब्दों में पलायन अपने मूल निवास स्थान से किसी दूसरे स्थान पर जाकर रहने की प्रक्रिया हैं यह एक जटिल किन्तु आधारभूत सामाजिक प्रक्रिया हैं जिसकी स्पष्ट व्याख्या अत्यंत ही कठिन हैं पलायन एक बहुआयामी घटना है, जिसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव आर्थिक विकास, जनशक्ति, नियोजन, नगरीकरण और सामाजिक परिवर्तन पर पडता हैं इसका कारण उद्देश्य की भिन्नता हैं जिससे व्युत्पन्न विकास की प्रत्येक अवस्था में गतिशीलता जनसंख्या की मूलभूत विशेषता रही हैं सामाजिक- आर्थिक, औद्योगिक एवं तकनीकी विकास ने निःसंदेह ग्रामीण क्षेत्रों की जनसंख्या को नगरों की ओर पलायन करने का मार्ग प्रशस्त किया हें 

पलायन की अवधारणा

प्रवासी प्रवृत्ति दो शब्दों का समूह हें -

1. प्रवासी - प्रवासी शब्द का अर्थ है प्रवास करने वाला और प्रवास का अर्थ मूल स्थान को छोड ़कर कहीअन्यत्र बस जाना तथा बार-बार मूल स्थान को जाते रहना हैं

2. प्रवृत्ति - प्रवृत्ति का आशय हैं स्वभाव या आदत इस प्रकार प्रवासी प्रवृत्ति मूल स्थान को छोडकर अन्यत्र कही बस जाने तथा उस मूल स्थान से निरंतर संबंध बनाये रखने की आदत को इंगित करती हैं प्रवासिता के दृष्टिकोण से भारतीय एवं पाश्चात्य श्रमिकों में बहुत बड ़ा अंतर पाया जाता हें पाश्चात्य देशों में औद्योगिक, नगरों में काम करने वो श्रमजीवी प्रवासी होते हें प्रवासी नहीं अर्थात् वे वहाँ आकर नही बसे हे वरन ् स्थायी रूप से वहाँ रहती हें

किन्तु पश्चिमी देशों के कारखानों में काम करने वाले औद्योगिक श्रमिकों के स्थायी वर्ग होते हैं कृषि अथवा कृषि क्षेत्रों से उनका कोई भी संबंध नही होता हैं यह संभव है कि उनके पूर्वज कृषक हो किन्तु आज औद्योगिक नगरों में रहने वाले अधिकांश श्रमिकों का पालन पोषण नगरों में होता है तथा परम्परा से वे नगरों में ही निवास करते हैं
पलायनकर्ताओं द्वारा किये जाने वाले पलायन को मुख्यतः निम्न वर्गों में विभक्त किया जा सकता हे

1. मौसम के अनुसार पलायन - मौसम के अनुसार पलायन से आशय ऐसे पलायन से है, जो मौसमी प्रकृति का हों कुछ विशिष्ट मौसमों जैसे -ुसल काटने के समय श्रमि कारखानों में काम छोड़कर गांवों की ओर चले जाते हैं जो श्रमिक कृशि में विशेष रुचि रखते हे वे प्रायः बीज बोने अथवाुसल काटने के समय अपने मूल निवास स्थानों को चले जाते है तथा कार्य की समाप्ति के पश्चात पुन: कारखानों में काम पर लौट आते हैं ऐसे श्रमिक मौसमी उद्योगों एवं कारखानों / खानों में अधिक पाये जाते हें

2. अल्प समय के लिए पलायन - कुछ श्रमिकों का पलायन अस्थायी या आकस्मिक प्रकृति का होता हैं यद्यपि हमारे अधिकांश श्रमिक ग्रामीण क्षेत्रों से आते है किन्तु कृषि में ही उनका विनियोग नही होता तथा वे केवल कृषि कार्यों से बचने के लिए नही वरन् आराम या स्वास्थ्य लाभ के उद्देश्य से जाते हैं एक कृषक परिवार के सदस्य होने के नाते ही उनका कृषि से अप्रत्यक्ष संबंध होता है, वे गांव में पेदा होते है, गांव में खेल कूदकर बड ़े होते है तथा प्रारंभिक शिक्षा भी वही पाते हैं

