अधिगम की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक

अधिकांश व्यक्तियों की शिक्षण के विषय में भ्रमपूर्ण धारणा है। उनका मानना है कि शिक्षण का आशय रटने या ज्ञान को मस्तिष्क में ठूँसने से है परन्तु वास्तव में यह गलत है। शिक्षण एक सामाजिक घटना है। इसका अर्थ स्पष्ट करने के लिए निम्नलिखित परिभाषाओं को देखा जा सकता है।

डॅा. माथुर- वर्तमान समय में शिक्षण से यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि बालक के मस्तिष्क को थोथे, अव्यावहारिक ज्ञान से भर दिया जाए.... अब तो शिक्षण का अर्थ है कि बालक को ऐसे अवसर प्रदान किए जाए जिससे बालक अपनी अवस्था एवं प्रकृति के अनुरूप समस्याओं को हल करने की क्षमता प्राप्त कर लें। वह अपने आप योजना बना सके, प्रदत्त सामग्री एकत्र कर सके, उसे सुसंगठित कर सके और फल को प्राप्त कर सके जिसे वह फिर  प्रयोग में ला सके।

थामस ई. क्लेटन -शिक्षण वह कौशल है जो छात्रों में रुचि तथा धारणा को उद्दीप्त करने एवं ज्ञान वर्धन करने हेतु प्रयुक्त किया जाता है। वह दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य सम्प्रेषण है। इसमें एक व्यक्ति दूसरे से सीखने में संलग्न रहता है। यह विद्यालय में किया जाने वाला अभ्यास है जिसमें पहले से शिक्षित व्यक्ति बच्चों को शिक्षा देता है।

बी. एफ. स्किनर-शिक्षण उन आवश्यक परिस्थितियों की व्यवस्था है जिसके अंतर्गत छात्रा सीखते हैं, वे स्वाभाविक वातावरण में शिक्षण के बिना ही सीखते हैं। शिक्षक उन विशेष परिस्थितियों की व्यवस्था करते हैं जो सीखने के कार्य को तेज करे। ये व्यवहार की अभिव्यक्ति में तेजी लाती है, उसे निश्चित करती है। 

क्लार्क -छात्र के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए दी जाने वाली क्रिया शिक्षण है। गेट्स- प्रशिक्षण एवं अनुभव द्वारा व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों को अधिगम कहते है। बर्टन-शिक्षण, अधिगम हेतु प्रेरणा पथ प्रदर्शन, पथ निर्देशन और प्रोत्साहन है। उपरोक्त परिभाषाओं से निम्नलिखित तथ्य सामने आते हैं-
  1. शिक्षण एक सामान्य विचार की व्याख्या करता है।
  2. यह एक सामाजिक प्रक्रिया है।
  3. यह मानव प्रकृति पर आधारित है।
  4. यह उद्देश्यपूर्ण और वर्णनात्मक क्रिया है।
  5. यह औपचारिक और अनौपचारिक दोनों ही है।
  6. इसके तीन पक्ष होते हैं-शिक्षक, शिक्षार्थी और पाठ्यक्रम।
  7. इसकी अपनी निजी शिक्षण शैली होती है और ये अनेक विधियों, प्रविधियों द्वारा संचालित होता है।
  8. इसमें मार्गदर्शन तथा निर्देश दोनों ही शामिल रहते हैं।

अच्छे शिक्षण अधिगम की विशेषताएं

अच्छे शिक्षण की निम्न विशेषताएं होती हैं-
  1. निर्देशात्मक होता है।
  2. प्रेरणादायक होता है।
  3. सुव्यवस्थित और सुनियोजित होता है।
  4. प्रगति पर आधारित होता है।
  5. सहानुभूतिपूर्ण होता है।
  6. सहयोग पर आधारित होता है।
  7. बाल-केन्द्रित एवं मनोवैज्ञानिक होता है।
  8. बालक में आत्मविश्वास उत्पन्न करता है।
  9. निदानात्मक और उपचारात्मक होता है।
  10. बालक के पूर्व ज्ञान को ध्यान में रखकर दिया जाता है।

अधिगम की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक

अधिगम की प्रक्रिया का अध्ययन करने के उपरान्त शिक्षा में अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों का भी अध्ययन करना आवश्यक है। चूंकि मनुष्य का व्यवहार परिवर्तनशील होता है इसलिए उसका अधिगम भी जटिल होता है। उसके अधिगम में व्यक्तिगत भिन्नता पाई जाती है।

मनोवैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों के आधार पर ऐसे कारकों का अध्ययन किया है, जो सामान्य रूप से सभी व्यक्तियों के अधिगम को प्रभावित करते हैं। अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों का समुचित ज्ञान हो जाने पर ही अधिगम की प्रक्रिया में उन्नति की जा सकती है। इन कारकों में प्रेरणा, रुचि, ध्यान, बुद्धि, स्वास्थ्य, विषय का स्वरूप और अधिगम की विधियाँ प्रमुख हैं। इन कारकों का अध्ययन अधिगम की प्रक्रिया में सहायक तथा बाधक, दोनों रूपों में किया जा सकता है। किसी कारक का विपरीत होना अधिगम में बाधक होता है किन्तु उनका अनुकूल और उचित होना सहायक सिद्ध होता है। 

अधिगम के कारकों या दशाओं का उल्लेख करते हुए मनोवैज्ञानिक सिम्पसन का कथन है-‘‘अन्य दशाओं के साथ-साथ अधिगम की कुछ दशाएँ हैं-उत्तम स्वास्थ्य, रहने की अच्छी आदतें, शारीरिक दोषों से मुक्ति, अध्ययन की अच्छी आदतें, संवेगात्मक सन्तुलन, मानसिक योग्यता, कार्य-सम्बन्धी परिपक्वता, वांछनीय दृष्टिकोण और रुचियाँ, उत्तम सामाजिक अनुकूलन, रूढि़वादिता और अन्ध्विश्वास से मुक्ति।’’ 

उपर्युक्त विचारों के आधार पर अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है।
  1. शारीरिक कारक
  2. मनोवैज्ञानिक कारक
  3. पर्यावरण सम्बन्धी कारक
  4. अन्य कारक।

1. शारीरिक कारक

1. ज्ञानेन्द्रियाँ-अधिगम की प्रक्रिया को प्रभावित करने में शारीरिक तत्वों का बहुत महत्त्व है। प्रथम शारीरिक तत्व, जो अधिगम की क्रिया में निहित हैं वे ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। ज्ञानेन्द्रियाँ के पाँच प्रकार दृष्टि, श्रवण, स्वाद, सूँघना और स्पर्श हैं। हमारे सम्पूर्ण ज्ञान का आधर प्रत्यक्षीकरण है।

2. शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य-अधिगम के लिए शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ठीक होना आवश्यक है। जो बालक शारीरिक और मानसिक दृष्टि से स्वस्थ होते हैं, वे अधिगम में रुचि लेते है और शीघ्र सीख जाते हैं। अस्वस्थ बालक अधिगम में रुचि नहीं लेते हैं वे बहुत जल्दी थक जाते हैं, फलस्वरूप वे विषय को देर से और कम सीख पाते हैं। थकान के कारण भी अधिगम में बाध पड़ती है। थका हुआ व्यक्ति रुचि और प्रेरणा होने पर भी कार्य ठीक से नहीं कर सकता। अतः शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की ओर ध्यान देना अवाश्यक है। 

3. परिपक्वता- अधिगम का परिपक्वता से भी घनिष्ठ सम्बन्ध् है। बालक आयु में जैसे-जैसे वृद्धि होती है, उसके शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक योग्यता का भी विकास होता जाता है। इस प्रकार अधिगम की क्रिया पर शारीरिक और मानसिक परिपक्वता का प्रभाव पड़ता है। इस दृष्टि से परिपक्व बालकों को अधिगम में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होती उनकी अधिक शक्ति और समय अपव्यय (नष्ट) होता है। 

2. मनोवैज्ञानिक कारक

1. प्रेरणा तथा अधिगम-अधिगम की क्रिया में प्रेरणा का सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान है। अधिगम की क्रिया में प्रेरणा के स्थान, महत्व तथा उसकी उपयोगिता पर एक अलग अध्याय में विवेचन किया गया है। अधिगम में प्रेरकों का होना आवश्यक है। प्रेरक एक आन्तरिक शक्ति है जो व्यक्ति को क्रिया करने के लिए बाध्य करती है। आन्तरिक प्रेरणा से जो कार्य किया जाता है, उसमें अधिक उत्साह एवं सक्रियता दिखार्द देती है। शिक्षक को बालकों की आवश्यकताओं, रुचियों और प्रयोजनों को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। आवश्यकता प्रयोजन और प्रोत्साहन प्रेरणा से सम्बन्धित है। यदि शिक्षण प्रेरणा के इन तत्वों को भली-भाँति नहीं समझ पाता तो वह प्रेरणा की प्रक्रिया में सफलता नहीं प्राप्त कर पाता। प्रोत्साहन मिलने पर ही बालक विशेष रूप से अधिगम के लिए प्रोत्साहित होता है। आवश्यकता उसे अधिगम की प्रेरणा देती है। 

