कविता शिक्षण की विधियाँ, कविता-शिक्षण की कौन-सी विधि अपनायी जाए ?

कविता को हिन्दी साहित्य का ही एक अंग माना जाता है । हिन्दी साहित्य में जितना महत्व गद्य शिक्षण को दिया जाता है उतना ही महत्व कविता शिक्षण को भी दिया जाता है। कविता मानव की भावनाओं को प्रस्तुत करने का सर्वोत्तम माध्यम है जो बात व्यक्ति गद्य के माध्यम से नहीं कह सकता, वह कविता के माध्यम से कह सकता है ।

कविता से तात्पर्य व परिभाषा

साहित्य का प्रमुख अंग गद्य तथा पद्य माना जाता है। पद्य के माध्यम से कवि अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति सहज में करता है । पद्य के अंतर्गत भावना, कल्पना तथा बुद्धि तीनों पक्षों का समावेश होता है । पद्य में भाव-तत्व प्रधान होता है । कल्पना तत्व के संबंध में कहा जाता है कि, ‘‘जहाँ न पहुंच रवि वहाँ पहुँचे कवि’’ । मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती है वही कविता है ।

श्री शम्भूनाथ के अनुसार - ‘‘मैं कविता को हृदय की बात हृदय तक पहुंचाने का माध्यम तथा साधन समझता हूँ ।’’

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार - ‘‘जब मनुष्य प्रकृति के विविध रूपों और व्यापारों से ऊँचा उठकर अपने योग-क्षेम, हानि-लाभ, सुख-दुख आदि को भूलकर अपनी पृथक सत्ता से छूटकर केवल अनुभूति मात्र रह जाता है, तब हम उसे मुक्त हृदय की इस मुक्ति साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं ।’’

कविता शिक्षण की विधियाँ

वर्तमान में सभी विद्यालयों में कविता-शिक्षण कराया जा रहा है । इसका स्वरूप अत्यन्त व्यापक है । छात्रों को कविताओं के माध्यम से आज सभी प्रकार की शिक्षा हो या फिर नैतिकता की भावना की शिक्षा हो । छात्रों को इन सभी से अवगत कराया जा रहा है । कविता-शिक्षण यदि इतना अधिक महत्वपूर्ण है तो इसको पढ़ाए जाने में विभिन्न विधियों को भी अपनाया जाना चाहिए इसके लिए निम्नलिखित विधियों को अपनाया जाता है:-
  1. समीक्षा-प्रणाली
  2. तुलना प्रणाली
  3. व्यास प्रणाली
  4. खण्डान्वय-प्रणाली
  5. व्याख्या-प्रणाली
  6. अर्थ-बोध-प्रणाली
  7. गीत तथा अभिनव प्रणाली
इस सभी प्रणालियों के माध्यम से कविता-शिक्षण को पूर्ण किया जाता है । इनका विस्तृत वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जा रहा है:-

क) समीक्षा प्रणाली - शिक्षक प्रश्नोत्तर के माध्यम से कवि की समीक्षा करता है । उसके पश्चात शिक्षक छात्रों को उस कवि के द्वारा रचित कविताओं की समीक्षा करने की ओर बल देता है । वह छात्रों को अन्य शिक्षक सामग्री की सहायता लेकर उस कवि तथा उसके द्वारा रचित कविताओं का अध्ययन करने की ओर बल देता है ।

ख) तुलनात्मक प्रणाली:- तुलनात्मक प्रणाली में भिन्न-भाषा कवि की तुलना सम भाषा कविता की तुलना तथा भाव-तुलना आदि सभी के द्वारा असाम्य एवं साम्य दोनों स्थितियों का वर्णन किया जाता है । दो समान एवं असमान कवियों के द्वारा रचित विभिन्न प्रकार की कविताओं की आपस में तुलना करके षिक्षक छात्रों को कविता का अध्ययन कर सकता है । यह अध्ययन छात्रों के लिए विषेष रूप से लाभदायक सिद्ध होता है ।

