जनसंख्या की तीव्र एवं अनियंत्रित वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट कहा जाता है। किसी देश या प्रदेश की जनसंख्या जब उसकी
पोषण-क्षमता में अधिक हो जाती है अर्थात् खाद्य पदार्थों तथा जीवनोपयोगी वस्तुओं
व साधनों की कमी हो जाती है और जीवन स्तर नीचे गिरने लगता है, तब अति
जनसंख्या या जनसंख्या विस्फोट की समस्या उत्पन्न होती हैं इस स्थिति में तीव्र
जसंख्या वृद्धि के फलस्वरूप जनसंख्या का घनत्व भी तीव्रता से बढ़ता जाता है
जिससे उपलब्ध भूमि और संसाधनों पर जनसंख्या का भार भी बढ़ता है और प्रतिव्यक्ति
खाद्यान्न तथा जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति कम हो जाती है।
जनसंख्या विस्फोट की समस्या मूलरूप से विकासशील देशों में पाई जाती है। औद्योगिक विकसित देशों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होने पर भी यहाँ विस्फोट की स्थिति नहीं है, क्योंकि वहाँ जीवनयापन के लिए उपयोगी वस्तुओं तथा संसाधनों की कमी नहीं है और मुत्युदर की भाँति जन्मदर भी निम्नतम स्तर तक पहुँच गई है। जिसकी वजह से जनसंख्या लगभग स्थाई हो गई या अत्यंत मंदगति से बढ़ रही है और जनसंख्या की वृद्धि दर की वहाँ की विकास दर से अधिक नहीं है। भारत की बीसवीं सदी मंे उत्तरार्द्ध में ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हुई।
जनसंख्या विस्फोट के प्रमुख कारण
जनसंख्या विस्फोट के प्रमुख दो कारण होते हैं- (1) तीव्र जनसंख्या वृद्धि और (2) आवश्यक संसाधनों में मन्द गति से वृद्धि। इसकी विवेचना माल्थरा के सिद्धान्त में भी मिलती है। माल्थरा के अनुसार जनसंख्या वृद्धि ज्यामितीय दर अर्थात् 1:2:4:8:16 आदि अनुपात में होती है, किन्तु खाद्य आपूर्ति में वृद्धि अंकगणितीय दर अर्थात् 1:2:3:4:5 आदि अनुपात में होती है। फलतः सामान्य स्थिति में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति निर्मित हो जाती है।जनसंख्या विस्फोट की समस्या मूलरूप से विकासशील देशों में पाई जाती है। औद्योगिक विकसित देशों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होने पर भी यहाँ विस्फोट की स्थिति नहीं है, क्योंकि वहाँ जीवनयापन के लिए उपयोगी वस्तुओं तथा संसाधनों की कमी नहीं है और मुत्युदर की भाँति जन्मदर भी निम्नतम स्तर तक पहुँच गई है। जिसकी वजह से जनसंख्या लगभग स्थाई हो गई या अत्यंत मंदगति से बढ़ रही है और जनसंख्या की वृद्धि दर की वहाँ की विकास दर से अधिक नहीं है। भारत की बीसवीं सदी मंे उत्तरार्द्ध में ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हुई।
वर्ष
2001-2011 दशक की वृद्धि को ही देखा जाए तो प्रतिवर्ष 1.9 करोड़ जनसंख्या
की वृद्धि हो रही है। इसीलिए कहा जाता है कि भारत प्रतिवर्ष एक आस्टेªलिया
उत्पन्न करता है। विश्व के कुल भू-भाग का मात्र 2.4 प्रतिशत भारत के पास है,
जबकि विश्व जनसंख्या में हमारा योगदान 16 प्रतिशत है। जनसंख्या विस्फोट के
कारण यहाँ प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ा तथा पर्यावरण को गम्भीर
क्षति हुई। तीव्र जनसंख्या वृद्धि से देश में बेरोजगारी, भुखमरी, जल संकट, अशिक्षा,
अपराध, महामारी, ऊर्जा संकट, आतंकवाद जैसे अनेक समस्याओं ने विकराल रूप
