भारत में पहला रेडियो प्रसारण कब हुआ था?

भारत में पहला रेडियो प्रसारण 1921 में टाइम्स आफ इण्डिया के मुम्बई कार्यालय से शुरू था। नवम्बर 1923 में कोलकाता के रेडियो क्लब आफ इण्डिया ने अस्थाई अनुमति के आधार पर प्रसारण शुरू कर दिया। जून 1924 में मुंबई से भी बाम्बे रेडियो क्लब का प्रसारण शुरू हो गया। इसके बाद मद्रास प्रेजीडेंसी रेडियो क्लब ने भी चेन्नई से अपना प्रसारण शुरू कर दिया। इसी ने बाद में 1934 में मद्रास रेडियो प्रसारण का रूप लिया।

31 मार्च 1926 को कंपनी एक्ट के तहत इण्डियन ब्राडकास्टिंग कंपनी की स्थापना हुई और 23 जुलाई 1927 को लाई इरविन ने इण्डियन ब्राडकास्टिंग कम्पनी के मुम्बई केन्द्र से पहला प्रसारण शुरू करवाया। 

रेडियो

भारत में रेडियो प्रसारण का प्रारंभ

भारत में रेडियो से पहला प्रसारण 23 जुलाई 1927 में बंबई से शुरू हुआ। भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड इर्विन ने बंबई में इस केन्द्र का उद्घाटन किया। उसी वर्ष 26 अगस्त 1927 को कलकत्ता केन्द्र का भी उद्घाटन बंगाल के गवर्नर सर स्टैनले जेक्सन ने किया। बंबई प्रसारण केन्द्र का उद्घाटन भाषण देते हुए लार्ड इरविन ने कहा कि प्रसारण के लिए भारत में विशेष संभावनाएँ हैं। क्षेत्र का विस्तार और उसकी दूरियाँ इस देश को प्रसारण के लिए विशेष रूप से उपयुक्त बना देती हैं। मनोरंजन और शिक्षा दोनों ही दृष्टियों से इसकी संभावनाएँ अधिक हैं, यद्यपि इस समय हम शायद उनकी सीमा का अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं।

इरविन का यह कहना सही निकला और भारत में प्रसारण के विस्तार की संभावनाएँ दिखाई देने लगी थीं। हालांकि भारत में रेडियो का प्रसारण 1927 के पूर्व प्राइवेट कम्पनियों और क्लबों द्वारा शुरू हो गया था। शुरू-शुरू में टाइम्स ऑफ़  इंडिया और डाक-तार विभाग ने आपस में मिल-जुलकर बंबई से प्रसारण का कार्य शुरू किया था। इन्हीं दिनों मद्रास प्रेसीडेन्सी रेडियो क्लब ने भी हल्के फुल्के मनोरंजन कार्यक्रमों का प्रसारण शुरू कर दिया था। इस रेडियो क्लब का प्रसारण 21 जुलाई 1924 से शुरू हुआ था। क्लब के सदस्यों ने आपस में पैसा इकट्ठा करके एक किलोवॉट का एक ट्रांसमिटर भी लगाया था। लेकिन आर्थिक कठिनाइयों के कारण यह रेडियो क्लब अधिक समय तक प्रसारण कार्य जारी नहीं रख सका। सन 1926 में यह क्लब बंद हो गया था। लेकिन प्रसारण में रुचि रखने वालों की संख्या में वृद्धि होने लगी थी। रेडियो स्टेशन चालू करने के लिए क्या प्रक्रियाएँ अपनाई जाए इस संबंध में रेडियो निर्माताओं और प्रेस के प्रतिनिधियों ने सरकार से बातचीत करना शुरू कर दिया।

मार्च 1926 में इंडिया ब्रॉडकास्टिंग कम्पनी बनाई गई और कम्पनी ने 13 सितम्बर 1926 को प्रसारण करने का लाइसेंस सरकार से प्राप्त कर लिया। इस कम्पनी ने बंबई और कलकत्ता में डेढ़-डेढ़ किलोवॉट क्षमता वाले ट्रांसमिटर लगाए। इन केन्द्रों से लगभग 55 किलोमीटर के दायरे में कार्यक्रम आसानी से सुने जा सकते थे। इस तरह भारत में प्रसारण की शुरूआत हुई। लेकिन आर्थिक संकट के कारण यह कम्पनी घाटे में चलने लगी थी। कम्पनी की आय लाइसेंसों से प्राप्त होती थी। लाइसेंसों से कम्पनी को इतनी आय नहीं होती थी कि वह अपना सारा काम सुचारु रूप से चला सके। कम्पनी ट्रांसमिटर का खर्चा, रखरखाव, कार्यक्रमों का खर्चा वहन नहीं कर पा रही थी। इसलिए कम्पनी ने सरकार से अनुरोध किया कि वह आर्थिक स्थिति को सुधारने का प्रयास करे। भारत सरकार ने कम्पनी को अपने अधीन कर लिया और इसका नाम इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस कर दिया। नाम बदल जाने पर आर्थिक दृष्टि से कोई सुधार नहीं आया। 

सरकार ने 9 अक्टूबर 1931 को इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस को बंद करने का निर्णय लिया तो इसका भारी विरोध हुआ। जनमानस की रुचि और आक्रोश को देखते हुए इस सर्विस को चालू रखने का निर्णय लिया गया और सरकार ने कम्पनी के विकास के लिए 40 लाख रुपये दिए। श्री पी.जी. एडमन्ड्स को कम्पनी के कन्ट्रोलर ऑफ़  ब्रॉडिकास्टिंग के पद पर नियुक्त किया गया।

