राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 को उस समय हुआ उनका जन्म पण्डित जवाहर लाल नेहरू की छोटी बहन श्रीमती कृष्णा हठीसिंह के बम्बई स्थित घर पर हुआ था। पण्डित जवाहर लाल नेहरू उस समय राजनीतिक बंदी के रूप में अहमदनगर की जेल में थे। इन्दिरा जी पन्द्रह माह पूर्व ओर उनके पिता जन्म के एक वर्ष पूर्व जेल से मुक्त होकर आये थे। पण्डित नेहरू ने बच्चे का नाम ‘राजीव रत्न’ रखा। यह उसकी नानी कमला के प्रथम शब्द ‘कमला’ और नेहरू के नाम के प्रथम चार अक्षरों जवाहरलाल के ‘हीरे’ (जेम) का मिश्रण था। 14 दिसम्बर 1946 में दूसरे पुत्र संजय का जन्म दिल्ली में हुआ।
राजीव अपने माता-पिता की प्रथम संतान थे। उनकी माता श्रीमती इन्दिरा गांधी का विवाह 26 मार्च 1942 को इलाहाबाद स्थित आनन्द भवन में फिरोज (पारसी) के साथ सम्पन्न हुआ था। जिसमें सर-स्टेफर्ड क्रिप्स और फ्रान्सीसी वैज्ञानिक मैरी क्यूरी की पुत्री ईव क्यूरी भी उपस्थित थीं। फिरोज जहाँगीरुरदून और रतिभाई की संतान थे। राजीव गांधी 18 वर्ष की अल्पायु से ही स्वतंत्रता आन्दोलन में जुट गये और उन्होंने जीवनपर्यन्त राष्ट्र की अमूल्य सेवा की।
महात्मा गांधी ने फिरोज गांधी को सच्चा क्रान्तिकारी निरूपित करते हुए कहा था - ‘‘मुझे यदि फिरोज गांधी जैसे केवल सात देशभक्त मिल जायें तो मैं सात दिन में देश को स्वतंत्र करवा सकता हूँ।’’ राजीव गांधी के पिता फिरोज गांधी 48 वर्ष की उम्र में 8 सितम्बर 1960 में हार्ट अटैक से काल के गाल में समा गये।
राजीव का प्रारम्भिक लालन-पालन एक डैनिश गवर्नेश ऐना औरनशौल्ट की
देखरेख में बीता। किण्डरगार्टन की पढ़ाई के लिये उन्हें एक जर्मन महिला
एजिलाबेथ गोबा के यहाँ भेजा गया, जो अपनी निजी संस्था चलाती थीं। राजीव
बचपन में शर्मीले, अनुशासित ओर शिष्ट थे। वे कम ओर धीमे स्वर में बोलते थे।
किण्डरगार्टन के बाद राजीव और संजय देहरादून में स्थित सर्वश्रेष्ठ विद्यालय वेल्हाम वायज प्रिपेटरी स्कूल में भती्र हुए जिसे मिस ओलीफेण्ट चलाती थीं। मिस ओलीफेण्ट सख्त और अनुशासन पसन्द महिला थीं। बाद में नेहरू जी की इच्छा पर राजीव को दून स्कूल में दाखिला दिलाया गया जो भारत में ‘‘हैरो’’ कहाँ जाता हे। राजीव के जो मुख्य अध्यापक थे वे हेरों में भी पढ़ा चुके थे, उनका नाम था जार्ज मार्टिन।
राजीव के व्यक्तित्व के विकास पर उनके घर के कारणों का भी प्रभाव पड़ा। अपने पिता फिरोज गांधी की बहुत सी विशेषतायें राजीव के चरित्र में थीं। जब उनकी अवस्था सोलह वर्ष की थी तभी उनके पिता की 48 वर्ष की उम्र में सितम्बर 1960 में मृत्यु हो गयी थी।
किण्डरगार्टन के बाद राजीव और संजय देहरादून में स्थित सर्वश्रेष्ठ विद्यालय वेल्हाम वायज प्रिपेटरी स्कूल में भती्र हुए जिसे मिस ओलीफेण्ट चलाती थीं। मिस ओलीफेण्ट सख्त और अनुशासन पसन्द महिला थीं। बाद में नेहरू जी की इच्छा पर राजीव को दून स्कूल में दाखिला दिलाया गया जो भारत में ‘‘हैरो’’ कहाँ जाता हे। राजीव के जो मुख्य अध्यापक थे वे हेरों में भी पढ़ा चुके थे, उनका नाम था जार्ज मार्टिन।
राजीव के व्यक्तित्व के विकास पर उनके घर के कारणों का भी प्रभाव पड़ा। अपने पिता फिरोज गांधी की बहुत सी विशेषतायें राजीव के चरित्र में थीं। जब उनकी अवस्था सोलह वर्ष की थी तभी उनके पिता की 48 वर्ष की उम्र में सितम्बर 1960 में मृत्यु हो गयी थी।
उन्हें बचपन से ही हवाई जहाज के डिजाइन ओर उसकी मशीनरी जानने की बड़ी लगन थी। राजीव गांधी जब लंदन में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो उनके खर्चे के लिये जो राशि उन्हें प्राप्त होती थी वह पर्याप्त न होने के कारण उन्हें होटल में बैरे के रूप में कार्य करना पड़ता था। वह बहुत शर्मीले, नम्र, मृदुभाषी और बहुत अच्छा व्यवहार करने वाले थे। उन्हें कुत्तों की तरह-तरह की किस्मों से, और अच्छी छपी पत्रिकाओं से बड़ा लगाव था।’’ लंदन में ही ‘ग्रीक रेस्टोरेन्ट’ में एक लड़की से उनकी भेंट हुई जो कि ‘इटली’ के ‘ट्युनिस नगर’ के एक धनकुबेर होटल व्यवसायी ‘श्री स्टीफेनो मायनो’ की 20 वषी्रय पुत्री ‘सोनिया माइनो’ (जन्म तिथि 6 दिसम्बर, 1946) थी, जो कि कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से सम्बद्ध स्कूल ऑफ लैंग्वेज में स्पेनिश, फ्रेंच ओर अंग्रेजी भाषायें सीख रही थी ताकि वह दुभाषिया बनकर अपने पिता के व्यवसाय में मदद कर सके।
