अंकेक्षण के उद्देश्य
अंकेक्षण का मुख्य उद्देश्य अंतिम खातों की सत्यता एवं शुद्धता की जाँच करना है जबकि अशुद्धियों का पता लगाना, कपट का पता लगाना, कपट और अशुद्धियों को रोकना सहायक उद्देश्य है। इसके अलावा, कर्मचारियों पर नैतिक प्रभाव डालाना, अधिनियमों के प्रावधानों की पूर्ति करना, कर निर्धारण अधिकारियों को संतुष्ट करना और आर्थिक नीति तय करने में सहायक आदि उद्देश्यों का भी समावेश अन्य उद्देश्यों में होता हैं।
1. अंकेक्षण के मुख्य उद्देश्य
अंकेक्षण का सबसे प्रमुख उद्देश्य यह है कि, अंतिम खाता लेखा पुस्तकों के आधार पर बनाया गया है या नहीं। लाभ-हानि खाता लेखा पुस्तकों के सही एवं उचित लाभ का प्रदर्शन करता है या नहीं तथा चिट्ठा व्यवसाय के सही एवं उचित आर्थिक स्थिति का प्रदर्शन करता है या नहीं, इसी उद्देश्य को अंकेक्षण का केंद्र बिंदु माना गया है।2. अंकेक्षण के सहायक उद्देश्य
1. अशुद्धियों का पता लगाना : यह उद्देश्य लेखा पुस्तकों में लेखांकन के दौरान कुछ कमियाँ एवं अशुद्धियाँ रह जाती हैं, उन्हें अंकेक्षक अपने अनुभवों के आधार पर पता लगाना, यह खामियाँ ये हैं-- सैद्धांतिक कमियाँ
- भूल की कमियाँ
- लेख की कमियाँ
- दुबारा दर्ज की कमियाँ
- क्षतिपूर्ति की कमियाँ
(ख) भूल की कमियाँँ: लेखा पुस्तकों में लेखापाल द्वारा लेखांकन कार्य करते समय लेन-देन को दर्ज करते समय पूर्णतः एवं आंशिक रूप से भूल जाना ही, भूल की कमियों के अंतर्गत आता है।
उदाहरण. 1: अमर को उधार दिए माल की बिक्री की प्रविष्टि क्रय पुस्तक में दर्ज है किंतु उसकी प्रविष्टि अमर के लेखे में दर्ज करना लेखापाल भूल जाता है, तो उसे अंाशिक भूल की खामी कहा जाएगा। यह खामी परीक्षा सूची में दिखाई देती है।
उदाहरण. 2ः रमन को उधार दिए माल की बिक्री की पूर्णतः प्रविष्टि क्रय पुस्तक एवं रमन के लेखे में दर्ज करना लेखापाल भूल जाता है, तो उसे पूर्णतः भूल की खामियाँ कहते हैं। हालाँकि यह खामी परीक्षा सूची में दिखाई नहीं देती है।
(ग) लेख की कमियाँ- जब प्रारंभिक लेखापुस्तकों में की गई प्रविष्टियों की पूर्णतः एवं अंाशिक रूप से खाता पुस्तक के गलत लेखों में प्रविष्टि होती हैं, तो उसे लेख की कमियाँ कहते हैं।
उदा. 1ः राम के खाते को समाकलन करने के बजाय विकलन की गई। यह कमी परीक्षा सूची के निर्देश में आती है। उदा. 2ः राम के खाते को समाकलन ;करने के बजाय श्याम के खाते को समाकलन की गई। हालाँकि, यह खामी परीक्षा सूची के निर्देश में नहीं आती है।
(घ) दुबारा दर्ज की कमियाँ: जब
लेखापाल द्वारा एक व्यवहार को लेखा पुस्तक में दुबारा दर्ज किया जाता है,
तो इस खामी को दुबारा दर्ज खामियाँ कहते हैं।
उदा. 1ः जब लेखापाल स्वरूप के खाते को एक ही व्यवहार को दो बार समाकलन करता है, इस तरह की कमियाँ परीक्षा सूची में दिखाई देती हैं।
