वन राष्ट्र का एक महत्वपूर्ण संसाधन है तथा राष्ट्र हित में यह आवश्यक है कि वनों की सुरक्षा की जाये । वनांे से अनेकानेक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ है । वनों से कई प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ है जैसे - ऊर्जा-स्रोत उद्योगों हेतु कच्चे माल की पूर्ति, रोजगार के अवसरों का सृजन तथा पर्यटन विकास । परन्तु वनक्षेत्रो के घटने के कारण वर्तमान में इसके अप्रत्यक्ष लाभ, प्रत्यक्ष से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं ।
वनों से प्राकृतिक संतुलन बना रहता है, बाढ तथा सूखे पर नियंत्रण रहता है, मृदा-क्षरण रूकता है तथा पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रित रहता है। वनों के उपरोक्त महत्वों के कारण वनों की सुरक्षा सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है ।
वनों से प्राकृतिक संतुलन बना रहता है, बाढ तथा सूखे पर नियंत्रण रहता है, मृदा-क्षरण रूकता है तथा पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रित रहता है। वनों के उपरोक्त महत्वों के कारण वनों की सुरक्षा सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है ।
वनों के विनाश का कारण
वनों के विनाश के कई कारण गिनाये जा सकते हैं जिनका मुख्य रूप से जिम्मेदार मनुष्य है। वनों
के विनाश के पीछे मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या का दबाव और बढ़ते पषुधन की आवश्यकता है। वन
हमारे दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। अत: वनों से हम लेते तो बहुत कुछ हैं पर
वनों को देते बहुत कम है। जितने वन काटते हैं उस अनुपात में वृक्षारोपण और संरक्षण का प्रयास नहीं
होता है। परिणामस्वरूप वन क्षेत्र का निरन्तर ह्यस होता जा रहा है।
बढ़ती आबादी ने अपने आवास, भोजन आदि प्राथमिक आवश्यकताओं के लिए वनों का निरन्तर विनाश किया है। वनों को निरन्तर काटा जा रहा है। आबादी की बसाहट के लिए तो कहीं खेती के नाम पर। वनों के विनाष के लिए औद्योकरण भी कम जिम्मेदार नहीं है। कच्चे माल के लिए वनों का काटा जाता है, ईधन के लिए वनों को काटा जाता है।
इसके अलावा जल संकट के कारण भी वन क्षेत्र प्रभावित होते हैं। मनुष्य ने सतही जल ही नहीं, भूमि का जल का भी इतना दोहन कर लिया है कि पेड़ों की जड़ों को आवश्यक पानी मिलता ही नहीं है। परिणाम यह होता है कि बड़े-बड़े वन क्षेत्र सूखते जाते है। मनुष्य ने अपने हिस्से से अधिक पानी का दोहन किया, पेड़-पौधों और अन्य जैवमण्डल के लिए जल की मात्रा कम होने लगी। जल पर्याप्त मात्रा में न मिल पाने के कारण वन क्षेत्र सूखते जा रहे हैं।
बढ़ती आबादी ने अपने आवास, भोजन आदि प्राथमिक आवश्यकताओं के लिए वनों का निरन्तर विनाश किया है। वनों को निरन्तर काटा जा रहा है। आबादी की बसाहट के लिए तो कहीं खेती के नाम पर। वनों के विनाष के लिए औद्योकरण भी कम जिम्मेदार नहीं है। कच्चे माल के लिए वनों का काटा जाता है, ईधन के लिए वनों को काटा जाता है।
इसके अलावा जल संकट के कारण भी वन क्षेत्र प्रभावित होते हैं। मनुष्य ने सतही जल ही नहीं, भूमि का जल का भी इतना दोहन कर लिया है कि पेड़ों की जड़ों को आवश्यक पानी मिलता ही नहीं है। परिणाम यह होता है कि बड़े-बड़े वन क्षेत्र सूखते जाते है। मनुष्य ने अपने हिस्से से अधिक पानी का दोहन किया, पेड़-पौधों और अन्य जैवमण्डल के लिए जल की मात्रा कम होने लगी। जल पर्याप्त मात्रा में न मिल पाने के कारण वन क्षेत्र सूखते जा रहे हैं।
वन संरक्षण के उपाय