आरम्भ में सोनिया के माता-पिता ने राजीव के साथ
विवाह के प्रस्ताव का विरोध किया लेकिन अन्त में उन्हें अपनी माँ से इजाजत मिल
गयी और 25 फरवरी 1968 को दिल्ली में राजीव गांधी और सोनिया का विवाह
सम्पन्न हुआ, जिसमें बच्चन परिवार की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही तथा उन्होंने ही
कन्यादान किया। 19 जून 1970 को राहुल का जन्म हुआ तथा 12 जनवरी 1972
को अठारह महीने बाद प्रियंका पैदा हुई।
आरम्भ से ही राजीव की रुचि हवाई जहाज उड़ाने में थी। दिल्ली फ्लाइंग क्लब से भारतीय वायुसेना का पायलट बनने के लिये प्रशिक्षण पूरा करने पर उन्होंने इण्डियन एयरलाइन्स में पायलट की नौकरी कर ली। निजी जीवन में उन्हें इलेक्ट्रानिक और उच्च तकनीकी फोटोग्राफी, निशाना साधना प्रिय था तथा सार्वजनिक जीवन में पर्यावरण और उसकी सुरक्षा का अध्ययन करने तथा भारतीय संस्कृति को सुरक्षित रखने की प्रबल आकाँक्षा रखते थे। राजनीति में उनकी रुचि कभी नहीं थी क्योंकि उनकी पत्नी सोनिया गांधी इसे कतई पसन्द नहीं करती थीं। इसी समय गांधीवाद और सर्वोदयी नेता और जवाहर लाल नेहरू के पुराने साथी ओर समाजवादी विचारधारा के पोषक जयप्रकाश नारायन ने कांग्रेस की नीतियों का पुरजोर विरोध किया और उन्होंने ‘‘इन्दिरा हटाओ’’ आन्दोलन चलाया।
देश में आपात स्थिति की घोषणा कर दी गयी जो 26 जून 1975 से फरवरी 1977 तक लागू रही। आपात स्थिति की वजह से इन्दिरा जी की काफी आलोचना हुई। फलस्वरूप 1977 के चुनावों में उन्हें सत्ता से हाथ धोना पड़ा। ये दिन गांधी परिवार के लिये बड़े बुरे थे। इसी समय 1977-78 में राजीव सोनिया इटली जाना चाहते थे लेकिन इन्दिरा जी के कहने पर उन्होंने अपना कार्यक्रम स्थगित कर दिया।
फिर मोरार जी देसाई सत्ता में आये और अपने आन्तरिक झगड़ों के कारण 1979 में उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा और चौधरी चरण सिंह को देश का नया प्रधानमंत्री बनाया गया। लेकिन वे एक दिन भी संसद का सामना नहीं कर पाये।
फलत: राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को पुन: चुनावों की घोषणा करनी पड़ी, जिसके परिणामस्वरूप 1980 में श्रीमती इन्दिरा गांधी पुन: सत्ता में आयीं। उन्होंने अपना मंत्रिमण्डल बनाया। संजय गांधी की युवा कांग्रेस को अच्छा प्रतिनिधित्व मिला और वह लोकसभा के लिये अमेठी से निर्वाचित होकर संसद के लिये चुने गये ओर इस तरह गांधी परिवार के दु:ख के बादल छटने शुरू हो गये।
अभी गांधी परिवार के दु:ख के बादल पूरी तरह छँट भी नहीं पाये थे कि उनके परिवार में एक ओर वज्रपात हुआ। 23 जून 1980 को संजय सुबह 7 बजकर 30 मिनट पर घर से निकलकर अपने दोस्त कैप्टन सुभाष सक्सेना को साथ लेकर सफदरजंग हवाई अड्डा स्थित दिल्ली फ्लाइंग क्लब पहुँचे। 7 बजकर 58 मिनट पर संजय गांधी ने सुभाष सक्सेना के साथ पिट्स एस-2 एक विमान को उड़ाया।
कुछ मिनटों बाद ही हवाई जहाज दुघ्रटनाग्रस्त हो गया ओर चाणक्यपुरी पुलिस थाने के आगे विश्व युवक केन्द्र के पास के नाले के निकट विमान पेड़ों से जा टकराया। प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी को इस दुर्घटना की सूचना 8 बजकर 20 मिनट पर टेलीफोन द्वारा की गई। वे तत्काल दुर्घटना स्थल पर पहुँची। विमान पूरी तरह नष्ट हो चुका था और दोनों की ही तत्काल मृत्यु हो चुकी थी। शव पूरी तरह क्षत-विक्षत हो चुके थे तथा उन्हें पहचानना मुश्किल था। श्रीमती मेनका गांधी के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। संजय का विवाह कुछ वर्ष पूर्व ही 30 दिसम्बर 1974 को मेनका आनन्द से हुआ था। श्रीमती इन्दिरा गांधी उन्हें दिलासा देती रहीं।
इस समय संजय का एकमात्र पुत्र वरुण था। राजीव गांधी इस समय यूरोप के दोरे पर थे। लंदन में जैसे ही उन्होंने संजय गांधी के निधन का समाचार सुना वे तुरन्त दिल्ली रवाना हो गये। दिल्ली पहुँचकर राजीव ने अपने अनुज की चिता को प्रज्जवलित किया। जिस समय संजय गांधी के अस्थि अवशेषों को राजीव संगम में प्रवाहित कर रहे थे तब वहाँ उपस्थित विशाल समूह उनके कष्टों में सम्मिलित होकर एक ही बात कह रहा था - ‘‘राजीव आओ। देश बचाओ। राजीव आओ। देश बचाओ।
अन्तत: राजीव गांधी परिस्थितियोंवश राजनीति में आये और परिस्थितियों ने ही उन्हें प्रधानमंत्री की श्रेणी तक पहुँचाया। अपने प्रधानमंत्री के अल्पकाल (1984-1989) में उन्होंने वह सब कुछ कर दिखाया जो कुछ इतने कम कार्यकाल में करना दुल्रभ नहीं बल्कि असम्भव था।
