तटस्थता वक्र का अर्थ , मान्यताएं एवं विशेषताएं

तटस्थता वक्र वह वक्र है जो दो वस्तुओं के उन विभिन्न संयोगों को प्रकट करता है जिनसे उपभोक्ता को समान संतुष्टि प्राप्त होती है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि एक तटस्थता वक्र पर जितने बिन्दु होते हैं वे दो वस्तुओं के उन संयोगों को प्रकट करते हैं जिनसे उपभोक्ता को समान संतुष्टि प्राप्त होती है। चूंकि प्रत्येक बिन्दु द्वारा प्रकट किए गए संयोग से समान संतुष्टि प्राप्त होती है, इसलिए उपभोक्ता उनके चुनाव के संबंध में तटस्थ हो जाता है अर्थात् एक तटस्थता वक्र पर दिए गए सभी संयोगों को समान महत्व देता है। 

एच. एल. वेरियन के अनुसार, ‘‘एक तटस्थता वक्र दो वस्तुओं के सभी संयोगों को प्रकट करती है जिनसे व्यक्ति को संतुष्टि का समान स्तर प्राप्त होता है। इसलिए वक्र पर बिन्दुओं द्वारा व्यक्त सभी संयोगों के संबंध में एक व्यक्ति तटस्थ होता है।’’

कौतसुवयानी के अनुसार, ‘‘एक तटस्थता वक्र बिन्दुओं का वह पथ है, जो वस्तुओं के उन विशेष संयोगों को प्रकट करता है जो उपभोक्ता को समान संतुष्टि प्रदान करते हैं, अतएव इनके प्रति उपभोक्ता तटस्थ होता है।’’

तटस्थता अनुसूची

एक तटस्थता तालिका से अभिप्राय उस तालिका से है जो दो वस्तुओं के विभिन्न संयोगों को दर्शाती है जिससे उपभोक्ता को समान संतुष्टि प्राप्त होती है। इसलिए उपभोक्ता इनमें से प्रत्येक संयोग को समान महत्व देता है अर्थात् इनके प्रकृति वह तटस्थ होता है। 

मेयर्स के शब्दों में, ‘‘तटस्थता तालिका वस्तुओं के ऐसे विभिन्न संयोगों की तालिका होती है जो किसी व्यक्ति को समान रूप से संतुष्टि प्रदान करेंगे।’’

तटस्थता मानचित्र

एक तटस्थता वक्र दो वस्तुओं के उन विभिन्न संयोगों को प्रकट करता है जिनसे उपभोक्ता को एक निश्चित स्तर की संतुष्टि प्राप्त होती है। यदि विभिन्न वस्तुओं के विभिन्न संयोगों से प्राप्त होने वाली संतुष्टि को उँचा या नीचे स्तर पर दिखाना है तो हमें अलग-अलग तटस्थता वक्रों का प्रयोग करना पड़ेगा। यदि इन तटस्थता वक्रों या इनके समूह को एक चित्र के रूप में प्रकट किया जाए तो उसे तटस्थता मानचित्र कहा जाता है।

तटस्थता वक्र विश्लेषण की मान्यताएँ

तटस्थता वक्र विश्लेषण निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है-

1. विवेकपूर्ण उपभोक्ता -यह माना जाता है कि उपभोक्ता का व्यवहार विवेकपूर्ण होगा। हम यह मान लेते हैं कि उपभोग निर्णयों से संबंधित स्थितियों के बारे में उपभोक्ता को पूर्ण सूचना प्राप्त है। बाजार में उपलब्ध सभी वस्तुओं तथा सेवाओं के बारे में, उनकी कीमत तथा अपनी मौद्रिक आय के बारे में उपभोक्ता को जानकारी प्राप्त है। इस सूचना के आधार पर उपभोक्ता यह निर्णय ले सकता है कि कौन-सा संयोग बेहतर है अथवा कौन-सा संयोग समान संतुष्टि प्रदान करता है। प्रत्येक उपभोक्ता अपनी सीमित आय से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने का प्रयास करेगा।