धारण कर लिया है। औद्योगिक व कृषि उत्पादन में वृद्धि के प्रयास भी जनसंख्या
वृद्धि के कारण बौने नजर आते है। जनंसख्या विस्फोट ने प्रकृति से विरासत में मिले
बहुमूल्य संसाधनों वायु, जल एवं भूमि को प्रदूषित किया है। साथ ही खाद्यान्न एवं
जल संकट उत्पन्न किया है।
(1) खाद्य समस्या - तेजी से बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में खाद्य पदार्थों और पोषक आहार में वृद्धि न हो पाने के कारण कुपोषण तथा अल्पाहार की समस्यायें सर्वाधिक पायी जाती है। कुपोषक से शिशु मृत्यु और मातृ मृत्युदर अधिक ऊँची रहती है। जनसंख्या के एक बड़े भाग को भरपेट भोजन तथा संतुलित पोषण आहार न मिल पाने से जनस्वास्थ्य में गिरावट आती है जिससे कार्यक्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। प्रायः विकासशील देशों में खाद्य समस्या विकराल रूप में पाई जाती है तथा ऐसे देशों को प्रतिवर्ष बड़ी मात्रा में खाद्यान्न और खाद्य पदार्थों का आयात करना पड़ता है।
जनसंख्या विस्फोट से उत्पन्न होने वाली प्रमुख
किसी देश में उपलब्ध प्राकृतिक और मानवीय संसाधनों की तुलना में जब तीव्र वृद्धि के कारण जनसंख्या अधिक हो जाती है, तब वहाँ अनेक प्रकार की सामाजिक, आर्थिक एवं जननांकीय समस्याएं पैदा हो जाती है। जिसमें से कुछ प्रमुख समस्या है-(1) खाद्य समस्या - तेजी से बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में खाद्य पदार्थों और पोषक आहार में वृद्धि न हो पाने के कारण कुपोषण तथा अल्पाहार की समस्यायें सर्वाधिक पायी जाती है। कुपोषक से शिशु मृत्यु और मातृ मृत्युदर अधिक ऊँची रहती है। जनसंख्या के एक बड़े भाग को भरपेट भोजन तथा संतुलित पोषण आहार न मिल पाने से जनस्वास्थ्य में गिरावट आती है जिससे कार्यक्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। प्रायः विकासशील देशों में खाद्य समस्या विकराल रूप में पाई जाती है तथा ऐसे देशों को प्रतिवर्ष बड़ी मात्रा में खाद्यान्न और खाद्य पदार्थों का आयात करना पड़ता है।
(2) आवास की समस्या - तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या के लिए अतिरिक्त
आवास की आवश्यकता होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता के कारण असंख्य परिवार
टूटी-फूटी झोपडि़यों में जीवन यापन करने के लिए विवश है। नगरों में आवासों की
कमी, अधिक किराया आदि कारणों से बहुत से अल्पाय वाले तथा निर्धन एवं बेरोजगार
लोग सर्वाजनिक भूमियों पर अवैध रूप से कब्जा करके झुग्गी-झोपडि़याँ बनाकर रहने
लगते है जिससे मलिन बस्तियों का विस्तार हेाता है। प्रदूषण युक्त इन गन्दी बस्तियों
में कोलकाता, कानपुर, मुम्बई, चेन्नई, दिल्ली आदि बड़े नगरों की 30 से 50 प्रतिशत
आबादी रहती है।
(3) आर्थिक विकास में बाधा - तीव्र जनसंख्या वृद्धि वाले विकासशील देशों की अपनी राष्ट्रीय आय का ज्यादा से ज्यादा भाग जनसंख्या की प्राथमिक आवश्यकताओं जैसे भोजन, आवास आदि की पूर्ति में खर्च करना पड़ता है जिसके कारण विकास कार्यों के लिए बहुत कम बच पाता है। विकास सम्बन्धी जो थोड़े कार्य हो पाते है वे भी तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण कुछ ही वर्षों में अपर्याप्त अथवा निरर्थक हो जाते हैं। इन देशों में पूँजी और उन्नत प्रौद्योगिकी तथा कुशल श्रमिकों के अभाव के कारण औद्योगीकरण की गति भी शिथिल पाई जाती है। इस तरह प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में भी गिरावट आती है। जिससे जीवन स्तर में भी ह्नास होता है।
