संधि किसे कहते हैं? संधि विच्छेद, प्रकार, परिभाषा उदाहरण

हम कई बार बोलते समय एक या दो शब्द मिलाकर ही बोल देते हैं जैसे औरब (और + अब), दयानन्द (दया और आनन्द), अत्यधिक (अति + अधिक), इस प्रकार के मेल को संधि कहते हैं। दो शब्द जब पास-पास होते हैं तो उच्चारण की सुविधा के लिए पहले शब्द के अन्त वाले और दूसरे शब्द के शुरू वाले वर्णों में मेल होता है तो इसके मेल से विकार उत्पन्न होता है। कहीं-कहीं दोनों वर्णों का स्थान तीसरा वर्ण ले लेता है।

संधि विच्छेद किसे कहते हैं 

संधि दो शब्दों से मिलकर बना है-सम् + धि। जिसका अर्थ होता है ‘मिलना‘। जब दो शब्द मिलते हैं, तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं, उसे संधि कहते हैं। अर्थात संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग करके पहले की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है। अर्थात, जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा शब्द बनाते हैं, तब जो परिवर्तन होता है, उसे संधि कहते हैं।

उदाहरण- हिमालय = हिम + आलय, सत् + आनंद = सदानंद।

संधि का अर्थ

दो वर्णों या ध्वनियों के संयोग से होने वाले विकार को संधि कहते हैं। संधि करते समय कभी.कभी एक अक्षर में और कभी.कभी दोनों अक्षरों में परिवर्तन होता है। इस संधि पद्धति द्वारा शब्द रचना भी होती है। जैसे सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र, सत + आनन्द = सदानन्द, विद्या + आलय = विद्यालय, इस प्रकार के मेल को संधि कहते हैं।

संधि के प्रकार

संधि 3  प्रकार की होती हैं – स्वर संधि, व्यंजन संधि तथा विसर्ग संधि। 
संधि के प्रकार

(1) स्वर संधि

जब स्वर के साथ स्वर का मेल होता है, तब जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। हिंदी में स्वरों की संख्या ग्यारह होती है। बाकी के अक्षर व्यंजन होते हैं। जब दो स्वर मिलते हैं, तब उससे जो तीसरा स्वर बनता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। उदाहरणार्थ -

विद्या + आलय = विद्यालय (आ + आ = आ)

स्वर संधि पांच प्रकार की होती हैं-
  1. दीर्घ संधि
  2. गुण संधि
  3. वृद्धि संधि
  4. यण संधि
  5. अयादि संधि।
(क) दीर्घ संधि- जब (अ, आ) के साथ (अ, आ) हो तो ‘आ‘ बनता है, जब (इ, ई) के साथ (इ, ई) हो तो ‘ई‘ बनता है, जब (उ, ऊ) के साथ (उ, ऊ) हो तो ‘ऊ‘ बनता है। अर्थात सूत्र- अकः सवर्ण दीर्घः- मतलब अक् प्रत्याहार के बाद अगर सवर्ण हो तो दानों मिलकर दीर्घ बनते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो जब दो सजातीय स्वर आसपास आते
हैं, तब जो स्वर बनता है, उसे सजातीय दीर्घ स्वर कहते हैं। इसी को स्वर संधि की दीर्घ संधि कहते हैं। इसे ह्रस्व संधि भी कहते हैं। उदाहरण- 

धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
रवि + इंद्र = रविन्द्र
गिरी + ईश = गिरीश
मुनि + ईश =मुनीश
मुनि + इंद्र = मुनींद्र
भानु + उदय = भानूदय
वधू + ऊर्जा = वधूर्जा
विधु + उदय = विधूदय
भू + उर्जित = भूर्जित।

 

(ख) गुण संधि- जब (अ, आ) के साथ (इ, ई) हो तो ‘ए‘ बनता है, जब (अ, आ) के साथ (उ, ऊ) हो तो ‘ओ‘ बनता है, जब (अ, आ) के साथ (ऋ) हो तो ‘अर‘ बनता है। इसे गुण संधि कहते हैं। उदाहरण- 

नर + इंद्र = नरेंद्र
सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश
भारत + इंदु = भारतेन्दु
देव + ऋषि = देवर्षि
सर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण

(ग) वृद्धि संधि- जब (अ, आ) के साथ (ए, ऐ) हो तो ‘ऐ‘ बनता है और जब (अ, आ) के साथ (ओ, औ) हो तो ‘औ‘ बनता है। इसे वृद्धि संधि कहते हैं। उदाहरण- 