2. क्रमवाचक उपयोगिता -तटस्थता वक्र विश्लेषण क्रमवाचक उपयोगिता की मान्यता पर आधारित है। इसे क्रमवाचक उपयोगिता इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसे क्रमवाचक संख्याओं के रूप में व्यक्त किया जाता है। क्रमवाचक संख्याएँ वे संख्याएँ हैं जो शृंखलाओं में श्रेणी को व्यक्त करती हैं जैसे प्रथम, द्वितीय और तृतीय। इसके अनुसार उपभोक्ता वस्तुओं के विभिन्न संयोगों के लिए अपनी प्राथमिकताओं को श्रेणियों को व्यक्त कर सकते हैं। उन्हें किसी वस्तु की उपयोगिता को गणनावाचक संख्याओं में व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है। एक उपभोक्ता विभिन्न वस्तुओं से मिलने वाली उपयोगिता की तुलना करके उपयोगिता को ‘अधिक’ या ‘कम’ के रूप में व्यक्त करता है न कि उसको 2, 4, 6, 8 आदि संख्याओं के रूप में।

3. घटती सीमांत प्रतिस्थापन दर -बोमोल के अनुसार, ‘‘तटस्थता वक्र विश्लेषण की यह मान्यता है कि सीमांत प्रतिस्थापन दर घटती जाती है।’’ इसका अभिप्राय यह हुआ कि एक उपभोक्ता के पास जैसे-जैसे किसी वस्तु की मात्र बढ़ती है वह उस वस्तु का अन्य वस्तु से प्रतिस्थापन घटती दर पर करता है।

4. पूर्ण संतुष्टि नहीं -उपभोक्ता पूर्ण संतुष्टि के स्तर पर नहीं पहुँचता। उपभोक्ता एक वस्तु की अधिक मात्र को कम मात्र की तुलना में अधिक पसंद करता है। जैसे दो रसगुल्लों के स्थान पर पाँच रसगुल्ले। यदि उपभोक्ता को किसी वस्तु की कम मात्र की तुलना में अधिक मात्र को पसंद करना है, तब उसके पास उस वस्तु की इतनी मात्र होनी चाहिए कि और अधिक लेने से उसे कोई भी संतुष्टि प्राप्त न हो।

5. चुनाव में सामंजस्य -उपभोक्ता के व्यवहार में सामंजस्य पाया जाता है। इसक अर्थ हुआ कि उपभोक्ता यदि किसी एक समय में वस्तुओं के A संयोग को वस्तुओं के B संयोग से अधिक पसंद करता है तो वह किसी दूसरे समय में भी वस्तुओं के A संयोग की तुलना में वस्तुओं के B संयोग की अधिक पसंद नहीं करेगा।

यदि A > B, तब B > A

इसे पढ़ा जाएगा यदि A, B से अधिक (>) है तो B, A । अधिक (>) नहीं हो सकता। 

6. सकर्मकता -इस विश्लेषण की यह भी मान्यता है कि तटस्थता और प्राथमिकता के संबंध में सकर्मकता पाई जाती है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि यदि उपभोक्ता (A) संयोग से (B) संयोग को अधिक पसंद करता है तथा ष्ठष् संयोग को (B) संयोग से अधिक पसंद करता है तो वह  (A) संयोगको (B) संयोग की तुलना में अवश्य ही अधिक पसंद करेगा। इस पक्र ार यदि उपभोक्ता  (A) तथा (B) के नोट बीच तटस्थ है तथा (B) और (B) के बीच तटस्थ है तो वह  (A) और (B) के बीच भी तटस्थ होगा।

तटस्थता वक्र की विशेषताएं

तटस्थता वक्र की मुख्य विशेषताएँ हैं-

1. तटस्थता वक्र का ढलान सामान्यतया बाएँ से दाएँ नीचे की ओर होता है -एक तटस्थता वक्र का ढलान बाएँ से दाएँ नीचे की ओर अर्थात् ऋणात्मक होता है। तटस्थता वक्र की यह विशेषता इस मान्यता पर आधारित है कि उपभोक्ता यदि एक वस्तु की अधिक मात्र का उपयोग करता है तो वह दूसरी वस्तु की कम मात्र का उपयोग करेगा, तभी वस्तुओं के विभिन्न संयोगों से मिलने वाली संतुष्टि समान होगी।

