अवसादी चट्टानों की उत्पत्ति एवं विशेषताएं

धरातल पर पाई जाने वाली अधिकांश चट्टानें अवसादी चट्टानें हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि पृथ्वी के धरातल का लगभग 75 प्रतिशत भाग इन्हीं चट्टानों द्वारा घिरा हुआ है और शेष 25 प्रतिशत भाग में आग्नेय तथा कायान्तरित चट्टानें फैली हुई हैं। इस प्रकार भूपटल पर अवसादी चट्टानों का फैलाव ही अधिक है। फिर भी ये चट्टानें भू-पृष्ठ का बहुत कम भाग बनाती हैं, क्योंकि इनका घनत्व बहुत कम है और ये केवल धरातल के ऊपर ही फैली हुई हैं। इसके विपरीत धरातल के नीचे गहराई में केवल आग्नेय व कायान्तरित चट्टानें ही मिलती हैं जो घनत्व में अधिक हैं। इस प्रकार भूपृष्ठ को बनाने वाली यदि सभी चट्टानों के योग को लिया जाये, तो उसमें 95 प्रतिशत भाग आग्नेय चट्टानों का तथा 5 प्रतिशत भाग अवसादी चट्टानों का होगा। किन्तु अपने विस्तार के कारण अवसादी चट्टानें ही वस्तुतः धरातल पर विभिन्न भूआकार प्रस्तुत करती हैं।

अवसादी चट्टानों की उत्पत्ति एवं विशेषताएं

अवसादी चट्टानों की उत्पत्ति

प्रारम्भ में जब पृथ्वी द्रव अवस्था से ठोस अवस्था को प्राप्त हुई, तो पृथ्वी के प्रायः सभी भाग आग्नेय चट्टानों द्वारा निर्मित थे। उस काल में धरातल पर परतदार चट्टानों का कोई चिन्ह नहीं था। अपक्षय के प्रभाव से धीरे-धीरे आग्नेय चट्टानों का अपरदन प्रारम्भ हुआ जिससे आग्नेय चट्टानें टूटकर चूर्ण रूप में बदलने लगीं। आग्नेय चट्टानों का यही क्षय पदार्थ या चूर्ण पवन अथवा जल के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान को जमा किया जाने लगा।

धरातल पर पाई जाने वाली परतदार चट्टानें ये ही हैं जो कि अवसाद के रूप में कहीं जमा की गई हैं। वे सभी चट्टानें जो चट्टान चूर्ण के एकत्र होकर जमा हो जाने से बनी हैं, अवसादी चट्टानें कहलाती हैं।

परतदार चट्टानों का निर्माण आग्नेय चट्टानों के क्षय पदार्थों के द्वारा ही होता है, किन्तु समुद्र में रहने वाले जीव-जन्तु और उसके अन्दर पाई जाने वाली वनस्पति भी इनके निर्माण में काफी योग देती है। कई समुद्री जीवों के शरीर के खोल की रचना समुद्र में पाए जाने वाले रासायनिक तत्वों से होती है। अतः जब ये जीव मर जाते हैं, तो लहरों के द्वारा इनके शरीर कंकड रेत चीका जीव शेषास का क्षय होने लगता है और धीरे-धीरे चूर्ण होकर समुद्र में जम जाता है। इसी प्रकार वनस्पति भी सड़.गलकर पानी में घुल जाती है और फिर पेंदे में बैठ जाती है। कालान्तर में ये ही पदार्थ परतदार चट्टानों का रूप ले लेते हैं।

परतदार या अवसादी चट्टानों की विशेषताएँ

1. यदि इन चट्टानों को चाकू अथवा किसी कठोर पदार्थ से खुरचा जाय तो इन चट्टानों पर एक धारी बन जाएगी और धुरी की चूर अलग हो जाएगी। अब यदि इस चूर को सूक्ष्मदर्शक यन्त्र से देखा जाए, तो स्पष्ट ज्ञात होगा कि इस चूर में छोटे-बड़े अनेक सूक्ष्म कण विद्यमान होते हैं। इन सूक्ष्म कणों का विशेष निरीक्षण करने पर यह भी विदित होगा कि ये कण विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थों से प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार परतदार चट्टानें भिन्न-भिन्न रूप की होती हैं और छोटे-बड़े भिन्न-भिन्न कणों से निर्मित होती हैं।

2. इन चट्टानों की दूसरी विशेषता यह है कि इनमें बहुत सी परतें अथवा स्तर होते हैं जो एक के ऊपर एक समतल रूप में जमे होते हैं। इन परतों की विशेषता ही इन चट्टानों को आग्नेय चट्टानों से अलग करती हैं।

3. इन चट्टानों में वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं के अवशेष पाए जाते हैं। ये प्राणीज अवशेष प्रायः दोनों परतों के बीच दबे रहते हैं। इन अवशेषों से चट्टानों के बनने के स्थान व समय का पूर्ण ज्ञान हो जाता है।

4. समुद्र जल में निर्मित होने के कारण इनमें लहरों और धाराओं के चिन्ह, एक-दूसरे को काटती हुई क्यारियाँ, पगडंडियाँ और चूहों के बिल उसी तरह प्राप्त होते हैं जैसे कि समुद्र तट की बालू में मिलते हैं।

5. ये चट्टानें अपेक्षाकृत मुलायम होती हैं और इनमें रवे नहीं होते। ये चट्टानें अपरदन से शीघ्र प्रभावित होती हैं।

अवसादी चट्टानों के भेद

अवसादी चट्टानों को उनकी निर्माण-विधि के अनुसार चार बड़े भागों में विभक्त किया जा सकता है-
  1. पूर्ववर्ती चट्टानों के क्षय पदार्थों से निर्मित चट्टानें
  2. जल में घुले हुए रसायनों से निर्मित चट्टानें
  3. कार्बनिक तत्वों से निर्मित चट्टानें
  4. विभिन्न साधनों द्वारा निर्मित चट्टानें
  5. पूर्ववर्ती चट्टानों के क्षय पदार्थों से निर्मित चट्टानें

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