उद्यमी किसे कहते हैं? उद्यमी कितने प्रकार के होते है?

उद्यमी (Entrepreneur) शब्द का उत्पत्ति फ्रेंच शब्द Enterpendre से हुआ है जिसका शाब्दिक अर्थ है नये व्यवसाय की जोखिम को वहन करना इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले 16वीं शताब्दी में फ्रांस में प्रमुख अभियानों के लिये किया गया। बाद मे 17वीं शताब्दी में उद्यमी शब्द का प्रयोग नागरिक उभियांत्रकी के क्षेत्र में एवं 18वीं शताब्दी में आर्थिक क्रियाओं के सम्बन्ध में किया जाने लगा परन्तु 200 वर्ष पहले जे0बी0 से द्वारा विकसित किये गये शब्द उद्यमी के बारे में अभी तक पूर्ण भ्रान्ति बनी हुई है।

अमेरिका में उद्यमी उस व्यक्ति को माना जाता है जो अपना स्वयं का नया व्यवसाय प्रारम्भ करता है, जबकि जर्मनी में उद्यमी उस व्यक्ति को कहा जाता है जिसके पास सत्ता तथा सम्पत्ति होती है। 

सामान्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि उद्यमी से आशय एक ऐसे व्यक्ति से है जो नया उपक्रम प्रारम्भ करता है, आवश्यक संसाधनों को जुटाता है, व्यावसायिक क्रियाओं का प्रबन्ध व नियंत्रण करता है तथा व्यवसाय से सम्बन्धित विभिन्न जोखिमों को झेलता है एवं व्यावसायिक चुनौतियों का सामना करके लाभ अर्जित करते हुये समाज को अधिकतम लाभ पहुंचाने का प्रयत्न करता है।

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उद्यमी की परिभाषा

उद्यमी की परिभाषा के सम्बन्ध में विद्वान एक मत नहीं, विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। 

जे0बी0 से के अनुसार, ‘‘उद्यमी वह व्यक्ति है जो आर्थिक संसाधनों को उत्पादकता एवं लाभ के इन क्षेत्रों से उच्च क्षेत्रों की ओर हस्तान्तरित करता है’’।

फ्रेंक नाइट के अनुसार, ‘‘उद्यमी वह विशिष्ट समूह अथवा व्यक्ति है जो जोखिम सहते हैं तथा अनिश्चितता की व्यवस्था करते हैं’’।

एफ0वी0 हाने के अनुसार, ‘‘उत्पत्ति में निहित जोखिम उठाने वाला साधन उद्यमी होता है’’।

आर्थर डेविंग के अनुसार, ‘‘उद्यमी वह व्यक्ति है जो विचारों को लाभदायक व्यवसाय में परिवर्तित करता है’’

जेम्स बर्न के अनुसार, ‘‘उद्यमी वह व्यक्ति अथवा व्यक्तियों को समूह है जो किसी नये उपक्रम की स्थापना के लिये उत्तरदायी होता है’’

अल्फ्रेड मार्शल के शब्दों में, ‘‘उद्यमी एक व्यक्ति है जो जोखिम उठाने का साहस करता है, किसी कार्य के लिये आवश्यक पूंजी एवं श्रम की व्यवस्था करता है जो इसकी सामान्य योजना बनाता है तथा जो इसकी छोटी छोटी बातों का निरीक्षण करता है’’

पीटर एफ ड्रकरके शब्दों में, ‘‘उद्यमी वह व्यक्ति है जो सदैव परिवर्तन की खोज करता है उस पर प्रतिक्रिया करता है तथा एक अवसर के रूप में उसका लाभ उठाता है’’।

हर्बटन इवाॅन्स के शब्दों में, ‘‘उद्यमी वह व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह है जिसे संचालित किये जाने वाले व्यवसाय के निर्धारक का कार्य करना होता है’’

फ्रेंन्ज के शब्दों में, ‘‘उद्यमी प्रबन्धक से बड़ा होता है। वह नवप्रवर्तक एवं प्रवर्तक दोनों है।’’