मनोवैज्ञानिकों ने प्रेरणा से सम्बन्धित पशुओं तथा मनुष्यों पर किये गये प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि जब अधिगम की प्रेरणा रहती है और साथ ही प्रोत्साहन या प्रलोभन मिलता है, तब वे शीघ्रता तथा सरलता से सीखते हैं। बालक की शिक्षा में प्रशंसा, प्रोत्साहन, पुरस्कार आदि द्वारा उसे अधिगम के लिए प्रेरित किया जा सकता है। इसी प्रकार उचित निन्दा और दण्ड से वह खराब आचरण और व्यवहार को नहीं दुहराता। शिक्षा में पुरस्कार तथा दण्ड दोनों ही क्रमशः अच्छे व्यवहारों को अधिगम और गलत व्यवहारों को त्यागने में सहायता करते हैं।

2. रुचि और रुझान - अधिगम व्यक्ति की रुचि पर निर्भर होता है। यदि बालक को किसी विषय में रुची होती है तो वह अधिगम करते समय सरलता और आनन्द का अनुभव करता है। शिक्षक का प्रथम कर्तव्य बालक में विषय के प्रति रुचि एवं जिज्ञासा को जाग्रत करना है। बालक को जब अपनी रुचि और रुझान (अभिक्षमता) के अनुकूल कार्य का अवसर मिलता है, तब वह अपनी योग्यता का पूरा प्रदर्शन करता है और उसे कुशलतापूर्वक सीख लेता है। विद्यालयों में बालकों की रुचि और रुझान की जाँच करके उसी के अनुसार शिक्षा देने की व्यवस्था करना आवश्यक है ताकि वे सफलतापूर्वक विभिन्न परिस्थितियों में अपने को समायोजित कर सकें। 

3. अधिगम की इच्छा - अधिगम में व्यक्ति की इच्छा का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। यदि अधिगम करने की इच्छा होती है तो व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अधिगम कर लेता है। जिस व्यक्ति को अधिगम की इच्छा नहीं होती उसे किसी भी प्रकार से सिखाया नहीं जा सकता। जैसा कि एक मनोवैज्ञानिक का कथन है-‘‘घोडे़ को पानी के तालाब तक तो ले जाया जा सकता है किन्तु उसकी इच्छा के विरुद उसको पानी नहीं पिलाया जा सकता है।’’ अतः शिक्षक को चाहिए कि वह रुचि और जिज्ञासा को जाग्रत करके बालकों की इच्छाशक्ति को दृढ़ करें।

4. बुद्धि-बुद्धि और अधिगम की क्षमता में घनिष्ठ सम्बन्ध है। बालकों में बुद्धि का वितरण समान नहीं होता, इसलिए भिन्न-भिन्न बालकों में अधिगम की क्षमता भी भिन्न होती है। अधिगम विशेष रूप से अधिगम करने वाले की बौद्धिक योग्यता पर निर्भर है। तीव्र-बुद्धि बालक विषय को जल्दी सीख लेता है, कम-बुद्धि बालक समझने और अधिगम में अधिक समय लगाता है। विचार, कल्पना, तर्क, चिन्तन और निर्णय-शक्तियाँ बुद्धि से सम्बन्ध्ति हैं। इस प्रकार अधिगम में प्रगति लाने का महत्त्वपूर्ण कारक बुद्धि है।

