स्लम का अर्थ, परिभाषा एवं स्वरूप

स्लम्स क्या है? किन तथ्यों के मद्देनज़र किसी क्षेत्र को स्लम क्षेत्र माना जाता है? अर्थात् ऐसे कौन से मानदंड है जो किसी क्षेत्र को स्लम का अर्थ प्रदान करते है। इस सदंर्भ में सर्वप्रथम ‘स्लम’ शब्द की उत्पत्ति को स्पष्ट करना अपेक्षित है - “एरिक पैट्रिज़ की ‘ए शॉर्ट एटीम्लोजिक़ ल डिक्शनरी ऑफ मॉर्डन इंग्लिश’ के अनुसार ‘स्लम’ शब्द की उत्पत्ति ‘स्लम्बर’ शब्द से हुई है।

'Slumber' शब्द का शाब्दिक अर्थ है-गहरी नींद जब मनुष्य नींद में होता है तो वह किसी भी प्रकार की उत्पादक-क्रिया में भाग नहीं लेता। मूलतः स्लम शब्द निष्क्रिय तथा अनुत्पादक क्रियाओं की ओर सकेंत करता है। स्लम क्षेत्रों की अंधकारमयी बस्तियों में रहने वाले लागे भी इसी प्रकार निष्क्रिय व जड़ समझे जाते थे इसलिए 'Slumber' शब्द से आधार ग्रहण करते हुए इन निष्क्रिय, जड, निद्राग्रस्त और अधंकारमयी क्षेत्रों के लिए 'Slum' शब्द का प्रयोग किया जाने लगा।” 

1931 में वैबस्टर ने एरिक पैट्रिज द्वारा दिए दृष्टिकोण में बदलाव करते हुए झोंपडप़ट्टियों के अर्थ को मलिन बस्तियों तथा पतित जनता से जोड़ा। शहरों में मलिन परिवेश में बसी भ्रष्ट आबादी युक्त बस्तियाँ स्लम्स कहलाते है।

1953 में झोंपडप़ट्टियों के संदर्भ में एक अन्य उदार दृष्टिकोण प्रचलित हुआ जिसके अनुसार- “झोंपडप़ट्टियाँ गंदगी तथा अधम जीवन परिस्थितियों से चिन्हित घनी आबादी वाली गलियों के रूप में परिभाषित हुईं।”

‘‘विस्तृत अर्थ में मलिन बस्तियाँ निर्धन व्यक्तियों के रहने के वे स्थान हैं जहाँ वे स्वयं झोंपडिय़ों, कैबिन अथवा लकड़ी के छोटे- छोटे मकान बनाकर रहते है। ये मकान अपने भी होते हैं और इन मकानों में किराएदार भी रहते है। विदेशो में एक मकान वाली अनके बस्तियाँ भी मलिन बस्तियों के अन्तर्गत आती हैं और छ: मंजिल मकानों वाले क्षेत्र भी मलिन बस्तियों में आते है। “

स्लम का अर्थ

‘स्लम’ अर्थात् झोंपडप़ट्टी क्षेत्रों का अर्थ जानने के लिए इसकी अवधारणा व पहचान को समझना आवश्यक है। स्लम की पहचान प्रत्येक देश की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों पर भी निर्भर करती है। 

स्लम एरिया (इम्प्रूवमेन्ट एण्ड क्लीयंर्स) एक्ट, 1956 की धारा 3 के अनुसार स्लम का अर्थ इस प्रकार है-
  1. वह क्षेत्र जहाँ भवन किसी भी रूप में मनुष्य के निवास हेतु योग्य नहीं हैं।
  2. जहाँ भवन जीर्णावस्था, अत्यधिक भीड, दोषपूर्ण व्यवस्था, झोंपडप़ट्टियों की बनावट, संकीर्णता, प्रकाश, स्वच्छता सुविधाओं तथा अन्य अनके तथ्यों के कारण सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा मूल्यों के लिए अहितकर हैं।”
भारत के महापंजीयक ने भारत की जनगणना 2001 हेतु स्लम क्षेत्र को परिभाषित करने के लिए निम्नलिखित मापदण्ड अपनाए- 
  1. किसी भी शहर में राज्य, स्थानीय सरकारों तथा संघ राज्य क्षेत्रीय प्रशासन द्वारा ‘स्लम अधिनियम’ के साथ-साथ अन्य किसी भी अधिनियम के अन्तर्गत “स्लम्स” के रूप में अधिसूचित सभी निर्दिष्ट क्षेत्र स्लम कहलाते है।
  2. राज्य, स्थानीय सरकारों तथा सघं राज्य क्षेत्रीय प्रशासन द्वारा ‘स्लम्स’ के रूप में मान्यता प्राप्त वे क्षेत्र भी स्लम कहलाते हैं जो सभंवत: औपचारिक रूप से किसी अधिनियम के अन्तर्गत स्लम के रूप में अधिसूचित न किए गए हो।
  3. प्राय: वे सघन क्षेत्र ‘स्लम’ क्षेत्र कहलाते हैं जिनकी जनसंख्या कम से कम 300 हो या उस क्षेत्र में 60-70 परिवार प्राय: खराब तरीके से बने संकुचित आवासों में अपर्याप्त आधारभूत सुविधाओं, स्वच्छता सुविधाओं तथा पीने योग्य पानी की अनुपलब्धता से युक्त अस्वास्थ्यकर वातावरण में रहते है। 
इन मापदण्डों के आधार पर कहा जा सकता है कि जो क्षेत्र राज्य, स्थानीय सरकार तथा केन्द्रशासित प्रशासन द्वारा किसी अधिनियम के तहत स्लम क्षेत्र के रूप में ‘अधिसूचित’ किए जाते है, स्लम क्षेत्र कहलाते हैं और वे क्षेत्र जिन्हें औपचारिक रूप से अधिसूचित न किया गया हो परंतु राज्य/स्थानीय सरकार तथा केन्द्रशासित प्रशासन द्वारा स्लम्स के रूप में मान्यता प्राप्त हो वे भी स्लम्स क्षेत्र की श्रण्ेाी में आते है। 