(4) तीव्र जनसंख्या वृद्धि - इस अवस्था में जनसंख्या की वार्षिक दर 2 प्रतिशत से ऊपर रहती है। कुछ देशों में यह 4 प्रतिशत से भी ऊपर हो सकती है। विकासशील देशों में 2 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से ही प्रतिवर्ष 50 लाख से अधिक जनसंख्या बढ़ जाती है। तीव्रगति से बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए आवास, भोजन, वस्त्र आदि की समस्याएँ बढ़ती जा रही है।
(5) बेरोजगारी तथा निर्धनता - यह देश विकासशील देशों में अधिक विद्यमान है जहाँ अधिकांश जनसंख्या कृषि के प्राथमिक कार्यों में संलग्न होती है तथा उद्योग, व्यापार, सेवाओं आदि सभी द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रों का विकास अधूरा है। कृषि भूमि सीमित होने तथा यंत्रीकरण आदि कारणों से कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमित होते है। जनसंख्या वृद्धि से प्रति व्यक्ति उपलब्ध कृषि भूमि की मात्रा निरंतर घटती जा रही है। इस तरह विकासशील देशो में बेरोजगारी में वृद्धि से ग्रामीण निर्धनता में वृद्धि होती है। रोजगार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीय क्षेत्रों में जनसंख्या के पलायन से नगरों में भी जरूरत से अधिक जनसंख्या का संकेन्द्रण होने लगता है जिससे वहाँ भी बेरोजगारी की समस्या गम्भीर हो जाती है।
(3) आर्थिक विकास में बाधा - तीव्र जनसंख्या वृद्धि वाले विकासशील देशों की अपनी राष्ट्रीय आय का ज्यादा से ज्यादा भाग जनसंख्या की प्राथमिक आवश्यकताओं जैसे भोजन, आवास आदि की पूर्ति में खर्च करना पड़ता है जिसके कारण विकास कार्यों के लिए बहुत कम बच पाता है। विकास सम्बन्धी जो थोड़े कार्य हो पाते है वे भी तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण कुछ ही वर्षों में अपर्याप्त अथवा निरर्थक हो जाते हैं। इन देशों में पूँजी और उन्नत प्रौद्योगिकी तथा कुशल श्रमिकों के अभाव के कारण औद्योगीकरण की गति भी शिथिल पाई जाती है। इस तरह प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में भी गिरावट आती है। जिससे जीवन स्तर में भी ह्नास होता है।
(4) तीव्र जनसंख्या वृद्धि - इस अवस्था में जनसंख्या की वार्षिक दर 2 प्रतिशत से ऊपर रहती है। कुछ देशों में यह 4 प्रतिशत से भी ऊपर हो सकती है। विकासशील देशों में 2 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से ही प्रतिवर्ष 50 लाख से अधिक जनसंख्या बढ़ जाती है। तीव्रगति से बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए आवास, भोजन, वस्त्र आदि की समस्याएँ बढ़ती जा रही है।