3. पर्यावरण सम्बन्धी कारक

वातावरण-अधिगम की प्रगति अधिकांश रूप में अनुकूल वातावरण पर निर्भर होती है। प्रतिकूल परिस्थितियों में अधिगम का कार्य सरलतापूर्वक नहीं सम्पन्न हो सकता। कक्षा का ‘मनोवैज्ञानिक’ वातावरण अधिगम की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। मान्टेसरी ने कहा है कि अधिगम के लिए ‘मनोवैज्ञानिक क्षण’ उत्पन्न करना शिक्षक के लिए अत्यन्त अवाश्यक है। पढ़ने का स्थान, स्वच्छ वायु और प्रकाशयुक्त होना चाहिए, जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहे। पढ़ने का स्थान चाहे वह घर हो या विद्यालय उसका वातावरण शांतिपूर्ण हो। एकान्त शान्त वातावरण में ही पढ़ने की ओर ध्यान एकाग्र किया जा सकता है। कक्षा में विषय की ओर ध्यान आकषर््िात करने के लिए तीव्र उद्दीपनों का प्रयोग करना चाहिए, जैसे सहायक सामग्री, उपयुक्त उदाहरण आदि। कक्षा का वातावरण सरल, रोचक तथा जिज्ञासापूर्ण होना चाहिए। इस प्रकार उपयुक्त वातावरण में ही अधिगम में उन्नति होती है।

4. अन्य कारक

1. विषय-सामग्री का स्वरूप - किसी विषय का अधिगम विषय-सामग्री के स्वरूप पर निर्भर करता है। उदाहरणार्थ- पाठ्य-पुस्तक में कठिन और आलोचनात्मक निबन्ध् के पाठ की अपेक्षा, रोचक कहानी का पाठ सरलता से और रुचि से सीख लिया जाता है। इस सम्बन्ध् में शिक्षक के ‘सरल से कठिन की और’ का सिद्धान्त सहायक होता है। अर्थात् सरल बातों को सिखाते हुए कठिन की ओर बढ़ना चाहिए।

2. अधिगम की विधियाँ-अधिगम में उन्नति विशेष रूप से अधिगम की विधियों पर निर्भर करती है। इनका उल्लेख यथा-स्थान किया गया है। अधिगम की विधि बालक की अवस्था के अनुकूल जितनी रुचिकर और उपयुक्त होगी, अधिगम उतना ही सरल होगा। इस दृष्टि से ही प्रारम्भिक कक्षाओं में ‘खेल विधि और करके सीखने की विधि या ‘क्रिया विधि का प्रयोग किया जाता है। उच्च कक्षाओं में ‘सामूहिक सहसम्बन्ध् व्याख्यान’ तथा अन्य विधियों का प्रयोग किया जाता है।

3. अभ्यास-अधिगम में उन्नति लाने का महत्त्वपूर्ण कारण अभ्यास अधिगम को बहुत अधिक प्रभावित करता है। यह ‘अभ्यास के नियम’ में बताया जा चुका है।

4. शिक्षक और अधिगम की प्रक्रिया-अधिगम की प्रक्रिया में शिक्षक का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। शिक्षा की द्विमुखी प्रक्रिया में, शिक्षक के आचार-विचार, व्यवहार, व्यक्तित्व, ज्ञान और शिक्षण-विधि का विद्यार्थी पर तथा अधिगम की प्रक्रिया पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। मान्टेसरी, प्रफोबेल तथा अन्य शिक्षाशास्त्रिायों ने शिक्षक को एक पथ-दर्शक, माली तथा कलाकार की संज्ञा दी है। शिक्षक अपनी योग्यता तथा विभिन्न साध्नों द्वारा बालक के लिए अधिगम की प्रक्रिया को सरल और तीव्रगामी बना सकता है।

पढ़ने की जगह हमेशा साफ-सुथरी और स्वच्छ वायु एवं प्रकाशयुक्त होनी चाहिए। शांत वातावरण में मना एकाग्रचित होता है, जो पढ़ाई की दृष्टि से सर्वाधिक उपयुक्त है।

5. सफलता या परिणाम का ज्ञान - किसी कार्य अधिगम करते समय यदि समय-समय पर अधिगम की प्रगति का ज्ञान होता रहता है, तो अधिगम करने वाले को आगे अधिगम में उत्साह और प्रेरणा मिलती है। यदि अधिगम में गलतियाँ या असफलता मिलती है, तो भी इसका ज्ञान करना आवश्यक होता है। इससे सीखने वाले को बार-बार प्रयत्न करने और सुधर करने की भी प्रेरणा मिलती है। अतः विद्यार्थी को उसके अधिगम की प्रगति और सफलता या परिणाम का ज्ञान कराते रहना चाहिए।

उपरोक्त महत्त्वपूर्ण कारकों के अतिरिक्त शिक्षण अधिगम की दृष्टि से कुछ विशेष वर्गीकरण के आधार पर निम्नलिखित कारकों का अवलोकन किया जा सकता है।

