नैतिक विकास की अवस्थाएं एवं माध्यम

नैतिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं से होकर नैतिक मूल्यों का ज्ञान तथा उनका क्रियान्वयन सीखता है। इन सभी अवस्थाओं को विस्तार से निम्न प्रकार से बतलाया है :

नैतिक विकास की अवस्थाएं

नैतिक विकास की सभी अवस्थाओं को विस्तार से निम्न प्रकार से बतलाया है :
  1. शैशवावस्था में नैतिक विकास
  2. पूर्व बाल्यावस्था में नैतिक विकास
  3. उत्तर बाल्यकाल में नैतिक विकास
  4. किशोरावस्था में नैतिक विकास
1. शैशवावस्था में नैतिक विकास - जन्म से लेकर दो वर्ष तक बालक न तो नैतिक ही होता है और न ही अनैतिक। उसके लिए नैतिक वही है जो उसे सुखद है। दो वर्ष तक के बालक में यह सोचने की क्षमता का अभाव पाया जाता है कि उसके व्यवहार से किसी बड़े को कष्ट हो रहा है, ऐसे बालक कभी-कभी दूसरे बालकों के साथ ऐसी घटनाएँ कर देते हैं। जिससे दूसरे बालकों को कष्ट पहुँचता है दो वर्ष की आयु के बाद वह अच्छे कार्यों को अच्छा तथा बुरे कार्यों को बुरा समझकर माता-पिता की इच्छानुसार व्यवहार करना सीख लेता है।

2. पूर्व बाल्यावस्था में नैतिक विकास - माता-पिता बालक को जिस कार्य को करने के लिए प्रोत्साहन देते हैं, बालक उन्हें सही या नैतिक समझकर करता है। दण्ड के भय से उसे नहीं करता है और विद्यालय में बालक शिक्षकों के अनुरूप नीतिगत या अनीतिगत कार्यों का स्वरूप समझने लगता है।

3. उत्तर बाल्यकाल में नैतिक विकास - 6 वर्ष की आयु से लेकर 12 वर्ष की अवस्था में बालक का नैतिक विकास समूह तथा अपने साथियों के द्वारा अधिक प्रभावित होता है। वह नैतिक विषयों को लेकर सामान्यीकरण के आधार पर यह समझने लगता है कि झूठ बोलना या चोरी करना चाहे वह माता-पिता के साथ हो या सहपाठी या शिक्षकों के साथ हो नैतिकता की दृष्टि से सही नहीं है।

4. किशोरावस्था में नैतिक विकास -  बाल्यावस्था के अंत में तथा प्रौढ़ावस्था के प्रारंभ के बीच का काल किशोर काल कहलाता है। समाज तथा समूह के नियम, आदर्श तथा अनुशासन के नियमों के अनुरूप व्यवहार को अपनाना किशोरों में नैतिक विकास का संकेत देता है, उनका उचित अनुचित का ज्ञान नीति नियमों का परिपालन ही कहा जाएगा जो उसकी अवस्था में नैतिक विकास है। यह अवस्था 13 से 19 वर्ष की अवधि तक मानी गई है इस अवस्था में किशोरों के नैतिक व्यवहार में परिपक्वता देखी जाती है। यह अवस्था अपराधी प्रवृत्तियों की वृद्धि की अवस्था है। 

किशोरों में संपत्ति का दुरुपयोग दूसरों को नुकसान पहुँचाना, आज्ञा का उल्लंघन आदि अनैतिक व्यवहार हैं। किशोरों में कुसंगति धूम्रपान, मद्यपान तथा अन्य बुरी आदतों के निर्माण में योगदान देती है, जिसके कारण वे अनैतिक व्यवहार करते हैं। वर्तमान समय में अनैतिक व्यवहार संबंधी अत्याचार, कार बाईक की चोरी जैसी घटनाओं में किशोर लिप्त रहते हैं। अत: आवश्यकता है कि प्रत्येक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा को अनिवार्य बनाया जाए।

नैतिक विकास के माध्यम 

नैतिक विकास के माध्यम हो सकते हैं :

1. उचित-अनुचित की शिक्षा (Teaching of Right, Wrong) : विद्यार्थियों को उचित अनुचित की शिक्षा देना सबसे अच्छा नैतिक विकास का माध्यम है। क्या उनके लिए सही है, क्या गलत है, उन्हें यह शिक्षा देना बहुत आवश्यक है।

2. पुरस्कार एवं दण्ड (Reward and Punishment) : पुरस्कार के रूप में विधेयात्मक अभिप्रेरणा निषेधात्मक अभिप्रेरणा की अपेक्षा नैतिकता की ओर खींचती है परन्तु नैतिक विकास में दण्ड की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती इसके द्वारा स्वयं निश्चित करेगा कि उसका कार्य नैतिक है या नहीं।

3. प्रयास एवं भूल (Trial and Errors) : प्रयास एवं त्रुटि एक ऐसी विधि है जिससे विभिन्न प्रतिक्रियाऐं की जाती हैं। समस्या का समाधान होने तक त्रुटियां कम हो जाती हैं जो नैतिक विकास का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।

4. मानवीय चेतना (Human Cansciousness) : मानवीय चेतना मनुष्य की जागरूकता की गुणवत्ता है जो मनुष्य को नियंत्रित करती है एवं नैतिक विकास करने में सहायक है।

5. सामाजिक चेतना (Social Consciousness) : सामाजिक चेतना समाज के भीतर व्यक्तियों द्वारा साझा चेतना है जो विद्यार्थियों के नैतिक विकास का माध्यम है।

6. राष्ट्रीय चेतना (National Consciousness) : ऐतिहासिक दृष्टि से राष्ट्रीय चेतना में वृद्धि एक राष्ट्र के निर्माण की ओर पहला कदम है और विद्यार्थियों के नैतिक विकास का महत्वपूर्ण माध्यम है।

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