समस्या समाधान विधि क्या है ? इसके गुण व दोषों की विवेचना

समस्या समाधान विधि का प्रयोग छात्रों में समस्या को हल करने की क्षमता विकसित करने के लिये किया जाता है ओर छात्रों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे स्वयं अपनी समस्याओं को प्रयासों द्वारा हल करें। छात्रों को समस्या दी जाती है वे उसके कारणों की खोज निकालते है तथा नियम विधि के द्वारा उसे पूर्ण करते हैं छात्र परीक्षण ओर मूल्यांकन के बाद उस समस्या का उचित मूल्यांकन करते हैं। यह विधि छात्रों में चिन्तन, मनन, तर्क शक्ति, निरीक्षण शक्ति का विकास करती है। छात्र जो कुछ सीखता है क्रिया द्वारा सीखता है, जो स्थायी ज्ञान प्रदान करती है।

वुद्ध ने इस विधि को इस प्रकार परिभाषित किया है ‘‘समस्या विधि निर्देश की वह विधि है जिसके द्वारा सीखने की प्रक्रिया को उन चुनौतीपूर्ण स्थितियों को सृजन द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है जिनका समाधान करना आवश्यक है।

समस्या समाधान विधि क्या है?

जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है। हमारे जीवन में प्रतिदिन किसी न किसी प्रकार की समस्या आती है तथा हमारी यह इच्छा होती है कि हमारी समस्या जल्दी से जल्दी हल हो जाए। हम अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर समस्याओं को चुनौती के रूप में लेकर उनके समाधान के लिए प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार किये गए प्रयत्नों द्वारा हम सीखते हैं और अपने व्यवहार में परिवर्तन लाते हैं। वास्तविक जीवन में समस्या का समाधान इतना सरल नहीं होता जितना पढ़ने या सुनने में प्रतीत होता है और प्रत्येक व्यक्ति समस्या को चुनौती के रूप में लेकर उसका समाधान भी नहीं कर सकता। 

समस्या समाधान विधि विद्यार्थियों में इसी योग्यता का विकास करती है जिससे वे जीवन में आने वाली समस्याओं का सामना करते हुए निरन्तर उनके समाधान के लिए प्रयत्नशील रहें। समस्या समाधान विधि का जन्म प्रयोजनवाद के फलस्वरूप हुआ। इस विधि में गहन चिन्तन और तर्क सम्मिलित होता है। यह विधि विज्ञान की महत्वपूर्ण देन है और विद्यार्थियों का इस का उचित प्रकार से प्रशिक्षण देना चाहिए। यदि एक बार विद्यार्थी इस विधि में प्रशिक्षित हो जाते हैं तो वे सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। यहाँ तक कि ऐसी स्थिति में भी जिससे वे सर्वथा अनिभज्ञ हों।

समस्या समाधान विधि का स्वरूप 

समस्या समाधान विधि में विद्यार्थियों के समक्ष विषय से सम्बन्धित किसी समस्या को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है जिससे वे उद्देश्यपूर्ण गहन चिन्तन कर सकें। विद्यार्थी अपने पूर्व ज्ञान एवं अनुभवों के आधार पर समस्या समाधान सम्बन्धी विकल्प प्रस्तुत कर सकते हैं। इस कार्य में अध्यापक उनकी सहायता करता है। विद्यार्थी प्रयोग अथवा अनुभव द्वारा विकल्पों की पुष्टि करने का प्रयत्न करते हैं और इस प्रकार वे समस्या के समाधान का मार्ग खोजकर नीवन ज्ञान और कौशल अर्जित करते हैं। इससे विद्यार्थी न केवल समस्या का समाधान करने का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं अपितु इससे उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है, वे वैज्ञानिक विधि में कार्य करने का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं, विषय-सम्बन्धी ज्ञान एवं अनुभव अर्जित करते हैं और जीवन के प्रति उनमें एक स्वस्थ विचारधारा विकास होता है।