चित्र में IC वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर ढलान वाले तटस्थता वक्र को प्रकट कर रहा है। जैसा कि वक्र IC द्वारा प्रकट हो रहा है। तब उपभोक्ता को A तथा B संयोगों से समान संतुष्टि प्राप्त हो सकती है क्योंकि A संयोग में B संयोग की तुलना में संतरों की संख्या अधिक है तो B संयोग में सेबों की संख्या कम है। अतः तटस्थता वक्र का ढलान IC रेखा की भाँति ऋणात्मक होता है अर्थात् बाएँ से दाएँ नीचे की ओर झुका हुआ, मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर होता है।

तटस्थता वक्र की विशेषताएं


2. मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर -तटस्थता वक्र सामान्यतया मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर (नीचे की ओर झुका हुआ) होता है। वक्र उन्नतोदर होने से अभिप्राय मूल बिन्दु की ओर इसके अंदर को झुके होने से है। अन्य शब्दों में, तटस्थता वक्र का ढलान चपटा होता जाता है जैसे-जैसे उस वक्र पर आगे की ओर सरकते जाते हैं। तटस्थता वक्र का ढलान सीमांत प्रतिस्थापन की दर कहलाता है क्योंकि यह उस दर को प्रकट करता है जिस पर उपभोक्ता संतुष्टि के समान स्तर को कायम रखने के लिए एक वस्तु (जैसे सेब) का दूसरी वस्तु (जैसे संतरा) के लिए प्रतिस्थापन करता है। अन्य शब्दों में, तटस्थता वक्र की यह विशेषता घटती सीमांत प्रतिस्थापन की दर के नियम पर आधारित है।

चित्र में तटस्थता वक्र मूल बिन्दु "O" की ओर उन्नतोदर (Convex) है। इससे प्रकट होता है कि सेबों की
संतरों के लिए सीमांत प्रतिस्थापन दर घटती जा रही है। इसके अर्थ है कि उपभोक्ता सेबों की जैसे-जैसे अधिक
मात्र लेता जाएगा, वह संतरों की कम मात्र का त्याग करना चाहेगा। उपभोक्ता पहले अतिरिक्त सेब के  लिए
3 संतरों (AB) का त्याग करेगा, दूसरे सेब के लिए 2 संतरों (CD) का तथा तीसरे सेब के  लिए 1 संतरे (EF)
का त्याग करना चाहेगा। वास्तविक जीवन में इसी प्रकार की ही स्थिति होती है। इसीलिए तटस्थता वक्र मूल बिन्दु
की ओर उन्नतोदर होती है।

तटस्थता वक्र


3. दो तटस्थता वक्र एक दूसरे को न तो छूते और न ही काटते हैं -प्रत्येक तटस्थता वक्र संतुष्टि के विभिन्न स्तर को प्रकट करता है, इसलिए ये एक दूसरे को न तो छूते और न ही काटते हैं। 

चित्र में दो तटस्थता वक्र IC1 तथा IC2 एक दूसरे को बिन्दु  ‘A’ पर काटते हुए दिखाए गए हैं, परंतु वास्तव में ऐसा संभव नहीं है। तटस्थता वक्र IC1 पर बिन्दु ‘A’ तथा बिन्दु ‘C’ समान संतुष्टि वाले संयोगों को प्रकट कर रहे हैं अर्थात् ‘A’  संयोग से प्राप्त संतुष्टि =‘C’  संयोग से प्राप्त संतुष्टि।