ग) व्यास प्रणाली:- उच्च श्रेणी की भावना प्रधान कविताओं के पढ़ाने के लिए व्यास प्रणाली का उपयोग किया जाता है, जिन कविताओं में भावना की अभिव्यक्ति बहुत उच्च श्रेणी में की जाती है उनके भावों को स्पष्ट करने के लिए व्यास प्रणाली का उपयोग किया जाना विशेष लाभदायक सिद्ध होता है । पद को भाषा एवं भाव दोनों की दृष्टि से ही परखा जाना इस प्रणाली की मुख्य विशेषता है । भाव के स्पष्टीकरण के लिए अनेक उदाहरणों, दृष्टांतों एवं अन्य सहायक कथाओं का सहारा लिया जाता है ताकि छात्रों को कविता में वर्णित भावों से भंली-भाॅंति परिचित कराया जा सके । इससे बालकों को विषय में रूचि उत्पन्न करने, उनके उत्साह को बढ़ाने तथा उनके मनोभावों को उजागर करने की ओर बल दिया जाता है । इस प्रणाली को विश्वविद्यालयों एवं माध्यमिक स्तर के छात्रों के लिए उपयोग में लाया जाता है । भावात्मक प्रधान कविताओं का स्पष्टीकरण करने के लिए व्यास प्रणाली का उपयोग किया जाता है ।

घ) खण्डान्वय प्रणाली:- इसको प्रश्नोत्तर प्रणाली भी कहते हैं । यह प्रणाली उन पदों के पढ़ाने के काम आती है, जिनमें विषेषण की भरमार हो, भावों की भीड़ हो, घटनाओं की घटा और एक-एक बात का अर्थ स्पष्ट किए बिना स्पष्टता न आती हो । इस प्रणाली का प्रयोग केवल वर्णनात्मक तथा ऐतिहासिक पद्यों के पढ़ाने में ही किया जाता है ।

ड़) व्याख्या प्रणाली:- व्याख्या प्रणाली में शिक्षक के द्वारा कविता के एक-एक पद को बेकार उसकी व्याख्या करके छात्रों के समक्ष रखा जाता है । इससे छात्र उस कविता से भंली-भाॅंति अवगत होने में सफल होते हैं । इस प्रकार की विधि प्रायः सभी कविताओं के अध्ययन करने के लिए लाभदायक सिद्ध होती है । इसमें छात्र अपने अध्यापक के माध्यम से सभी प्रकार के कठिन शब्दों की व्याख्या को भंली प्रकार से समझने में सक्षम होते है। शिक्षक समय-समय पर छात्रों को कविता शिक्षण में आने वाली विभिन्न समस्याओं से अवगत कराता रहता है । इस प्रणाली का प्रयोग वैसे तो सभी कक्षास्तर के लिए उपयुक्त होता है, परन्तु यदि इसका उपयोग उच्च एवं माध्यमिक स्तर के छात्रों के लिए किया जाए तो इससे विशेषतः लाभ की प्राप्ति होती है ।

च) अर्थ बोध प्रणाली:- शिक्षक के द्वारा इस प्रणाली के अंतर्गत कविता के संबंध में स्वयं ही अर्थ बताया जाता है । वह कविता में उपयोग होने वाले छंदों एवं दोहों का अर्थ-बोध कराता रहता है ताकि छात्रों को कविता को समझने में किसी प्रकार की कोई कठिनाई अनुभव न हो ।

छ) गीत तथा अभिनव प्रणाली:- गीत तथा अभिनव प्रणाली का उपयोग प्रारंभिक कक्षाओं के लिए किया जाना अधिक उपयुक्त होता है । इस स्तर के बालकों को गीतों के माध्यम से तथा अन्य अभिनय कराकर उन्हें कविता-शिक्षण कराया जा सकता है । यह देखा जाता है कि छोटे स्तर के बालकों का मानसिक स्तर भी उन्नत नहीं होता । अतः यदि उन्हें कविताओं का ज्ञान ताल बनाकर नहीं दिया जाए तो इससे उनके मस्तिष्क पर अन्य किसी भी तकनीक से प्रभाव नहीं डाला जा सकता ।