इसके अतिरिक्त झोंपड़पट्टी क्षेत्र का अर्थ ऐसे इलाके अर्थात् क्षेत्र-विशेष से भी लिया गया है जिसमें कम से कम 300 की आबादी या 60-70 परिवार मानवीय जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियों के अभाव में जीवन बिता रहे हो।

“समाज विज्ञान की दृष्टि से स्लम्स मानदंडों और मूल्यों के समूह से युक्त एक जीवन शैली तथा उपसंस्कृति है जो घटिया स्वच्छता तथा स्वास्थ्य प्रथाओं, हिंसात्मक व्यवहार तथा उदासीनता और सामाजिक अलगाव रूपी चारित्रिक विशेषताओं के रूप में लक्षित होती हैं।”

उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि झोंपड़पट्टी शब्द का अर्थ क्षेत्र-विशेष की झोंपडप़ट्टी क्षेत्र के रूप में पहचान कराने वाले मापदण्डों पर निर्भर करता है।

स्लम की परिभाषा

झोंपडप़ट्टियों के अर्थ तथा स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए अनके पाश्चात्य तथा भारतीय अध्येताओं ने इसकी विभिन्न परिभाषाएँ दी है। इसके अतिरिक्त विश्वकोश तथा शब्दकोश में भी ‘स्लम्स’ के स्वरूप को परिभाषित किया गया है। कुछ प्रमुख परिभाषाओं को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया गया है।

1. वेबस्टर शब्दकोश (1971) के अनुसार-‘‘स्लम ह्रासित अस्वास्थ्यकर इमारतों, ग़रीबी तथा सामाजिक अव्यवस्था से युक्त अत्यधिक आबादी वाला क्षेत्र होता है।’’

2. ऑक्सर्फोड शब्दकोश (1984) के अनुसार- ‘‘स्लम शहर का वह गंदगी युक्त व अत्यधिक भीड़वाला पिछड़ा इलाका होता है जिसमें प्राय: ग़रीब लागे बसते है। 

3. कोलीन्स शब्दकोश (1990) के अनुसार- ‘‘स्लम शहर का एक मलिन क्षेत्र होता है, जहाँ जीवन परिस्थितियाँ अत्यंत तुच्छ होती है।’’

4. द एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटनिका के अनुसार - “भौगोलिक तथा सामाजिक रूप से ह्रासित क्षेत्र, स्लम क्षेत्र कहलाते है। इन क्षेत्रों में संतोषजनक पारिवारिक जीवन असम्भव होता है। झोंपड़पट्टियों की परिस्थितियों में बुरी आवास व्यवस्था एक प्रमुख तत्त्व है। बुरी आवास व्यवस्था के अन्तर्गत पर्याप्त प्रकाश, हवा, शौचालयों, स्नानघरों आदि का अभाव देखा जाता है। इनके अतिरिक्त इन क्षेत्रों में अत्यधिक भीड के कारण परिवार के पास निजता तथा आनन्दप्रद क्रियाओं हेतु समुचित अवसर व स्थान का अभाव भी लक्षित होता है। ये समस्त परिस्थितियाँ व्यक्ति के वैयक्तिक व सामाजिक ह्रास का कारण बनती हैं।”

5. वेबस्टर शब्दकोश (1994) के अनुसार - “स्लम का विचार तथा परिभाषा बहुत परिवर्तनशील है। ‘स्लम’ अपने सरलतम रूप में घटिया आवास व्यवस्था तथा गदं गी युक्त घनी आबादी वाला शहरी क्षेत्र है।”

