राजनीतिक दल के प्रमुख कार्य क्या है ?

प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों का पाया जाना तथा दलीय व्यवस्था के माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था का गतिशील होना एक आम बात है। यद्यपि सर्वसत्ताधिकारवादी और निरंकुश राजनीतिक व्यवस्थाओं में दलीय प्रणाली उतनी सफल नहीं रहती, जितनी लोकतन्त्रीय या संसदीय शासन प्रणाली वाले देशों में रहती है। बाहर से देखने पर तो लोकतन्त्रीय तथा तानाशाही शासन व्यवस्थाओं में दलों के कार्य समान प्रतीत होते हैं, लेकिन गहराई से अवलोकन करने पर, तानाशाही देशों में राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले कार्य व भूमिका में, लोकतन्त्रीय देशों की तुलना में काफी अन्तर आ जाता है। इसलिए न्यूमैन ने सर्वाधिकारवादी और लोकतन्त्रीय देशों में राजनीतिक दलों के कार्य व भूमिका में अन्तर किया है।

राजनीतिक दल के प्रमुख कार्य

तानाशाही देशों में राजनीतिक दल के कार्य

न्युमैन का मानना है कि बाहर से तो राजनीतिक दल तानाशाही तथा लोकतन्त्रीय शासन व्यवस्थाओं में समान कार्य करते प्रतीत होते हैं, लेकिन व्यवहारिक स्थिति कुछ अलग ही होती है। अधिनायकवादी देशों में केवल एक ही राजनीतिक दल होता है, इसी कारण उन देशों की शासन व्यवस्था, दलीय व्यवस्था के आधार पर एक दलीय प्रणाली ही कहलाती है। अधिनायकवादी देशों में दल जीवन के सभी क्षेत्रों पर अपना पूर्ण नियन्त्रण रखता है। शासन पर भी दल का ही प्रभाव रहता है और सभी कानूनों, नियन्त्रण रखता है। शासन पर भी दल का ही प्रभाव रहता है और सभी कानूनों, आदेशों तथा नीतियों के पीछे दल का ही हाथ होता है। शासन के सभी अंग दल के नियन्त्रण में ही रहते हैं। दल नेताओं और जनता के बीच कड़ी का तो काम करता है, लेकिन उसके माध्यम से नेतागण अपने कार्यों का प्रशंसाात्मक विवरण तथा निर्देश जनता तक पहुंचाते हैं और जनता से हर हालत में अपने आदेशों का पालन दल के माध्यम से ही रखना चाहते हैं। 

इस व्यवस्था में अन्य दल को पनपने का कोई अवसर नहीं रहता। राजनीतिक दल का ही यह कार्य होता है कि वह अपने विरोधी को शक्ति प्रयोग से नष्ट कर दे। राजनीतिक दल की तानाशाही देशों में यह प्रजातन्त्र विरोधी भूतिका लोकतन्त्र के लिए एक खतरे की घंटी मानी जाती है।

न्युमैन द्वारा तानाशाही देशों में राजनीतिक दलों द्वारा किए गए कार्यों को प्रजातन्त्रीय देशों की तुलना में अलग मानना अधिक तर्कसंगत नहीं हो सकता। लेकिन फिर भी अध्ययन की दृष्टि से सर्वाधिकारवादी देशों में राजनीतिक दलों के कार्यों को समझना ही पड़ता है। सर्वाधिकारवादी देशों में राजनीतिक दलों के प्रमुख कार्य हो सकते है :-
  1. जनता की इच्छा पर राजनीतिक दल का कठोर नियन्त्रण।
  2. जनता पर शासकीय इच्छा का भार लादना।
  3. जनता व सरकार के बीच कड़ी का कार्य करना।
  4. नेताओं का चुनाव करना।
  5. विरोधियों को कुलचना।
  6. संचार व सूचना तन्त्र पर दल का कठोर नियन्त्रण।
यदि वास्तव में सर्वाधिकारवादी देशों में दलों के कार्यों का अवलोकन किया जाए तो ये लोकतन्त्रीय शासन व्यवस्थाओं के विपरीत ही जान पड़ते हैं। राजनीतिक दलों की इन देशों मेंं भूमिका देखने में तो चाहे प्रजातन्त्रीय हो, लेकिन व्यवहार में कदापि नहीं हो सकती। व्यवहार में तो राजनीतिक दल जनता की बजाय शासक-वर्ग के हितों का ही पोषण करते हैं।