कविता की शिक्षण की विधियाँ

कविता पढ़ाने की अनेक विधियाँ प्रचलन में है। शिक्षक अपने शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए छात्रों के मानसिक एवं बौद्धिक स्तरानुरूप किसी भी प्रणाली को अपना सकता है। यह प्रणाली है-
  1. गीत प्रणाली 
  2. अभिनय प्रणाली 
  3. व्याख्या प्रणाली 
  4. शब्दार्थ
  5. खण्डान्वय प्रणाली
  6. व्यास प्रणाली
  7. तुलना प्रणाली
  8. समीक्षा प्रणाली
  9.  रसास्वादन प्रणाली
1. गीत प्रणाली - संगीत सभी को अच्छा लगता है। निर्झरों में कल-कल की ध्वनि से बहता जल, प्रकृति की सुरम्य एवं मनोरम, वादियों की गोद, मन्द-मन्द गति से चलने वाली समीर सभी को सहज आकर्षित करती है। बच्चे भी जन्म से गीत प्रिय होते हैं। अगर इन गीतों का प्रयोग शिक्षा में किया जाये तो शिक्षा सरल, सरस, सहज ग्राह्य, रूचिकर हो जाती है। शिक्षक कक्षा में गीत का सस्वर वाचन करता है तथा छात्र शिक्षक के वाचन के पीछे-पीछे उसे स्वर वाचन में लय, ताल गति-यति के साथ प्रस्तुत करते हैं।

यह प्रणाली छोटी कक्षाओं के लिए बड़ी ही आकर्षक एवं उपयोगी है। शिशु खेल-खेल में गा-गाकर बहुत सारी उपयोगी बातें सीख जाते हैं। अत: यह विधि मनोवैज्ञानिक है। लेकिन गीत सरल एवं आकर्षक होना चाहिए-
जैसे-
“मछली जल की रानी है,
जीवन उस का पानी है।
हाथ लगाओ डर जायेगी,
बाहर निकालो मर जायेगी।” 

यह बालोचित तुकबन्दी ही बालक को सहज आकर्षित करती है।

2. अभिनय प्रणाली  - इस प्रणाली में गीतों के साथ-साथ अभिनय भी किया जाता है। यह बालोचित गीत या तुकबन्दी अभिनय प्रधान होती है। जैसे-
राहुल - “माँ कह एक कहानी
यशोधरा - समझ लिया क्या बेटा तुने
मुझको अपनी नानी।”

इस गीत में राहुल एवं यशेधरा द्वारा कथित सामग्री का अभिनय प्रस्तुत करा-कर उसको छात्रों के प्रत्यक्ष रूप से दर्शाया जा सकता है।

अत: छोटी कक्षाओं में यह प्रणाली उपयोगी है। पर गीत सरल, आसान एवं अभिनय योग्य हो, तभी यह विधि प्रयुक्त की जा सकती है।

3. अर्थ कथन प्रणाली - आजकल विद्यालयों में इस प्रणाली का अधिक प्रचलन है, इसी प्रणाली के सहारे शिक्षक कविता का स्वयं वाचन करते हुए, स्वयं उनका अर्थ बताते हुए चलता है। इस प्रणाली में छात्र केवल श्रोता है। यह प्रणाली अर्थ तो समझा देती है, लेकिन भावानुभूति एवं रसानुभूति नहीं करवा पाती। जोकि कविता शिक्षण का मुख्य उद्देश्य है। अत: यह प्रणाली मनोवैज्ञानिक नहीं है।

4. व्याख्या प्रणाली - इस प्रणाली में अध्यापक स्वयं या छात्रों से कविता का सस्वर वाचन करवा लेता है। परन्तु शब्दार्थ बताते हुए, प्रासंगित कथाओं की चर्चा करते हुए, छन्द अलंकार आदि की चर्चा करता है। इस प्रणाली के माध्यम से शिक्षक छात्रों व कवि के बीच रागात्मक सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश करता है। यह प्रणाली उच्च माध्यमिक कक्षाओं के लिए उपयोगी है, छोटी कक्षाओं के लिए नहीं। इस प्रणाली में छात्र निष्क्रिय है, शिक्षक ही सक्रिय है। अत: यह प्रणाली मनोविज्ञान की तुलना पर खरी नहीं उतरती।