(5) बेरोजगारी तथा निर्धनता - यह देश विकासशील देशों में अधिक विद्यमान है जहाँ अधिकांश जनसंख्या कृषि के प्राथमिक कार्यों में संलग्न होती है तथा उद्योग, व्यापार, सेवाओं आदि सभी द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रों का विकास अधूरा है। कृषि भूमि सीमित होने तथा यंत्रीकरण आदि कारणों से कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमित होते है। जनसंख्या वृद्धि से प्रति व्यक्ति उपलब्ध कृषि भूमि की मात्रा निरंतर घटती जा रही है। इस तरह विकासशील देशो में बेरोजगारी में वृद्धि से ग्रामीण निर्धनता में वृद्धि होती है। रोजगार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीय क्षेत्रों में जनसंख्या के पलायन से नगरों में भी जरूरत से अधिक जनसंख्या का संकेन्द्रण होने लगता है जिससे वहाँ भी बेरोजगारी की समस्या गम्भीर हो जाती है।
जनसंख्या विस्फोट रोकने के उपाय
जनसंख्या विस्फोट से बचाव के लिए उन कारकों पर नियंत्रण लगाया आवश्यक है जिनके कारण जनसंख्या में तीव्रगति से वृद्धि होती है। प्रमुख उपाय हैं-(1) उत्पादन में वृद्धि - बढ़ती जनसंख्या के लिए मौजूद वस्तुओं के
उत्पादन में जनसंख्या वृद्धि पर से अधिक वृद्धि करके जनसंख्या विस्फोट की स्थिति
को कुछ समय के लिए रोका जा सकता है। इसके लिए नवीन उन्नत तकनीकी का
उपयोग करके संसाधनों का विकास और उनके गहन उपयो में पर्याप्त वृद्धि की जा
सकती है। विकासशील देशों में बेकार पड़ी हुई कृषि योग्य भूमि को कृषि भूमि के
तहत उन्नत कृषि यंत्रो, उन्नत बीजों, उर्वरकों, सिंचाई आदि का प्रयोग करते हुए
वर्तमान कृषि उत्पादन को कई गुना बढ़ाया जा सकता हैं। इसी तरह अन्य प्राकृतिक
संसाधनों-जलाशयों, वन, खनिज, ऊर्जा आदि के सदुपयोग द्वारा उत्पादन में वृद्धि
की प्रबल सम्भावनायें मौजूद है।
(2) जन्मदर पर नियंत्रण - जनसंख्या विस्फोट की स्थिति उच्च जन्मदर के कारण उत्पन्न होती है। वह मृत्युदर की भाँति उच्च हो तब जनसंख्या वृद्धि तीव्र नहीं होने पाती है। यह स्थिति तब पैदा होती है जब आर्थिक विकास के साथ-साथ चिकित्सा सुविधाओं में वृद्धि होने से मृत्युदर में कमी आती है, लेकिन जन्मदर उच्च बनी रहती है अथवा मंद गति से घटती है। स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि करके तथा कुपोषण या अल्पपोषण आदि को दूर करके मृत्युदर को कम करना हर समाज एवं राष्ट्र के लिए उपयोग है। अतः जनसंख्या पर नियंत्रण पाने के लिए जन्मदर में कमी लाना ही सबसे अच्छा उपाय है। विभिन्न कृत्रिम साधनों के प्रयोग से जन्मदर को घटाया जा सकता है।
(2) जन्मदर पर नियंत्रण - जनसंख्या विस्फोट की स्थिति उच्च जन्मदर के कारण उत्पन्न होती है। वह मृत्युदर की भाँति उच्च हो तब जनसंख्या वृद्धि तीव्र नहीं होने पाती है। यह स्थिति तब पैदा होती है जब आर्थिक विकास के साथ-साथ चिकित्सा सुविधाओं में वृद्धि होने से मृत्युदर में कमी आती है, लेकिन जन्मदर उच्च बनी रहती है अथवा मंद गति से घटती है। स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि करके तथा कुपोषण या अल्पपोषण आदि को दूर करके मृत्युदर को कम करना हर समाज एवं राष्ट्र के लिए उपयोग है। अतः जनसंख्या पर नियंत्रण पाने के लिए जन्मदर में कमी लाना ही सबसे अच्छा उपाय है। विभिन्न कृत्रिम साधनों के प्रयोग से जन्मदर को घटाया जा सकता है।
मैं यह जानना चाहता हूं कि जब एक व्यक्ति जन्म लेता है तब कितना जमीन और जल आदि कंज्यूम करता है उसके कारण प्रतिवर्ष खेती की जम घटती।
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