जोसेफ ए0 शुम्पीटर के शब्दों में, ‘‘उद्यमी वह व्यक्ति है जो किसी अवसर की पूर्ण कल्पना करता है तथा किसी नई वस्तु, नई उत्पादन विधि, नये कच्चे माल, नये बाजार अथवा उत्पादन के साधनों के नये संयोजन को अपनाते हुये अवसर का लाभ उठाता है।’’

उद्यमी के गुण/लक्षण

प्रो0 बी0सी टण्डन ने अपनी पुस्तक में एक सच्चे उद्यमी के ये गुण बताये हैं-

  1. जोखिम वहन करने की क्षमता 
  2. तकनीकी ज्ञान एवं परिवर्तन की इच्छा
  3. संसाधनों के संयोजन एवं प्रशासनिक योग्यता
  4. संगठनात्मक एवं प्रशासनिक योग्यता

डेविड मेक्लीलैण्ड ने अपनी पुस्तक में उद्यमी के इन गुणों का वर्णन किया है-

  1. सफलता की सम्भावना का बोध
  2. जोखिम वहन की प्राथमिकता
  3. ऊर्जस्वी व्यवहार
  4. भविष्य अभिमुखता
  5. उपलब्धि प्राप्ति की इच्छा
  6. असाधारण सृजनात्मकता

उद्यमियों के प्रकार

उद्यमियों के प्रकारों को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है-

1. वैयक्तिक योग्यता के आधार पर उद्यमी

क्लेरेन्स डेनहाफ ने व्यक्तित्व के आधार पर उद्यमी के चार प्रकार बताये हैं।

1. नवप्रवर्तक उद्यमी - यह वह उद्यमी होते हैं जो अपने व्यवसाय में लगातार खोज एवं अनुसंधान करते रहते हैं और इन अनुसंधानों व प्रयोगों के परिणामस्वरूप व्यवसाय में परिवर्तन करके लाभ प्राप्त करते हैं। जैसे नए तकनीक का विकास करके, नये उत्पादन करके, पुराने उत्पादन में श्रेष्ठता लाकर। इनमें जोखिम वहन करने का गुण विद्यमान होता है। 

2. नकलची उद्यमी - यह वह उद्यमी होते हैं जो स्वयं कोई अनुसंधान व खोज नहीं करते व खोज पर न ही कोई धन खर्च करते हैं। यह भी सफल उद्यमियों द्वारा किये गये सफल परिवर्तनों को अपनाते हैं इनमें निर्णय लेने व जोखिम वहन करने की क्षमता शून्य होती है। यह जरा भी जोखिम लेना पसन्द नहीं करते हैं इसलिये सफल उद्यमियों द्वारा उन्हें इन परिवर्तनों को अपनाना आवश्यक नहीं लगता।

3. जागरूक उद्यमी-  यह उद्यमी भी नकलची उद्यमी की तरह अनुसंधान व खोज पर धन नहीं खर्च करते। यह भी सफल उद्यमियों द्वारा किये गये कार्याें को अपना लेते हैं।

4. आलसी उद्यमी- आलसी उद्यमी का मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक लाभ कमाना नहीं बल्कि व्यवसाय को चलाते रहना है। इस लिये यह न तो व्यवसाय में कोई परिवर्तन करना पसन्द करते हैं न ही लागत में कमी करके व वस्तुओं की श्रेष्ठता में वृद्धि करके लाभ अधिकतम करने का प्रयास करते हैं।

2. कार्य के आधार पर उद्यमी

कार्म वेस्पर ने उद्यमियों के कार्यों के आधार पर प्राकर बताये हैं जो निम्न हैं।

1. स्वनियुक्त उद्यमी - स्वनियुक्त उद्यमियों को किसी के द्वारा नियुक्ति नहीं दी जाती है वह स्वनियुक्त होते हैं इन्हें अपना काम करने की स्वतन्त्रता होती है। ये अपने ज्ञान के आधार पर कार्य करते हैं जैसे डाक्टर कलाकार आदि।

2. अधिग्रहण उद्यमी- अधिग्रहण उद्यमी कभी किसी वस्तु का निर्माण नहीं करते हैं बल्कि छोटी छोटी फर्मों का अधिग्रहण करके उनका संचालन करते हैं या उन सभी फर्मों को मिलाकर एक बडी फर्म का निर्माण व उनका संचालन करते हैं।

