जीवन का अर्थ, परिभाषा एवं लक्षण

जीवन का अर्थ 

जीवन शब्द ‘जीव’ शब्द के साथ ‘ल्युट’ प्रत्यय लगाने से बना है। जीवन का अर्थ है जीवनम् अर्थात् जिन्दा रहना। इसे जन्म से मृत्यु तक का समय अथवा जिंदगी भी कहा जाता है। ‘जीवन’ शब्द का अर्थ है जीता रहना, प्राण धारण करना, जीवित दशा, जिंदगी, जीवन की आधार रूप वस्तु।’ समय तथा समाज के परिवर्तन के साथ-साथ ‘जीवन’ शब्द का अर्थ भी बदलता रहता है। प्रारंभ में ‘जीवन’ को मात्रा अस्तित्व समझा जाता था। मनुष्य के सांस्कृतिक विकास के लिए साथ-साथ जीवन का क्षेत्र भी विस्तृत होता गया। 

जीवन भूत, वर्तमान एवं भविष्य का समन्वित रूप है। यह जिन्दा रहने की अनुभूति और जीवन्तता का भाव है।

जीवन की परिभाषा

हिन्दी विद्वानों के अनुसार-’जीवन वह नैसर्गिक शक्ति है जो प्राणियों, वृक्षों आदि की अंगों, उपांगों से युक्त करके सक्रिय और सचेष्ट बनाती है और जिसके फलस्वरूप वे अपना भरण-पोषण करते हुए अपने वंश की वृद्धि करते हैं। आत्मा या प्राणों से पिण्ड या शरीर से युक्त रहने की दशा या भाव, जान अथवा प्राण आदि को ही ‘जीवन’ का नाम दिया गया है।

पाश्चात्य विद्वानों का मानना है कि सार्थक जीवन ही वास्तविक जीवन है। सार्थकता के अभाव में जीवन-मृत्यु के समान है। पाश्चात्य विद्वान ‘गाथा’ का कथन इस उक्ति के बारे में अवलोकनीय है। जिसके अनुसार सार्थक जीवन ही सच्चे अर्थों में ‘जीवन’ कहलाता है। उनके अनुसार-निरर्थक जीवन मृत्यु से श्रेष्ठ नहीं है।

जीवन के लक्षण

जीवन के पाँच लक्षण माने गए हैं-गतिशीलता, अनुभूति या संवेदना, आत्मवर्धन, आत्मपोषण और प्रजनन। जब तक भौतिक तत्त्वों से बने हुए पिण्ड या शरीर में आत्मा या प्राण रहते हैं, तब तक वह चेतन और जीवित रहता है। इसकी विपरीत दिशा में वह नष्ट हो जाता है। जिन पदार्थों में आत्मा या प्राण होते ही नहीं, वे अचेतन और निर्जीव कहलाते हैं। यह दशा जड़ता अथवा मृत्यु की दशा है। इसमें शरीर के साथ प्राणों का आधार रहता है। इसी तरह इसे जीवित रहने का भाव अथवा जीने का व्यापार भी कहा जाता है। वास्तव में ‘जीवन’ एक ऐसा शब्द है जिसे समझने का प्रयत्न किया जा सकता है, परन्तु जिस तरह अनुभूत सत्य की अभिव्यक्ति कठिन है, वैसे ही जीवन को समझ पाना इतना सरल नहीं है।

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