लोकतंत्र में राजनीतिक दल के कार्य

लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों की भूमिका व कार्यों पर अनेक विद्वानों ने व्यापक चर्चा की है। राबर्ट सी0बोन के अनुसार राजनीतिक दल लोकतन्त्रीय देशों में - संगठन, मांगों में संशोधन, नेताओं की भर्ती, सत्ता का वैधीकरण, नीति का निर्धारण, शासन उत्तरदायित्व तथा आधुनिकीकरण जैसे कार्यों को पूरा करते हैं। ला पालोम्बारा ने भी नेताओं की भर्ती, समाजीकरण, सरकार बनाना, संघटन, सौदेबाजी तथा एकीकरण को राजनीतिक दलों के कार्य बताया है। पीटर एच0 मर्कल ने भी लगभग वही कार्य गिनाए हैं जो राबर्ट सी0 बोर्न तथा पालोम्बारा ने बताए हैं। 

न्युमैन ने राजनीतिक दलों के कार्यों पर अपने विचारों को तानाशाही देशों की तुलना में अलग आधार दिया है। उसकी दृष्टि में राजनीतिक दलों के कार्य - (i) जनमत को संगठित करना (ii) जनमत को शिक्षित बनाना (iii) जनता और सरकार को जोड़ना तथा (iv) नेतृत्व को चुनना बताए हैं। 

यदि इन सभी विद्वानों के विचारों का अध्ययन किया जाए, तो सभी विद्वानों के विचार लगभग समानाथ्र्ाी हैं। इन सभी के विचारों का संयुक्तिकरण करने से राजनीतिक दलों के प्रजातन्त्र में कार्य व भूमिकाएं हैं :-

1. जनमत तैयार करना - लोकतन्त्रीय देशों में राजनीतिक दल ही जनमत का निर्माण करते हैं। साधारण जनता को तो देश की समस्याओं का ज्ञान नहीं होता, जिस कारण वे उन समस्याओं के बारे में ठीक तरह सोच नहीं सकते। राजनीतिक दल उन समस्याओं का स्पष्टीकरण करके जनता को अपने पक्ष में करने का प्रयास करते रहते हैं। इससे जनता धीरे धीरे संगठित होकर मजबूत जनमत का निर्माण कर देती है। इस प्रकार जनमत के निर्माण में राजनीतिक दलों की ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

2. जनता को राजनीतिक शिक्षा देना - प्रजातन्त्र में राजनीतिक दल लोगों में राजनीतिक चेतना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके लिए वे जनता को राजनीतिक रूप से शिक्षित करने का प्रयास करते हैं। सभाओं, अधिवेशनों, पत्र-पत्रिकाओं आदि के माध्यम से वे जनता को देश की समस्याओं की जानकारी देते रहते हैं और अपने पक्ष में जनता को लाने के लिए जोरदार अभियान चलाते हैं। चुनावों के समय वे अपना घोषणापत्र लेकर जनता के बीच में जाते हैं। इससे जनता को राजनीतिक समस्याओं का ज्ञान भी हो जाता है और राजनीतिक दलों की नीतियों और कार्यक्रमों का ज्ञान भी प्राप्त हो जाता है। इस तरह जनता राजनीतिक रूप से शिक्षित हो जाती है।

3. सार्वजनिक नीतियों के निर्माण में जनता का नेतृत्व - साधारण जनता को देश की समस्याओं का अधिक ज्ञान नहीं होता है। वह जटिल राजनीतिक समस्याओं को समझने में असमर्थ होती है। राजनीतिक दल उन समस्याओं का सरलीकरण करके जनता के सामने पेश करते हैं और वार-विवाद, जन-सभाओं, समाचार-पत्रों आदि के द्वारा समस्याओं के बारे में जनता को परिचित करवाते हैं। इसी कारण राजनीतिक दलों को ‘विचारों का दलाल’ भी कहा जाता है। इस प्रकार सार्वजनिक नीतियों के निर्माण में जनता का नेतृत्व राजनीतिक दल ही करते हैं। इससे आम जनता सरकार की नीतियों के सम्बन्ध में बनाई गई योजनाओं में भागीदार बन जाती है और नीति पर जन-स्वीकृति भी प्राप्त हो जाती है। अन्त में राजनीतिक दल ही जन-स्वीकृति प्राप्त करके नीति-निर्माण में भागीदार बन जाते हैं।