उदा. 1ः जब लेखापाल स्वरूप के खाते को एक ही व्यवहार को दो बार समाकलन करता है, इस तरह की कमियाँ परीक्षा सूची में दिखाई देती हैं।
उदा. 2ः जब लेखापाल रूपम को बिक्री किए माल के व्यवहार को दो बार
लेखा पुस्तकों में दर्ज करता है, इस तरह की कमियाँ परीक्षा सूची में
दिखाई नहीं देती हैं।
(च) क्षतिपूर्ति की कमियाँ : जब कोई एक खामी का प्रभाव दूसरी कमी से समाप्त हो जाता हैं, तो उसे क्षतिपूर्ति की कमी कहते हैं।
उदा. राम के खाते 500 रूपए से समाकलन करना था, लेकिन 500 रूपए से विकलन किया गया, वहीं लक्ष्मण के खाते को 500 रूपए से विकलन करना था, उसे 500 रूपए से समाकलित किया गया। यह त्रुटी परीक्षा सूची में दिखाई नहीं देती है।
(च) क्षतिपूर्ति की कमियाँ : जब कोई एक खामी का प्रभाव दूसरी कमी से समाप्त हो जाता हैं, तो उसे क्षतिपूर्ति की कमी कहते हैं।
उदा. राम के खाते 500 रूपए से समाकलन करना था, लेकिन 500 रूपए से विकलन किया गया, वहीं लक्ष्मण के खाते को 500 रूपए से विकलन करना था, उसे 500 रूपए से समाकलित किया गया। यह त्रुटी परीक्षा सूची में दिखाई नहीं देती है।
2. कपट या गबन का पता लगानाः कपट एवं गबन करना, यह चोर तथा
जालसाजी करने वालों का काम है जो एक औसत व्यक्ति के लिए सहज कार्य
नहीं है। फिर भी, अंकेक्षण का उसे एक महत्वपूर्ण उद्देश्य माना गया है। कपट या
गबन होशियार व्यक्तियों द्वारा और वह भी काफी सोच समझकर किया जाता है,
इसलिए कुशल एवं अनुभवी अंकेक्षक को उसे खोजना होता है। इस कार्य में
अंकेक्षक उसी समय सफल होगा, जब उसे गबन या कपट कैसे किए जाते हैं और
उन्हें प्रमाणन तथा सत्यापन के यथोचित प्रविधियों से किस तरह खोजना है, यह
पता हो। कपट प्रकार के हैं-
- रोकड़ का गबन
- माल का गबन
- हिसाब.किताब में अनियमितता
- संपत्ति का गबन
- श्रम का गबन
3. अंकेक्षण के अन्य उद्देश्य
- लेखापाल एवं लेखांकक को यह पता होता है कि हमारे द्वारा लिखे जाने वाले वित्तीय व्यवहार का अंकेक्षण होने वाला है जिससे वह लेखा पुस्तकों में प्रविष्टियाँ एवं अपना कार्य ईमानदारी तथा बड़ी सतर्कता से करने का प्रयास करते हैं।
- देश में व्यवसाय संबंधी संचालन एवं नियंत्रण करने वाले अधिनियमों के प्रावधानों के तहत् अंकेक्षण प्रक्रिया पूरी करना व्यवसाय की अनिवार्यता है।
- आयकर अधिनियम 1961 के प्रावधानों के अनुसार संबंधित व्यवसाय के वित्तीय व्यवहारों की जाँच कर निर्धारण अधिकारी करते हैं। अगर, किसी व्यवसाय का अंकेक्षण किया गया है, तो कर निर्धारण अधिकारी उस व्यवसाय के वित्तीय व्यवहारों के विवरणों से संतुष्ट होते हैं।
- अंकेक्षित अंतिम लेखे एवं लेखा पुस्तकों की जानकारी विश्वसनीय एवं अचूक होती हैं। इसी कारण प्रबंधक इस जानकारी के आधार पर ही आर्थिक नीति तय करने के लिए सहायक साबित होते हैं।