वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत एवं उनका उपयोग

आधुनिक जीवन में जब ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों से अपेक्षित ऊर्जा का समायोजन क्षीण होने लगा तो मनुष्य की धनात्मक ऊर्जा ने उप वैकल्पिक ऋण ऊर्जा संचरित स्रोतों की ओर ध्यान दिया जिनसे कार्यकरणीय ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इन्हें वैकल्पिक ऊर्जा के नाम से जाना जाता है। इनकी प्रमुख विशेषता है, इसका कभी क्षय न होना।

सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय एवं लहरीय ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, समुद्री ताप ऊर्जा, बायोगैस तथा बायेामास, वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के नाम से जाने जाते हैं। विज्ञान ने वैकल्पिक ऊर्जा को उपलब्ध कराने का कार्य तीव्रता से कर दिया है। पवन चक्कियों, बायो गैस एवं सौर ऊर्जा संयन्त्रों की स्थापना और ऊर्जा कार्यों के विकास कार्य किये जा रहे है। भारत में सौर ऊर्जा के विकास की भारी सद्भावनाएं है। पवन चक्कियों की स्थानीय क्षमता की दृष्टि से भारत का विश्व में पाँचवां स्थान है।

सौर ऊर्जा

सामान्यत और प्रत्यक्षत इस तथ्य से ऐसा कौन व्यक्ति है जो परिचित नहीं होगा कि पृथ्वी और इसका समस्त वायुमण्डल सूर्य से ही ऊर्जा ग्रहण करता है। सूर्य का द्रव्यमान 19891030 किलोग्राम है। पृथ्वी से सूर्य की दूरी 15 करोड किलोमीटर है। विगत 4.6 अरब वर्षो से वह प्रकाशमान है और ऐसा अनुमान किया जाता है, कि अभी वह 4.6 अरब वर्षो तक इसी प्रकार ऊर्जा का सर्वाधिक मुख्य स्रोत बना रहेगा। सूर्य के द्रव्यमान में लगभग 70 प्रतिशत हाइड्रोजन, 28 प्रतिशत हीलियम तथा दस प्रतिशत अन्य भारी तत्वों का समावैषीय सम्मिश्रण है। सौर विकिरण के नाम से जानी जाने वाली यह तरगें संसार को ऊष्मा की अनुभूति देती है तथा जो प्रदान करती हैं उसके कारण पृथ्वी अपने समस्त अवयवों सहित दृश्यमान रहती है। सृर्य से उपस्थित धूलकण, कार्बन डाइ-आक्साइड जलवाष्प तथा ओजोन ग्रहण कर लेते है। अवशेष रूप में बचा हुआ उसका 47 प्रतिशत भाग ही पृथ्वी तक आता है। 

सौर ऊर्जा एक असामान्य संसाधन है जिसे सीधे रूप में ही ऊष्मा- ऊर्जा तथा विकिरण ऊर्जा को विद्युतीय रूप देकर उपयोग में लाया जा सकता है। भारत सोर उर्जा का एक समृद्ध देष है। इसके अधिकांश भागों पर सूर्य के तीव्र ताप का प्रसारण होता है। इससे 1000 अरब किलोवाट ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इतनी ऊर्जा उपलब्धि की सहजता का अनुमान तो है लेकिन अभी भारत इसे पूर्ण रूप से प्राप्त करने में सक्षम नहीं है। उसके कारण हैं सुविधाजनक साधनों का अभाव, सोर उर्जा की अस्थिर तीव्रता तथा ऋतु और आकाशीय दशाओं की असामान्य परिवर्तषीलता।

सौर ऊर्जा का उपयोग दो विधियों से किया जाता है- तापीय तथा वोल्टीय विधियों द्वारा भारत में सौर ऊर्जा का विकास ऊर्जा संसाधन विकास द्वारा किया जा रहा है। वर्ष 2003 तक इस विभाग द्वारा 7 लाख वर्ग मीटर संग्राहक क्षेत्र बना लिया गया था।