मत + एकता = मतैकता
एक + एक = एकैक
धन + एषणा = धनैषणा
सदा + एव = सदैव
महा + ओज = महौज

(घ) यण संधि- जब (इ, ई) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘य‘ बन जाता है, जब (उ, ऊ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘व्‘ बन जाता है, जब (ऋ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘र‘ बन जाता है। यण संधि के तीन प्रकार के संधि युक्त पद होते हैं- (1) य से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए। (2) व् से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए। (3) शब्द में त्र होना चाहिए। 

यण स्वर संधि में एक शर्त भी दी गयी है कि य और त्र में स्वर होना चाहिए और उसी से बने हुए शुद्ध व सार्थक स्वर को + के बाद लिखें। इसे यण संधि कहते हैं। उदाहरण- 

इति + आदि = इत्यादि
परि + आवरण = पर्यावरण
अनु + अय = अन्वय
सु + आगत = स्वागत
अभि + आगत = अभ्यागत

(च) अयादि संधि- जब (ए, ऐ, ओ, औ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ए - अय‘ में, ‘ऐ - आय‘ में, ‘ओ - अव‘ में, ‘औ - आव‘ में बदल जाता है। य, व् से पहले व्यंजन पर अ, आ की मात्रा हो तो अयादि संधि हो सकती है, लेकिन और कोई विच्छेद न निकलता हो तो _ के बाद वाले भाग को वैसा का वैसा लिखना होगा। इसे अयादि संधि कहते हैं। उदाहरण- 

ने + अन = नयन
नौ + इक = नाविक
भो + अन = भवन
पो + इत्र = पवित्र

 

(2) व्यंजन संधि

दो व्यंजनों के परस्पर मेल किसी स्वर के साथ मिलने पर जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहा जाता है। जैसे -

    तत् + अनुसार = तदनुसार
    जगत् + अंबा = जगदंबा
    दिक् + अंबर = दिगंबर
    स्व + छंद = स्वछंद


व्यंजन संधि के 13 नियम होते हैं-

(1) जब किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मिलन किसी वर्ग के तीसरे या चैथे वर्ण से या य्, र्, ल्, व्, ह से या किसी स्वर से हो जाये तो क् को ग्, च् को ज्, ट् को ड्, त् को द्, और प् को ब् में बदल दिया जाता है। अगर स्वर मिलता है तो जो स्वर की मात्रा होगी, वह हलन्त वर्ण में लग जाएगी, लेकिन अगर व्यंजन का मिलन होता है, तो वे हलन्त ही रहेंगे। उदाहरण- 

क् के ग् में बदलने के- 
दिक् + अम्बर = दिगम्बर 
दिक् + गज = दिग्गज 
वाक् + ईश = वागीश
च् के ज् में बदलने के-
अच् + अन्त = अजन्त
अच् + आदि =अजादि
ट् के ड् में बदलने के-
षट् + आनन = षडानन
षट् + यन्त्र = षड्यन्त्र
षट् + दर्शन = षड्दर्शन
षट् + विकार = षड्विकार
षट् + अंग = षडंग
त् के द् में बदलने के-
तत् + उपरान्त = तदुपरान्त
सत् + आशय = सदाशय
तत् + अनन्तर = तदनन्तर
उत् + घाटन = उद्घाटन
जगत् + अम्बा = जगदम्बा
प् के ब् में बदलने के-
अप् + द = अब्द
अप् + ज = अब्ज 

 

(2) यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मिलन न या म वर्ण (ङ, ञ, ज, ण, न, म) के साथ हो, तो क् को ङ्, च् को ज्, ट् को ण्, त् को न्, तथा प् को म् में बदल दिया जाता है। उदाहरण:- 

क् के ङ् में बदलने के-
वाक् + मय = वाङ्मय
दिक् + मण्डल = दिङ्मण्डल
प्राक् + मुख = प्राङ्मुख
ट् के ण् में बदलने के-
षट् + मास = षण्मास
षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
षट् + मुख = षण्मुख
त् के न् में बदलने के-
उत् + नति = उन्नति
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
उत् + मूलन = उन्मूलन
प् के म् में बदलने के-
अप् + मय = अम्मय 

(3) जब त् का मिलन ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व से या किसी स्वर से हो, तो द् बन जाता है। म के साथ क से म तक के किसी भी वर्ण के मिलन पर ‘म‘ की जगह पर मिलन वाले वर्ण का अंतिम नासिक वर्ण बन जायेगा। उदाहरण- 