तटस्थता वक्र


इसी प्रकार तटस्थता वक्र IC2 पर बिन्दु ‘A’ तथा बिन्दु ‘B’ समान संतुष्टि को प्रकट कर रहे हैं अर्थात् ‘A’ संयोग से प्राप्त संतुष्टि =B संयोग से प्राप्त संतुष्टि A इसका अर्थ यह हुआ कि ‘B’ संयोग से प्राप्त संतुष्टि ‘C’ संयोग से प्राप्त संतुष्टि के बराबर है, परंतु यह संभव नहीं है क्योंकि संयोग ‘B’ में संयोग ‘C’ की तुलना में संतरों की मात्र अधिक है बेशक सेबों की मात्र समान है।

4. उँचा तटस्थता वक्र संतुष्टि के अधिक स्तर को प्रकट करता है - तटस्थता वक्रों की यह विशेषता है कि एक तटस्थता मानचित्र में उफँचा तटस्थता वक्र अपने से नीचे तटस्थता वक्र की अपेक्षा अधिक संतुष्टि प्रकट करता है। इस विशेषता को चित्र की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है। चित्र में IC2 उँचा तथा IC1 नीचा तटस्थता वक्र है। IC2 तटस्थता वक्र का B बिन्दु, IC1 तटस्थता वक्र के बिन्दु । की अपेक्षा सेबों की अधिक मात्र तथा संतरों की समान मात्र प्रकट कर रहा है। अतएव IC2 तटस्थता वक्र के बिन्दु B से IC1 तटस्थता वक्र के बिन्दु A की अपेक्षा अधिक संतुष्टि प्राप्त होगी। इससे स्पष्ट हो जाता है कि तटस्थता वक्र जितना उँचा होगा उतनी ही अधिक संतुष्टि प्रकट करेगा।

तटस्थता वक्र


5. तटस्थता वक्र सामान्यतया न तो OX-अक्ष को और न ही OX-अक्ष को छूता है - यह मान लिया जाये कि उपभोक्ता वस्तुओं के संयोग खरीदता है। तो तटस्थता वक्र न तो OX-अक्ष और न ही OX-अक्ष को छूता है। यदि तटस्थता वक्र किसी भी अक्ष को छूता है तो इसका अर्थ यह होगा कि उपभोक्ता केवल एक ही वस्तु प्राप्त करना चाहता है। उसकी दूसरी वस्तु के लिए माँग शून्य है। ऐसा केवल उस समय हो सकता है जब दो वस्तुओं में से एक वस्तु मुद्रा है। यदि OX-अक्ष पर मुद्रा की मात्र प्रकट की गई है तो तटस्थता वक्र OX-अक्ष को स्पर्श कर सकता है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है कि IC तटस्थता वक्र OX-

तटस्थता वक्र


अक्ष को बिन्दु M पर छू रहा है। इसका अर्थ यह हुआ कि उपभोक्ता मुद्रा की OM मात्र अपने पास रखना चाहता है और वह सेबों की कोई भी मात्र खरीदना नहीं चाहता। इसके विपरीत बिन्दु N से ज्ञात होता है कि उपभोक्ता मुद्रा की OP मात्र तथा सेबों की OQ मात्र के संयोग को पसंद करता है। इस संयोग से उपभोक्ता को उतनी ही संतुष्टि प्राप्त होगी जितनी उसे केवल मुद्रा को अपने पास रखने से अर्थात् OM संयोग से प्राप्त होती है।

6. तटस्थता वक्रों का एक-दूसरे के समानांतर होना आवश्यक नहीं - जैसा कि चित्र में दिखाया गया है कि तटस्थता वक्र एक दूसरे के समानांतर हो भी सकते हैं अथवा नहीं भी हो सकते। यह इस बात पर निर्भर करता है कि तटस्थता वक्र मानचित्र पर बनाई गई दो तटस्थता वक्रों की सीमांत प्रतिस्थापन दर क्या है। यदि दो वक्रों के विभिन्न बिन्दुओं की सीमांत प्रतिस्थापन दर एक स्थिर अनुपात में ही घटती है तो ये वक्र समानांतर होंगे अन्यथा ये समानांतर नहीं होगे।

तटस्थता वक्र

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