3. जनता तथा सरकार के बीच कड़ी का कार्य करना - राजनीतिक दल जनता और सरकार के मध्य एक कड़ी का काम करते हैं। जिस दल की सरकार होती है, वह जनता में सरकार की नीति का प्रचार करता है और जनता को सरकार के साथ सहयोग करने की अपील भी करता है। राजनीतिक दल निर्वाचक समूह की जानकारी देने, प्रशिक्षित करने और सक्रिय बनाने का कार्य भी करते हैं जिससे जनता में सरकार की नीतियों के प्रति जागरूकता पैदा होती है। इसके लिए वे जनसम्पर्क के साधनों के बीच की खाई को पाटना। वे नीतियों के बारे में जनता से ज्ञान देने के साथ-साथ जनता की भावनाएं भी सरकार तक पहुंचाते हैं और उन्हें दूर करवाने के प्रयास भी करते हैं। एकात्मक सरकार की प्रादेशिक समस्याओं का ज्ञान सरकार को कराने में राजनीतिक दल ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस तरह राजनीतिक दलों द्वारा ही सूचनाओं का आदान-प्रदान जनता और सरकार के बीच में किया जाता है। अत: राजनीतिक दल सरकार और जनता को जोड़ने वाली महत्वपूर्ण कड़ी है।

5. चुनाव लड़ना व सरकार बनाना - लोकतन्त्र में जनता अपने प्रतिनिधियों के आधार पर ही शासन करती है। लोकतन्त्र में चुनावों का बहुत महत्व होता है। राजनीतिक दल चुनावों में अपने उम्मीदवार खड़े करते हैं और चुनाव जीतने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाते हैं। चुनावों में जीतकर उनका एक ही ध्येय होता है - सत्ता व शासन पर नियन्त्रण। जिस दल को चुनावोंं में बहुमत प्राप्त होता है, वही सरकार बनाता है और जनता के साथ किए गए वायदों को पूरा करने के लिए व्यावहारिक कार्यक्रम प्रस्तुत करता है।

6. सरकार की आलोचना करना - लोकतन्त्र में आलोचना का बहुत महत्व होता है। सर्वाधिकारवादी देशों में तो आलोचना का अधिकार बिल्कुल नहीं होता है। अध्यक्षात्मक सरकार में भी कार्यकाल होने के कारण विरोधी दल प्राय: आलोचना से दूर ही रहता है। सरकार की आलोचना का प्रखर रूप संसदीय शासन प्रणालियों में देखने को मिलता है। संसदीय शासन प्रणाली में एक दल तो सरकार चलाता है और दूसरा सरकार की नीतियों पर नजर रखता है ताकि गलत कार्य करने की दशा में सरकार की आलोचना की जा सके। भारत में विरोधी दल का बड़ा सम्मान किया जाता है। विरोधी दल की आलोचना रचनात्मक होने के कारण सत्तारूढ़ दल जनता के प्रति अपने उत्तरदायित्व का सदा ध्यान रखता है। संसदीय सरकार में कार्यपालिका का विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी होना विरोधी दल को महत्वपूर्ण बना देता है। यदि अविश्वास का मत पारित हो जाए तो सत्तारूढ़ सरकार का स्थान विरोधी दल भी ले सकता है। इसलिए विरोधी दल की उपस्थिति लोकतन्त्र को मजबूत आधार प्रदान करती है तथा इससे सरकार की निरंकुशता पर रोक लग जाती है। 

7. राजनीतिक नेताओं की भर्ती व चयन - राजनीतिक दल एक ऐसा संगठन होता है जो अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अपने पदाधिकारियों, नेताओं व सदस्यों की भर्ती व चयन भी करता है। निश्चित समय के बाद राजनीतिक दलों के संगठनात्मक चुनाव होते हैं जिनमें योग्य व्यक्तियों को संगठन में भर्ती करके कुछ संगठनात्मक कर्तव्य सौंपे जाते हैं। ये नेतागण ही आगे चुनावों में जीतकर सरकार बनाते हैं।

8. सत्ता का वैधीकरण - लोकतन्त्र में नियत समय के बाद चुनाव होते रहते हैं। चुनाव ही सत्ता के वैधीकरण का प्रमुख साधन है। इस वैधीकरण को राजनीतिक दल अमली जामा पहनाते हैं। चुनावों में राजनीतिक दलों के माध्यम से सत्ता के वैधीकरण का ही प्रयास होता है। सत्ता का वैधीकरण ही राजनीतिक व्यवस्था की स्थिरता व विकास का प्रमुख साधन होता है।