म् + क ख ग घ ङ के उदाहरण-
सम् + कल्प = संकल्प
सम् + ख्या = संख्या
सम् + गम = संगम
शम् + कर = शंकर
म् + च, छ, ज, झ, ञ के-
सम् + चय = संचय
किम् + चित् = किंचित
सम् + जीवन = संजीवन
म् + ट, ठ, ड, ढ, ण के-
दम् + ड = दण्ड/दंड
खम् + ड = खण्ड/खंड
म् + त, थ, द, ध, न के-
सम् + तोष = सन्तोष/संतोष
किम् + नर = किन्नर
सम् + देह = सन्देह
म् + प, फ, ब, भ, म के-
सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण/संपूर्ण
सम् + भव = सम्भव/संभव
त् + ग, घ, ध, द, ब, भ, य, र, व् के-
सत् + भावना = सद्भावना
जगत् + ईश =जगदीश
भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति
तत् + रूप = तद्रूप
सत् + धर्म = सद्धर्म 

(4) त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् बन जाता है। म् के साथ य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से किसी भी वर्ण का मिलन होने पर ‘म्’ की जगह पर अनुस्वार ही लगता है। उदाहरण- 

म + य, र, ल, व्, श, ष, स, ह के उदाहरण-
सम् + रचना = संरचना
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + वत् = संवत्
सम् + शय = संशय
त् + च, ज, झ, ट, ड, ल के उदाहरण-
उत् + चारण = उच्चारण
सत् + जन = सज्जन
उत् + झटिका = उज्झटिका
तत् + टीका =तट्टीका
उत् + डयन = उड्डयन
उत् +लास = उल्लास 

(5) जब त् का मिलन अगर श् से हो तो त् को च् और श् को छ् में बदल दिया जाता है। जब त् या द् के साथ च या छ का मिलन होता है तो त् या द् की जगह पर च् बन जाता है। उदाहरण- 

उत् + चारण = उच्चारण
शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
उत् + छिन्न = उच्छिन्न
त् + श् के-
उत् + श्वास = उच्छ्वास
उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र 

(6) जब त् का मिलन ह् से हो तो त् को द् और ह् को ध् में बदल दिया जाता है। त् या द् के साथ ज या झ का मिलन होता है, तब त् या द् की जगह पर ज् बन जाता है। उदाहरण- 

सत् + जन = सज्जन
जगत् + जीवन = जगज्जीवन
वृहत् + झंकार = वृहज्झंकार
त् + ह के-
उत् + हार = उद्धार
उत् + हरण = उद्धरण
तत् + हित = तद्धित 

(7) स्वर के बाद अगर छ् वर्ण आ जाए, तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। त् या द् के साथ ट या ठ का मिलन होने पर त् या द् की जगह पर ट् बन जाता है। त् या द् के साथ ‘ड’ या ढ का मिलन होने पर त् या द् की जगह पर ‘ड्’ बन जाता है। उदाहरण- 

तत् + टीका = तट्टीका
वृहत् + टीका = वृहट्टीका
भवत् + डमरू = भवड्डमरू
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, + छ के-
स्व + छंद = स्वच्छंद
आ + छादन =आच्छादन
संधि + छेद = संधिच्छेद
अनु + छेद =अनुच्छेद 

(8) अगर म् के बाद क् से लेकर म् तक कोई व्यंजन हो, तो म् अनुस्वार में बदल जाता है। त् या द् के साथ जब ल का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ‘ल्’ बन जाता है। उदाहरण- 

उत् + लास = उल्लास
तत् + लीन = तल्लीन
विद्युत् + लेखा = विद्युल्लेखा
म् + च्, क, त, ब, प के-
किम् + चित = किंचित
किम् + कर = किंकर
सम् + कल्प = संकल्प
सम् + चय = संचय
सम + तोष = संतोष
सम् + बंध = संबंध
सम् + पूर्ण = संपूर्ण 

(9) म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है। त् या द् के साथ ‘ह’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर द् तथा ह की जगह पर ध बन जाता है। उदाहरण- 

उत् + हार = उद्धार
उत् + हृत = उद्धृत
पद् + हति = पद्धति
म् + म के-
सम् + मति = सम्मति
सम् + मान = सम्मान 

(10) म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन आने पर म् का अनुस्वार हो जाता है। ‘त् या द्’ के साथ ‘श’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर ‘च्’ तथा ‘श’ की जगह पर ‘छ’ बन जाता है। उदाहरण -