प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्धों में असाधारण स्वतंत्र शेली अपनायी एवं प्रजातांत्रिक विश्व के निरन्तर की आवश्यकता को महसूस किया, रंगभेद को खत्म करने तथा विश्व शान्ति, आपसी भाईचारे और पड़ोसी देशों के मध्य मधुर सम्बन्ध बनाये रखने की नीति का अनुसरण किया। उनकी पड़ोसी देशों के प्रति ‘‘वसुधैवकुटुम्बकम’’ व निरन्तर प्रगति पथ में साथ लेकर चलने की ‘चैरिवेति’ की नीति का अवलोकन करना ही इस शोध का उद्देश्य है।
भारतीय राजनीति में राजीव गांधी का उदय जिस प्रकार एकाएक बड़ी तीव्रता के साथ हुआ, उसी प्रकार वे बड़े ही लोमहर्षक और हृदय विदारक ढंग से राजनीति से ही नहीं, इस संसार से भी सहसा विदा हो गये। भारतीय राजनीति के क्षितिज पर उनके मरणोपरान्त (21 मई 1991 के बाद) इस प्रकार की रिक्तता छा गयी जो सरलता से पूरी नहीं हो सकती।
आरम्भ से ही राजीव की रुचि हवाई जहाज उड़ाने में थी। दिल्ली फ्लाइंग क्लब से भारतीय वायुसेना का पायलट बनने के लिये प्रशिक्षण पूरा करने पर उन्होंने इण्डियन एयरलाइन्स में पायलट की नौकरी कर ली। निजी जीवन में उन्हें इलेक्ट्रानिक और उच्च तकनीकी फोटोग्राफी, निशाना साधना प्रिय था तथा सार्वजनिक जीवन में पर्यावरण और उसकी सुरक्षा का अध्ययन करने तथा भारतीय संस्कृति को सुरक्षित रखने की प्रबल आकाँक्षा रखते थे। राजनीति में उनकी रुचि कभी नहीं थी क्योंकि उनकी पत्नी सोनिया गांधी इसे कतई पसन्द नहीं करती थीं। इसी समय गांधीवाद और सर्वोदयी नेता और जवाहर लाल नेहरू के पुराने साथी ओर समाजवादी विचारधारा के पोषक जयप्रकाश नारायन ने कांग्रेस की नीतियों का पुरजोर विरोध किया और उन्होंने ‘‘इन्दिरा हटाओ’’ आन्दोलन चलाया।
देश में आपात स्थिति की घोषणा कर दी गयी जो 26 जून 1975 से फरवरी 1977 तक लागू रही। आपात स्थिति की वजह से इन्दिरा जी की काफी आलोचना हुई। फलस्वरूप 1977 के चुनावों में उन्हें सत्ता से हाथ धोना पड़ा। ये दिन गांधी परिवार के लिये बड़े बुरे थे। इसी समय 1977-78 में राजीव सोनिया इटली जाना चाहते थे लेकिन इन्दिरा जी के कहने पर उन्होंने अपना कार्यक्रम स्थगित कर दिया।
फिर मोरार जी देसाई सत्ता में आये और अपने आन्तरिक झगड़ों के कारण 1979 में उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा और चौधरी चरण सिंह को देश का नया प्रधानमंत्री बनाया गया। लेकिन वे एक दिन भी संसद का सामना नहीं कर पाये।
फलत: राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को पुन: चुनावों की घोषणा करनी पड़ी, जिसके परिणामस्वरूप 1980 में श्रीमती इन्दिरा गांधी पुन: सत्ता में आयीं। उन्होंने अपना मंत्रिमण्डल बनाया। संजय गांधी की युवा कांग्रेस को अच्छा प्रतिनिधित्व मिला और वह लोकसभा के लिये अमेठी से निर्वाचित होकर संसद के लिये चुने गये ओर इस तरह गांधी परिवार के दु:ख के बादल छटने शुरू हो गये।
अभी गांधी परिवार के दु:ख के बादल पूरी तरह छँट भी नहीं पाये थे कि उनके परिवार में एक ओर वज्रपात हुआ। 23 जून 1980 को संजय सुबह 7 बजकर 30 मिनट पर घर से निकलकर अपने दोस्त कैप्टन सुभाष सक्सेना को साथ लेकर सफदरजंग हवाई अड्डा स्थित दिल्ली फ्लाइंग क्लब पहुँचे। 7 बजकर 58 मिनट पर संजय गांधी ने सुभाष सक्सेना के साथ पिट्स एस-2 एक विमान को उड़ाया।
कुछ मिनटों बाद ही हवाई जहाज दुघ्रटनाग्रस्त हो गया ओर चाणक्यपुरी पुलिस थाने के आगे विश्व युवक केन्द्र के पास के नाले के निकट विमान पेड़ों से जा टकराया। प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी को इस दुर्घटना की सूचना 8 बजकर 20 मिनट पर टेलीफोन द्वारा की गई। वे तत्काल दुर्घटना स्थल पर पहुँची। विमान पूरी तरह नष्ट हो चुका था और दोनों की ही तत्काल मृत्यु हो चुकी थी। शव पूरी तरह क्षत-विक्षत हो चुके थे तथा उन्हें पहचानना मुश्किल था। श्रीमती मेनका गांधी के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। संजय का विवाह कुछ वर्ष पूर्व ही 30 दिसम्बर 1974 को मेनका आनन्द से हुआ था। श्रीमती इन्दिरा गांधी उन्हें दिलासा देती रहीं।