5. खण्डान्वय प्रणाली - यह प्रणाली महाकाव्यों और लम्बी कविताओं के लिए उपयोगी है। क्योंकि इस विधि में सम्पूर्ण पाठ का खण्डान्वय कर लिया जाता है। इस प्रणाली में शिक्षक ही सक्रिय है। इस प्रणाली का दूसरा नाम प्रश्नोत्तर प्रणाली भी है, इसमें प्रश्नोत्तर के माध्यम से छात्रों को पढ़ाया जाता है। परन्तु यह विधि मनोवैज्ञानिक नहीं है।

6. व्यास प्रणाली - यह प्रणाली व्याख्या प्रणाली का विस्तृत रूप है। कथावाचक (व्यास) जब कथा बाँचते हैं, जब भावों, विचारों, नीतियों को स्पष्ट करने के लिए मुख्य कथा के साथ-साथ कई (गौण कथा) अन्तर्कथाओं का विवरण प्रस्तुत करते हैं। अन्तर्कथाओं के उदाहरणों से, व्याख्याओं से कथा में नवजीवनी का संचार करते हैं। छात्रों के बौद्धिक स्तर, मानसिक स्तर अभिरूचि क्षमता को देखते हुए भी यह प्रणाली उच्च माध्यमिक कक्षाओं के लिए उपयोगी है।

7. तुलना प्रणाली -  इस विधि में शिक्षक पाठ्य-कविता की तुलना उसी भाव को व्यक्त करने वाली अन्य कविताओं के साथ करके पाठ्य-कविता के भावार्थों को स्पष्ट करने का प्रयास करता है। तुलना निम्न प्रकार से की जा सकती है- जैसे- राष्ट्रीय कवि, मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद निराला आदि कवि की कविताओं का तुलनात्मक अध्ययन करूणा एवं वेदना के लिए महादेवी वर्मा की ही रचनाओं का तुलनात्मक अध्ययन। 

व्यास विधि की तरह तुलना प्रणाली भी उपयोगी है परन्तु अध्यापक का ज्ञान गहन, गम्भीर एवं गहरा हो समान भावों वाली, भाषा-शैली वाली तत्सम्बन्धी अनेक पद्य रचनाएं कण्ठस्थ हो, वहीं न्याय कर सकता है।

8. समीक्षा प्रणाली -  यह प्रणाली उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं के छात्रों के लिए हितकारी है। उच्च श्रेणी तक पहुँचते-पहुँचते छात्रों का मानसिक एवं बौद्धिक विकास पर्याप्त रूप से हो चुका होता है साथ ही काव्य के तत्त्वों का ज्ञान भी वे ग्रहण कर चुके होते हैं। इस प्रणाली में काव्य के गुण-दोषों का विवेचना करके उनके यथार्थ को आँका जाता है।

इस प्रणाली में शिक्षक केवल सहायक का ही कार्य करता है, वह पुस्तकों के नाम, संदर्भ-ग्रंथों के नाम एवं कुछ तथ्यों से छात्रों को परिचित करा देते हैं। इस प्रणाली में तीन तथ्यों की समीक्षा की जाती है- भाषा की समीक्षा, काव्यगत भावों की समीक्षा, कविता पर पड़ने वाले प्रभावों की समीक्षा। यह प्रणाली मनोवैज्ञानिक है, क्योंकि छात्र इसमें स्वयं सक्रिय है।

9. रसास्वादन प्रणाली -  इस प्रणाली में शिक्षक का उद्देश्य छात्रों को कविता का अर्थ बलताना नहीं होता वरन् वह छात्रों को कविता का आनन्द लेने की क्षमता प्रदान करता है। शिक्षक कवि के परिचय, विशेष प्रसंग, प्रेरक स्थल, अति आवश्यक व्याख्या आदि की तरफ छात्रों का ध्यान आकृष्ट करते हुए छात्रों को रसानुभूति की प्रबल पे्ररणा देता है, वह छात्रों का कवि के साथ तादात्मय स्थापित करता है। यह विधि केवल बड़ी कक्षाओं में ही सम्भव है।

कौन सी शिक्षण प्रणाली किस स्तर पर अपनाए?

