चंदेल वंश के शासकों के नाम और उनका परिचय

अभिलेखों के वर्णन से ज्ञात होता है कि चंद्रवंश में चंद्रात्रेय  से चंदेल उत्पन्न हुए थे। चंद्रात्रेय इनके आदिपुरुष होने के कारण इनको चंदेल कहा गया। चंदेलों के निवास स्थान का विवरण हमें अभिलेखों से मिलता है, जिससे यह पता चलता है कि इनका मूल निवास बुंदेलखंड था। इसके अतिरिक्त कालिंजर, खजुराहो, महोबा और अजयगढ़ से चंदेलों के अभिलेख मिलते हैं, अतः इससे भी यही ज्ञात होता है कि इनका निवास स्थान बुंदेलखंड था।

चंदेल वंश के शासक

चंदेलों के प्रारंभिक शासकों में नन्नुक, वाकपति, जयशक्ति, विजयशक्ति, राहिल और हर्ष थे। ये प्रारंभ में प्रतिहारांे के सामंत थे। नन्नुक इस वंश का प्रतापी शासक था। हर्ष के पश्चात यशोवर्मन राजा बना, जिसने अपने साम्राज्य का विस्तार किया। यह इस वंश का शक्तिशाली शासक था।

यशावेर्मन

यशावेर्मन ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उसके पुत्र धगं के शिलालेख में हमें उसके द्वारा किए गए कृत्यों का उल्लेख मिलता है। यह अभिलेख हमें खजुराहो से प्राप्त होता है। खजुराहो, चंदेलों की राजधानी भी थी।

यशोवर्मन के बाद धंग शासक बना। वह यशोवर्मन तथा पुष्पदेवी का पुत्र था। धंग अपने पिता की तरह महत्वाकांक्षी था। वह इस वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक था। उसने प्रतिहारों के खिलाफ अपनी स्वतंत्रता घोषित करने के बाद महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी।

धंग

धगं के शासनकाल में मुस्लिम आक्रमण होने के साक्ष्य मिलते है। यही कारण है कि जिस समय सुबुक्तगीन के विरुद्ध शाहीवश्ं ा के राजा जयपाल ने अन्य हिंदू राजाओं से सहायता मांगी तो कालिंजर के राजा ने उसे सहायता भेजी। तिथिक्रम से स्पष्ट होता है कि कालिंजर में धंग का शासन था। महोबा अभिलेख के अनुसार धंग मुस्लिम शासक हम्मीर के ज्यादा शक्तिशाली था। धंग ने खजुराहो में एक अभिलेख उत्कीर्ण कराया था। जिसमें धंग की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि ’’कौशल, क्रथ, सिंहल और कुतंल पर धगं का आधिपत्य था तथा कांची, आंध्र, राणा, आंग अंग राज्यों की रानियां उसकी काराओं में पड़ी थीं।” यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यह वर्णन अतिशयाेिक्तपूर्ण है।

गण्ड

धंग का पुत्र गण्ड था। अपने पिता की मृत्यु के बाद 1002 ई. में वह शासक बना। शाही वंश के राजा आनंदपाल ने 1008 ई. में हिंदू राजाओं के एक संघ का निर्माण किया। इस संघ में उज्जैन, ग्वालियर, दिल्ली, अजमेर, कन्नौज तथा कालिंजर के राजाओं ने भाग लिया। गण्ड इस समय कालिंजर का ही शासक था। 1008 ई. में महमूद गजनवी ने आक्रमण किया। गजनवी का सामना इन शासकों की सम्मिलित सेनाओं द्वारा किया गया जिसमें यह सेना परास्त हुई। परिणामस्वरूप गण्ड के पुत्र विद्याधर को भी मुस्लिम आक्रमण का सामना करना पड़ा।

विद्याधर

विद्याधर गण्ड का पुत्र था। गण्ड की मृत्यु के बाद विद्याधर 1017 ई. में चंदेल वंश का शासक बना। आनंदपाल द्वारा निर्मित राजाओं का संघ पराजित हो चुका था। प्रतिहार शासक जयपाल ने महमूद की अधीनता स्वीकार कर ली, तब विद्याधर ने बल से  जयपाल को सिंहासन से उतारकर त्रिलोचनपाल को कन्नौज का शासक बनाया था। अब विद्याधर का मुस्लिम शासक गजनवी से सीधा संघर्ष होना था।

विजयपाल

विजयपाल विद्याधर का पुत्र था, उसके बाद विजयपाल 1030ई. में शासक बना। इसके शासनकाल के साक्ष्य हमें उपलब्ध नहीं हो सके हैं, लेकिन महोबा अभिलेख से यह सिद्ध होता है कि विजयपाल ने कल्चुरि शासक गंगये देव को परास्त किया। इसके अतिरिक्त हमें अन्य कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती है।