यद्यपि वे अपने परिवारों को गांव में छोड ़कर नगरों में काम करने के लिए आते है किन्तु पारिवारिक मोह के कारण गांवों से उनका संबंध टूटता नही हैं ग्रामीण परम्पराओं में उनकी अटूट श्रद्धा होती है जो श्रमिक अपनी óियों को नगरों में साथ लेकर आते हे वे भी प्रसूति आदि के समय उन्हें पुन: गांव वापस भेज देते हैं इस प्रकार किसी न किसी रूप से श्रमिकों का प्रवास जारी रहता हैं साधारणतया धार्मिक व सामाजिक उत्सव अथवा परिवार के किसी जटिल समस्या का समाधान करने हेतु या बीमारी के समय अथवा स्नेही संबंधियों से मिलने के लिए वे गांव जाते रहते हैं

3. दीर्घावधि का पलायन - दीर्घावधि पलायन से आशय यह है कि कभी-कभी श्रमिक सदैव के लिए गांव छोड ़कर नगरों में चले जाते हे तथा वहां स्थायी रूप से रहने लगते हैं ऐसे श्रमिकों का गांवों से केवल इतना ही संबंध रह जाता है कि वे गांवों के महाजनों अथवा अपने कुटुम्ब के सदस्यों को आवश्यकतानुसार रुपये पैसे भेजते रहते हैं इसके अतिरिक्त उनका गांव से कोई विशेष लगाव नहीं रहता आधुनिक समय में यह प्रवृत्ति विशेष रूप से देखने में आती हैं

4. प्रतिदिन होने वाला पलायन - कुछ औद्योगिक केन्द्रों के श्रमिकों में रोजगार के लिए बाहर आने जाने की प्रवृत्ति जाग रही हे, जैसा कि नागपुर, कोलकाता, मुम्बई, दिल्ली, पूना, अहमदाबाद, बेंगलोर व कुछ अन्य शहरों में देखा जा सकता हैं नगर की सीमाओं के बाहर श्रमिक बस्तियां बन गई हें वहां से तथा आस-पास के गांवों से प्रतिदिन ट्रेन, बस, ट्राम आदि के द्वारा अनेक श्रमिक कारखानों में काम के लिए आते जाते हैं

पलायन के प्रकार

1. अंतर्राष्ट्रीय पलायन - अंतर्राष्ट्रीय पलायन वह स्थिति है जब पलायन कर्ता राष्ट्र की सीमा को लांघकर किसी अन्य राष्ट्र में पलायन करते हें यह बात विशेष कर नव तकनीशियन जिसमें डाक्टर व इंजीनियर प्रमुख हें

2. राष्ट्रीय पलायन - यदि पलायन एक ही राष्ट्र की सीमा के भीतर होता हे तो इसे राष्ट्रीय पलायन की संज्ञा दी जाती हैं  इसी प्रकार अत: राष्ट्रीय पलायन को मुख्यतः निम्न प्रकार से चार भागों में विभक्त किया जाता हैं
  1. ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों की ओर पलायन
  2. नगरीय क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर पलायन
  3. नगरीय क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों की ओर पलायन
  4. ग्रामीण क्षेत्रों से र्गामीण क्षेत्रों की ओर पलायन
आजकल बहुराष्ट्रीय कम्पनी, निजीकरण, उदारीकरण, भूमंडलीकरण के दौर में हर ग्रामीण, शहरी मूल स्थान को छोडकर अन्यत्र कही बस जाने तथा उस मूल स्थान से निरंतर संबंध बनाये रखने की आदत को इंगित करता हे।

पलायन के मुख्य कारण

पलायन किये जाने के जो मुख्य कारण अध्ययन के दौरान उभर कर सामने आये हैं उन्हें निम्न बिन्दुओं के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा हे -

1. पर्याप्त मजदूरी का अभाव : पलायन का सबसे प्रमुख कारण मूल निवास में ग्रामीण को रोजगार प्राप्त न होना हैं अध्ययन क्षेत्र में भी यही स्थिति विद्यमान हैं यदि कुछ ग्राम पंचायत में रोजगार के अवसर उपलब्ध है भी तो ग्रामीण श्रमिकों के जीविकोपार्जन के दृष्टिकोण से अपर्याप्त हें पर्याप्त रोजगार की अनुपलब्धता के साथ ग्रामीणों को जिस अन्य समस्या का सामना करना पड़ रहा है वह है न्यून मजदूरी दरों का जो अध्ययन क्षेत्र में प्रचलित है वह मजदूरी की आवश्यकता की तुलना में बहुत ही कम होती हैं अत: कारणों के फलस्वरूप श्रमिक मूल निवास पर संघर्ष करते रहने की अपेक्षा बहां से पलायन कर जाने को एक बेहतर विकल्प के रूप में देखते हें