इस समय संजय का एकमात्र पुत्र वरुण था। राजीव गांधी इस समय यूरोप के दोरे पर थे। लंदन में जैसे ही उन्होंने संजय गांधी के निधन का समाचार सुना वे तुरन्त दिल्ली रवाना हो गये। दिल्ली पहुँचकर राजीव ने अपने अनुज की चिता को प्रज्जवलित किया। जिस समय संजय गांधी के अस्थि अवशेषों को राजीव संगम में प्रवाहित कर रहे थे तब वहाँ उपस्थित विशाल समूह उनके कष्टों में सम्मिलित होकर एक ही बात कह रहा था - ‘‘राजीव आओ। देश बचाओ। राजीव आओ। देश बचाओ।
अन्तत: राजीव गांधी परिस्थितियोंवश राजनीति में आये और परिस्थितियों ने ही उन्हें प्रधानमंत्री की श्रेणी तक पहुँचाया। अपने प्रधानमंत्री के अल्पकाल (1984-1989) में उन्होंने वह सब कुछ कर दिखाया जो कुछ इतने कम कार्यकाल में करना दुल्रभ नहीं बल्कि असम्भव था।
प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्धों में असाधारण स्वतंत्र शेली अपनायी एवं प्रजातांत्रिक विश्व के निरन्तर की आवश्यकता को महसूस किया, रंगभेद को खत्म करने तथा विश्व शान्ति, आपसी भाईचारे और पड़ोसी देशों के मध्य मधुर सम्बन्ध बनाये रखने की नीति का अनुसरण किया। उनकी पड़ोसी देशों के प्रति ‘‘वसुधैवकुटुम्बकम’’ व निरन्तर प्रगति पथ में साथ लेकर चलने की ‘चैरिवेति’ की नीति का अवलोकन करना ही इस शोध का उद्देश्य है।
भारतीय राजनीति में राजीव गांधी का उदय जिस प्रकार एकाएक बड़ी तीव्रता के साथ हुआ, उसी प्रकार वे बड़े ही लोमहर्षक और हृदय विदारक ढंग से राजनीति से ही नहीं, इस संसार से भी सहसा विदा हो गये। भारतीय राजनीति के क्षितिज पर उनके मरणोपरान्त (21 मई 1991 के बाद) इस प्रकार की रिक्तता छा गयी जो सरलता से पूरी नहीं हो सकती।
राजीव गांधी का राजनीति में प्रवेश
कहते हैं आदमी परिस्थितियों का दास होता है जैसा कि राजीव गांधी के साथ हुआ। 23 जून 1980 को संजय गांधी के निधन के पश्चात श्रीमती इन्दिरा गांधी के लिये इस वज्रपात का बर्दाश्त कर पाना आसान नहीं था। वे अंदर ही अंदर टूट चुकी थी। ऐसी स्थिति में राजीव का अपने दायित्वों से मुँह मोड़ना असम्भव था। क्योंकि सभी लोगों ने महसूस किया कि इन्दिरा जी की ढलती उम्र की उस नाजुक घड़ी में उन्हें सहारे की आवश्यकता हे। सोनिया जी द्वारा राजीव के राजनीति में प्रवेश का विरोध करना सम्भव नहीं हो पाया। अत: दस महीने के विचार-विमर्श और अन्तर्द्वन्द के बाद छत्तीस वर्ष की आयु में उन्होंने राजनीति में आने का निश्चय किया।राजनीति के सम्बन्ध में राजीव गांधी ने अपने मित्र से
कहा- ‘‘राजनीति से पहले मुझे यह पता होना चाहिए, यह क्या है ...... ओर तभी में
निर्णय ले सकता हूँ।’’ उन्होंने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा था, ‘‘मैं राजनीति में प्रवेश
करूँगा, यदि इससे मेरी माँ को सहायता मिलती है।’’ 16 सितम्बर 1980 को फ्रांस
की एक समाचार पत्रिका ‘‘ले पिकारो’ ने अपनी एक भेंट वार्ता में राजीव गांधी को
यह कहते हुए उद्धृत किया था कि वे काँगे्रस में पुरानी और युवा पीढ़ी को परस्पर
एक-दूसरे के निकट लाने का कार्य करेंगें।
राजीव गांधी ने इस बात का भी विरोध किया
कि उन्हें पार्टी में किसी ऊँचे पद पर आगे बढ़ा दिया जाये। उन्होंने कहा कि इसके
बजाय मैं यह पसन्द करूँगा कि पार्टी में सबसे नीचे से कार्य करना प्रारम्भ करूँ
और धीरे-धीरे आगे बढूँ। यही बात उन्होंने सितम्बर 1980 के आसपास ही नई
दिल्ली की एक समाचार पत्रिका इण्डिया टुडे को साक्षात्कार देते हुए कहा कि वे
अपनी माँ और जनता के बीच एक सेतु के रूप में काम करने की लालसा रखते
हैं।
राजीव गांधी राजनीति में आयेंगे या नहीं इसके सम्बन्ध में लोगों के भिन्न-भिन्न विचार थे। अधिकाँश लोगों का अनुमान यही था कि राजीव गांधी राजनीति में नही आयें गे, क्योंकि वे सीधे सच्चे इंसान हैं। इसलिये राजनीति उन्हें रास नहीं आयेगी। खुशवंत सिंह ने तो ‘‘हिन्दुस्तान टाइम्स’’ के माध्यम से करीब-करीब निश्चित तौर पर कह दिया था कि ‘‘राजीव शायद ही राजनीति में आयें। परन्तु बदली हुई परिस्थितियों (विशेष रूप से संजय गांधी की मृत्यु) को ध्यान में रखते हुए और अपनी माँ को सहारा देने के उद्देश्य से राजीव ने राजनीति में आने का निश्चय किया।
राजीव गांधी राजनीति में आयेंगे या नहीं इसके सम्बन्ध में लोगों के भिन्न-भिन्न विचार थे। अधिकाँश लोगों का अनुमान यही था कि राजीव गांधी राजनीति में नही आयें गे, क्योंकि वे सीधे सच्चे इंसान हैं। इसलिये राजनीति उन्हें रास नहीं आयेगी। खुशवंत सिंह ने तो ‘‘हिन्दुस्तान टाइम्स’’ के माध्यम से करीब-करीब निश्चित तौर पर कह दिया था कि ‘‘राजीव शायद ही राजनीति में आयें। परन्तु बदली हुई परिस्थितियों (विशेष रूप से संजय गांधी की मृत्यु) को ध्यान में रखते हुए और अपनी माँ को सहारा देने के उद्देश्य से राजीव ने राजनीति में आने का निश्चय किया।
