उत्पादन फलन किसे कहते है ? इसकी विशेषताएं

उत्पादन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत उत्पादन कार्य उत्पादन के अनेक साधनों (भूमि, श्रम, पूंजी, साहस तथा संगठन) के सामूहिक सहयोग एवं साधनों के एक विशेष सम्मिश्रण से सम्पन्न किया जाता है। उत्पादन के साधनों को अर्थशास्त्र की भाषा में आगत अथवा आदा कहा जाता है तथा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं को निर्गत अथवा प्रदा कहते है। किसी फर्म के उत्पादों तथा आगतों के बीच के सम्बन्ध को उत्पादन फलन कहते है। उत्पादन फलन यह बताता है कि एक दिये हुए तकनीकी ज्ञान और प्रबन्ध योग्यता की सहायता से आगतों के विभिन्न संयोजन से उत्पादन की अधिकतम मात्रा किस प्रकार प्राप्त कर सकता है।

उत्पादन फलन की मान्यताएँ

उत्पादन फलन की धारणा निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है- 
  1. उत्पादन के साधनों की एक विशेष मात्रा, उत्पाद की केवल एक ही मात्रा को निर्मित कर सकती है, किसी अन्य को नहीं; 
  2. उत्पादन की भिन्न-भिन्न मात्रा को निर्मित करते समय उत्पादन की टैक्नाॅलोजी में कोई परिवर्तन नहीं होता है; ऽ उत्पादन फलन एक निश्चित समय से सम्बन्धित होता है, 
  3. फर्म उपलब्ध कुशलतम तकनीक प्रयोग करती है।

उत्पादन फलन की विशेषताएं

उत्पादन फलन की विशेषताएं है- 
  1. एक उत्पादन फलन, एक दी हुई प्रौद्योगिकों के लिए परिभाषित किया जाता है। यह प्रौद्योगिकीय ज्ञान है जो निर्गत के अधिकतम स्तरों को निर्धारित करता है जिसका उत्पादन आगतों के विभिन्न संयोगों को उपयोग में लाकर किया जाता है,
  2. यदि प्रौद्योगिकी में सुधार होता है, तो विभिन्न आगत संयोगों में वृद्धि से प्राप्त होने वाले निर्गत के अधिकतम स्तरों को प्राप्त की जा सकती है। तब हमें एक नवीन उत्पादन फलन प्राप्त होता है;
  3. अल्पकालीन उत्पादन फलन में फर्म सभी आगतों में परिवर्तन नहीं कर सकता है। निर्गत स्तर में परिवर्तन लाने के लिए फर्म केवल परिवर्ती आगत में परिवर्तन करता है जबकि स्थिर आगत स्थिर रहती है;
  4. दीर्घकालीन उत्पादन फलन में फर्म उत्पादन के सभी साधनों (कारकों) में परिवर्तन ला सकता है; एक फर्म निर्गत के विभिन्न स्तरों का उत्पादन करने के लिए, दीर्घकाल में दोनों कारकों ‘स्थिर एवं परिवर्ती’ में साथ-साथ परिवर्तन ला सकती है। अतः दीर्घकाल में कोई भी स्थिर आगत नहीं होती है;
  5. उत्पादन फलन का कार्य उत्पादन की भौतिक मात्रा तथा साधनों की भौतिक मात्रा के मध्य सम्बन्ध की व्याख्या करना है; 
  6. उत्पादन का सिद्धान्त उत्पादन के नियम की चर्चा करता है। कुशलतम तकनीक में से किसी एक विशेष तकनीक का चुनाव, कीमत पर निर्भर करता है न कि तकनीक पर। यहाँ पर आप को बता दें कि एक कुशलतम तकनीक विधि जरूरी नहीं है कि आर्थिक दृष्टि से भी कुशलतम हो;
  7. उत्पादन फलन स्थैतिक अर्थशास्त्र का विषय है क्योंकि यह (उत्पादन फलन) तकनीकी ज्ञान का स्तर, साधनों की कीमतों तथा समयावधि को निश्चित मानकर कार्य करता है।

उत्पादन फलन के प्रकार

उत्पादन फलन, उत्पाद की मात्रा तथा साधन की मात्रा के बीच एक विशेष सम्बन्ध को प्रदर्शित करता है। साधरणतया, उत्पादन फलन दो प्रकार के होते हैं-
  1. बढ़ता हुआ उत्पादन फलन, तथा
  2. घटता हुआ उत्पादन फलन

1. बढ़ता हुआ उत्पादन फलन

साधन की मात्रा के बढ़ने पर जब उत्पाद की की कुल मात्रा में भी वृद्धि होती है तो ऐसे उत्पादन फलन को  एक बढ़ता हुआ उत्पादन फलन कहा जाता है। बढ़ता हुआ उत्पादन फलन को तीन श्रेणी में बाँट सकते है -

(अ) बढ़ता हुआ उत्पादन फलन जिसमें एक चल साधन का सीमान्त प्रतिफल बढ़ता जाता है- ऐसे उत्पादन फलन में चल साधन या परिवर्ती आगत में प्रत्येक इकाई के लगाने से कुल उत्पादन में वृद्धि होती है तथा सीमान्त उत्पाद में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है। आगत की मात्रा तथा निर्गत की मात्रा में यह सम्बन्ध तब प्रकट होता है जब चल साधन के साथ प्रयोग किये जा रहे अचल या स्थिर साधन का पूर्ण क्षमता तक प्रयोग नहीं हुआ होता है इसलिए चल साधन में वृद्धि करने से स्थिर साधन की अप्रयुक्त क्षमता का प्रयोग होने लगता है फलस्वरूप बढ़ते हुए उत्पादन के साथ-साथ सीमान्त उत्पाद या सीमान्त प्रतिफल में भी वृद्धि होने लगती है। 

(ब) बढ़ता हुआ उत्पादन फलन, जिसमें एक चल साधन का सीमान्त प्रतिफल नियत/स्थिर रहता है- इस उत्पादन फलन में, परिवर्ती साधन या चल साधन की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई से प्राप्त होने वाली कुल उत्पादन में वृद्धि होती है परन्तु सीमान्त प्रतिफल नियत रहती है।

(स) बढ़ता हुआ हुआ उत्पादन फलन, जिसमें चल साधन का सीमान्त प्रतिफल घटता जाता है- इस प्रकार के उत्पादन फलन में कुल उत्पादन, एक परिवर्ती साधन के बढ़ने पर बढ़ता जाता है। परन्तु इसमें परिवर्ती/चल साधन की प्रत्येक इकाई की वृद्धि से कुल उत्पादन में होने वाली वृद्धि उत्तरोत्तर घटती जाती है। फलस्वरूप चल साधन की अतिरिक्त इकाई का सीमान्त प्रतिफल घटता जाता है। 

2. घटता हुआ उत्पादन फलन 

घटता हुआ उत्पादन फलन के अन्तर्गत चल साधन की मात्रा के बढ़ने पर, उत्पाद की कुल मात्रा में कमी आती है। फलस्वरूप चल साधन का सीमान्त प्रतिफल नकरात्मक होता है

सन्दर्भ -
  1. आर0 एन (2008), ‘‘कृषि अर्थशास्त्र. के मुख्य विषय’’ विशाल पब्लिशिंग कं0, जालन्धर, इण्डिया, पृ0 290
  2. जय प्रकाश, (2008), ‘‘कृषि अर्थशास्त्र,’’ साहित्य भवन पब्लिकेशन्स, आगरा, पृ0 105
  3. एन0 एल (1977) ‘‘भारतीय कृषि का अर्थतंत्र,’’ राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर पृ0 138

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