समस्या समाधान विधि के चरण 

विज्ञान शिक्षण में प्रयुक्त समस्या समाधान विधि में विद्यार्थी किसी भी समस्या का समाधान करने के लिए किसी प्रकार के पूर्वाग्रहों अथवा दूसरों द्वारा कही गई बातों पर आश्रित न हो कर अपने प्रयत्नों एवं पूर्व अनुभवों द्वारा समस्या का हल ढूंढता है। इस विधि के निम्नलिखित चरण हैंः

1. समस्या को महसूस करना - अध्यापक को इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न करनी चाहिए जिससे विद्यार्थी प्रश्न पूछने की आवश्यकता अथवा समस्या को महसूस करें। अध्यापक स्वयं भी ऐसे प्रश्न पूछ सकता है जिसमें गहन चिन्तन की आवश्यकता हो और इस प्रकार विद्यार्थी समस्या को पहचान सकें। कभी-कभी विद्यार्थी स्वयं भी पुस्तकालय में पुस्तक पढ़ते हुए, प्रयोगशाला में कार्य करते समय अथवा प्रकृति में होने वाली घटनाओं से सम्बन्धित कोई शंका होने पर समस्या को महसूस कर सकते हैं। कक्षा में समस्या का प्रस्तुतीकरण अध्यापक एवं विद्यार्थियों के सहयोग से होना चाहिए। समस्या का चयन करते समय विद्यार्थियों की आयु, रूचि, उद्देश्य, योग्यता आदि का ध्यान रखना चाहिए।

2. समस्या को परिभाषित करना - समस्या को ठीक प्रकार से समझने एवं उसका समाधान करने से पूर्व यह आवश्यक है कि इसे स्पष्ट, सरल एवं सुनिश्चित भाषा में परिभाषित किया जाए। समस्या को परिभाषित करते समय उसकी सीमाओं और विस्तार पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। समस्या की परिभाषा, सीमाओं आदि को स्पष्ट रूप से लिखा जाना चाहिए।

3. समस्या का विश्लेषण - समस्या को परिभाषित करने के पश्चात उसका सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया जाना चाहिए जिससे विद्यार्थियों को समस्या की प्रकृति और मुख्य बिन्दुओं का ज्ञान हो जाए। इसके अतिरिक्त वे समस्या समाधान की दृष्टि से उपलब्ध संसाधन, पूर्व ज्ञान आदि से सम्बन्धित जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं।

4. उपयुक्त आंकड़ों का संकलन - इस चरण में विद्यार्थियों को समस्या से संबंधित आंकड़ों या सूचनाओं को एकत्रित करने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस संबंध में अध्यापक विद्यार्थियों को निर्देश या संदर्भ देता है। ये आंकड़े पुस्तकालय निरीक्षण, प्रयोग, माॅडलों, भ्रमण, विचार-विनिमय द्वारा एकत्रित किये जाने चाहिएं। इससे विद्यार्थियों में विभिन्न कौशलों का विकास होता है। आंकड़ों का संकलन करते समय विद्यार्थियों को निम्नलिखित त्रुटियों से सावधान रहना चाहिए-
  1. यांत्रिक त्रुटियां - यांत्रिक त्रुटियों से अभिप्राय ऐसी त्रुटियों से है जो उन उपकरणों अथवा सामग्री से संबंधित हो जिनका उपयोग समस्या समाधान के लिए किया जाता है।
  2. व्यक्तिगत त्रुटियां - इसमें व्यक्ति द्वारा की जाने वाली त्रुटियां जैसे पक्षपात, उद्वेगपूर्ण निर्णय, असम्बन्धित तथ्यों या आंकड़ों का संग्रह आदि सम्मिलित हैं।
5. परिकल्पनाओं का निर्माण - परिकल्पना से अभिप्राय, समझदारीपूर्वक लगाए गए अनुमान अथवा कल्पित समाधान से है। समस्या से सम्बन्धित सूचनाओं एवं आंकड़ों के विश्लेषण और पूर्व ज्ञान एवं अनुभवों के आधार पर समस्या के कल्पित समाधान का निर्माण किया जाता है। विद्यार्थियांे को अपने-अपने ढ़ंग से परिकल्पना का निर्माण करने की स्वतंत्राता प्रदान की जाती है जिससे समस्या के एक से अधिक कल्पित समाधान मिल जाते हैं।