भारतीय राजनीति के सम्बन्ध में श्री राजीव गांधी का यह
मत था कि जितने भी राजनीतिज्ञ हैं वे मात्र दो बातों के प्रलोभन में आकर इस क्षेत्र
में आये हैं - एक शक्ति ओर दूसरा धन। उन्होंने बहुत ही साहसपूर्वक कहा था कि
हमारे देश में बहुत कम ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जो पूरी तरह ईमानदार हें। जब उनसे
पूँंछा गया कि आप राजनीति में कौन-कोन सी बातें देखना चाहेंगे, तो उन्होंने दो
बातों को सर्वोपरि बताया, पहली ईमानदारी ओर दूसरी अपने प्रति महात्वाकांक्षा न
होकर देश के प्रति हो।’’
उन्होंने इण्डियन एयरलाइंस के पायलट की नौकरी छोड़ दी ओर 14 दिसम्बर 1980 को विधिवत रूप से युवक कांग्रेस में सम्मिलित हो गये और साथ ही 13 जनवरी 1981 को वे अपनी माँ श्रीमती इन्दिरा गांधी के साथ महाराष्ट्र के दोरे पर गये।
14 जून 1981 को देश में 8 लोकसभा उपचुनाव तथा 23 विधानसभा उपचुनाव होने थे। अतएव राजीव गांधी ने उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने का निश्चय किया जो कि उनके छोटे भाई संजय की मृत्यु के फलस्वरूप खाली हुई थी। जब राजीव गांधी अपना नामांकन पत्र दाखिल करने के लिये सुल्तानपुर पहुँचे तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, उत्तर प्रदेश कांग्रेस (इ) अध्यक्ष विशम्भर पाण्डेय, राजीव गांधी की पत्नी श्रीमती सोनिया गांधी, सीताराम केसरी, कोषाध्यक्ष अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (इ), अरुण कुमार नेहरू, प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन के भाई अजिताभ बच्चन सहित अनेकों वरिष्ठ कांग्रेसी नेता उनके साथ थे।
उन्होंने इण्डियन एयरलाइंस के पायलट की नौकरी छोड़ दी ओर 14 दिसम्बर 1980 को विधिवत रूप से युवक कांग्रेस में सम्मिलित हो गये और साथ ही 13 जनवरी 1981 को वे अपनी माँ श्रीमती इन्दिरा गांधी के साथ महाराष्ट्र के दोरे पर गये।
14 जून 1981 को देश में 8 लोकसभा उपचुनाव तथा 23 विधानसभा उपचुनाव होने थे। अतएव राजीव गांधी ने उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने का निश्चय किया जो कि उनके छोटे भाई संजय की मृत्यु के फलस्वरूप खाली हुई थी। जब राजीव गांधी अपना नामांकन पत्र दाखिल करने के लिये सुल्तानपुर पहुँचे तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, उत्तर प्रदेश कांग्रेस (इ) अध्यक्ष विशम्भर पाण्डेय, राजीव गांधी की पत्नी श्रीमती सोनिया गांधी, सीताराम केसरी, कोषाध्यक्ष अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (इ), अरुण कुमार नेहरू, प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन के भाई अजिताभ बच्चन सहित अनेकों वरिष्ठ कांग्रेसी नेता उनके साथ थे।
राजीव गांधी के राजनीति के प्रवेश के
सम्बन्ध में ‘टाइम्स आूफ इण्डिया’ ने अपने सम्पादकीय में लिखा - ‘‘राजीव गांधी ने
अपनी प्रतिष्ठा के अनुकूल ही राजनीति में चुनाव के माध्यम से प्रवेश करने का
निर्णय लिया है। अन्यथा यदि वे पिछले दरवाजे से राजनीति में आते तो वे शक्ति
के अतिरिक्त असंवैधानिक केन्द्र बिन्दु ही माने जाते।’’
सुल्तानपुर में नामांकन पत्र
प्रस्तुत करने के तुरन्त बाद हुई अपनी प्रथम पत्रकार वार्ता में राजीव गांधी ने बड़े
विश्वास के साथ ओर प्रफुल्लता पूर्वक अपना मंतव्य व्यक्त करते हुए कहा -
‘‘संजय ने अमेठी में जिन कार्यों को सम्पन्न करने का संकल्प लिया था उन्हें वे
अवश्य पूरा करेंगें। दल की नीतियाँ ही उनकी नीतियाँ होंगी। वे कांग्रेस संगठन को
मजबूत करने में अपनी शक्ति लगायेंगें। जब उनसे पूछा गया कि देश की ज्वलंत
समस्याओं के संदर्भ में उनकी क्या नीति होगी, तो उन्होंने प्रथम पुरुष के रूप में
उत्तर नहीं दिया। उन्होंने कहा कि इस बारे में दल की नीतियों का अनुसरण
करूँगा। आखिरकार में दल में सबसे कनिष्ठ सदस्य हूँ।’’ चुनाव परिणाम राजीव
गांधी के पक्ष में गया। उन्होंने अपने प्रतिद्वन्दी शरद यादव को 2 लाख 37 हजार
मतों से1 पराजित किया। जिस समय वे लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए उनकी आयु
37 वर्ष थी ओर यह उनकी पहली राजनीतिक विजय थी।