9. समाज का एकीकरण - प्रत्येक समाज मेंं अनेक हित समूह होते हैं जो अनेक वर्गों का प्रतिनिस्थिात्व करते हैं। हित समूहों से राजनीतिक दलों का गहरा सम्बन्ध होता है। समाज के विभिन्न वर्गों की मांगें हित समूहों द्वारा या प्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक दलों के पास पहुंचती रहती हैं। यदि इन मांगों की अनदेखी कर दी जाए तो समाज में विघटन की स्थिति पैदा हो सकती है और राजनीतिक व्यवस्था को भी अस्थायित्व का खतरा उत्पन्न हो सकता है। राजनीतिक दल जनता की मांगों को एक सूत्र में पिरोकर सरकार तक पहुंचाते हैं और समाज को एकता के सूत्र में बंधे रखने का प्रयास भी करते हैं। राजनीतिक दलों की यह भूमिका राजनीतिक व्यवस्था की सुरक्षा नली मानी जाती है। हितों का समूहीकरण करके सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में राजनीतिक दलों ने अनेक अवसरों पर भारतीय लोकतन्त्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सार रूप में तो यह कहना गलत नहीं है कि राजनीतिक दल जनता को जनता से जोड़ते हैं जो समाज की एकता का मूल मन्त्र है।

10. सरकार के विभिन्न अंगों में समन्वय करना - लोकतंत्र में कार्यपालिका तथा विधायिका के बीच में तालमेल रखने में भी राजनीतिक दल महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अमेरिका में अध्यक्षात्मक सरकार में शक्तियों के विभाजन के खतरे से जनता को, कार्यपालिका तथा विधायिका को निकट लाकर, बचाने में राजनीतिक दलों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। संसदीय सरकार में तो राजनीतिक दलों की समन्वयकारी भूमिका और अक्तिाक होती है। बहुमत रहने के कारण विधायिका और कार्यपालिका पर एक ही दल का नियन्त्रण बना रहने के कारण समन्वय कायम करने में राजनीतिक दलों को अधिक सुविधा रहती है। संघात्मक शासन में यही कार्य केन्द्र और राज्य या इकाइयों में तालमेल रखने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा ही किया जाता है।

11. आधुनिकीकरण के उपकरण - राजनीतिक दल राजनीतिक व्यवस्था की परम्परागत शक्तियों को आधुनिकीकरण के साथ जोड़ने का भी महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। विकासशील और विकसित देशों में राजनीतिक दल एक संयोजक का काम करते हैं। समाज के मूल्यों में आए बदलाव के प्रति राजनीतिक दल पूरी तरह सचेत होते हैं। परम्परागत मूल्यों को बनाए रखकर भी आधुनिकीकरण की दिशा में राजनीतिक समाज को ले जाने में महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। अत: राजनीतिक दल समाज के नव-निर्माण के महत्वपूर्ण साधन हैं।

12. सामाजिक कल्याण - आधुनिक युग में राजनीतिक दल सामाजिक कल्याण में भी अहम् भूमिका निभाते हैं। देश में अकाल, युद्ध, महामारी आदि की समस्याओं से निजात दिलाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दल सहायता कार्यक्रम भी चलाते हैं। राजनीतिक दल गरीबी, निरक्षरता, अज्ञानता, दहेज प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध भी आन्दोलन करते रहते हैं। भारत में राजनीतिक दलों द्वारा समाज-कल्याण की भूमिका अन्य देशों से आगे हैं। भारत में गुजरात के कच्छ क्षेत्र में आए भूकम्प के समय, सूरत शहर में प्लेग के समय राजनीतिक दलों ने प्रभावग्रस्त इलाकों का दौरा करके अपनी देख-रेख में अनेक सहायता कार्यक्रम चलाए थे। इस प्रकार के कार्य अन्य देशों में भी राजनीतिक दलों द्वारा किए जाते रहे हैं। 
    उपरोक्त विवेचन के बाद कहा जा सकता है कि राजनीतिक दल लोकतन्त्र की रीढ़ की हड्डी है। राजनीतिक दलों के बिना न तो लोकतन्त्र का संचालन सम्भव है और न ही जनता के हितों की सुरक्षा, लोकतन्त्र के साथ-साथ प्रत्येक राजनीतिक समाज में दलों की भूमिका काफी महत्व की होती है। राजनीतिक व्यवस्था को गति देने तथा समाज को आधुनिक बनाने में राजनीतिक दलों का ही योगदान है। इसी कारण आज दलीय व्यवस्था अधिक लोकप्रियता प्राप्त करती जा रही है। लोकतन्त्रीय शासन को तो दलीय शासन की संज्ञा दी जाने लगी है। 

    जनमत का निर्माण करने तथा राजनीतिक चेतना को जागृत करने में राजनीतिक दलों की जो भूमिका है, वह अन्य किसी साधन से सम्भव नहीं है। सत्य तो यह है कि राजनीतिक दलों के बिना न तो लोकतन्त्र ही कल्पना की जा सकती है और न ही सरकार की। 

    अत: लोक-हित के लिए राजनीतिक दल ही आधुनिक समय में एकमात्र साधन है और जनता और सरकार को जोड़ने वाली कड़ी है।

    2 Comments

    Previous Post Next Post