कंपनी की सदस्यता से क्या आशय है ? कंपनी की सदस्यता प्राप्त करने के तरीके ?

कंपनी का सदस्य वह व्यक्ति होता है जो कंपनी का पार्षद सीमा नियम में हस्ताक्षर करता है। कोई व्यक्ति जो कंपनी को सदस्य होने की लिखित स्वीकृति देता है तथा जिसका नाम कंपनी के सदस्यों के रजिस्टर में अभिलिखित है, वह भी कंपनी का सदस्य होता है।

सदस्यों का रजिस्टर: प्रत्येक कंपनी को सदस्यों का रजिस्टर रखना आवश्यक है जिसमें सदस्य का नाम, पता, पेशा, प्रवेश, परित्याग की तिथियों का उल्लेख होता है।

सदस्यो की अनुक्रमणिका: ऐसी कंपनी जहां सदस्यों की संख्या 50 से अधिक होती है वहाँ सदस्यों की अनुक्रमणिका बनाना अनिवार्य है।

कंपनी की सदस्यता प्राप्त करने के तरीके

एक व्यक्ति इन में से किसी एक तरीके से कंपनी में सदस्य हो सकता है- 

1. पार्षद सीमानियम पर हस्ताक्षर करके

पार्षद सीमा नियम पर हस्ताक्षर करने को कंपनी के सदस्य बनने की सहमति मानी जाती है। कंपनी के पंजीकरण पर उनके नाम सदस्यों के रजिस्टर में सदस्य के रूप में चढ़ा दिये जाते हैं (धारा 41)। जिसने पार्षद सीमा नियम पर हस्ताक्षर किया है, वह कंपनी के पंजीकृत होते ही कंपनी का सदस्य बन जाता है, चाहे उसका नाम सदस्यों के रजिस्टर में न चढ़ा हो। 

2. सदस्य बनने की लिखित सहमति

कंपनी का सदस्य बनने की लिखित सहमति दी है जिसका नाम सदस्यों के रजिस्टर में चढ़ा है वह कंपनी का सदस्य बन जाता है। (धारा 41(2) व्यक्ति केवल मौखिक समझौते या अपने कार्य द्वारा कंपनी का सदस्य नही बन सकता है। उच्चतम न्यायालय के अनुसार किसी व्यक्ति (पार्षद सीमा नियम पर हस्ताक्षर के अतिरिक्त) को सदस्य बनने के लिये दो शर्तों को पूरा करना आवश्यक है- 
  1. सदस्य बनने के लिए लिखित समझौता हुआ है। 
  2. आवेदक का नाम सदस्यों के रजिस्टर में चढ़ा हो। 

3. अंशों के आवेदन तथा आवंटन द्वारा

जिसने कुछ अंशों के लिये आवेदन किया है, उसको अंशों का आवंटन होते ही कंपनी का सदस्य बन जाता है अंशों के आवंटन तथा अंशधारी का नाम सदस्यों के रजिस्टर में चढ़ते ही वह कंपनी का सदस्य बन जाता है, चाहे उस व्यक्ति ने अंश प्रमाण पत्र प्राप्त किया हो या नहीं।

4. अंशों के हस्तान्तरण द्वारा

कंपनी के अंशों का स्वतंत्र हस्तान्तरण होता है। एक सदस्य, किसी अन्य व्यक्ति को अपने अंशों का हस्तान्तरण कर सकता है। अंशों के हस्तान्तरण का पंजीकरण होते ही हस्तान्तरिती कंपनी का सदस्य बन जाता है। एक व्यक्ति किसी वर्तमान सदस्य के अंश खरीद करके सदस्य बन सकता है तथा अंशों का हस्तान्तरण का पंजीकरण अपने नाम करा सकता है। वैध हस्तान्तरण में हस्तान्तरिती का नाम सदस्यों के रजिस्टर में चढ़ जाता है। 

5. अंशों के पारेषण द्वारा

अंशों का पारेषण में अंशों का हस्तान्तरण विधि द्वारा होता है जैसे अंशधारी की मृत्यु या दीवालिया होना। अंशधारी की मृत्यु या दिवालिया होने पर, उसके विधिक प्रतिनिधि (मृत्यु की दशा में) या सरकारी प्रतिनिधि (दिवालिया की दशा में), मृत या दिवालिया अंशधारी के अंशों को प्राप्त करने अधिकारी होते हें। वे उन अंशों का पंजीकरण अपने नाम कराने के लिये कंपनी में आवेदन कर सकते हैं। वैध पंजीकरण होने पर उनका नाम सदस्यों के रजिस्टर में चढ़ जाता है तथा वे कंपनी के सदस्य बन जाते हैं। 

6. योग्यता अंशों के लेने की सहमति द्वारा

लोक कंपनी में व्यक्ति, निदेशक तभी होता है जब वह योग्यता अंशों को खरीद कर लेता है। जब निदेशक योग्यता अंशों के लेने तथा उनका भुगतान करने के लिये प्रपत्र हस्ताक्षर करके उसे रजिस्ट्रार के यहाँ दाखिल करता है तो वह पार्षद सीमा नियम के हस्ताक्षरकर्ता की स्थिति में आ जाता है। (धारा 266 (2) कंपनी का पंजीकरण होने पर वह स्वतः सदस्य बन जाता है। 

कंपनी से सदस्यता कैसे समाप्त होती है?