देववर्मन

देववर्मन विजयपाल का बड़ा पुत्र था, अतः बड़ा होने के कारण विजयपाल के बाद वह सिंहासन पर बैठा। इसका अनुज कीर्तिवर्मन था, जो देववर्मन के बाद शासक बना था। उसके 1051 ई. के चरखारी अभिलेख में यह वर्णन किया गया है कि ’’संसार नश्वर और दुखपूर्ण है।’’ इस कथन से यह अनुमान लगाया जाता है कि कल्चुरि नरेश लक्ष्मीकर्ण ने चंदेलों पर आक्रमण करके राज्य के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया था। तब देववर्मन दुखी हो गया होगा। एक शासक के रूप में यह घटना तो स्वाभाविक ही है। 

कीर्तिवर्मन

कीर्तिवर्मन, देववर्मन का भाई था तथा विजयपाल का पुत्र था। देववर्मन के बाद  वह शासक बना। साक्ष्यों से पता होता है कि कल्चुरि शासक लक्ष्मीकर्ण ने अपने खाए हुए क्षेत्रों को अपने अधीन कर लिया था, चंदेलों की स्थिति को मजबूत किया था। उसके दरबारी पंडित कृष्णमिश्र ने प्रबोधचंद्रादेय नाटक लिखा था।

कीर्तिवर्मन के बाद उसका पुत्र सल्लक्षणवर्मन (1100 ई.) शासक बना। मऊ अभिलेख से ज्ञात होता है कि वह कला तथा विद्या प्रेमी था। उसने मालवों तथा कल्चुरियों को पराजित किया था।

मदनवर्मा

मदनवर्मा अपने समय का पराक्रमी शासक था। मदनवमार्, पृथ्वीवर्मन का पुत्र था। मदन से पूर्व जयवर्मन और पृथ्वीवर्मन ने शासन किया था, लेकिन इसके शासनकाल की घटनाएं प्रकाश में नहीं आ सकी है।

मऊ अभिलेख का कथन है कि मदनवर्मन ने चौदि-नरेश, काशी नरेश तथा मालवा व अन्य नरेशां े को भी परास्त किया था। गुजरात के चालुक्य शासक सिद्धराज ने जयसिंह से युद्ध किया था, किंतु दोनों वंशों के अभिलेखों में दोनांे की ही विजय का उल्लेख किया गया है, अतः यह कहा जा सकता है कि युद्ध निर्णायक नहीं रहा हा।े

मदनवर्मा के बाद उसका पौत्र परमर्दी 1163 ई. में शासक बना। यह समय मुस्लिम आक्रमण का था, अतः परमर्दी के शासन पर सदैव भय बना रहता था। इस समय चालुक्य का भिलसा पर अधिकार था, किंतु बाद में परमर्दी ने भिलसा पर अधिकार कर लिया था। वह अब दशार्णाधिपति कहलाया।

परमर्दी

पृथ्वीराज रासो से ज्ञात होता है कि 1182 ई. में परमर्दी के राज्य पर पृथ्वीराज ने आक्रमण किया और परमर्दी को अधिक क्षति पहुंचाई। यह ‘मदनपुर अभिलेख’ से भी ज्ञात होता है। आल्हा और ऊदल नामक दो वीरांे की सहायता से पृथ्वीराज पर आक्रमण किया, किंतु परमर्दी पराजित हो गया था।

1194 ई. में मुहम्मद गौरी ने जयचंद पर आक्रमण किया किंतु परमर्दी ने जयचंद की भी सहायता नहीं की। इसी तरह जब मुहम्मद गौरी ने प्रथम तथा द्वितीय तराइन युद्ध किया तब पृथ्वीराज द्वारा परमर्दी से सहायता मांगने पर परमर्दी ने सहायता नहीं पहुंचाई। इसी प्रकार की मानसिक संकीर्णता तत्कालीन समस्त हिंदू राजाओं में देखने को मिलती है। इसी कारण मुस्लिम आक्रमणकारी धीरे-धीरे सफल हो गए और बाद में सल्तनत युग की स्थापना हुई थी। परिणामस्वरूप परमर्दी को भी इसके दुष्परिणामों से गुजरना पड़ा।

अब 1202 ई. में कुतुबुद्दीन ने कालिंजर के दुर्ग को घेर लिया। ‘फरिश्ता’ के अनुसार परमर्दी ने कुछ दिनांे तक सामना किया, बाद में संधि के लिए तैयार हो गया, किंतु उसकी मृत्यु हो गई। अब उसके मंत्री अजयदेव को किले में रसद के अभाव के कारण संधि करनी पड़ी। कुतुबुद्दीन ने वहाँ हिंदुओं को मुसलमान अथवा दास बनाया, और मंदिरों को लूटा।

इस प्रकार चंदेल शासकों का अब पतन हो गया। चंदेल शासकों का काल युद्धों से पूर्ण रहा। आंतरिक आक्रमण के साथ अब मुस्लिम आक्रमण भी होने लगे, अब शासकों को एकजुट होकर, अपन-े अपने क्षेत्र के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण क्षेत्र की विदेशी आक्रमणों से रक्षा के लिए एकजुट रहना था, किंतु ऐसा नहीं हुआ और इसी कारण चंदेलों का पतन भी हुआ।

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