दिल्ली में रेडियो स्टेशन की स्थापना के लिए सरकार ने जनवरी 1934 में ढाई लाख रुपए स्वीकृत किए। सरकार ने आय में वृद्धि के लिए ग्रामोफोन रिकार्ड तथा रेडियो सेट पर आयात शुल्क में 50 प्रतिशत की वृद्धि कर दी। परिणामस्वरूप ‘ब्रॉडकास्टिगं सर्विस’ की आय में दुगुनी वृद्धि हो गई। इसके अलावा सरकार को ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन की प्रसारण प्रणाली के बारे में भी पर्याप्त जानकारी प्राप्त हो चुकी थी। अत: दिल्ली में रेडियो स्टेशन खोलने के लिए ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन के एक वरिष्ठ अधिकारी श्री लायनेल फील्डन को सन 1935 में अगस्त माह में भारत भेजा गया। उन्होंने 30 अगस्त 1935 को कन्ट्रोलर ऑफ़  ब्रॉडकास्टिंग का पद सम्भाला।

भारत सरकार ने उनके लिए एक अलग ऑफिस खोला। उस समय यह ऑफिस उद्योग और श्रम विभाग के अधीन रखा गया था। भारत में रेडियो स्टेशन की शुरूआत के लिए फील्डन ने बी.बी.सी. के अनुसंधान विभाग के प्रमुख श्री एच.एल. किर्की की सेवाओं की मांग की। किर्की ने भारत आकर पहले तो विभिन्न स्थानों का दौरा किया और बाद में एक योजना का प्रारूप प्रस्तुत किया जिसमें पूरे देश में मध्यम तरंग (मीडियम वेब) के ट्रांसमिटर लगाने का सुझाव दिया। अगस्त 1936 में बी.बी.सी. के श्री सी. डब्ल्यू गोयडर भारत आए और उन्होंने चीफ इंजीनियर के रूप में पदभार संभाला।

उन्होंने यह अनुभव किया कि ट्रांसमिटरों के निर्माण के लिए जो धनराशि निर्धारित की गई है, वह पर्याप्त नहीं है। इसलिए उन्होंने मीडियम वेब तथा शॉटवेब की मिली-जुली सेवा प्रदान करने का प्रस्ताव किया। फील्डन के भारत आगमन के बाद प्रसारण के विकास में कार्य आरम्भ होने लगा और एक जनवरी 1936 को दिल्ली में इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिगं सर्विस ने प्रसारण आरम्भ कर दिया। दिल्ली में प्रसारण के इतिहास में यह महत्वपूर्ण घटना हुई। 8 जून 1936 में इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस का नाम बदल दिया गया और इसके स्थान पर आल इंडिया रेडियो रखा गया। दिल्ली केन्द्र से जब प्रसारण आरम्भ हुए तो इस बात का ध्यान रखा गया कि रेडियो से प्रसारित कार्यक्रम शहरों तक ही न हो इसका विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों तक हो। कार्यक्रमों में सुधार के लिए सलाहकार समितियाँ, सलाहकार परामर्श परिषद बनाई गई, जो कार्यक्रमों की गुणवत्ता पर ध्यान देती थी। 

जनवरी 1937 को श्रोताओं की प्रतिक्रियाएँ जानने के लिए श्रोता अनुसंधान एकक खोला गया। इसी प्रकार दिल्ली में 9 सितम्बर 1937 को चाल्र्स बान्र्स को समाचार वाचक (न्यूज रीडर) के पद पर नियुक्त किया गया। आल इंडिया रेडियो के वे पहले समाचार संपादक (न्यूज एडीटर) थे जो बाद में सेन्टर न्यूज ऑर्गेनाइजेशन के प्रथम समाचार निदेशक (डायरेक्टर आफ न्यूज) बने।

रेडियो प्रसारण का विकास

1948 में पटना, कटक, अमृतसर, शिलांग, नागपुर, विजयवाड़ा और पणजी में प्रसारण के लिए केन्द्र खोले गए। 1950 के बाद प्रसारण केन्द्रों के लिए जो योजनाएँ बनाई गई उन्हें पंचवर्षीय योजनाओं में प्राथमिकताएँ दी गई। देश की सांस्कृतिक और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में रेडियो की भूमिका के महत्व को समझा गया। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने। 

जिस समय देश का बँटवारा हुआ, (15 अगस्त 1947) तब छह रेडियो स्टेशन दिल्ली, बंबई, कलकत्ता, मद्रास, तिरुचि और लखनऊ भारत में रह गए और तीन रेडियो स्टेशन लाहौर, पेशावर और ढाका तत्कालीन पाकिस्तान में चले गए। लेकिन आजादी के बाद जब देश में स्थितियाँ अनुकूल हुई तब प्रसारण की योजना और विस्तार पर अधिक ध्यान दिया गया। प्रसारण केन्द्रों का विस्तार हुआ। बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की भावना को ध्यान में रखते हुए देश के कोने-कोने में ट्रांसमिटर लगाने के काम को प्राथमिकता दी गई और सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का माध्यम बनकर रेडियो प्रसारण श्रोताओं के समक्ष उपस्थित हुआ। 1957 में आल इंडिया रेडियो का नाम बदलकर भारतीय परम्परा और संस्कृति से अनुप्रेरित होकर इसका नाम ‘आकाशवाणी’ हो गया।

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