रघुवीर सहाय का जीवन परिचय एवं प्रमुख रचनाएँ

रघुवीर सहाय का जन्म 9 दिसम्बर, सन् 1929 ई. को उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले के एक सामान्य मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। इनके पिता हरदेव सहाय साहित्य शिक्षक थे । 1955 ई. में इनका विवाह विमलेश्वरी सहाय से हुआ, इनकी पढ़ाई-लिखाई लखनऊ में हुई और वहीं से इन्होंने अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य में एम. ए.की परीक्षा उत्तीर्ण की। एक तेजस्वी पत्रकार के रूप में इनका जीवन ‘नवजीवन’ (लखनऊ) से शुरू हुआ। 1951 ई. में ये ‘अज्ञेय’ द्वारा सम्पादित ‘प्रतीक’ मासिक के सहायक संपादक बनकर नई दिल्ली आ गए। इसके अतिरिक्त ये ‘वाक्’ (नई दिल्ली) और ‘कल्पना’ (हैदराबाद) पत्रिकाओं के सम्पादन मण्डल में भी रहे। 

इन्होंने आजीविका के लिए आकाशवाणी, दूरदर्शन और समाचार पत्र को माध्यम बनाया। ये कुछ दिनों तक दैनिक ‘नवभारत टाइम्स’ (नई दिल्ली) में विशेष संवाददाता रहे। इन्होंने 1979 ई. में 1982 ई. तक समाचार साप्ताहिक ‘दिनमान’ के प्रधान संपादक के रूप में कार्य किया। यहाँ से निवृत्त होकर इन्होंने अपने अंतिम दिनों तक स्वतंत्र लेखन.कार्य किया। कुछ समय तक ये एशियाई थियेटर संस्थान (नई दिल्ली) से भी सम्बद्ध रहे। 30 दिसम्बर, सन् 1990 ई. को इकसठ वर्ष की अवस्था में नई दिल्ली में इनका देहान्त हो गया।

रघुवीर सहाय की प्रमुख रचनाएँ

(1) रघुवीर सहाय के काव्य संग्रह

  1. ‘सीढ़ियों पर धूप में’ (1960 ई.; ‘अज्ञेय’ द्वारा संपादित; इसमें कहानियाँ और निबंध भी संगृहीत हैं।)
  2. ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ (1967 ई.)
  3. ‘हँसो, हँसो, जल्दी हँसो’ (1975 ई.)
  4. ‘लोग भूल गए हैं’ (1982 ई.)
  5. ‘कुछ पते, कुछ चिट्ठियाँ’ (1989 ई.)
  6. ‘एक समय था’ (1995 ई.)

(2) रघुवीर सहाय के कहानी संग्रह

  1. ‘रास्ता इधर से है’ (1972 ई.)
  2. ‘जो आदमी हम बना रहे हैं’ (1983 ई.)

(3 रघुवीर सहाय के निबंध संग्रह

  1. ‘दिल्ली मेरा परदेश’ (1976 ई.)
  2. ‘लिखने का कारण’ (1978 ई.)
  3. ‘ऊबे हुए सुखी’
  4. ‘वे और नहीं होंगे जो मारे जाएंगे’ (1983 ई.)

रघुवीर सहाय के पुरस्कार एवं सम्मान

ये 1988 ई. में भारतीय प्रेस परिषद के सदस्य मनोनीत हुए। ‘लोग भूल गए’ कृति पर इन्हें 1984 ई. का राष्ट्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। इन्हें मरणोपरांत हंगरी के 2 सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान, बिहार सरकार के राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान और आचार्य नरेन्द्र देव सम्मान से सम्मानित किया गया।

रघुवीर सहाय ‘अज्ञेय’ द्वारा संपादित ‘दूसरा सप्तक’ (1951 ई.) के प्रमुख कवि हैं। वे आधुनिक काव्य भाषा के मुहावरे को पकड़ने वाले समर्थ हस्ताक्षर हैं। उनके विषय में ‘अज्ञेय’ का यह कथन ठीक प्रतीत होता है- ‘‘उनकी सरल, साफ सुथरी और अत्यन्त सधी हुई भाषा इसके सर्वथा अनुकूल है। उनका संस्कार शहरी है तो किसी कृत्रिमता के अर्थ में नहीं, अच्छे घर में रोज काम आने वाले बर्तनों में मँजते रहने के कारण जो चमक होती है-जो उन्हें अलमारी में सजाने की प्रेरणा न देकर सह  व्यवहार में लाने की प्रेरणा देती है-कुछ वैसी ही प्रीतिकर सहज ग्राह्ययता उनकी भाषा में है।’’

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