6. वेबस्टर न्यू वल्र्ड शब्दकोश के अनुसार - “स्लम एक अत्यधिक आबादी वाला क्षेत्र है जिसमें आवास तथा अन्य जीवन परिस्थितियाँ अत्यंत बुरी होती हैं।”

7. नेशनल सैम्पल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन द्वारा सन् 1993 तथा 2002 में किए अध्ययन हेतु ‘स्लम’ की निम्नलिखित परिभाषा अपनाई गई- “एक स्लम घटिया तरीके से बने घरों की सघन बस्ती है। इसकी प्रकृति प्राय: अस्थायी होती है। आमतौर पर अधिक संख्या में एक-दूसरे से सटकर बने इन घरों में पर्याप्त स्वच्छता, पीने याग्ेय पानी जैसी सुविधाओं का अभाव पाया जाता है।”

इस परिभाषा के माध्यम से एक स्लम क्षेत्र से संबधित निम्नलिखित तथ्य स्पष्ट होते है-
  1. स्लम क्षेत्र का रूप सघन बस्ती के समान होता है।
  2. स्लम क्षेत्रों में आवास प्रबंध अत्यंत दयनीय तथा अस्थायी प्रकृति का होता है।
  3. स्लम क्षेत्रों में जीवनोपयोगी आधारभूत सुविधाओं का अभाव हेाता है।
  4. स्लम क्षेत्रों का वातावरण पण्र्ूात: अस्वास्थ्यकर होता है।
8. यूएन-हेबिट के अनुसार- “स्लम एक सक्रांमक बस्ती होती है जिसके निवासी अपर्याप्त आवास तथा अपर्याप्त मलू सुविधाओं को भागे ते हैं प्राय: संबधित अधिकारी वर्ग द्वारा स्लम को शहर के अभिन्न व समान अगं के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है।” यह परिभाषा झोंपड़पट्टी क्षेत्रों को भौगोलिक सुविधाओं की दृष्टि से विपन्न दर्शाने के साथ-साथ सत्ताधारियों के उपेक्षणीय व्यवहार को भी इंगित करती है।

9. भारत सेवक समाज द्वारा प्रकाशित गंदी बस्तियों पर रिपोर्ट के अनुसार- “गंदी बस्तियाँ शहर के उन भागों को कहा जाता है जो कि मानव विकास की दृष्टि से अनुपयुक्त हों चाहे वे पुराने ढाँचे के परिणामस्वरूप हों या स्वास्थ्य की रक्षा की दृष्टि से जहाँ सफाई की सुविधाएँ असम्भव हा।

10. गिस्ट एवं हलबर्ट ने “इन्हें विघटित क्षेत्रों का विशिष्ट स्वरूप कहा है।’’ जबकि

11. क्वीन एवं थॉमॅमस ने इन्हें रागे ग्रस्त क्षेत्र कहा है।”

12. बर्गल स्लम क्षेत्र के संदर्भ में कहते हैं कि “समग्र रूप में ही स्लम का अस्तित्व है। यह एक या दो भवनों के लिए नहीं अपितु समग्र क्षेत्र के लिए प्रयुक्त होने वाला शब्द है। उनका मानना है कि जीर्ण से जीर्ण अवस्था वाले मात्र एक भवन को ‘स्लम’ नहीं कहा जा सकता है।”

13. देसाई एण्ड पिल्ल्ई के अनुसार - “झोंपडप़ट्टियाँ गऱीबी व निराशायुक्त अधंकारमय क्षेत्र हैं जहाँ कम आय, साक्षरता दर में कमी, आवासों का अनुचित प्रबंध, अपर्याप्त चिकित्सा व स्वच्छता सुविधाएँ, कुपोषण आदि अनके समस्याएँ व्याप्त है।

14. वैकेंटय्यरप्पा ने झोंपडप़ट्टियों में व्याप्त अमानवीय परिस्थितियों को स्पष्ट रूप से नकारात्मकता से जोड़ स्लम्स की परिभाषा को इस रूप में प्रस्तुत किया है- “कुछ क्षेत्र शोर, भ्रांतियों गंदगी, अस्वास्थ्य, चिंता तथा संकुचन से युक्त होते है। ये भ्रांतियों से परिपूर्ण क्षेत्र होते हैं तथा इन क्षेत्रों की समस्याओं का चरित्र नकारात्मक होता है। अत्यधिक नकारात्मक चरित्र वाले ऐसे क्षेत्रों को ही ‘स्लम’ कहा जाता है।”