वैसे तो हमने साथ-साथ प्रत्येक शिक्षण प्रणाली की उपयोगिता-अनुपयोगिता स्पष्ट कर दी है। प्राथमिक स्तर की कक्षाओं में जहाँ बच्चों को बालोचित गीतों को रटाना होता है, वहां गीत एवं अभिनय प्रणाली दोनों का ही प्रयोग किया जाए। कक्षा चार से आठ तक अर्थ बोध एवं व्याख्या प्रणाली को अपनाये जाए। कक्षा नौ से बारह तक व्यास प्रणाली, प्रश्नोत्तर प्रणाली, तुलना प्रणाली, समीक्षा प्रणाली आदि छात्रों के मानसिक एवं बौद्धिक स्तर को ध्यान में रखकर पढ़ाई जाए साथ-साथ कविता में निहित विचारों एवं भावों का बोध कराया जाये तो फिर क्रमश: रसानुभूति सौन्दर्यानुभूति परमानन्दानुभूति की ओर बढ़ाना चाहिए। यदि कविता शिक्षण द्वारा हम बच्चों की रूचि और अभिवृत्तियों को सामाजिक आदर्शोनुकूल विकसित कर सके तो, कविता शिक्षण सार्थक समझिए।

कविता शिक्षण के सोपान

प्यारे छात्रों अभी आप ने कविता की शिक्षण-विधियों के बारे में जाना, साथ ही जरूरी हो जाता है कि कविता शिक्षण के लिए कौन-कौन से सोपान है। साहित्य की विधाएँ गद्य व पद्य शिक्षण के लिए निम्न सोपानों को अपनाया जाता है।

प्रस्तावना

कवि परिचय द्वारा इस प्रणाली में कवि का जीवन वृत्त बता दिया जाता है। साथ ही उन परिस्थितियों का उल्लेख किया जाता है जिससे कवि को कविता लिखने की प्रेरणा मिली हो।

1. पूर्व सूचना देकर-इस विधि में छात्रों को पहले ही सूचित कर दिया जाता है कि आज हम जिस कविता को पढेंगे उसमें अमुक रस एवं अलंकारों का निर्वाह हुआ है।

2. कविता के अनुकूल वातावरण उत्पन्न करके: कक्षा में अध्यापक चित्र, प्रश्नों आदि के द्वारा, प्राकृतिक दृश्य यथा झरनों के बहने की कल-कल ध्वनि, पर्वतों की विशालता आदि का चित्रण कक्षा में उपस्थित करके विषय को रोचक एवं ग्राह्य बना सकता है।

3. प्रश्नोत्तर द्वारा: अधिकांश अध्यापक तो प्रश्नोत्तर के माध्यम से बच्चों को कविता पढ़ने के लिए तैयार करते हैं।

4. सारांश प्रणाली: इस शिक्षण सोपान में अध्यापक कक्षा में सारांश को प्रसंग सहित बता देता है। कहीं-कहीं इस प्रणाली का प्रयोग करना आवश्यक हो जाता है। कुछ कविताएँ ऐसी होती हैं जिनके पढ़ने से पहले यदि कुछ न कहा जाए तो उन्हें समझने में कठिनाई होती है।

5. उसी कविता के द्वारा: कई बार उसी कविता के सस्वर वाचन से प्रस्तावना की जाती है

6. समानान्तर कविता के द्वारा: प्रस्तावना के लिए समानान्तर कविता की पंक्तियां भी प्रयुक्त की जा सकती है। ध्यातव्य है कि पढ़ी हुई कवितओं की पंक्तियाँ ही सुनाई जाये।

    उद्देश्य कथन

    प्रस्तावना के माध्यम से मूल विषय की तरफ आकर्षित करने के पश्चात् अध्यापक अपने उद्देश्य की घोषणा करता है। अत: अध्यापक को रूचि पूर्ण तरीके से उद्देश्य की घोषणा करनी चाहिए।

    प्रस्तुति:- कविता शिक्षण का अगला सोपान ‘प्रस्तुतीकरण’ है। इसके अन्तर्गत मूल शिक्षण-सामग्री पढ़ाई जाती है।