उत् + ष्वास = उच्छ्वास
उत् + शृंखल = उच्छृंखल
शरत् + शशि = शरच्छशि
म् + यए रए व्ए शए लए सए के-
सम् + योग = संयोग
सम् + रक्षण = संरक्षण
सम् + विधान = संविधान
सम् + शय = संशय
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + सार = संसार 

(11) ऋए र्ए ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता। किसी भी स्वर के साथ 'छ' के मिलन पर स्वर तथा 'छ' के बीच 'च' आ जाता है। उदाहरण -

आ + छादन = आच्छादन
अनु + छेद = अनुच्छेद
शाला + छादन = शालाच्छादन
स्व + छन्द = स्वच्छन्द
र् + नए म के-
परि + नाम = परिणाम
प्र + मान = प्रमाण 

(12) स् से पहले अए आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए, तो स् को ष बना दिया जाता है। उदाहरण -

वि + सम = विषम
अभि + सिक्त = अभिषिक्त
अनु + संग = अनुषंग
भ् + स् के-
अभि + सेक = अभिषेक
नि + सिद्ध = निषिद्ध
वि + सम = विषम 

(13) यदि किसी शब्द में कही भी ऋ, र या ष हो एवं उसके साथ मिलने वाले शब्द में कहीं भी 'न' हो तथा उन दोनों के बीच कोई भी स्वर कए खए गए घए पए फए बए भए मए यए रए लए व में से कोई भी वर्ण होए तो सन्धि होने पर 'न' के स्थान पर 'ण' हो जाता है। जब द् के साथ क, ख, त, थ, प, फ, श, ष, स, ह का मिलन होता है, तब द की जगह पर त् बन जाता है। उदाहरण-

राम + अयन = रामायण
परि + नाम = परिणाम
नार + अयन = नारायण
संसद् + सदस्य = संसत्सदस्य
तद् + पर = तत्पर
सद् + कार = सत्कार

(3) विसर्ग संधि

जब विसर्ग के बाद किसी स्वर या व्यंजन का मेल होता है तो उसे विसर्ग संधि कहते है। जैसे -

मनः + योग = मनोयोग
दु: + उपयोग = दुरूपयोग
आशी: + वाद = आशीर्वाद
दु: + चरित्र = दुष्चरित्र
नि: + संतान = निस्संतान
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
निः + अक्षर = निरक्षर
निः + पाप =निष्पाप

 

विसर्ग संधि के 10 नियम होते हैं-

(1) विसर्ग के साथ च या छ के मिलन से विसर्ग के जगह पर ‘श्’ बन जाता है। विसर्ग के पहले अगर ‘अ’ और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चैथे, पांचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ‘ओ‘ हो जाता है। उदाहरण- 

मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
अधः + गति = अधोगति
मनः + बल = मनोबल
निः + चय = निश्चय
दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
ज्योतिः + चक्र = ज्योतिश्चक्र
निः + छल = निश्छल
विच्छेद-
तपश्चर्या = तपः + चर्या
अन्तश्चेतना = अन्तः + चेतना
हरिश्चन्द्र = हरिः + चन्द्र
अन्तश्चक्षु = अन्तः + चक्षु

 

(2) विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में भी कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पांचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग कार र्या  हो जाता है। विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर भी ‘श्’ बन जाता है। उदाहरण- 


दुः + शासन = दुश्शासन
यशः + शरीर = यशश्शरीर
निः + शुल्क = निश्शुल्क 

विच्छेद-
निश्वास = निः + ष्वास
चतुश्श्लोकी = चतुः +  श्लोकी
निश्शंक = निः +  शंक
निः +  आहार = निराहार
निः +  आशा = निराशा
निः +  धन = निर्धन 

 

(3) विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है। विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जाता है। उदाहरण-


धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
चतुः + टीका = चतुष्टीका
चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि
निः + चल = निश्चल
निः + छल = निश्छल
दुः + शासन = दुश्शासन

 

(4) विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क, ख, प, फ में से कोई भी हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जायेगा। उदाहरण- 


निः + कलंक = निष्कलंक
दुः + कर = दुष्कर
आविः + कार = आविष्कार
चतुः + पथ = चतुष्पथ
निः + फल = निष्फल
विच्छेद-
निष्काम = निः + काम
निष्प्रयोजन = निः + प्रयोजन
बहिष्कार = बहिः + कार
निष्कपट = निः + कपट

 

(5) विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष हो जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद क, ख, प, फ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग भी ज्यों का त्यों बना रहेगा। उदाहरण- 


