क्रेत्समर एवं शेल्डन के अनुसार व्यक्तित्व की अवधारणा- क्रेत्समर एवं शेल्डन दोनों ने
ही मानवीय व्यक्तित्व का आधार शरीर की संरचना एवं क्रियाविधि को माना है। अर्थात्-
मनुष्य का शारीरिक गठन तथा उसके उसकी शारीरिक गतिविधियों के आधार पर किसी
प्राणी के व्यक्तित्व का विश्लेषण किया जा सकता है।
अब हम अध्ययन करते हैं, मानव स्वभाव के संबंध में शेल्डन के विचारों का। शरीर गठन के समान ही शेल्डन ने मानव स्वभाव को भी तीन श्रेणियों में विभक्त किया है, जिनका विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
अपने इस मत की पुष्टि के लिये शेल्डन ने 200 प्रौढ़ पुरूषों पर एक अध्ययन किया। इस अध्ययन से यह तथ्य सामने आया कि इन्डोमार्फी का घनिष्ठ संबंध विसेरोटानियों से, मैसोमार्फी का संबंध सोमैटोटोनियों से तथा एक्टोमार्फी का घनिष्ठ संबंध सेरेब्रोटोनिया से है। कहने का अभिप्राय यह है कि शरीर गठन एवं स्वभाव दोनों परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है एवं एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
अतः इस सिद्धांत के आधार पर शरीर गठन के आधार में मानव स्वभाव के संबंध में तथा मानव स्वभाव के आधार पर शरीर गठन के संबंध में भविष्यवाणी की जा सकती है। शारीरिक संरचना एवं स्वभाव के पारस्परिक संबंधों को निम्न प्रकार से भी स्पष्ट किया जा सकता है।
जैसा कि आप जानते है, चाहे किसी भी सिद्धांत को प्रतिपादित किया जाये, कोई भी सिद्धांत अपने आप में पूर्ण नहीं होता है। उसमें कोई न कोई कमियाँ रह ही जाती है, किन्तू इन खामियों के साथ-साथ उसके अपने कुछ गुण एवं उपयोगिता भी होती है, जिसका पता तब लगता है जब निस्पक्ष होकर उस सिद्धांत का मूल्याांकन किया जाता है।
(2) अनुसंधान केवल पुरुषों के साथ किया गया- शेल्डन के सिद्धांत की आलोचना का दूसरा प्रमुख आधार यह है कि इन्होंने अपने सिद्धांत के संबंध में जो भी प्रयोग-अनुसंधान किये, वे केवल पुरुषों पर ही किये गये, स्त्रियों पर नहीं। अध्ययन की समग्रता की दृष्टि से आवष्यक होता है कि अनुसंधान में स्त्री एवं पुरुष दोनों को ही सम्मिलित किया जाना चाहिये, जिससे कि अध्ययन परिणामों का सामान्यीकरण किया जा सके। इसके अभाव में अध्ययन अपूर्ण एवं एकांगी रहता है। इसलिये आलोचकों ने शेल्डन के सिद्धांत की इस आधार पर भी आलोचना की है, क्योंकि हमारा उद्देष्य केवल पुरूषों के व्यक्तित्व का अध्ययन करना ही नहीं, वरन् स्त्री-पुरूष दोनों के व्यक्तित्वों का अध्ययन करना है।
(3) अवैज्ञानिक सिद्धांत- पर्याप्त प्रमाण एवं निष्चयात्मक साक्ष्य न होने के कारण आलोचकों ने शेल्डन के सिद्धांत को अवैज्ञानिक माना है। तो प्रिय पाठको, उपर्युक्त विवेचन से आप समझ ही गये होंगे की शेल्डन के व्यक्तित्व के संघटक सिद्धांत में कुछ गुण भी है और कुछ दोष भी, तथापि काय मनोविज्ञान तथा व्यक्तित्व मनोविज्ञान के क्षेत्र में उनके सिद्धांत के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता।
क्रेत्समर एवं शेल्डन दोनों ही विद्वानों
का मानना है कि मनुष्य की शरीर की बनावट उसके व्यवहार को प्रभावित करती है तथा
व्यवहार शारीरिक संरचना को। कहने के आषय यह है कि किस प्रकार का किसी प्राणी का
चिन्तर एवं चरित्र होता है। उसी के अनुसार उसके शरीर का गठन होता है अर्थात्- जो
कुछ हमारे भीतर होता है, बाहर वही झलकता है। अतः क्रेत्समर एवं शेल्डन के व्यक्तित्व
सिद्धांत की मूल अवधारणा यह है कि प्राणी की शारीरिक संरचना तथा क्रियाविधि का
उसके व्यवहार तथा स्वीााव से घनिष्ठ संबंध है।
इन दोनों ही विद्वानों ने अपने व्यक्तित्व
सिद्धांत के आधार पर शारीरिक गठन एवं क्रियाविध के आधार पर मानव व्यवहार के
मनोवैज्ञानिक पक्ष को जानने-समझने की कोषिष की है।
आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा कि “संघटन“ शब्द से शेल्डन का क्या आषय है? किस सन्दर्भ में इस सिद्धांत में संघटन शब्द का प्रयोग किया गया है? तो आइये, आपकी इसी जिज्ञासा का समाधान करते हुये सर्वप्रथम हम यह जाने कि संघटन शब्द से शेल्डन का क्या अभिप्राय है?
