रेलगाड़ी का आविष्कार किसने और कब किया था?

रेलगाड़ी का आविष्कार

रेलगाड़ी यानी ट्रेन का आज दुनिया का सबसे बड़ा ट्रांसपोर्ट का साधन है आज दुनिया में करोड़ों यात्री एक दिन में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए ट्रेन का इस्तेमाल करते हैं आज दुनिया की 90 फीसदी आबादी ट्रेन से सफर करती है। ट्रेन ने लोगों की जिंदगी में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है और ट्रेन से केवल यात्री ही नहीं बल्कि बहुत सी जरूरत की चीजों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए रेलगाड़ी का इस्तेमाल किया जा रहा है।

यदि आप कभी भी रेल परिवहन के इतिहास के बारे में जानना चाहते हैं तो यहां से पता चलता है कि आधुनिक गाडि़यों के लिए प्रेरणा कहाँ से आती है, भाप इंजन के शुरुआती दिनों में, दुनिया भर के रेल नेटवर्क के प्रसार में, पहले सबवे का निर्माण हुआ सबसे पहली बार ट्रेन का प्रारूप 1604 में इंग्लैण्ड के वोलाटन में सामने आया था। उस समय लकड़ी से बनायी गई काठ के डिब्बों की गाडि़यां जो पटरियों पर चलती थी और वो घोड़ों से खिंची जाती थी। और बाद में पैरों से इंजीनियर रिचर्ड ट्रवेथिक को पहली बार भाप के इंजन को रेलवे इंजन के रूप में इस्तेमाल किया जो पहला रेलवे इंजन था और पहली बार भाप ट्रेन 1800 के प्रारंभ में हुई। 

21 फरवरी, 1804 को विश्व की पहली रेलवे यात्रा तब हुई थी जब ट्रेविथिक नामक लोकोमोटिव स्टीम इंजन ने एक ट्रेन की खींच लिया। ट्रेविथिक रेलवे इंजनों के साथ प्रयोगात्मक चरण से अधिक सफलता नहीं मिली, क्योंकि उनके इंजन कास्ट आयरन प्लेटवे ट्रैक के लिए बहुत भारी था और रेलवे के पिता माने जाने वाले ट्रेविथिक में अनोखी प्रतिभाओं होने के बावजूद गरीबी में मृत्यु हो गई, उन्हें ‘‘रेलवे के पिता’’ के शीर्षक के साथ कई इतिहासकारों का श्रेय दिया जाता है।

1814 में जार्ज स्टीफन्सन, ट्रेवथिक, मरे और हेडली के शुरुआती इंजनों को देखकर, किलिंगवर्थ कोलियरी के प्रबन्धक ने एक भाप-संचालित मशीन बनाने पर काम किया और उन्होंने ब्लूचर का निर्माण किया, यह पहला सफल Filanged Wheel Adhesion Locomotives था। और स्टीफंसन ने माप लोकोमोटिव बनाने में बड़े पैमाने पर बनाने की भूमिका निभाई। सन् 1825 में उन्होंने इंग्लैण्ड के पूर्वोत्तर में स्टाॅकटन और डार्लिंग्टन रेलवे के लिए लोकोमोशन का निर्माण किया, जो कि दुनिया में पहले सार्वजनिक भाप रेलवे था। इस तरह की सफलता ने स्टीफनसन को अपनी कंपनी की स्थापना यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप के अधिकांश रेलवे में काम करने के लिए प्रेरित किया।

दुनिया की पहली ट्रंक लाइन लिवरपूल और मैनचेस्टर लाइन केवल 35 मील (56 किमी.) लंबी थी जिसको ग्रांड जंक्शन रेलवे कहा जाता है। उसका 1837 में उद्घाटन किया गया था और इससे लिवरपूल और मैनचेस्टर रेलवे का ब्रुमिंगहम के साथ एक क्रीक, स्टैफोर्ड और वाल्वरहैम्टन के माध्यम से मिडपाइंट को जोड़ा जा सकता है। पहले की ट्रेनों और आज की आधुनिक ट्रेनों की स्पीड में दिन रात का अंतर है।

शुरुआती ट्रेनों की गति तो बहुत ही धीमी थी उसके बाद उनके अंदर अच्छे बदलाव किये गये और धीरे-धीरे गति में सुधार किया गया। शुरुआत में ट्रेन की गति 10 से 15 किलोमीटर प्रति घंटा के हिसाब से थी और आज की आधुनिक ट्रेनें 200 से 300 घंटा प्रति किलोमीटर के हिसाब से चल रही है। जापान जैसे विकसित देश 500 किलोमीटर प्रति घंटा के हिसाब से चलने वाली ट्रेनें बना रहे हैं। अविकसित देशों के अंदर तो ट्रेनों की गति कुछ खास नहीं है। आज दिन भर ट्रेनों की सुविधा और गति निरन्तर सुधार के प्रयास किये जा रहे हैं।

शुरुआत में भाप के इंजन से चलने वाली ट्रेनों में बदलाव करके डीजल से चलने वाले इंजन की ट्रेनों को इजाद किया गया उसके बाद उसे बदलाव करके बिजली से चलने वाले इंजन बनाए गये और आज ज्यादातर बिजली से चलने वाले रेल इंजन का प्रयोग किया जा रहा है। बिजली से चलने वाले इंजन का इस्तेमाल इसलिए बढ़ा क्योंकि इससे ट्रेन की गति अच्छी है और यह वातावरण को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है लेकिन इसमें बिजली खपत बहुत ज्यादा होती है और कुछ विकसित देश इतने बड़े बिजली उत्पादक नहीं हैं जो इन इंजनों को पर्याप्त मात्रा में बिजली की पूर्ति करवा सके इसलिए उन देशों में आज भी डीजल इंजन का इस्तेमाल किया जा रहा है।

आज बदलाव करके बहुत सी प्रकार की ट्रेनें बनाई जा रही हैं जिनके अंदर सुविधा और गति के हिसाब से अलग-अलग विशेषताएं हैं जैसे बुलेट ट्रेन, मैगनेटिव ट्रेन, या मैट्रो इन सभी के अंदर अलग-अलग विशेषताएं इन ट्रेनों को स्पीड़, दूरी और लंबाई के हिसाब से अलग-अलग बनाया गया है।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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