3. कार्यशक्ति निर्माता उद्यमी - कार्यशक्ति निर्माता उद्यमी जो किसी प्रकार के यंत्र, मशीनों, का निर्माण व निर्माण करने वाली फर्मों का संचालन करते हैं कार्यशक्ति निर्माता उद्यमी कहे जाते हैं जैसे कम्प्यूटर आदि।

4. प्रारूप प्रवर्तक उद्यमी - प्रारूप प्रवर्तक उद्यमी उत्पादन की तकनीकों के आधार पर वस्तुओं के गुण, आकार आदि में परिवर्तन करते हैं। कम्पनियों द्वारा इन्हें इन तकनीकों का प्रयोग करने का अधिकार प्राप्त होता है।

5. उत्पादक उद्यमी - यह उद्यमी नव प्रवर्तक उद्यमी की भांति ही प्रयोगों द्वारा नये नये उत्पादों का प्रारूप तैयार करके उनका निर्माण करते हैं। ये उद्यमी प्रतिस्पर्धात्मक होते हैं।

6. पूंजी संचय करने वाले उद्यमी - पूंजी संचय करने वाले उद्यमी पूंजी संचय करने वाले कार्य जैसे कि बैंकिंग व्यवसाय बीमा कम्पनी में संलग्न होते हैं।

7. प्राकृतिक संसाधन विदोहक उद्यमी - अप्रयुक्त प्राकृतिक संसाधनों को उपयोगी बनाने वाले कार्यों में लगे  उद्यमी को प्राकृतिक संसाधन विदोहक उद्यमी कहा जाता है। जैसे युद्ध सामग्री के व्यापारी, सम्पत्ति व जायदाद को बेचने वाले उद्यमी आदि।

8. मितव्ययी उद्यमी - मितव्ययी उद्यमी उपभोक्ताओं का बचत करवाते हैं जिससे कि उनकी खरीदने की शक्ति क्षमता में वृद्धि होती है जैसे डाक सेवायें।

9. सटोरिये उद्यमी - ये किसी प्रकार का कोई कार्य नहीं करते हैं बल्कि दूसरे के कार्यों पर स्वामित्व प्रपत्र के द्वारा लाभ प्राप्त करते हैं। इसमें जोखिम वहन करने की क्षमता अधिक होती है।

3. विकास की गति के आधार पर उद्यमी

विकास की गति के आधार पर द्यमियों के निम्न प्रकार बताये हैं-

1. प्राथमिक प्रवर्तक उद्यमी - प्राथमिक प्रवर्तक उद्यमी विकास की प्रतिक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए हमेशा प्रयास करता रहता है। यह व्यवसाय में नित नये परिवर्तन करके विविधता लाने पर बल देता है। यह नई नई तकनीकों से उत्पादन में गुणवत्ता तथा नवीन उत्पादों के द्वारा विकास की गति को बढ़ाने में योगदान देता है।

2. अल्प नवप्रवर्तक उद्यमी - अल्प नवप्रवर्तक उद्यमी उपलब्ध संसाधनों को उत्पादक एवं लाभप्रद कार्याें में विनियोजित करते हैं।  उपलब्ध संसाधनों का उत्तम उपयोग करने की सोचते हैं।  वैयक्तिक रूप से इन उद्यमियों का योगदान बहुत कम होता है किन्दु यह अल्प मात्रा में नवप्रवर्तक का कार्य करके विकास की गति में बल प्रदान करते हैं।

3. पहलकर्ता उद्यमी - पहलकर्ता उद्यमी नव प्रवर्तनों के उद्देश्य से अर्थव्यवस्था में प्रवेश करता है एवं विकास की गति को बल प्रदान करता है। जबकि स्वयं नवप्रवर्तनों की कल्पना भी नहीं करता। वह नवप्रवर्तन की फैलाव प्रक्रिया में स्वयं भाग लेकर अर्थव्यवस्था के विकास की गति में वृद्धि करता है।