शेल्डन के अनुसार संघटन शब्द का अर्थ- सन् 1899 में शेल्डन ने संघटन शब्द के अर्थ को स्पष्ट करते हुये कहा कि- संघटन से शेल्डन का आषय मनुष्य की शरीर की संरचना, क्रियाविधि तथा अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों की कार्यप्रणाली इत्यादि से है जो प्रायः परिवर्तित नहीं होती है। शेल्डन का यह भी मानना है कि मनुष्य की यह शारीरिक बनावट एवं कार्यप्रणाली उसके स्वभाव, व्यवहार, आदतो, दृष्टिकोण इत्यादि को प्रभावित करती है।
प्रिय पाठको, शेल्डन के व्यक्तित्व सिद्धांत को हम निम्न बिन्दुओं के माध्यम से आसानी से समझ सकते है-
शेल्डन का व्यक्तित्व सिद्धांत
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि शेल्डन का व्यक्तित्व सिद्धांत “व्यक्तित्व के संघटक सिद्धांत“ के नाम से जाना जाता है। शेल्डन ने व्यक्तित्व की व्याख्या के लिये जैविक आधार को महत्वपूर्ण माना है अर्थात्- मानवीय व्यक्तित्व की जड़े उसकी शारीरिक संरचना तथा शरीर के विभिन्न संस्थानों की क्रियाविध में निहित है।आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा कि “संघटन“ शब्द से शेल्डन का क्या आषय है? किस सन्दर्भ में इस सिद्धांत में संघटन शब्द का प्रयोग किया गया है? तो आइये, आपकी इसी जिज्ञासा का समाधान करते हुये सर्वप्रथम हम यह जाने कि संघटन शब्द से शेल्डन का क्या अभिप्राय है?
शेल्डन के अनुसार संघटन शब्द का अर्थ- सन् 1899 में शेल्डन ने संघटन शब्द के अर्थ को स्पष्ट करते हुये कहा कि- संघटन से शेल्डन का आषय मनुष्य की शरीर की संरचना, क्रियाविधि तथा अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों की कार्यप्रणाली इत्यादि से है जो प्रायः परिवर्तित नहीं होती है। शेल्डन का यह भी मानना है कि मनुष्य की यह शारीरिक बनावट एवं कार्यप्रणाली उसके स्वभाव, व्यवहार, आदतो, दृष्टिकोण इत्यादि को प्रभावित करती है।
प्रिय पाठको, शेल्डन के व्यक्तित्व सिद्धांत को हम निम्न बिन्दुओं के माध्यम से आसानी से समझ सकते है-
- शेल्डन के अनुसार शरीर गठन के प्रकार
- शेल्डन के अनुसार मानव स्वभाव के भेद
- शारीरिक संरचना का व्यवहार के साथ संबंध
1. शेल्डन के अनुसार शरीर गठन के प्रकार- विद्यार्थियों, शेल्डन ने शारीरिक
बनावट के आधार पर मनुष्य के तीन प्रकार के भेद बतलाये हैं, जो निम्न है-
- एन्डोमार्फी
- मेसोमार्फी
- एक्टोमार्फी
- शरीर में चिकनाई
- शरीर का गोलाकार होना
- स्थूलकाय
- पेट का आगे की तरफ निकला हुआ होना
- भोजन प्रेमी
- आरामपसन्द
- मिलनसार
- माँसपेशियों तथा हड्डियों की प्रधानता
- संयोजक ऊतकों की प्रधानता
- साहसी
- उर्जावान
- दृढ़निष्चयी
- दुबला-पतला शरीर
- शारीरिक कोमलता
- मष्तिष्क का बड़ा होना
- कलापे्रमी
- भयग्रस्त
- अंतर्मुखी प्रवृत्ति
- नियंत्रित स्वभाव वाले