6. परिकल्पनाओं का परीक्षण - विद्यार्थी जितनी भी परिकल्पनाओं अर्थात् किसी समस्या के संभावित समाधानों का निर्माण करते हैं उनमें से कौन सा उचित एवं सार्थक है, इस का निर्णय इस चरण में किया जाता है। इसमें एक-एक करके सभी परिकल्पनाओं का परीक्षण किया जाता है। यह कार्य स्वाध्याय, गोष्ठी, सामूहिक विचार-विनिमय तथा प्रयोगशाला परीक्षणों आदि के आधार पर किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त सबसे सार्थक परिकल्पना अथवा समाधान को निष्कर्ष रूप में स्वीकार कर लिया जाता है। परिकल्पनाओं का परीक्षण करते समय निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिए-
  1. समाधान पूर्व स्थापित तथ्यों एवं सिद्धान्तों के अनूकूल हो।
  2. ऐसे सभी नकारात्मक उदाहरणों तथा परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाना चाहिए जिससे परिकल्पना की सत्यता पर संदेह उत्पन्न होता हो।
7. निष्कर्ष निकालना- प्रयोग तथा परीक्षण के पश्चात जो परिकल्पनाएं सही पायी जाती हैं, उन्हें स्वीकार कर लिया जाता है तथा असत्य व अपूर्ण परिकल्पनाओं को अस्वीकार कर दिया जाता है।

इस प्रकार समस्या का समाधान निष्कर्ष रूप में प्राप्त किया जाता है। यह समाधान किन-किन परिस्थितियों अथवा साधनों की उपस्थिति में किस प्रकार की समस्याओं के लिए उपयोगी रहेगा, यह सामान्यीकरण भी इसी चरण में किया जाता है। इस सामान्यीकरण का प्रयोग दैनिक जीवन में आने वाली समस्याओं के समाधान में किया जा सकता है।

समस्या समाधान विधि के गुण

  1. यह विधि छात्रों की भावी जीवन की समस्याओं को हल करनें का प्रशिक्षण देती है।
  2. यह छात्रों में विचार शक्ति एवं निर्णय शक्ति का विकास करती है। 
  3. इसके प्रयोग में छात्रों में संग्रह की प्रवृति का विकास करती है। 
  4. यह छात्रों में तार्कि क दृष्टिकोण उत्पन्न करती है। 
  5. छात्रों का मस्तिष्क इस विधि द्वारा सक्रिय होकर सजग हो जाता है ओर समस्या का समाधान सरलता से कर लेता है। 6. छात्र इस विधि से स्वयं निर्णय लेने लगते हैं। 
  6. यह कक्षा के वातावरण को क्रियाशील बनाती है। 
  7. यह विधि स्वाध्याय का प्रशिक्षण देती है। 
  8. यह विधि छात्रों में आत्म विश्वास जाग्रत करती है। 
  9. इससे छात्रों में वैज्ञानिक ढंग से चिन्तन करने की योग्यता का विकास होता है।

समस्या समाधान विधि के दोष

इस विधि के निम्नलिखित दोष हैं:-
  1. यह विधि उच्च स्तरीय कक्षाओं में ही सफल है, निम्न स्तर कक्षाओं के लिये उपयोगी नहीं है। 
  2. यह आवश्यक नहीं है कि इस विधि द्वारा छात्र जो परिणाम निकालें वह सही तथा संतोषजनक हो। 
  3. इस विधि के प्रयोग में पर्याप्त समय लगता है। 
  4. इस विधि का प्रयोग योग्य अध्यापक ही कर सकते हैं, सामान्य अध्यापक नहीं कर सकते। 
  5. इस विधि का प्रयोग कभी कभी वातावरण को नीरस बना देता है।
सन्दर्भ -
  1. भूषण, शैलेन्द्र. - ‘जीव विज्ञान शिक्षण’, विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा, 1989.
  2. कुलश्रेष्ठ, एस.पी - ‘जीव विज्ञान शिक्षण’, लायल बुक डिपो, मेरठ, 1993.

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