4. अनुषांगी उद्यमी - ऐसे उद्यमी शुरुआत में स्वंय कोई उद्योग या व्यवसाय नहीं चलाते हैं। बल्कि उनकी भूमिका एवं पूर्तिकर्ता अथवा मध्यस्थ की होती है। लेकिन  धीरे धीरे वे स्वंय स्वतंत्र रूप से उद्योग चलाने लगते हैं। यह उद्यमी सहायक उद्योगों एवं व्यवसायों का संचालन करते हैं।

5. स्थानीय उद्यमी - ऐसे उद्यमी अपने व्यापार को किसी निश्चित क्षेत्र विशेष के अन्दर करते हैं उसके बाहर व्यापार नहीं करते। इनके व्यापार का कार्य क्षेत्र स्थानीय ही होता हें अर्थात यह आर्थिक क्रिया के क्षेत्र को सीमित रखते हैं इस लिये इनको स्थानीय उद्यमी कहते हैं।

6. प्रबन्धक उद्यमी -  प्राथमिक प्रवर्तक बनाई गई योजनाओं का सफलतापूर्वक संचालन करता है। यह उपक्रम का बाहरी लोगों से सम्बन्ध स्थापित करता है। तथा उपक्रक का सफल संचालन करता है। ऐसे उद्यमी में प्रबन्धकीय कौशल असीमित होता है।

4.  सामाजिक लाभ की दृष्टि से

उद्यमी अर्थव्यवस्था में जो भी क्रियाएं करता है वह सामाजिक लाभ की दृष्टि से या जो उसके स्वयं के हित में होता है या समाज के हित में होता हैं इन दोनों प्रकार की क्रियाएं करने वाले उद्यमी निम्न होते हैं-

1. शोषक उद्यमी - यह उद्यमी केवल स्वयं के हित में कार्य करता है। यह समाज के प्रति पूर्णतः उदासीन होता है। इसका प्रमुख उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना है और इसे बढ़ाने के लिये वह निरन्तर प्रयास करता है। इस प्रकार के उद्यमी में श्रम करने की क्षमता अधिक होती है किन्तु उनमें आत्मसम्मान की भावना नगण्य होती है। इस प्रकार के उद्यमी आर्थिक विषमता वालो क्षेत्रों में पाये जाते हैं।

2. आदर्श उद्यमी- इस प्रकार के उद्यमी स्वयं के हित के साथ साथ सामाजिक हित पर भी ध्यान देते हैं। इनका उद्देश्य केवल अधिक से अधिक लाभ कमाना ही नही बल्कि सामाजिक दायित्व जैसे रोजगार में वृद्धि करना, वस्तुओं में गुणवत्ता लाना, जीवन स्तर में सुधार करना, आर्थिक विकास होना- को पूरा करना भी है। 

5. प्रेरणात्मक तत्वों की दृष्टि से

प्रेरणात्मक तत्वों के आधार पर उद्यमी को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।

1. ऐच्छिक उद्यमी - ऐसे उद्यमी अपने कार्य निष्पादन की गुणवत्ता को सिद्ध करने या उसकी प्राप्ति करने अथवा अपनी इच्छाओं की स्वपूर्ति के लिए स्वंय प्रेरित होते हैं। इस तरह के उद्यमी प्राकृतिक उद्यमी होती हैं और इन्हें किसी वाह्य प्रेरणा की आवश्यकता नहीं होती है। ऐसे उद्यमी को हम शुद्ध उद्यमी भी कह सकते हैं।

2. प्रेरित उद्यमी - ऐसे उद्यमी उपभोक्ताओं को नये उत्पाद एवं सेवायें प्रदान कर सकने की सम्भावनायें से उत्पन्न होते हैं। यदि ग्राहक ऐसे उत्पादों या सेवाएं भी स्वीकार कर लेता है तो वित्तीय लाभ इस प्रकार उद्यमियों को और प्रेरित करता है।

3. दबावपूर्वक उद्यमी- ऐसे उद्यमी सरकार द्वारा उद्यमीय विकास की नीति से प्रेरित होकर उद्यमिता स्वीकार करते हैं। सरकार लोगों को नये उद्यम प्रारम्भ करने के लिये कुछ सहायता, प्रोत्सहन, छूट, अन्य सुविधाएं जैसे संरचनात्मक सुविधा आति प्रदान करती है। 

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