पवन ऊर्जा

वायु की गतिज ऊर्जा को पवन ऊर्जा कहते है। यदि वायु की तीव्रता 10 किमी प्रति घण्टा हो तो उससे एक हार्स पावर शक्ति प्राप्त की जा सकती है यदि वायु की गति 20 किमी प्रति घण्टा हो तो उसे 8 हार्स पावर ऊर्जा प्राप्त हो सकती है। हाल ही में नयी पवन चक्कियां बनायी गयी है। जो एक कि. मी. प्रति घण्टा वेग वाली वायु से भी ऊर्जा प्राप्त कर सकती है। वास्तव में यह ऊर्जा सौर ऊर्जा से ही बनती है। भारत में 2 मेगावट की पवन चक्की गुजरात के ओखा नामक स्थान में स्थापित है। गुजरात, राजस्थान के कुछ भाग, पश्चिमी मध्य प्रदेश, समुद्र तटीय क्षेत्र, दक्षिणी तमिलनाडु बंगाल की खाडी तथा अरब सागर के द्वीप और कर्नाटक के कुछ भाग पवन ऊर्जा का दोहन करने की दृष्टि से उपयोगी पाये गये है।

भू-तापीय ऊर्जा

भूमि के गर्म ताप से भी ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इसी को भू-तापीय ऊर्जा कहते है। पृथ्वी की नाभि में लगभग 6000 डिग्री ताप वाले तरल षेल पदार्थ, जिसे मैग्मा कहा जाता है के कारण जो संवहन प्रभाव होता है। उसका ताप पृथ्वी के भीतर चलते रहने वाले जल द्वारा ऊष्मा संचलन प्राप्त करके भू-तल तक पहुचता है। यह वाष्प एक गर्म पानी के स्त्रोत होते है। इनसे वेछन छिद्र निर्माण द्वारा वाष्प प्रवाह वेग से टरबाइन चलाकर ऊर्जा प्राप्त की जाती है।

भूतापीय ऊर्जा का उपयोग- 1.ष्षुष्क वाष्प तन्त्र 2. उष्ण जल तन्त्र 3. तट वाष्प तन्त्र 4. तप्त षेष तन्त्र निर्माण कर ऊर्जा संसाधित की जाती है।

भारत में अब तक 300 भू-तापीय झरनों की पहचान की जा चुकी है। इनका नियन्त्रण भारत के मूल संरचनात्मक और विवर्तनिक ढाॅचे द्वारा किया जाता है। इसने भारत में 10 भू-तापीय प्रदेषांे की पहचान की है। यह हिमालय, बागा-तुषाई, अण्डमान, निकोबर, पष्चिम तट क्षेत्र, कैम्बेग्रेबन, अरावली, सोन नर्वदा, गोदावरी, महानदी तथा दक्षिण भारत में है।

जैविक ऊर्जा

जैविक ऊर्जा के दो रूप है- बायों गैस तथा बायो द्रव्यमान

1. बायो गैस- जब जन्तु और वनस्पतीय अवशेषों का सूक्ष्म जीवों द्वारा नमी की उपस्थित में अपघटन किया जाता है तो मीथेन कार्बन डाइ-ऑक्साइड सल्फाइड आदि गैसें उत्पन्न होने लगती है। गैसों का यही मिश्रण बायों गैस कहलाता है। इसमे 65 प्रतिशत मीथेन गैस होती है जो उक उत्तम इैधन है।

बयो गैस के अवयव- मीथेन गैस 65 प्रतिशत, कार्बन डाई बाक्साइड 30 प्रतिशत, हाइडोजन 4 प्रतिशत तथा सल्फर डाइ-ऑक्साइड 14 प्रतिशत।

बायो गैस उत्थान के लिये आवश्यक पदार्थ -

  1. ग्राम्य कृषि क्षेत्रों में अधिकता से प्राप्य-कृषि अपष्ष्टि तथा वनस्पति अपषिष्ट।
  2. घरेलू क्षेत्रों में प्राप्य-जानवरों का गोबर, मलमूत्र, घरेलू कचरा आदि।
  3. नगर क्षेत्रों में प्राप्य-कुडा करकट तथा मलमूत्र।
  4. औद्योगिक स्तर पर प्राप्य-खाद्य प्रसंस्करण करने वाली इकाइयों, डेरियों, रसायनिक उद्योग, शराब भटिटयों आदि का ठोस अपषिष्ट।

