मुक्त व्यापार नीति क्या है मुक्त व्यापार के पक्ष तथा विपक्ष में तर्क?

मुक्त व्यापार वह नीति है जिसमें अंतरराष्ट्रीय व्यापार में पूरी स्वतंत्रता होती है। ऐसी स्थिति में दो देशों के बीच वस्तुओं के आयात-निर्यात में किसी प्रकार की बाधा नहीं होती। सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभ से लेकर अठारहवीं शताब्दी के  तक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के बारे में जो प्रचलित सोच थी उसे आर्थिक विचारों के इतिहास में वणिकवाद के नाम से जाना जाता है। वणिकवाद बहुत ही संकीर्ण सोच थी। वणिकवाद के अनुसार निर्यात से देश की सम्पदा में वृद्धि होती है, जबकि आयात से देश की सम्पदा में कमी आती है। एडम स्मिथ ने इस मान्यता का खंडन किया और बताया की व्यापार से सभी देशों को लाभ होता है इसलिए उन्होंने मुक्त व्यापार की वकालत की। उनके अनुसार “मुक्त व्यापार की धारणा का उपयोग व्यापारिक नीति की उस प्रणाली को बंद करने के लिए किया जाता है जिसमें देश तथा विदेशी वस्तुओं में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता इसलिए न तो विदेशी वस्तुओं पर अनावश्यक कर लगाये जाते हैं और न ही स्वदेशी उद्योगों को कोई विशेष सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।” इस प्रकार, मुक्त व्यापार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तथा आंतरिक व्यापार में कोई अंतर नहीं करता। आंतरिक व्यापार में स्वतंत्रता होने पर कोई भी व्यक्ति सबसे कम क़ीमत वाले बाज़ार में वस्तु खरीद सकता है और उत्पादक अपनी वस्तु को उस बाज़ार में बेंच सकता है जहाँ उसे सबसे ज्यादा क़ीमत प्राप्त हो सके। ठीक उसी प्रकार मुक्त अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में कोई भी देश सबसे कम क़ीमत पर वस्तु खरीद सकता है और साथ ही सबसे अधिक क़ीमत देने वाले देश में अपनी वस्तु बेंच सकता है।

मुक्त व्यापार के पक्ष में तर्क

एडम स्मिथ के आने से ही मुक्त व्यापार के पक्ष में हवा चल गई। उन्होंने इसके फायदे के बारे में इतना ठोस तर्क रखा कि सभी प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री इसके पक्ष में बोलने लगे। कुछ व्यापार शून्य व्यापार से बेहतर है, जबकि मुक्त व्यापार प्रतिबंधित या संरक्षित व्यापार से बेहतर है। मुक्त व्यापार के पक्ष में तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं-

1. उत्पादन के साधनों का उचित प्रयोग- मुक्त व्यापार में सभी देश केवल उसी वस्तु का उत्पादन करता है जिसमें उसे लागत सम्बन्धी लाभ प्राप्त हो। यह लाभ चाहे वह अपेक्षा न रखनेवाला हो या समानता और असमानता दिखानेवाला, उत्पादन के साधनों के उचित तथा सबसे कुशल प्रयोग को पूरा यक़ीन करेगा।

2. तकनीकी विकास को बढ़ावा- मुक्त व्यापार में देशों के बीच आपसी मुक़ाबला रहता है. इस मुक़ाबला के कारण सभी उत्पादक पूरी कोशिश करता है कि उसके उत्पाद की लागत कम हो जिससे कि वह कम कीमत पर अपने उत्पाद को बेंच सके। इसके लिए उत्पादक तकनीकी अनुसंधान व विकास को बढ़ावा देता है।

3. सामाजिक उत्पादन का अधिकतमीकरण- मुक्त व्यापार श्रम विभाजन और विशेषज्ञता को बढ़ाता है जिसके कारण कुल उत्पादन में वृद्धि होती है और साथ ही वस्तु का उत्पादन लागत भी गिरता है। समाज को पहले से कम कीमत' पर और साथ ही अधिक वस्तुओं का उपभोग करने का मौका मिलता है। वस्तुओं का मूल्य उनके सीमान्त लागत के बराबर हो जाता है। यह स्थिति अनुकूलतम उत्पादन की स्थिति को व्यक्त करता है। प्रत्येक देश की आर्थिक क्रियाओं का उद्देश्य अधिकतम सामाजिक लाभ की प्राप्ति होती है और यह मुक्त व्यापार में प्राप्त किया जा सकता है।

