स्टॉकहोम सम्मेलन 1972 क्या है और इसकी विशेषताएं


स्टॉकहोम सम्मेलन 1972 क्या है

विकसित देशों में हुई वैज्ञानिक क्रान्ति के फलस्वरूप हुआ औद्योगीकरण पर्यावरण ही नहीं समूचे जैवमण्डल के लिए खतरनाक भी बनता गया। कई औद्योगिक इकाइयों के कारण ऐसी भयावह दुर्घटनाएँ हुई कि दुनिया हिल गई। विज्ञान के इस अभिशाप को अमेरिका, इग्लैण्ड, जापान सहित देशों में देखा गया। इन समस्याओं से परेशान होकर लोगों ने मानव के हित में पर्यावरण के महत्व पर सोचना शुरू किया।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस पर विचार-विमर्श के लिए 1972 में स्टाकहोम (स्वीडन) में ‘मानव पर्यावरण’ पर अन्तर्राश्ट्रीय कांफ्रेस का आयोजन किया। 5 जून से 16 जून तक चलने वाले इस सम्मेलन में पूरी दुनिया के 113 राष्ट्रों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में की गई घोषणाओं और व्यापक विचार-विमर्श के बाद 26 सूत्री महाधिकार पत्र घोषित किया गया जिसे ‘मेग्नाकार्टा’ के नाम दिया गया। 

अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर, विश्व पर्यावरण के हित में यह एक ऐतिहासिक दस्तावेज है।