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बायों गैस तन्त्र सफलतापूर्वक कार्य कर रहें है। जहाॅ बायों गैस से भोजन तैयार किया जाता है। गली कूचों को प्रकाशित रखा जाता है। इंजन भी चलाये जाते है।

2.  बायो द्रव्यमान- वनस्पतियों और जन्तुओं में शरीर के जीवित पदार्थों के कुल शुष्क भार को जैव द्रव्यमान कहते है। पेड-पौधें के सूख जाने के बाद या उन्हें काटने के पश्चात उनकी लकडी आदि को उनका द्रव्यमान कहा जाता हैं प्राय ईधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। बहुत से सूक्ष्म जीव वायु रहित स्थिति में बायों गैस का पाचन करके एल्कोहल या मीथेन गैस उत्पन्न करते है। इसे दहन करने से ऊर्जा पैदा होती है।

नाभिकीय उर्जा नाभिकीय ऊर्जा किसी अणु के केन्द्रक में पायी जाने वाली ऊर्जा है। अणु से ही पृथ्वी की प्रत्येक वस्तु का निर्माण हुआ है। पदार्थ में अणुओं को बांधे रखने में बहुत ऊर्जा लगती है। दो अणुओं को तोडने तथा जोडने में ऊर्जा मुक्त होती है जिसे विजली के रुप में उपयोग किया जाता है।

महासागरों से ऊर्जा

पृथ्वी तल का 70.8 प्रतिशत भाग महासागरों से आच्छादित है। सागर तटीय क्षेत्रों में वायु की तीव्र गति तट पर टकराने वाली लहरें उत्पन्न ऊर्जा को प्राप्त करने का पहला संयंत्र केरल में लगाया गया था। यह वित्तिगम तट पर स्थित यह यन्त्र 150 किलोवाट बिजली तैयार करता है।

इसके अतिरिक्त महासागरीय ऊर्जा अन्य तरह भी प्राप्त होती है। प्राय महाससागर की सतही जल तथा गहराई वाले जल में तापान्तर होता है। कई स्थानों पर यह 20 डिग्री सेंटीग्रेड तक भी तापित हो सकता है। इसी तरह समुद्रों में जैव द्रव्यमान की विशाल मात्रा दीर्घकाल तक मीथेन गैस उपलब्ध करा सकती है।

लवणीय ऊर्जा- जहाॅ दो भिन्न समुद्रों का पानी टकराता है। वहाॅ लवणीय सांद्रता भिन्न हो जाती है। यह भी उर्जा प्राप्त करने के लिए एक साधन के रूप में उपयोगी बन जाती है। इसी प्रकार सागरीय डयूटेरयम के सम्भावित संलयन से ऊर्जा का संधान सम्भव होात है।

गैर-परम्परागत ऊर्जा हेतु विकसित नयी प्रौद्योगिक- भारत में परम्परागत ऊर्जा प्राप्ति हेतु कुछ नवीन प्रौद्योगिकी विकसित की गयी है। जो इस प्रकार है।

1. हाइड्रोजन ऊर्जा- हाइड्रोजन पृथ्वी पर गैस के रुप में नहीं पायी जाती बल्कि अन्य तत्वों के साथ यौगिक के रुप में पायी जाती है। पानी का इलेक्ट्रोलिसिस कर हाइड्रोजन व आक्सीजन को अलग किया जा सकता है। हाइड्रोजन ऊर्जा को यातायात के साधनों में उपयोग किया जा सकता है।

2. जैव ईधन - इसे घरेलू अपषिष्ट व पौधों से वनाया जा सकता है। इसे यातायात के साधनों व रसोई गैस के रुप में उपयोग किया जाता है।

3. बायों-डीजल ऊर्जा- इसे यातायात के साधनों के रुप में उपयोग किया जाता है।

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