संविधान नियमों का वह संग्रह है जो उन उद्देश्यों की प्राप्ति कराता है जिनके लिए शासन शक्ति प्रवर्तित की जाती है और जो शासन के उन विविध अंगों की सृष्टि करता है जिनके माध्यम से सरकार अपनी शक्ति का प्रयोग करती है।
संविधान एक ऐसा दस्तावेज है जिसके अनुसार किसी देश की सरकार का कार्य चलाया जाता
है। इसमें सरकार के विभिन्न अंगों के आपसी संबंधों तथा सरकार एवं नागरिकों के संबंधों का वर्णन
रहता है। इसमें केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों आदि उत्तरदायित्वों का ब्यौरा भी होता है।
संविधान में राष्ट्रीय उद्देश्यों अर्थात् किस प्रकार का समाज होगा, उनका संकेत भी मिलता है।
इसमें राष्ट्रीय मूल्यों का भी उल्लेख किया जाता है।
संविधान का अभिप्राय (अर्थ)
फाइनर ने संविधान को शक्ति-संबंधों की आत्मकथा’ कहा है। राजनीतिक संरचना में विभिन्न अंगों की शक्तियां और उनके संबंध कैसे होने चाहिए तथा उनकी शक्ति और उनके सम्बन्ध जनता के साथ किस प्रकार के होंगे, इसकी विवेचना संविधान करता है। राजनैतिक प्रक्रिया के रूप में संविधान ऐसे नियमों के समुच्य कहा जाएगा जो न्यायोचित खेल की गारण्टी देते हैं। फ्रेड्रिक ने संविधान को प्रभावशाली रूप से नियमित किया हुआ नियंत्रण कहा है। वास्तव में संविधान जहाँ एक तरफ सरकार पर नियमित नियंत्रण रखता है वहाँ दूसरी तरफ समाज में एकता लाने वाली शक्ति के प्रतीक रूप में कार्य करता है।सी.एफ. स्ट्राँग ने लिखा है कि संविधान उन सिद्धान्तों का समूह है जिनके अनुसार
राज्य के अधिकारों, नागरिकों के अधिकारों और दोनों के संबंधों में सामजस्य स्थापित किया जाता है।
गार्नर ने संविधान के तीन प्रमुख तत्व बताये हैं-
प्रायः ऐसा देखा और अनुभव किया जाता है कि संविधान में व्यवस्था कुछ होती है तथा व्यवहार में सरकार कुछ और करती है अर्थात् संविधान और सरकार की कथनी और करनी में भारी अन्तर पाया जाता है।
- स्वतंत्रता,
- सरकार और
- प्रभुसत्ता का गठन।
- राज्य के शासन का स्वरूप एवं संगठन
- सरकार के विभिन्न अंग, उनके कार्य एवं अधिकार,
- इन अंगों का पारस्परिक संबंध,
- नागरिकों के मूल अधिकार,
- सरकार तथा जनता के मध्य स्थित संबंध
- संविधान की सुरक्षा एवं
- उसमें संशोधन की विधि आदि।
प्रायः ऐसा देखा और अनुभव किया जाता है कि संविधान में व्यवस्था कुछ होती है तथा व्यवहार में सरकार कुछ और करती है अर्थात् संविधान और सरकार की कथनी और करनी में भारी अन्तर पाया जाता है।
भारत के संविधान का निर्माण
भारत के संविधान को 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया । इस दिन संविधान सभा ने इसे अंतरिम रूप दिया। लेकिन यह दो महीने बाद यानी 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। हालांकि संविधान के कुछ प्रावधान जैसे नागरिकता चुनाव, अस्थायी संसद एवं अन्य संबंधित प्रावधान 26 नवंबर 1949 को ही लागू हो गये थे। दो महीने बाद अर्थात, 26 जनवरी 1950 को इसे इसलिये लागू किया गया क्योंकि इस दिन 26 जनवरी 1930 को मूल आजादी मिली थी। इसी दिन यानी 2जनवरी 1930 को भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने भारत की आजादी का उत्सव मनाया था।भारत के संविधान मे सभी नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रावधान मौजूद है। ये
प्रावधान उन्हें भी दिये गये है जो भारत के नागरिक नहीं है। इन अधिकारों की पूर्ति के
