अवलोकन विधि क्या है? अवलोकन विधि के दोष

अवलोकन विधि के अन्तर्गत अवलोकनकर्ता दूसरों की मानसिक क्रियाओं का अध्ययन करता है। गुड तथा हेट (1964) के मतानुसार विज्ञान अवलोकन से प्रारम्भ होता है और अपने तथ्यों की पुष्टि के लिए अन्त में अवलोकन का ही सहारा लेता है। इस कथन से अवलोकन विधि की महत्वपूर्णता स्पष्ट होती है। 

यंग (1954) ने बताया है, कि अवलोकन विधि में अध्ययनकर्ता तथ्यों का अध्ययन अपनी आँखों से करता है। मोसर (1958) ने अवलोकन को वैज्ञानिक पूछताछ की सर्वश्रेष्ठ विधि कहा है। इस विवरण से स्पष्ट है, कि अवलोकनकर्ता अपनी आँखों का पूर्ण रूप से उपयोग करके प्रत्यक्ष अवलोकन में भाग लेता है। इस विधि से सामूहिक व्यवहार का अध्ययन कर व्यक्तिगत भिन्नता का मापन सम्भव है।

अवलोकनकर्ता उपयुक्त योजनाबद्ध तरीके से अवलोकन के आधार पर सामग्री एकत्रित करके प्रदत्तों की व्याख्या एवं उनका सामान्यीकरण कर सकता है।

अवलोकन विधि के प्रकार

1. सरल तथा अनियन्त्रित अवलोकन विधि - जब किसी घटना का अवलोकन प्राकृतिक परिस्थितियों में किया जाये और उन परिस्थितियों पर कोई दबाब न डाला जाय तो ऐसे अवलोकन को सरल तथा अनियन्त्रित अवलोकन कहते है।

अनियन्त्रित अवलोकन को सहभागी, असहभागी तथा अर्ध-सहभागी प्रकारों में बाँटा जा सकता है। सहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्ता को उस समूह का लगभग अभिन्न अंग बनना होता है, जिसका अध्ययन किया जाता है। असहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्ता को तटस्थ बनकर अवलोकन करना होता है। अर्ध-सहभागी अवलोकनकर्ता को सम्बन्धित समूह के समय न तो कठोरता के साथ आत्मसात् करना होता है और न ही वे तटस्थ रहने का ही प्रयास करता है। ऐसी स्थिति में उसकी भूमिका मध्यमार्गी होती है।

2. व्यवस्थित अथवा नियन्त्रित अवलोकन विधि - जब अवलोकनकर्ता स्वयं तथा घटना दोनों पर नियन्त्रण करके अध्ययन करें तो इस प्रकार का अवलोकन व्यवस्थित अथवा नियन्त्रित अवलोकन कहा जा सकता है।

नियन्त्रित अवलोकन एक क्रमबद्ध, व्यवस्थित तथा वस्तुनिष्ठ अध्ययन है। युंग (1956) के अनुसार नियन्त्रित अवलोकन एवं पूर्व निर्धारित योजनाओं के अनुसार सम्पन्न किया जाता है जिसके अन्तर्गत पर्याप्त प्रायोगिक प्रक्रिया भी सम्मिलित की जा सकती है।

अवलोकन विधि के दोष

अवलोकन विधि में भी कुछ दोषों की व्याख्या की गयी है जो निम्नलिखित है -

1. पक्षपातपूर्ण अवलोकन- अवलोकनकर्ता के द्वारा पक्षपात रहित व्यवहार का अवलोकन कर लिया जाए इस बात की सम्भावना बहुत कठिन है। प्रत्येक व्यक्ति की यह सामान्य प्रकृति होती है कि वह अपने मित्रों, सम्बन्धियों तथा ऐसे व्यक्ति जिनसे कुछ सम्पर्क स्थापित कर लेता है, आदि में दोषों का अवलोकन नहीं करता है। जो उक्त लिखित अवस्थाओं में नही आते उनके सामान्य गुण भी दोष के रूप में दिखायी देते हैं। रंग तथा जाति भेद के आधार पर उच्च जाति वाले निम्न जाति वालों को बुद्धि तथा कार्य कुशलता में हीन समझते हैं। इन सब बातों का कारण है अवलोकनकर्ता द्वारा पक्षपातपूर्ण अवलोकन करना। यदि अवलोकनकर्ता पूर्व विचार तथा अन्य भेदों को त्यागकर व्यवहार का अवलोकन करने में निष्पक्ष रूप का परिचय देता है तो अवलोकन से इस कठिनाई को दूर किया जा सकता है।

2. अप्रशिक्षित अवलोकनकर्ता- अवलोकन विधि में दूसरा दोष उस समय उत्पन्न होता है जब अवलोकन का कार्य अप्रशिक्षित व्यक्तियों के हाथ में होता है। यह स्पष्ट है कि यदि मनोवैज्ञानिक अप्रशिक्षित अवलोकनकर्ता के अवलोकन में विश्वास करके व्यवहार की व्याख्या अथवा सिद्धान्त प्रतिपादित करता है तो यह उसकी बहुत बडी भूल होगी और इस विधि का बहुत बडा दोष। इसका अर्थ यह है कि अवलोकनकर्ता को अपने पूर्व विचार तथा भावनाओं को त्यागकर वैज्ञानिक विधि से अवलोकन की प्रक्रिया को प्रयोग में लाना होगा।

3. अप्राकृतिक व्यवहार - अवलोकनविधि में पक्षपातपूर्ण अवलोकन तथा प्रशिक्षित अवलोकनकर्ता से ही तथाकथित कठिनाईयां उत्पन्न नहीं हो जाती वरन् जिसे अवलोकन का विषय बनाया जा रहा है उसके अप्राकृतिक व्यवहार के कारण भी दोष तथा कठिनाइयां उत्पन्न हो जाती है। मानव बुद्धिषील प्राणी है जिसका उपयोग मानव इस रूप में करता है कि वह सदैव अपने व्यवहार में बनावटीपूर्ण क्रियाएं करना चाहता है। इसी प्रकार के व्यवहार को अप्राकृतिक अथवा ढोंगपूर्ण व्यवहार कहते हैं।

4. अधिक समय की आवश्यकता - प्राकृतिक परिस्थितियों में अवलोकन का सबसे बडा दोष यह भी है कि अवलोकनकर्ता को व्यवहार का अध्ययन करने के लिए अधिक समय की आवश्यकता है। प्राकृतिक व्यवहार का अवलोकन अवलोकनकर्ता की इच्छा पर निर्भर नहीं करता है। उदाहरण के लिए प्राकृतिक परिस्थितियों में क्रोध का अध्ययन करने के लिए अवलोकनकर्ता को किसी बाहर के चैराहे पर महीनों प्रतीक्षा करनी पडेगी कि कब और किस समय दो राहगीरों में भिडन्त होने से किसी को क्रोध उत्पन्न हो और अवलोकनकर्ता उसका अध्ययन करें।

1 Comments

Previous Post Next Post