- प्रमष्तिष्कीय प्रधानता
अब हम अध्ययन करते हैं, मानव स्वभाव के संबंध में शेल्डन के विचारों का। शरीर गठन के समान ही शेल्डन ने मानव स्वभाव को भी तीन श्रेणियों में विभक्त किया है, जिनका विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
- विसेरोटोनिया
- सोमैटोटोनिया
- सेरेब्रोटोनिया
- आराम तलब होना
- भोजन में रूचि
- समाजप्रियता
- सहिष्णुता
- कल्याणकारी स्वभाव
- खतरा या जोखिम उठाने की प्रवृत्ति
- ओजस्वी
- महत्वाकांक्षी
- निर्दयी
- प्रभुत्व एवं बलप्रधान
- समाज से दूर रहने वाले
- विचारशील
- कम सोने वाले
- विचारशील प्रवृत्ति वाले
अपने इस मत की पुष्टि के लिये शेल्डन ने 200 प्रौढ़ पुरूषों पर एक अध्ययन किया। इस अध्ययन से यह तथ्य सामने आया कि इन्डोमार्फी का घनिष्ठ संबंध विसेरोटानियों से, मैसोमार्फी का संबंध सोमैटोटोनियों से तथा एक्टोमार्फी का घनिष्ठ संबंध सेरेब्रोटोनिया से है। कहने का अभिप्राय यह है कि शरीर गठन एवं स्वभाव दोनों परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है एवं एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
अतः इस सिद्धांत के आधार पर शरीर गठन के आधार में मानव स्वभाव के संबंध में तथा मानव स्वभाव के आधार पर शरीर गठन के संबंध में भविष्यवाणी की जा सकती है। शारीरिक संरचना एवं स्वभाव के पारस्परिक संबंधों को निम्न प्रकार से भी स्पष्ट किया जा सकता है।
जैसा कि आप जानते है, चाहे किसी भी सिद्धांत को प्रतिपादित किया जाये, कोई भी सिद्धांत अपने आप में पूर्ण नहीं होता है। उसमें कोई न कोई कमियाँ रह ही जाती है, किन्तू इन खामियों के साथ-साथ उसके अपने कुछ गुण एवं उपयोगिता भी होती है, जिसका पता तब लगता है जब निस्पक्ष होकर उस सिद्धांत का मूल्याांकन किया जाता है।
शेल्डन के व्यक्तित्व सिद्धांत का मूल्यांकन
शेल्डन के सिद्धांत की उपयोगिता या गुण- शेल्डन के व्यक्तित्व सिद्धांत के प्रमुख गुण
निम्नलिखित हैं-
(1) व्यक्तित्व का जैविक आधार ज्ञात होना- शेल्डन के सिद्धांत से व्यक्तित्व के
जैविक आधारों को जानने-समझने में मदद मिलती है। किस प्रकार से शरीर की संरचना
एवं उसकी कार्यप्रणाली मनुष्य की व्यवहार को प्रभावित करती है, इसका अत्यधिक
तर्कसंगत विवेचन शेल्डन द्वारा किया गया है।
(2) शरीर गठन द्वारा स्वभाव के संबंध में पूर्वकथन करना- शेल्डन के संघटक सिद्धांत के आधार पर ही यह संभव हो सकता कि शरीर गठन के आधार पर व्यवहार के संबंध में, व्यवहार के आधार पर शरीर गठन के संबंध भविष्यवाणी करना संभव हो सका।
(2) शरीर गठन द्वारा स्वभाव के संबंध में पूर्वकथन करना- शेल्डन के संघटक सिद्धांत के आधार पर ही यह संभव हो सकता कि शरीर गठन के आधार पर व्यवहार के संबंध में, व्यवहार के आधार पर शरीर गठन के संबंध भविष्यवाणी करना संभव हो सका।