15. आशीष बोस ‘अर्बनाइज़ेशन एण्ड स्लम्स’ पुस्तक में इसी शीर्षक से संकलित पत्र (भाग-II, सत्र I.1) में स्लम को परिभाषित करते है। उन्होंने जनसंख्या, आर्थिक स्थिति व पर्यावरण तीन दृष्टियों को स्लम का आधार बनाया है। बढ़ती आबादी, भूमि पर बढ़ता जन-दबाव, बढ़ती जन्म दर, मृत्यु दर आदि स्लम क्षेत्रों की जनसंख्या संबधीं विशेषताएँ है। आर्थिक दृष्टि से स्लम क्षेत्रों की विशेषताएँ बढ़ती ग़रीबी, उत्पादकता-स्तर में गिरावट जैसे पहलू है। अपर्याप्त मूलभूत सुविधाएँ, अस्वच्छ तथा अस्वास्थ्यकर वातावरण आदि कारक पर्यावरणिक दृष्टि से स्लम को परिभाषित करते है।

सन् 1933 में मद्रास के स्लम्स के आंकलन हेतु मद्रा्रास कार्पोरेशन के कमिश्नर द्वारा झोंपडप़ट्टियों की एक सरल परिभाषा प्रस्तुत की गई। जिसमें वह बेतरतीब ढंग से बनी अस्वास्थ्यकर झोंपड़ीनुमा आकृतियों को तो स्लम मानते ही है, साथ ही अत्यधिक आबादी युक्त क्षेत्रों को भी स्लम की ही संज्ञा देते है। वे कहते है-“स्लम शब्द का अर्थ गदंगी से घिरे झोपडप़ट्टी क्षेत्रों से लिया जाता है।

बेतरतीब ढंग से बनी इन झापें ड़ियों में प्राय: मूल सुविधाओं जैसे- शुद्ध पानी की सप्लाई तथा जल निकासी के समुचित प्रबंध का अभाव देखा जाता है। घरों की संरचना इस प्रकार जुड़ी होती है कि शुद्ध हवा और प्रकाश के लिए कोई स्थान नहीं होता। जहाँ एक ओर स्लम क्षेत्रों में रहने वाले लोगो की संख्या प्रतिदिन निर्बाध रूप से बढ़ती जा रही है तो वहीं दूसरी ओर इन क्षेत्रों की स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। स्थिति यह है कि छ: लोगों के निवास योग्य घर दर्जन लोगों द्वारा अधिकृत किया जाता है। गलियों घरों में व्याप्त यह अस्वास्थ्यकर संकुचन भी किसी क्षेत्र को झोंपड़ीनुमा स्लम क्षेत्रों से बदतर बनाता है इसलिए ‘स्लम’ शब्द की परिभाषा में अत्यधिक भीड़ वाले निवास स्थान भी सम्मिलित किए जाएँगे।”

अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि लगभग सभी विद्वानों ने मुख्यत: भौगोलिक परिवेश के आधार पर ही स्लम शब्द को परिभाषित किया है। इसके अतिरिक्त उन्हानें आर्थिक व सामाजिक परिवेश को भी अपनी परिभाषाओं का आधार बनाया है। कोई भी ऐसा क्षेत्र जहाँ जन संकुलन, स्थान संकुलन, जीवन-योग्य मूल सुविधाओं की अपर्याप्तता जैसे तत्त्व पाए जाए, उसे स्लम क्षेत्र की श्रेणी में रखा जाता है।

स्लम का स्वरूप

भारत समेत विश्वभर में झोंपडप़ट्टियों के भिन्न-भिन्न स्वरूप देखे जाते है। स्लम्स के स्वरूप का निर्धारण प्रमुखत: निम्नलिखित तथ्यों पर निर्भर करता है-
  1. झोंपडप़ट्टियों के स्वरूप का निर्धारण क्षेत्र-विशेष में बसने वाले लोगो की जीवन-विधा, विचार, आदर्श व मूल्यों इत्यादि पर निर्भर करता है। 
  2. झोपडप़ट्टी क्षेत्रों में घरों की बनावट के आधार पर इनका स्वरूप निर्धारित होता है।
  3. झोपडप़ट्टी क्षेत्रों की आबादी द्वारा उस क्षेत्र-विशेष में निवास की अवधि भी स्वरूप निर्धारण का आधार बनती है।
  4. झोपडप़ट्टी वासियों की कर्मशीलता के आधार पर भी झोंपडप़ट्टियों के स्वरूप में परिवर्तन आता है।
  5. झोपडप़ट्टी क्षेत्रीय आबादी की जाति, धर्म, भाषा, प्रांत आदि तत्त्व भी स्वरूप में विभिन्नता लाते है।
  6. इन क्षेत्रों की सामाजिक व्यवस्था के आधार पर भी झोंपड़पट्टी क्षेत्रों के स्वरूप का निर्धारण होता है।

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