2. अच्छे रोजगार की तलाश : अध्ययन क्षेत्र के कुछ गांवों में रोजगार के अवसर अन्य गांवों की तुलना में कुछ हद तक सामान्य हैं परन्तु इन गांवों में भी पलायन जारी रहने का कारण ग्रामीणों द्वारा अन्य क्षेत्रों में बेहतर रोजगार की तलाश करना होता हें वे ग्रामीण श्रमिक जो स्वयं की क्षमताओं को अन्य ग्रामीण से अधिक आंकते हुए अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग न होना एवं अपनी क्षमता के अनुसार स्थानीय स्तर पर रोजगार के असर उपलब्ध नहीं पाते हैं

3. प्राकृतिक आपदा का प्रभाव : छत्तीसगढ़ में कृषि पूर्णतः मानसून पर निर्भर हैं मानसून सामान्य रहने पर कृषि कार्य सामान्य चलते है परन्तु मानसून के असामान्य रहने पर अर्थात् बाढ़ या सूखा आदि की स्थिति में कृषि एवं कृषि कार्य भी असामान्य दशा में आ जाते हैं इस तरह की स्थिति में दो अवस्थाएं निर्मित होती हैं

अ. कृषकों की फ़सल नष्ट होना : प्राकृतिक विपदा की स्थिति में कृषक वर्ग की खड़ीुसल तबाह हो जाती है विशेषकर छत्तीसगढ़ में धान में कई बार कीड़े लग जाते हे कई बार अति वर्षा के कारण धान खराब हो जाती है तो कई बार सूखे के कारण धान सूख जाती हैं सिंचाई साधनों का अभाव होने से कृषक भगवान भरोसे और भाग्य भरोसे बैठा रहता हे और ऋणग्रस्ता में उलझकर अनेक आर्थिक अभाव से घिर जाता है तथा साहूकार, दुकानदार के लगातार दबाव में कर्ज से मुक्ति के लिए आत्महत्या करने की स्थिति में पहुँच जाता है जैसा कि महाराष्ट्र में अनेक किसानों ने आत्महत्या कर लीं

ब. कृषि श्रमिकों को रोजगार न मिलना : बाढ़ एवं सूखा की स्थिति न सिर्फ कृषकों अपितु कृषि श्रमिकों के लिए भी एक अभिशाप होती है क्योंकि इन स्थितियों में कृषि कार्य संभव नहीं होते अत: इस हेतु श्रमिकों की भी आवश्यकता नहीं रहती परिणाम यह हे कि कृषि श्रमिक बेरोजगारी की समस्या के शिकार हो जाते हें उपर्युक्त दोनों ही स्थितियों में कृषक वर्ग एवं कृषि श्रमिक आर्थिक अभाव का सामना करते है एवं इन्हें पलायन कर जाना सबसे सुविधाजनक विकल्प महसूस होता हें

4. ऋणमुक्त होने के उद्देश्य से पलायन : अध्ययन गत उत्तरदाताओं में बहुत से उत्तरदाता ऋणग्रस्त हैं जिन्होंने आर्थिक संकट की स्थिति में पलायन के स्थान पर उपलब्ध óोतों से ऋण प्राप्त कर अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण करने का प्रयास कियां किन्तु ऋण के रूप में मूलधन एवं मूलधन पर ब्याज की दर के दबाव के आगे झुकते हुए इनमें से अधिकांश उत्तरदाताओं ने स्वयं को ऋणमुक्त करने के उद्देश्य से पलायन करना आरंभ कर दिया क्योंकि मूल निवास पर किसी अन्य विकल्प से इन्हें ऋणमुक्त होने हेतु कोई परिणाम प्राप्त नही हुएं