    1. आदर्श पठन: कविता शिक्षण का महत्त्वपूर्ण भाग आदर्श पठन है। कक्षा चाहे कोई भी हो, शिक्षक कविता सस्वर वाचन गति-यति, आरोह-अवरोह को ध्यान में रखते हुए करें।

    2. अनुकरण वाचन (पठन): शिक्षक के आदर्श वाचन के बाद छात्रों से अनुकरण वाचन करवाया जाये। छात्रों का उच्चारण सम्बन्धी संशोधन भी कविता पाठ के बाद यथा सम्भव छात्रों की सहायता से कराया जाये।

    3. शब्दार्थ कथन एवं विचार विश्लेषण: कविता में आये कठिन शब्दार्थ बताते हुए शिक्षक प्रयत्नशील रहता है कि उन्हीं शब्दों के अर्थों को समझाया जाये जो कविता के भाव एवं सौन्दर्य को निखारते हो। कविता को अच्छी प्रकार से समझाने के लिए विचार-विश्लेषण या प्रश्नोत्तर आमंत्रित भी किए जाते है।

    4. सौन्दर्यानुभूति: कविता आनन्दानुभूति का विषय है। साथ ही वह ज्ञानवर्द्धन का विषय भी है। यदि कविता-शिक्षण से छात्रों को आनन्द की अनुभूति होती है, तो उसे सफल मानना चाहिए। आनन्दानुभूति के लिए अर्थानुभूति एवं भावानुभूति आवश्यक है, क्योंकि भाव ही कविता की आत्मा है। अर्थानुभूति और भावानुभूति के अभाव में कविता के संगीत पक्ष का आनन्द तो लिया जा सकता है परन्तु उसकी आत्मा अर्थ अथवा भाव का नहीं।पर कविता के भाव पक्ष की पूर्ण अनुभूति तब तक नहीं की जा सकती, जब तक उसके भाव स्पष्ट करने वाले कला-पक्ष की अनुभूति न की जा सके। कविता के कला-पक्ष में शब्द योजना (प्रतीकात्मक, ध्वन्यात्मक, लाक्षणिक) शैली (छन्द, अलंकार) और कल्पना (प्रस्तुत-अप्रस्तुत, मूर्त-अमूर्त एवं जड़-चेतन) आदि की मुख्य रूप से व्याख्या होनी चाहिए।

    5. द्वितीय आदर्श पठन: कविता के अर्थ एवं भाव विश्लेषण के पश्चात् उन्हें पूर्ण रसास्वादन कराने के लिए शिक्षक को भावानुसार सस्वर पठन करना चाहिए।

    6. पुन: अनुकरण वाचन: यह जानने के लिए कि छात्रों ने कविता के सौन्दर्य को कहाँ तक ग्रहण किया है, छात्रों से अनुकरण पठन करवाना चाहिए।

      अर्थग्रहण एवं सौन्दर्य बोध परीक्षण

      शिक्षक को छोटे-छोटे प्रश्नोत्तर के माध्यम से यह पता लगा लेना चाहिए कि छात्रों ने कविता के अर्थ, भाव व सौन्दर्य को कहाँ तक ग्रहण किया है और वे कविता की व्याख्या करने में कहाँ तक समर्थ है।

      रचनात्मक कार्य

      कक्षा में काव्यात्मक वातावरण की अक्षुण्णता स्थिर व बनाये रखने के लिए अपने शिक्षण की समाप्ति पर अध्यापक बच्चों से कविता के मार्मिक स्थलों या कविता से सम्बन्धित भाव की अन्य कविताओं को कण्ठस्थ करने के लिए कह सकता है।

      कविता में अभिरूचि जागृत करना

      प्यारे छात्रों, किसी कार्य करने के लिए, उसके अच्छे परिणाम के लिए रूचि का होना अनिवार्य है। अत: हमारे लिए यह आवश्यक हो जाता है कि बच्चों की काव्य में रूचि उत्पé करने के लिए हम किन-किन साधनों को अपना सकते हैं। कविता का मानव-मानव मन व हृदय पर सीधा प्रभाव पड़ता है, वह मानव-मन को झकृंत करती है, अपनी संगीतात्मकता के कारण निम्न साधनों से हम कविता में छात्रों की रूचि जागृत कर सकते हैं।