अधः + पतन = अधःपतन
प्रातः + काल = प्रातःकाल
अन्तः + पुर = अन्तःपुर
वयः + क्रम = वयःक्रम
विच्छेद-
रजःकण = रजः + कण
तपःपूत = तपः + पूत
पयःपान = पयः + पान
अन्तःकरण = अन्तः + करण
अपवाद-
भाः + कर = भास्कर
नमः + कार = नमस्कार
पुरः + कार = पुरस्कार
श्रेयः + कर = श्रेयस्कर
बृहः + पति = बृहस्पति
पुरः + कृत = पुरस्कृत
तिरः + कार = तिरस्कार
निः + कलंक = निष्कलंक
चतुः + पाद = चतुष्पाद
निः + फल = निष्फल

(6) विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। विसर्ग के साथ त या थ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जायेगा। उदाहरण- 

अन्तः + तल = अन्तस्तल
निः + ताप = निस्ताप
दुः + तर = दुस्तर
निः + तारण = निस्तारण
विच्छेद-
निस्तेज = निः + तेज
नमस्ते = नमः + ते
मनस्ताप = मनः + ताप
बहिस्थल = बहिः + थल
निः + रोग = निरोग
निः + रस = नीरस

(7) विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। विसर्ग के साथ ‘स’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जाता है। उदाहरण- 

निः + सन्देह = निस्सन्देह
दुः + साहस = दुस्साहस
निः + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
दुः + स्वप्न = दुस्स्वप्न
विच्छेद-
निस्संतान = निः + संतान
दुस्साध्य = दुः + साध्य
मनस्संताप = मनः + संताप
पुनरस्मरण = पुनः + स्मरण
अंतः + करण = अंतःकरण

(8) यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘इ’ व ‘उ’ का स्वर हो, तथा विसर्ग के बाद ‘र’ हो, तो सन्धि होने पर विसर्ग का तो लोप हो जायेगा, साथ ही ‘इ’ व ‘उ’ की मात्रा ‘ई’ व ‘ऊ’ की हो जायेगी। 

उदाहरण- निः + रस = नीरस
निः + रव = नीरव
निः + रोग = नीरोग
दुः + राज = दूराज
विच्छेद-
नीरज = निः + रज
नीरन्द्र = निः + रन्द्र
चक्षूरोग = चक्षुः + रोग
दूरम्य = दुः + रम्य


(9) विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो, तथा विसर्ग के साथ अ के अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर विसर्ग का लोप हो जायेगा तथा अन्य कोई परिवर्तन नहीं होगा। उदाहरण- 


अतः + एव = अतएव
मनः + उच्छेद = मनउच्छेद
पयः + आदि = पयआदि
ततः + एव = ततएव

 

(10) विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ, ग, घ, ड॰, ´, झ, ज, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह में से किसी भी वर्ण के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ बन जायेगा। उदाहरण- 

मनः + अभिलाषा = मनोभिलाषा
सरः + ज = सरोज
वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध
यशः + धरा = यशोधरा
मनः + योग = मनोयोग
अधः + भाग = अधोभाग
तपः + बल = तपोबल
मनः + रंजन = मनोरंजन
विच्छेद-
मनोनुकूल = मनः + अनुकूल
मनोहर = मनः + हर
तपोभूमि = तपः + भूमि
पुरोहित = पुरः + हित
यशोदा = यशः + दा
अधोवस्त्र = अधः + वस्त्र
अपवाद-
पुनः + अवलोकन = पुनरवलोकन
पुनः + ईक्षण = पुनरीक्षण
पुनः + उद्धार = पुनरुद्धार
पुनः + निर्माण = पुनर्निर्माण
अन्तः + द्वन्द्व = अन्तद्र्वन्द्व
अन्तः + देशीय = अन्तर्देशीय
अन्तः + यामी = अन्तर्यामी

संदर्भ -

  1. अनुराधा (2013), व्याकरण वाटिका, विकास पब्लिषिंग हाउस प्रा.लि. न्यू दिल्ली।
  2. जीत, भाई योगेन्द्र (2008), हिन्दी भाषा षिक्षण, अग्रवाल पब्लिकेषन, आगरा।
  3. लाल, रमन बिहारी लाल, हिन्दी शिक्षण, रस्तोगी पब्लिकेषन्स, मेरठ।
  4. यादव, सियाराम (2016) पाठ्य क्रम एवं भाषा विनोद पुस्तक मन्दिर, आगरा।
  5. कौशिक, जयनारायण (1990), हिन्दी शिक्षण, हरियाणा साहित्य अकादमी, चण्डीगढ़।

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