इस अवसर पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आम पाठकों की राजीव गांधी की चुनाव विजय के प्रसंग में प्रतिक्रियाएँ प्रकाशित हुई। सबके शब्द अलग-अलग थे लेकिन भाव एक था। प्रकाशित प्रतिक्रयाओं में से कुछ इस प्रकार थीं - ‘‘राजीव गांधी का व्यक्तित्व चन्द्रमा के समान शीतल हे। वह सब पाट्रियों के ग्राह्य.... हें। उनमें साथ लेकर चलने की क्षमता हे। इनसे राजनीति में संतुलन स्थापित होगा।’’
किसी व्यक्ति का राजनीति में आना तभी अहितकर हो सकता हे जब उसका नैतिक पतन हो चुका हो, जिसमें विरोधियों का सामना करने की सामर्थ्य न हो, विपत्ति के समय अपना धीरज खो बैठता हो। ऐसा कोई दुर्गुण या बात राजीव गांधी में नहीं देखी गई। उनका राजनीति में आना भारत के लिये शुभ लक्षण है। श्रीमती गांधी के घोर विरोधी आलोचक सर्वश्री चरण सिंह, राजनारायण ओर पीलू मोदी तक ने राजीव गांधी के गम्भीर, मृदु और शिष्ट शालीन स्वभाव की सराहना की है। विरोधी दलों के नेता तक जिस राजीव गांधी की प्रशंसा करते हैं, उनका भारतीय राजनीति में आना शुभ लक्षण हे। ‘‘चुनाव विजय के पश्चात राजीव गांधी विश्व चर्चा का विषय बन गये। विश्व की प्राय: सभी पत्र-पत्रिकाओं ने उनका उल्लेख किया। इसी समय राजीव गांधी को चीन के विदेश मंत्री ने चीन आने का निमंत्रण दिया जिसे स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं चीन जाना स्वीकार करूँगा।’’
इस अवसर पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आम पाठकों की राजीव गांधी की चुनाव विजय के प्रसंग में प्रतिक्रियाएँ प्रकाशित हुई। सबके शब्द अलग-अलग थे लेकिन भाव एक था। प्रकाशित प्रतिक्रयाओं में से कुछ इस प्रकार थीं - ‘‘राजीव गांधी का व्यक्तित्व चन्द्रमा के समान शीतल हे। वह सब पाट्रियों के ग्राह्य.... हें। उनमें साथ लेकर चलने की क्षमता हे। इनसे राजनीति में संतुलन स्थापित होगा।’’
किसी व्यक्ति का राजनीति में आना तभी अहितकर हो सकता हे जब उसका नैतिक पतन हो चुका हो, जिसमें विरोधियों का सामना करने की सामर्थ्य न हो, विपत्ति के समय अपना धीरज खो बैठता हो। ऐसा कोई दुर्गुण या बात राजीव गांधी में नहीं देखी गई। उनका राजनीति में आना भारत के लिये शुभ लक्षण है। श्रीमती गांधी के घोर विरोधी आलोचक सर्वश्री चरण सिंह, राजनारायण ओर पीलू मोदी तक ने राजीव गांधी के गम्भीर, मृदु और शिष्ट शालीन स्वभाव की सराहना की है। विरोधी दलों के नेता तक जिस राजीव गांधी की प्रशंसा करते हैं, उनका भारतीय राजनीति में आना शुभ लक्षण हे। ‘‘चुनाव विजय के पश्चात राजीव गांधी विश्व चर्चा का विषय बन गये। विश्व की प्राय: सभी पत्र-पत्रिकाओं ने उनका उल्लेख किया। इसी समय राजीव गांधी को चीन के विदेश मंत्री ने चीन आने का निमंत्रण दिया जिसे स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं चीन जाना स्वीकार करूँगा।’’
19 जुलाई 1981 को इंग्लैण्ड के युवराज चाल्स्र ने राजकुमारी डायना के
साथ होने वाले विवाह समारोह में सम्मिलित होने के लिये राजीव गांधी को
व्यक्तिगत रूप से निमंत्रण भेजा जिसे स्वीकार करके राजीव गांधी 28 जुलाई 1981
को लंदन पहुँचे। जनप्रतिनिधि चुने जाने के बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा
थी। 17 अगस्त 1981 को राजीव गांधी ने संसद भवन में पूरे देश के
जनप्रतिनिधियों के समक्ष संसद सदस्य के रूप में शपथ ली और उन्होंने लोकतंत्र
के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया। इसी समय श्रीमती इन्दिरा गांधी ने 1982 में
होने वाले एशियाड की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी उनको सोंपी। उन्होंने अपनी इस नई
जिम्मेदारी का बखूबी पालन करते हुए एशियाड के सफल आयोजन के लिये
निरीक्षण किया, यहाँ तक कि उन्होंने रोड पर लगे साइन बोर्डों तक का स्वयं
निरीक्षण किया। राजीव गांधी की इस कठोर मेहनत के परिणामस्वरूप खेलों का
सफल आयोजन सम्भव हुआ और उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि वे बड़ी से बड़ी
जिम्मेदारी को भी बड़ी सफलता के साथ वहन कर सकते हैं।