स्टॉकहोम सम्मेलन 1972 की विशेषताएं 

मानव पर्यावरण स्टॉकहोम सम्मेलन 1972 की विशेषताएं manav paryavaran stokahom sammelan 1972 ki visheshtayen है-
  1. मानव को ऐसे पर्यावरण में, जिसमें वह सुखी जीवन जी सके तथा जहाँ रहन-सहन की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध हो, जाने का मूलभूत अधिकार है और साथ ही उसका यह दात्यिव कि वह भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित और स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराये। 
  2. पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों वायु, जल, भूमि, पेड-पौधे, जीव-जन्तु को वर्तमान और भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित रखा जाये।
  3. पृथ्वी के संसाधनों को पुनर्निर्मित किये जा सकने वाली उत्पादन क्षमता को बनाये रखना चाहिए और जहाँ तक व्यावसायिक हो, उसे पुनस्र्थापित किया जाना चाहिए।
  4. मनुष्य पर वन्य प्राणियों एवं उनके आश्रय की सुरक्षा तथा विवेकपूर्ण व्यवस्था का उत्तरदायित्व है। अत: आर्थिक विकास की योजना बनाते समय प्रकृति संरक्षण को उचित महत्व दिया जाना चाहिए। 
  5. पुर्नवीनीकरण न हो सकने वाले पृथ्वी के संसाधनों का इस प्रकार उपयोग किया जाना चाहिए जिससे वह बिल्कुल समाप्त न हो जायें।
  6. जो पर्यावरण को हानि पहुँचाने की सीमा से अधिक हो, को रोका जाना चाहिए ताकि पारिस्थितिक तन्त्र पर कोई गम्भीर आघात न हो। प्रदूषण को रोकने के लिए सभी देशों के लोगों ने न्यायोचित संघर्ष को समर्थन मिलना चाहिए। 
  7. ऐसे सभी पदार्थों पर जिनसे मानव स्वास्थ्य को हानि पहुँचती है, जो प्राणी तथा समुद्री जीव-जन्तुओ को हानिकारक हो सभी आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
  8. मनुष्य के अच्छे जीवन स्तर और कार्य करने के पर्यावरण की आष्वस्तता हेतु तथा पृथ्वी पर ऐसी स्थिति बनाने के लिए जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सके।
  9. प्राकृतिक प्रकोपों से होने वाली पर्यावरणीय क्षति को दूर करने के लिए विकासशील देशों को, उनके अपने प्रयासों के अतिरिक्त, समुचित वित्तीय तथा तकनीकी सहायता यथा समय तथा आवश्यकतानुसार उपलब्ध होनी चाहिए।
  10. पर्यावरणीय व्यवस्था हेतु विकासशील देशों के लिए मूल्यों में स्थिरता तथा प्राथमिकता वाली वस्तुओं और कच्चे माल का सही मूल्य मिलना बहुत आवश्यक है। क्योंकि पर्यावरणीय गतिविधियों और आर्थिक पक्ष दोनों ही इससे सम्बन्धित है।
  11. सभी लोगों के अच्छे रहन-सहन को कोई आघात पहुँचाना चाहिए। राज्य तथा अन्तर्राश्ट्रीय संस्थाओं को कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए जिनसे पर्यावरणीय गतिविधियों के कार्यों के संचालन से होने वाले राष्ट्रीय तथा अन्तर्राश्ट्रीय आर्थिक परिणामों की पूर्ति हेतु आपसी समझौता हो सके।
  12. विकासशील देशों को उनकी स्थिति तथा विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप पर्यावरणीय सुरक्षा और सुधार के कार्यों के लिए साधन-सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिए तथा उनकी प्रार्थना पत्र ही उन्हें अन्तर्राश्ट्रीय तकनीकी और वित्तीय सहायता भी उपलब्ध होनी चाहिए। जिससे वे अपनी विकास योजना बनाते समय पर्यावरणीय सुरक्षा को उचित स्थान दे सके।
  13. पर्यावरणीय सुधार के अन्तर्गत संसाधनों का विवेकपूर्ण प्रबन्धन हो, इस हेतु राज्यों को अपनी विकास योजनाओं का निर्माण करते समय ऐसी समग्र और व्यापक दिषा रखनी चाहिए जिससे लोगों के लाभ के लिए बनाये जाने वाले मानव पर्यावरण के सुरक्षा और सुधार कार्यक्रमों तथा विकास के बीच समुचित तालमेल रह सके।
  14. पर्यावरणीय सुरक्षा तथा सुधार की आवश्यकताओं के मध्य होने वाले किसी भी विवाद को विवेकपूर्ण तरीके से सुलझाया जा सकता है।
  15. मानव आबादी और शहरीकरण के लिए इस प्रकार की योजना तैयार की जानी चाहिए जिससे पर्यावरण को हानि पहुँचाये बिना सभी को अधिकतम पर्यावरणीय लाभ मिल सके। 
  16. जहाँ अधिक आबादी पर्यावरण अथवा विकास पर विपरीत प्रभाव डालती हो अथवा जहाँ कम आबादी विकास और पर्यावरणीय सुधार को रोकती हो, वहाँ पर मूल मानव अधिकारों के लिए बिना पक्षपात वाली डैमोग्राफर्स द्वारा सुझाई गई नीति राज्यों अपनाई जानी चाहिए।
  17. पर्यावरणीय गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए पर्यावरणीय संसाधनों की योजना, व्यवस्था और नियन्त्रण कार्य का उत्तरदायित्व राज्यों को किसी राश्ट्रस्तरीय संस्था को सौंप देना चाहिए। 
  18. आर्थिक और सामाजिक विकास में योगदान देने वाली विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को पर्यावरणीय संकटों के निदान, बचाव और नियन्त्रण तथा पर्यावरणीय समस्याओं के हल जानने और लोगों की भलाई के लिए उपयोग में लाना चाहिए।
  19. मानव हित में पर्यावरणीय सुरक्षा और सुधार के लिए विभिन्न व्यक्तियों तथा संस्थाओं में विस्तृत दृष्टिकोण बनाने के लिए बच्चे, बड़े और उन सभी को जिन्हें सुविधाओं का अभाव है, पर्यावरणीय शिक्षा बहुत आवश्यक है। साथ ही यह भी आवश्यक है कि संचार माध्यमों द्वारा बिगड़ते पर्यावरण की पुष्टि की करने का कार्य करने का कार्य रोका जाये और उसके विपरीत इस प्रकार से पर्यावरण सुरक्षा तथा सुधार की आवश्यकता पर “ौक्षिक जानकारी फैलाई जाये जिससे मनुष्य को हर तरफ से उन्नत होने का अवसर मिल सके।
  20. विकासशील देशों में, राष्ट्रीय तथा बहुराष्ट्रीय पर्यावरणीय समस्याओं के सन्दर्भ में वैज्ञानिक शोध और अनुसंधान किये जाने चाहिए। इस सन्दर्भ में पर्यावरणीय समस्याओं के समाधानों की सुविधा के लिए नवीनतम वैज्ञानिक जानकारी और अनुभवों की उपलब्धता बनी रहनी चाहिए। विकासशील देशों का बिना किसी वित्तीय भार के पर्यावरणीय तकनीकी जानकारी इस आधार पर उपलब्ध करानी चाहिए कि वे और अधिक उत्साह से उसका अन्य क्षेत्रों में प्रसार कर सकें।
  21. संयुक्त राष्ट्र के घोषणा पत्र (चार्टर) तथा अन्तर्राश्ट्रीय कानून के आधार पर किसी भी राज्य को अपने अधीन क्षेत्र के संसाधनों को, अपनी पर्यावरण नीति के अन्तर्गत बिना किसी अन्य देष को हानि पहुँचाए, उपभोग करने का पूरा अधिकार है।
  22. राज्यों से यह अपेक्षा है कि वे अपने क्षेत्र में हो रही गतिविधियों के कारण दूसरे बाहरी क्षेत्र में हो रहे प्रदूषण के षिकार लोगों के दायित्व और मुआवजा तय करने के लिए बनाये जाने वाले अन्तर्राश्ट्रीय कानून के निर्माण में सहयोग करें।
  23. अन्तर्राश्ट्रीय समुदायों द्वारा स्वीकार किये जाने अथवा राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित मानकों को लागू करने से पूर्व विभिन्न देशों की प्रचलित सामाजिक व्यवस्थाओं और उनकी उपयुक्तता सीमा को ध्यान में रखना होगा, क्योंकि जो मानक विकसित देशों के लिए वैध हों, वही विकासशील देशों के लिए अनुपयुक्त तथा सामाजिक मूल्यों के विपरीत भी हो सकते हैं।
  24. पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार के अन्तर्राश्ट्रीय स्तर के सभी प्रकरण समान रूप से सहयोग के आधार पर निपटाने चाहिए साथ ही बहुपक्षीय अथवा द्विपक्षीय व्यवस्थाओं के सहयोग से या अन्य किसी भी प्रकार चहुँ ओर हो रहे कार्यों के फलस्वरूप बिड़गते पर्यावरण के नियन्त्रण, रोकथाम, कम करने अथवा दूर करने के लिए उचित व्यवस्थाएँ किया जाना भी आवश्यक है। यह सब इस प्रकार होना चाहिए जिससे अन्य राज्यों की सार्वभौमिकता और हितों की सुरक्षा बनी रहे।
  25. राज्य यह सुनिश्चित करेंगे कि अन्तर्राश्ट्रीय संगठन पर्यावरण की सुरक्षा तथा सुधार के लिए समन्वित, श्रेष्ठ और गतिशील भूमिका का निर्वाह करते है।
  26. पर्यावरण को परमाणु हथियारों तथा जन-संहार के अन्य साधनों से बचाया जाना चाहिए।

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