1. शिक्षार्थी से सम्बन्धित कारक - यूँ तो परिवार बालक की प्रथम पाठशाला है परन्तु जब बालक औपचारिक रूप से विद्यालय में प्रवेश लेता है तो उसके मन में अनेक तरह की जिज्ञासाएँ उठती हैं जिन्हें वह शान्त करना चाहता है और उसे नवीन वातावरण में समायोजन करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में अधिगम क्रिया अनेक कारकों से प्रभावित होती है जैसे- बालक (जो शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का आधार है), अधिगम की इच्छा, आकांक्षा का स्तर, शैक्षिक पृष्ठभूमि, स्वास्थ्य, परिपक्वता, अभिप्रेरणा, सीखने वाले की अभिवृत्ति, सीखने का समय, सीखने की अवध्, बुद्धि और अधिगम प्रक्रिया आदि। इन प्रमुख कारकों से प्रभावित होकर शिक्षार्थी आसानी से कुछ भी सीखकर जीवन को सफलता के पथ पर अग्रसित कर सकता है।

2. शिक्षक सम्बन्धी कारक -अधिगम को प्रभावित करने वाले शिक्षक से सम्बन्धित अनेक कारक हैं जैसे- शिक्षक को विषय को ज्ञान, मनोविज्ञान का ज्ञान, शिक्षण विध्यिाँ, व्यक्तिगत भेदों का ज्ञान, उचित व्यवहार, बाल केन्द्रित शिक्षा, समय-सारिणी, पाठ्य-सहगामी क्रियाएँ और अनुशासन इत्यादि। ये ऐसे प्रमुख कारक हैं जिससे शिक्षक को सिखाने में सहायता मिलती है। किसी एक कारक के अभाव में अधिगम सही तरीके से नहीं हो पाएगा।

3.  पाठ्यवस्तु से सम्बन्धित कारक -अधिगम को प्रभावित करने वाले पाठ्यवस्तु से सम्बन्धित कुछ मुख्य कारक अग्रलिखित है। यथा- विषयवस्तु की प्रकृति, आकार, भाषा-शैली, क्रम उदाहरण प्रस्तुतीकरण, दृश्य-श्रव्य सामग्री, रुचिकर विषय वस्तु, की उद्देश्यपूर्णता, विभिन्न विषयों का कठिनाई स्तर और उसकी संरचना आदि। इन प्रमुख कारकों से अधिगम प्रक्रिया अत्यधिक प्रभावित होती है और यदि इनका निर्माण करने में कुछ बातों का विशेष ध्यान रखा जाए तो अधिगम स्थायी होगा।

4. अधिगम व्यवस्था से सम्बन्धित कारक -अधिगम को प्रभावित करने वाले अधिगम व्यवस्था से सम्बन्धित अनेक कारक हैं। इस व्यवस्था को बनाये रखने के लिए अनेक विधियों को अपनाया जाना चाहिए- यथा सम्पूर्ण बनाम खण्ड विधि उप-विषय बनाम सकेन्द्रीय विधि संकल्पित बनाम वितरित विधि आयोजित बनाम प्रासंगिक विधि और संक्रिय बनाम निष्क्रिय विधि।

5. वातावरण से सम्बन्धित कारक -वातावरण के बहुत से कारक अधिगम को प्रभावित करते हैं जैसे- वंशानुक्रम, सामाजिक वंशानुक्रम का ज्ञान, वातावरण का प्रभाव, सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण, शिक्षा के अनौपचारिक कारण, व्यक्तित्व का विकास, पारिवारिक और मनोवैज्ञानिक वातावरण, कक्षा का भौतिक वातावरण और सम्पूर्ण परिस्थिति आदि।

6. समूह की विशेषताएँ तथा अन्तः क्रियात्मक प्रक्रिया -मानव एवं सामाजिक प्राणी है, इसके अभाव में उसका कोई अस्तित्व नहीं माना जाता। इसके लिए अनेक समूह या समुदाय से अपना सम्पर्क बना लेता है और उसे उस समूह के नियम, रीति-रिवाज, मान्यताएँ, परम्पराएँ आदि प्रभावित करते हैं। अधिगम प्रक्रिया को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए अध्यापक को समूह मनोविज्ञान का ज्ञान होना आवश्यक है।

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