1983 में राजीव गांधी को काँग्रेस (इ) का महासचिव बनाया गया। कांग्रेस (इ) के महासचिव की हैसियत से राजीव गांधी ने पाटी्र संगठन को मजबूत करने, प्रशिक्षित ओर समर्पित कार्यकर्ता तेयार करने तथा कांग्रेस संस्कृति को और विचार सम्पन्न करने के लिये अनेक प्रयास किये। जिसके तहत उन्होंने बहुत से परिसंवाद, प्रशिक्षण शिविर और प्रशिक्षण यात्राएँ आयोजित कीं। उनका दृढ़ मत था कि निर्वाचन के तंत्र में युवाओं की शक्ति एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हे। रायसीना रोड पर युवक कांग्रेस का केन्द्र राजीव गांधी की कार्यशाला के नाम से प्रसिद्ध था। वह चाहते थे कि नीचे के धरातल पर युवक कार्यकता्र कांग्रेस दल को शक्तिशाली बनाये। आजादी से पहले की और बाद की पीढ़ी के बीच में वे सेतु के रूप में काम करना चाहते थे। अनुभव, जो वर्षों के कार्य से प्राप्त होता है, उसको महत्वपूण्र मानते हुए वह यह चाहते थे कि पहली व बाद की पीढ़ी मिलकर सद्भाव संदेश की प्रगति में हाथ बढ़ाये।
1983 में राजीव गांधी को काँग्रेस (इ) का महासचिव बनाया गया। कांग्रेस (इ) के महासचिव की हैसियत से राजीव गांधी ने पाटी्र संगठन को मजबूत करने, प्रशिक्षित ओर समर्पित कार्यकर्ता तेयार करने तथा कांग्रेस संस्कृति को और विचार सम्पन्न करने के लिये अनेक प्रयास किये। जिसके तहत उन्होंने बहुत से परिसंवाद, प्रशिक्षण शिविर और प्रशिक्षण यात्राएँ आयोजित कीं। उनका दृढ़ मत था कि निर्वाचन के तंत्र में युवाओं की शक्ति एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हे। रायसीना रोड पर युवक कांग्रेस का केन्द्र राजीव गांधी की कार्यशाला के नाम से प्रसिद्ध था। वह चाहते थे कि नीचे के धरातल पर युवक कार्यकता्र कांग्रेस दल को शक्तिशाली बनाये। आजादी से पहले की और बाद की पीढ़ी के बीच में वे सेतु के रूप में काम करना चाहते थे। अनुभव, जो वर्षों के कार्य से प्राप्त होता है, उसको महत्वपूण्र मानते हुए वह यह चाहते थे कि पहली व बाद की पीढ़ी मिलकर सद्भाव संदेश की प्रगति में हाथ बढ़ाये।
अध्ययन शिविरों, युवा समन्वयकों की गतिविधियों तथा
दायित्व बोध के संगठनात्मक निरीक्षण के लिये बुलाई गयी विविध बैठकों के विषय
में काफी चर्चा हुई। कांग्रेस (इ) की राजनीति से बुद्धिजीवियों को व्यापक रूप से
जोड़ने का काम श्री राजीव गांधी ने किया। कांग्रेस सेवा दल को पूरी तरह सक्रिय
करके भागीदारी और आत्मानुशासन की राजनीति तथा समाज सेवा के कार्यों में
कांग्रेस जनों की हिस्सेदारी पर श्री राजीव गांधी ने विशेष जोर दिया। जवाहरलाल
कौल ने दिनमान में राजीव गांधी के सम्बनध में टिप्पणी करते हुए लिखा ‘‘स्वतंत्र
भारत के इतिहास में किसी भी काँग्रेस महामंत्री को इतना महत्व नहीं मिला, जितना
इन्दिरा कांग्रेस के राजीव गांधी को। पार्टी के अंदरूनी मामले हों या फिर गैर
कांग्रेस शासित राज्यों के प्रति केन्द्रीय सत्तारूढ़ दल की नीति, राजीव गांधी का
वर्चस्व निर्विवाद है।’’
कांग्रेस दल के आन्तरिक संगठन के सम्बन्ध में राजीव गांधी ने मार्च 1983 में दिये गये एक साक्षात्कार में इस बात पर जोर दिया कि कांग्रेस दल में आन्तरिक निर्वाचन होना बहुत आवश्यक है। उनका कहना था कि दल में निर्वाचन शक्तियों के विकेन्द्रीकरण के लिये आवश्यक कदम है।
16 महीने बाद उन्होंने फिर उसी बात पर जोर दिया और कहा कि आजादी मिलने के पश्चात से ही संगठन के महत्व को नजरअंदाज कर दिया गया ओर शासन तथा विकास पर बहुत ज्यादा जोर दिया जाने लगा। इससे कांग्रेस दल निर्बल होता चला गया। उसकी निर्बलता को दूर करने के लिये यह आवश्यक हे कि संगठन में निर्वाचन आयोजित किये जायें।
अखिल भारतीय कांग्रेस के कलकत्ता में हुए दिसम्बर 1983 के अधिवेशन में राजीव गांधी ने चार दिनों में अड़सठ बैठकों में भाग लिया जिनमें कांग्रेस के सत्रह मुख्यमंत्री भी सम्मिलित हुए थे। सत्रह मुख्यमंत्रियों के अतिरिक्त बाइस कांग्रेस के प्रमुख, युवक कांग्रेस के प्रमुख तथा कांग्रेस के अन्य संगठनों के प्रमुख सम्मिलित थे। राजीव गांधी के काम करने के तरीके में एक भिन्न प्रकार की अनुशासनप्रियता तथा व्यवस्था थीं जो अब तक की कांग्रेस संस्कृति से भिन्न थी। स्वयं कमलापति त्रिपाठी ने अनेक स्थलों पर इस बात को स्वीकार किया कि श्री राजीव गांधी के कार्य करने की प्रणाली पूरी तरह से प्रजातांत्रिक थी।’’