5. सामाजिक कारणों से : वर्ग व्यवस्था, जाति प्रथा, अस्प ृश्यता एवं सामाजिक भेदभाव आज भी संपूर्ण भारत के र्गामीण क्षेत्रों में उपस्थित है तथा छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्र भी इससे अछूते नही है कुछ उत्तरदाताओं ने यह स्वीकार किया हे कि जातिगत भेदभाव एवं सामाजिक व्यवस्था की बुराईयों ने उन्हें पलायन हेतु विवश किया जिसके परिणाम स्वरूप र्गामीणों ने पलायन का रास्ता अपनायां

6. र्भमण करने का शौक : शोधाथी ने अपने अध्ययन में यह पाया कि बहुत कम मात्रा में ही परन्तु कुछ ग्रामीण के द्वारा अन्य पलायनकर्ताओं के व्यवहार से प्रभावित होकर विभिन्न बड़े शहरों को देखने एवं वहां घूमने के उद्देश्य से पलायन किया जा रहा हैं इस वर्ग के पलायनकर्ता प्रथम बार तो शौक से पलायन करते है परन्तु इनमें से अधिकांश पलायन की पुनरावृत्ति करते हैं एवं ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन की निरंतरता बनी रहती हैं

7. राजनीतिक कारण : जन प्रतिनिधियों द्वारा सस्ती लोकप्रियता व वोट की राजनीति के कारण क्षेत्रीयतावाद को बढ़ावा दिया जाता हे एवं छत्तीसगढ़िया, गैर छत्तीसगढ़िया की भावना को उभारने का प्रयास किया जाता रहा हैंं यह भी पलायन का एक कारण हैं छत्तीसगढ़ में अधिकांश बड़े व्यापारी, होटल व्यवसायी, ट्रासपोर्टस एवं लघु उद्योग की अनेक इकाइयों के मालिक छत्तीसगढ़ के बाहर के हे उनके साथ अपने प्रदेश के अनेक श्रमिक आते हे एवं यहाँ के श्रमिकों को प्रलोभन देकर अपने राज्य में ले जाते है और वहाँ जाकर भोले-भाले श्रमिकों का शारीरिक व मानसिक शोषण होता है जो नकारात्मक प्रभाव का लक्षण हे कई बार समाचार पत्रों में यह प्रकाशित हुआ है कि छत्तीसगढ़ के श्रमिकों को जम्मू कश्मीर में मार दिया गया है तो उत्तर प्रदेश में बंधुआ बनाकर रखा गया है, कभी महाराष्ट्र में बंधुआ मजदूरों की रिहाई कराई गयी इत्यादि समाचार से स्पष्ट होता है कि पलायन बेहतर रोजगार की तलाश में किया जाता है परन्तु अनेक बार श्रमिक शड़यंत्र का शिकार होकर दलालों के हाथ में पड़कर अपना सब कुछ गंवा बेठते हें 

ग्रामीण पलायन के कारण

भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का तेजी से पलायन शहरों की ओर हो रहा है। बढ़ती जनसंख्या सबसे बड़ी समस्या है। भारत में कृषि क्षेत्रों की भूमि में कमी प्राकृतिक आपदाओं के कारण लोग रोजगार की तलाष में शहरों की ओर पलायन करते हैं। बुनियादी सुविधाओं का उचित मात्रा में उपलब्ध न होना। जाति व्यवस्था का दुरुपयोग होना, जैसे-खाप पंचायत आदि, कुरीतियाँ, इससे बचने के लिये लोग शहरों में पलायन करते है। शहरों में औद्योगीकरण के तेजी से प्रचार से भी शहरों की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है। रोजगार और मौलिक सुविधाओं का अभाव भी लोगों की पलायन की दिषा को बढ़ावा देता हैं।

सन्दर्भ -
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  5. सक्सेना (एस. सी.) श्रम समस्याएं एवं सामाजिक सुरक्षा रस्तोगी पब्लिकेशन, मेरठ, 1996, पृ. 106
  6. Yadav - (KNS)andsurendra Yadav, OP cit 1989 Page 107-110
  7. Zacharian (KC) OP cit 1968 P.P. 105
  8. दुबे (श्याम) एक भारतीय ग्राम नेशनल पब्लिकेशन हाऊस, नई दिल्ली, 1994, पृ. 68-86

2 Comments

  1. Bageshwar District Mein Sare Krishi Bhumi khariya mafiaon ko Patte mein de di gai hai isliye vahan se palayan karna Jaruri ho gaya hai

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