वनों की वृद्धि के लिए वृक्षारोपण और जागरूकता अभियान चलाये जा रहे है। वन संरक्षण के कुछ प्रमुख उपाय इस प्रकार हैं-- प्राकृतिक संसाधनों का रख-रखाव - प्राकृतिक संसाधन जिनका वन से सीधा सम्बन्ध है उनकी संरक्षण और उचित रख-रखाव से वन संरक्षण भी किया जा सकता है।
- ईधन के वैकल्पिक स्रोतों की खोज - ईधन की आवश्यकता के कारण वनों को सर्वाधिक हानि होती है। पेड़ों को काटा जाता है। इससे बचने के लिए वैकल्पिक ईधन जैसे गैस, मिट्टी का तेल आदि की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने की कोषिष की जा रही है।
- अवैध कटाई रोकने के लिए प्रभावी कदम - वनों को इमारती लकड़ी के लिए अवैध रीति से काटा जाता है। इसको रोकने के लिए सरकारी स्तर पर राज्य सरकारों को सुविधा और सहायता प्रदान की जा रही है।
- मरूस्थलीकरण को रोकना - मरुस्थलीय समस्याओं से निपटने के लिए प्रभावी कदम उठाये जा रहे हैं। वनों का पर्याप्त मात्रा में पानी आदि की व्यवस्था कर मरुस्थल की समस्या से निपटा जा सकता है।
- वन-अग्नि रोकना - वनों में अधिकतर किन्हीं कारणों से आग लग जाती है।
- पेड़ों की कटाई पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाये।
- फर्नीचर के लिए वैकल्पिक रूप से प्लास्टिक अथवा एल्यूमिनियम का उपयोग हो।
- शवदाह हेतु लकड़ी का उपयोग न हो इसके लिए विद्यतु शवदाह गृहों की स्थापना की जायें।
- पषुधन की चराई के लिए गोचरों की पुरानी पद्धति अपनाई जाये।
- अधिक से अधिक वृक्ष लगाये जायें।
- राष्ट्रीय वनस्पति के अनुसार वन संरक्षण और वनोपज की देखभाल को प्रोत्साहन दिया जाये।
- वृक्षारोपण के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जाये और उन्हें पौधे उपलब्ध कराये जायें।
- वनों की रक्षा से ही जीवन की रक्षा निहित है। इसे प्रचारित किया जाये।
वनों के प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष लाभ
1. वनों के प्रत्यक्ष लाभ
- वनों से ईंधन प्राप्त होता है।
- मकान, जहाज तथा दैनिक व्यवहार की वस्तुओं को बनाने की इमारती लकड़ी मिलती है।
- पशुओं के लिए चारा मिलता है।
- कागज, दियासलाई, रबड़ आदि उद्योगों के लिए कच्चे पदार्थ मिलते हैं।
- वनों से लाख, गोंद, कत्था, विरोजा, तारपीन का तेल आदि प्राप्त होते हैं।
- बहुत-सी औषधियाँ तथा फल प्राप्त होते हैं।
- वनों से बहुत-से लोगों की जीविका चलती है।
- वन राष्ट्रीय संपत्ति हैं और सभ्यता के लिए नितान्त आवश्यक होते हैं।
2. वनों के अप्रत्यक्ष लाभ
- वन जलवायु को सम करते हैं और जल वृष्टि में सहायक होते हैं। ये वायु की गति को रोकते हैं। अतः भयानक आँधी से होनेवाली क्षति को कम करते हैं।
- पेड़ों की पत्तियाँ सड़कर मिट्टी को ह्यूमस प्रदान करती हैं जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती है और उपज में वृद्धि करती है।
- बाढ़, आँधी तथा मरुस्थल-विस्तार को वन रोकते हैं।
- वन प्राकृतिक छटा में वृद्धि करते हैं। वनों से जल-स्तर ऊँचा उठ जाता है जिससे कुएँ बनाने में सुविधा होती है जिससे सिंचाई की सुविधा में वृद्धि होती है।
- वन मिट्टी में दब जानेपर कालान्तर में कोयला तथा खनिज तेल प्रदान करते हैं।
- वनस्पतिहीन पहाड़ी ढालों पर भूमि अपरदन जल्दी होता है। वनों द्वारा मिट्टी के अपरदन की रोकथाम होती है।
- वनों में कृषि की पूरक वस्तुएँ उपलब्ध होती हैं।
- वनों में असंख्य कीड़े-मकोड़े एवं जीव-जन्तु मिलते हैं, जो उपयोगी होते हैं।
- पर्यावरण को प्रदूषण से बचाते हैं।
- कालिन्स के मतानुसार वृक्ष पर्वतों को थामे रहते हैं। तूफानी वर्षा को नियन्त्रित करते हैं, नदियों को अनुशासित रखते हैं। जल प्रपातों को बनाये रखते हैं तथा पक्षियों का पोषण करते हैं।
Very good
ReplyDeleteVery good
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