किन्तु उनकी मौलिक ओर सतर्क कार्यशेली का सबसे बड़ा प्रमाण था, दिसम्बर में होने वाली आठवीं लोकसभा के चुनाव की उम्मीदवारी के लिये कांग्रेस जनप्रतिनिधियों का चुनाव पूर्व साक्षात्कार 1 मार्च 1984 में नई दिल्ली में एक तीन दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें सत्रह कांग्रेस (इ) मुख्यमंत्रियों, तीन सौ साठ सांसदों तथा तीन हजार विधानसभा सदस्यों का गहन साक्षात्कार किया गया। पाँच क्षेत्रीय समितियाँ गठित की गयीं। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने दक्षिण क्षेत्रीय समिति की, विदेशमंत्री पी0 वी0 नरसिंहराव ने उत्तर क्षेत्रीय समिति की, ऊजा्र मंत्री पी0 शिवशंकर ने उत्तर प्रदेश तथा बिहारी की क्षेत्रीय समिति की, संसदीय कार्यमंत्री बूटा सिंह ने पश्चिम बंगाल, उड़ीसा तथा उत्तर-पूर्व राज्य समिति की तथा वी0पी0 सिंह ने महाराष्ट्र समिति की अगुवाई की।
कांग्रेस दल के आन्तरिक संगठन के सम्बन्ध में राजीव गांधी ने मार्च 1983 में दिये गये एक साक्षात्कार में इस बात पर जोर दिया कि कांग्रेस दल में आन्तरिक निर्वाचन होना बहुत आवश्यक है। उनका कहना था कि दल में निर्वाचन शक्तियों के विकेन्द्रीकरण के लिये आवश्यक कदम है।
16 महीने बाद उन्होंने फिर उसी बात पर जोर दिया और कहा कि आजादी मिलने के पश्चात से ही संगठन के महत्व को नजरअंदाज कर दिया गया ओर शासन तथा विकास पर बहुत ज्यादा जोर दिया जाने लगा। इससे कांग्रेस दल निर्बल होता चला गया। उसकी निर्बलता को दूर करने के लिये यह आवश्यक हे कि संगठन में निर्वाचन आयोजित किये जायें।
अखिल भारतीय कांग्रेस के कलकत्ता में हुए दिसम्बर 1983 के अधिवेशन में राजीव गांधी ने चार दिनों में अड़सठ बैठकों में भाग लिया जिनमें कांग्रेस के सत्रह मुख्यमंत्री भी सम्मिलित हुए थे। सत्रह मुख्यमंत्रियों के अतिरिक्त बाइस कांग्रेस के प्रमुख, युवक कांग्रेस के प्रमुख तथा कांग्रेस के अन्य संगठनों के प्रमुख सम्मिलित थे। राजीव गांधी के काम करने के तरीके में एक भिन्न प्रकार की अनुशासनप्रियता तथा व्यवस्था थीं जो अब तक की कांग्रेस संस्कृति से भिन्न थी। स्वयं कमलापति त्रिपाठी ने अनेक स्थलों पर इस बात को स्वीकार किया कि श्री राजीव गांधी के कार्य करने की प्रणाली पूरी तरह से प्रजातांत्रिक थी।’’
किन्तु उनकी मौलिक ओर सतर्क कार्यशेली का सबसे बड़ा प्रमाण था, दिसम्बर में होने वाली आठवीं लोकसभा के चुनाव की उम्मीदवारी के लिये कांग्रेस जनप्रतिनिधियों का चुनाव पूर्व साक्षात्कार 1 मार्च 1984 में नई दिल्ली में एक तीन दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें सत्रह कांग्रेस (इ) मुख्यमंत्रियों, तीन सौ साठ सांसदों तथा तीन हजार विधानसभा सदस्यों का गहन साक्षात्कार किया गया। पाँच क्षेत्रीय समितियाँ गठित की गयीं। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने दक्षिण क्षेत्रीय समिति की, विदेशमंत्री पी0 वी0 नरसिंहराव ने उत्तर क्षेत्रीय समिति की, ऊजा्र मंत्री पी0 शिवशंकर ने उत्तर प्रदेश तथा बिहारी की क्षेत्रीय समिति की, संसदीय कार्यमंत्री बूटा सिंह ने पश्चिम बंगाल, उड़ीसा तथा उत्तर-पूर्व राज्य समिति की तथा वी0पी0 सिंह ने महाराष्ट्र समिति की अगुवाई की।
सन्दर्भ -
- हीले कैथलीन - ‘‘राजीव गांधी सत्ता के वर्ष’’, विकास पब्लिशिंग हाऊस, नई दिल्ली, 1989, पृ0-16
- गुप्ता, गुरुदेव - ‘‘भारत : नेहरू से राजीव तक’’ आशुतोष इण्टरनेशनल, नई दिल्ली, 1982, पृ0-38
- अमेरिकन मित्र को लिखे पत्र (1950-84), डॉ0 रेथ नौरमेन द्वारा चुनें, न्यूयार्क हरवर्ट ब्रेस जोवोनोविच, 1985
- इण्डिया टुडे, 15 नवम्बर एवं 30 नवम्बर, 1984
- गुप्त, गुरुदेव - ‘‘भारत : नेहरू से राजीव तक’’ आशुतोष इण्टरनेशनल, नई दिल्ली, 1982, पृ0 99
- हीले कैथलीन, ‘‘राजीव गांधी सत्ता के वर्ष’’, विकास पब्लिशिंग हाऊस, नई दिल्ली, 1989, पृ0-19
- इण्डिया टुडे - 15 अगस्त 1982
- साक्षात्कार - ‘‘द टाइम्स ऑफ लंदन’’, 2 मार्च 1982
- शाह, एम0सी0 - ‘‘राजीव गांधी इन पार्लियामेण्ट’’, शिप्रा पब्लिकेशन, दिल्ली, 1991, पृ0-9
- इण्डिया टुडे, 20 जून, 1981
- इण्डिया टुडे, 15 जून, 1983
- देवी प्रसाद त्रिपाठी - ‘‘दिनमान’’ 18-24 नवम्बर, 1984, पृष्ठ-14
- जवाहर कौल - ‘‘क्या कोई अन्तर्कलह हे? यदि है तो किस आधार पर? - ‘दिनमान’, 19-25 फरवरी, 1984, पृ0-
- 16 इण्डिया टुडे - 31 दिसम्बर 1983
- गुप्ता, भवानी सेन - ‘‘राजीव गांधी : ए पालिटिकल स्टडी’’, कोणार्क पब्लिकेशन, दिल्ली, 1989, पृष्ठ-11
- गुप्ता, भवानी सेन - ‘‘राजीव गांधी : ए पालिटिकल स्टडी’’, कोणार्क पब्लिकेशन, नई दिल्ली, 1989, पृष्ठ-11
- द टाइम्स ऑफ इण्डिया - 1 नवम्बर, 1984
- नवभारत टाइम्स - 1 नवम्बर, 1984, पृ0-1
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राजीव गाँधी