4. आयात सामग्री का वस्तुओं के मूल्यों में कमी- मुक्त व्यापार सस्ते आयात सामग्री वस्तुओं की उपलब्धता को सुनिश्चित करता है। उपभोक्ताओं को ऐसे देश की वस्तु का उपभोग करने का मौका मिलता है जहाँ वह कम-से कम लागत पर प्राप्त किया जाता है। यह अलग बात है कि इस तर्क में देशी उत्पादकों के हितों की अवहेलना की गई है और साथ ही रोजगार के पहलू को भी नजरंदाज किया गया है।

5. एकाधिकारिक शोषण से मुक्ति- मुक्त व्यापार में प्रतियोगिता होने के कारण उपभोक्ता एकाधिकारिक शोषण से बच जाते हैं। प्रत्येक देश के उत्पादक को केवल देश के ही नहीं बल्कि विदेशी उत्पादकों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है जिसके कारण एकाधिकार का जन्म नहीं होता और फलस्वरूप उपभोक्ताओं को सस्ते मूल्य पर वस्तुएं प्राप्त होती है।

6. विश्व के सभी देशों के आर्थिक हितों की सुरक्षा- मुक्त व्यापार व्यवस्था से विश्व के सभी देशों के हितों की रक्षा होती है। मुक्त व्यापार के इसलिये आयात करनेवाले देश और निर्यात करने वाले देश दोनों को लाभ प्राप्त होता है। मुक्त व्यापार में एक देश दूसरे देश पर निर्भर होता है इसलिये उन देशों के बीच सहयोग एवं सद्भावना जागृत होती है। 

मुक्त व्यापार विपक्ष में तर्क

मुक्त व्यापार की अपनी सीमाएं हैं, जिसके कारण हमें अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं होता। अनुभव तो यही बताता है कि जैसे-जैसे दुनिया मुक्त व्यापार की और बढ़ रही है, विकसित और विकासशील देशों के बीच की खाई और चैड़ी होती जा रही है. बहुराष्ट्रीय कम्पनिओं का जाल विकासशील देशों में फैलता जा रहा है। उनके यहाँ के घरेलू उद्योग इन बहुराष्ट्रीय कम्पनिओं के आगे मुकाबला करने में कठिनाई का अनुभव कर रहे है। कई उद्योग तो बहुराष्ट्रीय कम्पनिओं के सामने अपना अस्तित्व ही खो चुके हैं। ऐसे में अब दुबारा इन देशों में संरक्षण के उपाय की बात की जा रही है. मुक्त व्यापार की निम्नलिखित सीमाएं हैं-

1.  मुक्त व्यापार ख़याली मान्यताओं पर आधारित है- मुक्त व्यापार की वकालत करनेवाले एडम स्मिथ और अन्य प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री ऐसी मान्यताएं ले बैठे जो वास्तविकता से दूर हैं। जैसे स्थिर लागत की दशा का उत्पादन, साधन की गतिशीलता की मान्यता आदि शायद ही देखने को मिलता है।

2. पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता पर आधारित- मुक्त व्यापार से प्राप्त होने वाले लाभ वस्तु तथा साधन बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता पर आधारित है, जो शायद ही उपलब्ध हो पाती है। इसके कारण साधनों का अनुकूलतम आवंटन और वस्तुओं का अनुकूलतम वितरण नहीं हो पाता जिसके कारण मुक्त व्यापार से वो स्थिति प्राप्त नहीं हो पाती जो दावा किया जाता है।

3. प्रारंभिक उद्योग के लिए अनुपयुक्त- मुक्त व्यापार प्रारंभिक उद्योग के लिए नामुनासिब है क्योंकि ऐसे उद्योग मुक़ाबला को झेल पाने में योग्य नहीं होते। फ्रेडरिक लिस्ट ने अपने प्रारंभिक उद्योग तर्क में इस बात को बहुत सरल तरीके से बताया है और ऐसे उद्योगों को प्रारंभ में संरक्षण देने की वकालत की है।

4. मांग और पूर्ति का पूरी तरह लोचदार होना आवश्यक- मुक्त व्यापार इस मान्यता पर आधारित है कि लंबे समय में मांग और पूर्ति पूरी तरह लोचदार हो जाते हैं जिसके कारण उद्योगों की लागतें रुक जाती है. किन्तु वास्तविक जगत में ऐसा संभव नहीं।

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