शेल्डन के सिद्धांत की सीमाएँ
शेल्डन के सिद्धांत की कतिपय आधारों पर आलोचना भी की गई है। इन आलोचनाओं के आधार निम्न है-(1) निश्चयात्मक साक्ष्य नहीं- शेल्डन के सिद्धांत की सर्वप्रथम आलोचना तो इस
आधार पर की जाती है कि शेल्डन ने मानव स्वभाव एवं शरीर गठन में जो संबंध बताया है,
उस संबंध की पृष्टि के लिये कोई पुख्ता प्रमाण उनके पास उपलब्ध नहीं हैं। अतः
निश्चयात्मक साक्ष्यों के अभाव में कुछ विद्वानों ने इस सिद्धांत की आलोचना की है।
(2) अनुसंधान केवल पुरुषों के साथ किया गया- शेल्डन के सिद्धांत की आलोचना का दूसरा प्रमुख आधार यह है कि इन्होंने अपने सिद्धांत के संबंध में जो भी प्रयोग-अनुसंधान किये, वे केवल पुरुषों पर ही किये गये, स्त्रियों पर नहीं। अध्ययन की समग्रता की दृष्टि से आवष्यक होता है कि अनुसंधान में स्त्री एवं पुरुष दोनों को ही सम्मिलित किया जाना चाहिये, जिससे कि अध्ययन परिणामों का सामान्यीकरण किया जा सके। इसके अभाव में अध्ययन अपूर्ण एवं एकांगी रहता है। इसलिये आलोचकों ने शेल्डन के सिद्धांत की इस आधार पर भी आलोचना की है, क्योंकि हमारा उद्देष्य केवल पुरूषों के व्यक्तित्व का अध्ययन करना ही नहीं, वरन् स्त्री-पुरूष दोनों के व्यक्तित्वों का अध्ययन करना है।
(3) अवैज्ञानिक सिद्धांत- पर्याप्त प्रमाण एवं निष्चयात्मक साक्ष्य न होने के कारण आलोचकों ने शेल्डन के सिद्धांत को अवैज्ञानिक माना है। तो प्रिय पाठको, उपर्युक्त विवेचन से आप समझ ही गये होंगे की शेल्डन के व्यक्तित्व के संघटक सिद्धांत में कुछ गुण भी है और कुछ दोष भी, तथापि काय मनोविज्ञान तथा व्यक्तित्व मनोविज्ञान के क्षेत्र में उनके सिद्धांत के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता।
क्रेत्समर का व्यक्तित्व सिद्धांत
जैसा कि आप अब तक जान ही चुके हैं कि शेल्डन के समान ही क्रेत्समर ने भी शरीर की संरचना का मानव स्वभाव से संबंध माना है। क्रेत्समर के अनुसार हमारे व्यक्तित्व के निर्माण एवं विकास में हमारी शारीरिक संरचना का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। अर्थात्- शारीरिक गठन व्यक्तित्व का एक महत्त्वपूर्ण निर्धारक हैं। शेल्डन के ही समान क्रेत्समर ने भी शरीर गठन के कुछ भेद बताये हैं जो निम्नानुसार हैं-- दौर्वल्य काय प्रकार
- सुडौल काय प्रकार
- गोलाकाय प्रकार
- कुगठित काय प्रकार
- शरीर का छरहरा होना
- वजन औसत से कम होना
- पर्याप्त माँसपेशी युक्त शारीरिक गठन
- चर्बीयुक्त शरीर
- गोलमटोल शरीर
कुरूप शारीरिक - गठन इस प्रकार आपने जाना के शरीर की संररचना के आधार पर
क्रेत्समर ने चार प्रकार के व्यक्तित्व बतलाये। इनमें से प्रत्येक श्रेणी का मनुष्य अपनी
शारीरिक संरचना के अनुसा ही व्यवहार करता है।
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