भारतीय नरेशों के द्वारा नरेन्द्रमण्डल के माध्यम से रियासतों और अंग्रेजी
सरकार के संबंधों के पूर्ण परीक्षण तथा फिर से परिभाषित किए जाने की माँग की
गई। सरकार ने उक्त माँग को स्वीकार करते हुए दिसम्बर 1927 में सर हारकोर्ट
बटलर की अध्यक्षता में इण्डियन स्टेट कमेटी का गठन किया। जिसे बटलर कमेटी
के नाम से जाना गया। इस कमेटी की रिपोर्ट 1929 में प्रस्तुत की गई। इसने
भारतीय राजाओं को पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं किया परंतु फिर भी उनकी बहुत सी
शिकायतों को दूर कर दिया गया। इस समिति के द्वारा प्रस्तुत की गई प्रमुख
सिफारिशें इस प्रकार हैं-
भारत में बटलर कमेटी की बहुत आलोचना की गई। एक ओर मैसूर के भूतपूर्व दीवान सर एम. विश्वेश्वरैया ने कमेटी की आलोचना करते हुए लिखा कि- ’’भारतीय राज्यों की जनता के लिए भविष्य का कोई संकेत नहीं है। उनके प्रस्ताव सहानुभूतिहीन, अनैतिहासिक तो है ही, वैधानिक अथवा कानूनीर भी शायद ही हो ं . . . . उनकी दृष्टि में आधुनिक विचारों का अभाव है और उसमें निश्चित ही ऐसी चीजों की कमी है जो विश्वास अथवा आशा जगा सकती हो। वहीं दूसरी ओर सी. वाई. चिन्तामणि ने आलोचना करते हुए कहा- ’’बटलर कमेटी अपने जन्म में बुरी थी, इसकी नियुक्ति का समय बुरा था, इसकी जाँच पड़ताल की शर्तें बुरी थीं, इसमें कामकाज करने वाले लोग बुरे थे, इसका जाँच का ढंग बुरा, और इस रिपोर्ट की शर्तें बुरी हैं और इसके निष्कर्ष बुरे हैं’’।
नेहरू रिपोर्ट ने भी लिखा कि, बटलर कमेटी ने भारत में रियासतों को आयरलैंड के अलस्टर (न्सेजमत) के रूप में खड़ा करने की कोशिश की है। उस रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई कि रियासतों के लोग कभी भी वर्तमान स्थिति को नहीं मानेंगे और ब्रिटिश भारत के साथ मिल कर स्वतंत्रता के लिए लड़ेंगे।
- राज्यों के साथ बरतने के लिए वाइसराय ब्रिटिश राजा (क्राउन) का ऐजेन्ट बने, काउंसिल सहित गर्वनर जनरल नहीं;
- राजा के राय के बिना ब्रिटिश राजा और देशी राजाओं के बीच का संबंध एक नई सरकार के साथ (जो व्यवस्थापिका के सामने उत्तरदायी है) न किया जाए;
- 3. छह व्यक्तियों की स्टेट काउंसिल, जिसमें तीन राजा होने का विधान था रद्द कर दी गई;
- 4. राज्य के शासन में हस्तक्षेप वाइसराय के निर्णय पर छोड़ दिया जाए; 5. राज्यों और ब्रिटिश भारत के बीच जो झगड़े उठ खड़े हों उनकी जाँच करने के लिए विशेष समितियाँ नियुक्त हों;
- 6. ब्रिटिश भारत और भारतीय राज्यों के बीच आर्थिक संबंधों की जाँच करने के लिए एक समिति नियुक्त की जाए;
- 7. राजनीतिक अफसरों की भर्ती और शिक्षा का प्रबंध अलग से हो।
भारत में बटलर कमेटी की बहुत आलोचना की गई। एक ओर मैसूर के भूतपूर्व दीवान सर एम. विश्वेश्वरैया ने कमेटी की आलोचना करते हुए लिखा कि- ’’भारतीय राज्यों की जनता के लिए भविष्य का कोई संकेत नहीं है। उनके प्रस्ताव सहानुभूतिहीन, अनैतिहासिक तो है ही, वैधानिक अथवा कानूनीर भी शायद ही हो ं . . . . उनकी दृष्टि में आधुनिक विचारों का अभाव है और उसमें निश्चित ही ऐसी चीजों की कमी है जो विश्वास अथवा आशा जगा सकती हो। वहीं दूसरी ओर सी. वाई. चिन्तामणि ने आलोचना करते हुए कहा- ’’बटलर कमेटी अपने जन्म में बुरी थी, इसकी नियुक्ति का समय बुरा था, इसकी जाँच पड़ताल की शर्तें बुरी थीं, इसमें कामकाज करने वाले लोग बुरे थे, इसका जाँच का ढंग बुरा, और इस रिपोर्ट की शर्तें बुरी हैं और इसके निष्कर्ष बुरे हैं’’।
नेहरू रिपोर्ट ने भी लिखा कि, बटलर कमेटी ने भारत में रियासतों को आयरलैंड के अलस्टर (न्सेजमत) के रूप में खड़ा करने की कोशिश की है। उस रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई कि रियासतों के लोग कभी भी वर्तमान स्थिति को नहीं मानेंगे और ब्रिटिश भारत के साथ मिल कर स्वतंत्रता के लिए लड़ेंगे।
Tags:
बटलर कमेटी