किसी व्यक्ति की सदस्यता तब समाप्त होती है जब उसका नाम सदस्यों के रजिस्टर से काट दिया जाता है। उसका नाम कटते ही कंपनी से उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है। एक व्यक्ति की इन तरीकों से सदस्यता समाप्त होती है। 
  1. जब वह अंशों का हस्तान्तरण करता है।
  2. जब उसके अंशों का कंपनी द्वारा वैध तरीके से जब्त किया जाता है। 
  3. जब वह अपने अंशों का कंपनी में वैध समर्पण करता है। 
  4. जब उसकी मृत्यु हो जाती है तथा अंशों का पंजीकरण उसके कानूनी प्रतिनिधि के नाम हो जाता है। 
  5. जब वह दिवालिया घोषित हो जाता है तथा उसके अंशों का हस्तान्तरण समापन द्वारा कर दिया जाता है। 
  6. जब पूरी तरह से चुकता अंशों के बदले में उसे अंश वारंट जारी किये जाते हैं। 
  7. जब वह अनियमित आवंटन के आधार पर या प्रविवरण में गलत कथन के आधार पर अंशों को लेने की संविदा को तोड़ देता है। 
  8. जब कंपनी का बंद हो गई हो। 
  9. जब कंपनी द्वारा उसके अंशों को बिना उसकी सहमति से ले लिया गया हो। 

कंपनी के सदस्यों के अधिकार 

कंपनी अधिनियम ने कंपनी के सदस्यों को काफी संख्या में अधिकार दिये हैं जो  हैः- 
  1. भविष्य के अंशों के निर्गमन में अंश प्राप्त करने की प्राथमिकता का अधिकार।
  2. अंशों के हस्तान्तरण का अधिकार। 
  3. अंश प्रमाण पत्र प्राप्त करने का अधिकार। 
  4. सदस्यों के रजिस्टर में संशोधन मे लिये ट्रिब्युनल मे आवेदन करने का अधिकार। 
  5. यदि कंपनी का निदेशक मण्डल वार्षिक साधारण सभा बुलाने में असफल रहता है तो कंपनी में वार्षिक साधारण सभा को कराने के लिये केन्द्र सरकार को आवेदन करने अधिकार। 
  6. कंपनी में असाधारण सभा को बुलाने के लिये केन्द्र सरकार को आवेदन करने का अधिकार, यदि ऐसी सभा को बुलाना कंपनी के लिये अव्यवहारिक है। (धारा 186) 
  7. वार्षिक साधारण सभा में अंकेक्षकों तथा निदेशकों की नियुक्तियों में भाग लेने का अधिकार। 
  8. कंपनी के मामलों में जाॅच के लिये आदेश हेतु केन्द्र सरकार को आवेदन करने का अधिकार। 
  9. अन्याय पूर्ण तथा कुप्रबंध के मामलों से राहत के लिये ट्रिब्यूनल में वाद करने का अधिकार (धारा 397, 398) 
  10. कंपनी के समापन के लिये ट्रिब्यूनल में वाद प्रस्तुत करने का अधिकार। 
  11. कंपनी के समापन पर उसकी सम्पत्तियों (लेनदारों का भुगतान के बाद आधिक्य) में हिस्सा लेने का अधिकार (धारा 475, 511) 
  12. कंपनी को पार्षद सीमा नियम तथा पार्षद अन्तर्नियम में संशोधन का अधिकार। 
  13. पार्षद सीमा नियम, पार्षद अन्तर्नियम, आर्थिक चिट्ठा, लाभ-हानि खाता, प्रस्ताव, साधारण सभा की कार्यवाहियों के मिनट्स प्रपत्रों की प्रति प्राप्त करने का अधिकार।
  14. सदस्यों के रजिस्टर, ऋणपत्रधारियों के रजिस्टर, सभी वार्षिक रिटर्न की प्रतियाँ, प्रभारी के रजिस्टर, वार्षिक सभाओं की मिनट बुक के निरीक्षण का अधिकार। 
  15. बोनस अंश तथा लाभाॅश प्राप्त करने का अधिकार। 
  16. सामान्य सभा की नोटिस प्राप्त करने का अधिकार। 
  17. साधारण सभाओं में उपस्थित रहने तथा मतदान का अधिकार। 
  18. अंशों के क्रय के संविदा को खुद करने तथा क्षतिपूर्ति की मांग करने का अधिकार। इस अधिकार का प्रयोग तभी किया जाता है जब प्रविवरण में मात्र कथन के आधार पर अंशों का आवंटन किया गया है। 
  19. कंपनी के प्रबंध में अवांछित सदस्यों के विरूद्ध केन्द्र सरकार को शिकायत करने तथा उन्हें हटाने का आवेदन करने का अधिकार कंपनी के सदस्यों का उपरोक्त अधिकार कार्यशैली के निरीक्षण तथा उत्तम नियंत्रण प्रदान करते हैं। 

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