रोजगार क्या है? रोजगार का महत्व और स्रोत

पूर्ण रोजगार की स्थिति वह स्थिति है, जिसमें ऐसे सभी व्यक्ति जो प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने को तैयार है, रोजगार पा जाते है। यह परिभाषा स्पष्ट करती है कि, रोजगार प्राप्ति की दृष्टि से, हम केवल उन्हीं लोगों के बारे में विचार करते है, जो प्रचलित दरों पर काम करते है। यदि इस कारण से कोई व्यक्ति बेरोजगारी की प्रचलित दरों पर कार्य करने को तैयार नहीं है। तो इसे बेरोजगारी नहीं कहा जायेगा, केवल वही व्यक्ति बेरोजगार है, जो अपनी इच्छा से बेरोजगार है अर्थात् वह प्रचलित दरों पर काम करने को तैयार तो है, परन्तु इसे काम नहीं मिलता है। 

रोजगार और बेरोजगार एक ही सिक्के के दो पहलू है, कार्य की उपस्थिति दूसरे और कार्य की अनुपस्थिति का कारण बन सकती है अर्थात् एक ही सिक्के के दो पहले है, बेरोजगारी जैसी भयानक आर्थिक संकट के जूझने हेतु प्रत्येक व्यक्ति, समान आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक विचार विमर्श करता रहता है। प्रत्येक काल में बेरोजगार प्राप्ति एवं बेरोजगारी को दूर करने के प्रयास विभिन्न स्तरों पर जारी है।

रोजगार का महत्व

रोजगार शब्द खुशहाली का प्रतीक है। प्रत्येक समाज, सरकार, देश में व्याप्त, बेरोजगारी को मिटा देने के लिए अथक प्रयास करते है। प्रत्येक सरकार देश की तरक्की एवं विकास तथा समाज में शांति एवं खुशहाली बनाये रखने के लिए अधिक से अधिक रोजगार देने का अथक प्रयास करती है। वर्तमान समय में सरकार के द्वारा अधिक से अधिक रोजगार देने के अवसर उपलब्ध करवाने के दावे भी किये जा रहे है।

प्रत्येक मनुष्य चाहे वह अमीर हो, गरीब हो, साधु हो सभी की कुछ ना कुछ मूलभूत आवश्यकताएं होती है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन की आवश्यकता होती है। धन प्राप्ति के लिए रोजगार का होना आवश्यक है। यदि मनुष्य को रोजगार नहीं मिलेगा, तो उसके पास धन का अभाव रहेगा। तब धन के अभाव में मनुष्य अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पायेगा, परिणामस्वरूप भूखे पेट और गरीबी की चपेट में आकर मनुष्य गलत रास्तों को अपनायेगा

रोजगार के स्रोत

रोजगार प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में शिक्षा, कार्यकुशलता, तकनीकी ज्ञान एवं उद्यमशीलता का होना आवश्यक है। समाज में विभिन्न व्यक्तियों के रोजगार के भिन्न-भिन्न स्त्रोत होते है। बी.पी.एल. परिवारवासियों के रोजगार के स्रोत इस प्रकार है :-
 
1. मजदूरी :- बी.पी.एल. परिवारवासियों के पारिवारिक शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा के अभाव के चलते बी.पी.एल. परिवारवासियों की जीविकोपार्जन का मुख्य स्त्रोत मजदूरी है।

2. ठेला/हम्माली करना :- किसी भी व्यापार - व्यवसाय में, अथवा बडे शहरो मेंं रोजाना बहुत सारा घरेलू एवं व्यवसायिक सामान एवं वस्तुये, एक स्थान से दूसरे स्थान या एक शहर से दूसरे शहर या एक कालोनी या बाजार से दूसरे बाजार पर ठेला या हम्माली की सहायता से लाया एवं ले जाया जाता है।

3. कुटीर उद्योग :- कुटीर उद्योग वह उद्योग होता है, जिसमें कुछ लोग अपने परिवार के साथ मिलकर घर पर वस्तुएं तैयार करते है जैसे - पापड बेलना, बडिया डालना, पुराने कपडे की रस्सी बनाना, खिलोने बनाना, खाने की गोलियां बनाना, आदि कार्य गृह उद्योग में आते है। 

4. नौकरी :- नौकरी एक सुनहरा ख्वाब है। क्योंकि नौकरी के लिए शिक्षित होना आवश्यक है। 

5. दुकान :- दुकान अर्थात् जिस स्थान पर बैठकर व्यवसाय करें और धन कमाएं वह उनकी दुकान है। मिट्टी की मूर्तियां, गमले, मटके, फिल्मी धार्मिक पोस्टर, जैसी वस्तुएं लेकर भी आजकल अस्थाई दुकानें जगह-जगह लगाते हुये मिल जाते है। 

6. मौसमी कार्य करना :- मौसम पर जैसे नवरात्रि के पर्व पर मूर्तियां बनाकर बेचते है। दीपावली पर पुताई करके, पटाखे बेचकर पशुओं के हार-माला बनाकर आय प्राप्त करते है। 

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