लिये विधायी संस्थानें व्याप्त है। संविधान भारत में लोकतंत्र एवं सामाजिक परिवर्तन की
परिकल्पना को पेश करता है।
भारतीय संविधान के निर्माण में लोकतांत्रिक संस्थाओं की
उत्पत्ति की प्रक्रिया एवं अधिकार संविधान सभा के गठन से पूर्व ही शुरू हो गयी थी।
लेकिन यहां यह बताना जरूरी है कि जो लोकतांत्रिक मूल्य एवं लोकतांत्रिक संस्थाऐं
उपनिवेश काल में थी उनका मकसद सिर्फ औपनिवेशिक हितों को पूरा करना था जबकि
संविधान सभा द्वारा किये गये प्रावधान उनके विपरीत थे।
भारतीय संविधान दिसंबर
9, 1947 से लेकर नवंबर 26, 1949 के बीच विचार-विमर्श की उपज है, लेकिन उनकी कुछ
विशेषताएं विभिन्न अधिनियमों द्वारा पारित प्रावधान से मिली है।
ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश शासन को सत्ता हस्तांतरण के पश्चात, ब्रिटिश संसद भारत
के मामलों के व्यवस्थापन में लिप्त हो गयी।
इस उद्देश्य को पूरा करने के लिये, 1885 से
1935 तक औपनिवेशिक शासन द्वारा कई प्रकार के शासन अधिनियम लागू किये। भारत
सरकार अधिनियम 1935 इनमें से एक महत्वपूर्ण अधिनियम था।
भारतीय संविधान की प्रकृति
भारतीय संविधान की प्रकृति को लेकर भारतीय संविधान की प्रस्तावना
मे निम्नलिखित पाँच विशेषताओं का वर्णन किया गया हैः
- सम्पूर्ण प्रभुसत्ता संपन्न राज्य,
- समाजवादी राज्य
- धर्मनिरपेक्ष राज्य
- लोकतांत्रिक राज्य
- गणतंत्रात्मक राज्य।
1. सम्पूर्ण प्रभुसत्ता संपन्न राज्यः- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत पूर्ण प्रभूसत्ता संपन्न राष्ट्र बन
गया। संपूर्ण प्रभुसत्ता का अर्थ है कि इस पर किसी आंतरिक और बाह्य शक्ति का दबाब या
नियंत्रण नहीं है। हाँलाकि केंद्र और राज्यों की शक्तियों का उचित बँटवारा किया गया है लेकिन
प्रभुसत्ता पर कोई विभाजन नहीं है। आपातकाल में संघ राष्ट्रीय हित में राज्यों पर शासन कर सकता
है और सामान्य काल में संघ राज्यों को दिए हुए विषयों पर कानून बना सकता है।
2. समाजवादी राज्यः- समाजवादी राज्य का उद्देष्य आय, सामाजिक स्तर और जीवन स्तर के आधार
पर असमानताओं को दूर करना है। एक समाजवादी राज्य इसका प्रयत्न करता है कि सभी को उन्नति
के समान अवसर और सामाजिक धन का सबकों समान रूप से लाभ मिले। यह अमीरों और गरीबों
के बीच खाई को पाटने का प्रयास करता है और समाज के गरीब और कमजोर वर्गों के लाभों को
सुरक्षा प्रदान करता है।
3. धर्मनिरपेक्ष राज्यः- धर्मनिरपेक्ष राज्य किसी धर्म की उन्नति में हस्तक्षेप करने का प्रयास नहीं
करता। राज्य किसी धर्म विशेष से जुड़ा हुआ नहीं होता और न ही वह किसी एक धर्म विशेष को
महत्व देता है। प्रत्येक स्त्री पुरूष से उसके धर्म पर विचार किए बिना एक सामान्य नागरिक की तरह व्यवहार किया जाता है। सभी नागरिक अपनी इच्छानुसार धर्म को मान सकते हैं। पूजा-पाठ आदि की
पूर्ण स्वतंत्रता होती है।
4. लोकतांत्रिक राज्यः- नागरिकों को सरकार बनाने के लिए अपने प्रतिनिधि चुनने का पूर्ण अधिकार
है इसी प्रकार चुनाव लड़ने का अधिकार है।
5. गणतंत्रात्मक राज्यः- गणतन्त्र राज्य का अर्थ है कि भारत राज्य का मुख्य चुना हुआ प्रतिनिधि
होगा। संविधान में भारतीय गणराज्य के मुख्य तौर पर राष्ट्रपति का प्रावधान रखा है।
Rohit
ReplyDeleteसंविधान किसे कहते हैं
ReplyDeletegir
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