      1. प्रभावशाली पठन: कविता श्रव्य-काव्य है, जितना आनन्द कविता का श्रवण साधन से किया जा सकता है, उतना किसी अन्य साधन से नहीं बशर्ते कविता का प्रभावशाली पठन किया जाए। अध्यापक का कण्ठ भी पठन के उपयुक्त हो तो सोने में सुहागा है। प्रभावशाली एवं सस्वर पठन से छात्रों की काव्य में अभिरूचि जागृत होती है।

      2. कविता कंठस्थ करना: अध्यापकों को चाहिए कि वे छात्रों को अधिक से अधिक कविताएँ कंठस्थ करने के लिए प्रेरित करें। बच्चे कंठस्थ कविताओं के सहारे अपनी बात को प्रभावशाली ढ़ंग से कहने में सफल होते हैं, तो उन्हें प्रसéता होती है, और उन्हें अधिक कविताएं कंठस्थ करने के लिए प्रेरणा मिलती है।

      3. कविता संग्रह: बच्चों की कविता में रूचि जागृत करने का अन्य उपाय है कविताओं का संग्रह कराना। बच्चों में कविता संग्रह की भावना पैदा होगी तभी साहित्य से जुड़ी सामाजिक, ऐतिहासिक, पौराणिक व नैतिकता के बारे में सीख सकेंगे।

      4. कवि जयन्ती: हिन्दी अध्यापक को चाहिए कि वह अपने विद्यालय कार्यक्रमों में कवि जयन्ती का आयोजन कर कवि के जीवन पर प्रकाश डाल कर साहित्य से बच्चों को रूबरू करवा सकता है।

      5. कवि दरबार: अतीत को वर्तमान में उपस्थित करने का तथा छात्रों का कविता में रूझान पैदा करने की यह अच्छी विधि है, कि विद्यालय में कवि दरबार आयोजित किये जाए। छात्र किसी युग-विशेष के कवियों की वेशभूषा से सुसज्जित होकर अभिनय के साथ उनकी रचनाओं को पढ़कर सुनाये।

      5. कवि समादर: समय-समय पर आस-पास के कवियों को आमंत्रित करके उनका आदर करना कविता में रूचि पैदा करने का एक अन्य तरीका है।

      6. कवि गोष्ठी: स्कूलों में साहित्य-परिषदों द्वारा कवि गोष्ठियों का आयोजन किया जाए। इसमें छात्र कवियों की जीवनी एवं उनकी विशेषता का ही वर्णन करें।

      7. कवि सम्मेलन: कवि सम्मेलनों का आयोजन भी कविता में रूचि जागृत करने में सफल होते हैं। इन कवि सम्मेलनों में हम नगर विशेष के कवि बुलाए, जिले के कवि बुलाए, प्रांत के कवि बुलाए। यह विद्यालय पर निर्भर करता है। 
      8. कविता प्रतियोगिता: कविता में रूचि जागृत करने का यह अच्छा माध्यम है। विद्यालय में साहित्यिक कार्यक्रमों के तहत कविता प्रतियोगिता आयोजित की जा सकती है। यह प्रतियोगिताएं निम्न प्रकार से आयोजित की जा सकती है। 1. निश्चित विषय पर कविता पठन 2. अन्त्याक्षरी 3.सुभाषित प्रतियोगिता

      संदर्भ -

      1. बी.एल. शर्मा- हिन्दी शिक्षण - आर. लाल बुक डिपो- 2009
      2. डाॅ. शमशकल पाण्डेय- हिन्दी शिक्षण- अग्रवाल पब्लिकेशन- 2012
      3. डाॅ. एस.के. त्यागी - हिन्दी भाषा शिक्षण- अग्रवाल पब्लिकेशन आगरा-2-2009

      2 Comments

      1. Yaha pr topic se Judi sari jankariya acche se de rakhi he par likhne me kai jagah mistake aai he..... Plzz use edit kR de taki aapka ye blog... Sabke liye helpful Ho sake....

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      2. बाहोत खूब काव्य प्रणाली को समझाया है

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