जेरेमी बेंथम का जीवन परिचय, बेन्थम की प्रमुख कृतियाँ

जेरेमी बेंथम का जीवन परिचय

जेरेमी बेन्थम का जन्म 1748 ई. में लन्दन के एक प्रतिष्ठित वकील परिवार में हुआ था। उसके पिता और पितामह उस समय के श्रेष्ठ कानूनविद् थे। उसके पिता जिरमिह बेन्थम की आकांक्षा थी कि उनका पुत्र भी एक नामी वकील बने। वह तीन वर्ष की आयु में लैटिन तथा चार वर्ष की आयु में फ्रेंच पढ़ने लग गया। उसने तेरह वर्ष की आयु में मैट्रिक तथा पन्द्रह वर्ष की आयु में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास कर ली। इसके बाद उसने ‘लिंकन्स इन’ में कानूनशास्त्र का अध्ययन करने के लिए प्रवेश लिया। 

बेन्थम प्रतिदनि नियमित रूप से लिखने वाला असाधारण व्यक्ति था और ज्ञान-विज्ञान के सभी क्षेत्रों में उसकी निर्बाध गति थी। उसके लेखों की पाण्डुलिपियाँ जो 148 सन्दूकों में बन्द हैं, लन्दन विश्वविद्यालय और ब्रिटिश म्यूजियम में आज भी सुरक्षित रूप से रखी हुई हैं। उसके लेखन का क्षेत्र बड़ा व्यापक था, किन्तु लेखन के प्रति वह बड़ा लापरवाह भी था। उसने नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र, मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिक शास्त्र, आदि विषयों पर ग्रन्थों की रचना की। उसकी कृतियों और सेवाओं से प्रभावित होकर सन् 1792 में फ़्रांस की राष्ट्रीय सभा द्वारा उसे ‘फ्रेंच नागरिक’ की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया, किन्तु इंगलैण्ड ने उसके विचारों को कोई महत्व प्रदान नहीं किया। फलतः प्रतिक्रियास्वरूप वह उग्र सुधारवादी बना गया और राजनीति में सक्रिय भाग लेते हुए वह अपने सुधारों को कार्यान्वित करने के लिए प्रयत्न करने लगा। 

6 जून, 1832 को 84 वर्ष की आयु में लन्दन में  जेरेमी बेंथम का निधन हो गया।

बेन्थम की कृतियाँ 

बेन्थम अपने समय का महानतम् लेखक था। उसमें नियमित रूप से लिखने की असाधारण प्रतिभा थी। उसके द्वारा
लिखे गये पृष्ठों की संख्या एक लाख से भी अधिक है। उसने कानून, तर्कशास्त्र, दण्डशास्त्र, नीतिशास्त्र, आदि विविध विषयों पर लिखा, किन्तु एक भी ग्रन्थ पूरा नहीं किया। 

वह एक विषय पर लिखना शुरू कर देता था, किन्तु उससे उठने वाली जिज्ञासा को शान्त करने के लिए पहली पुस्तक अधूरी छोड़कर दूसरी पुस्तकर लिखना शुरू कर देता था। बेन्थम की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
  1. प्रेफगमेण्ट्स आन गवर्नमेण्ट, 1776 (Fragments on Government, 1776)
  2. एन इन्ट्रोडक्शन टू दि प्रिन्सिपल्स आफ एण्ड लेजिस्लेशन, 1789 (An Introduction to the Principles of Morals and Legislation, 1789)
  3. एमिनसिपेट योर काॅलोनीज, 1783 (Emancipate your Colonies, 1783)
  4. प्रिन्सिपल्स आफ इन्टरनेशनल लाॅ (Principles of International Law)
  5. डिसकोर्सेज आन सिविल एण्ड पेनल लेजिस्लेशन, 1802 (Discoures on Civil and Penal Legislation, 1802)
  6. ए थ्योरी आफ पनिशमेण्ट एण्ड रिवाडर््स, 1811 (A Theory of Punishment and Rewards),
  7. केसिज्म आफ पार्लियामेन्टरी रिफाम्र्स, 1809 (Catechism of Parliamentary Reforms, 1809)
उपयोगितावादी चिन्तन की सामान्य रूपरेखा उसकी प्रारम्भिक रचना ‘प्रेफगमेण्ट्स आनॅ गवर्नमेण्ट’ में मिलती है इसमें ब्लेकस्टोन की ‘कमेंट्रीज’ की आलोचना की गयी है और इस आलोचन के माध्यम से सम्पूर्ण विधिक व्यवसाय तथा इंग्लैण्ड के शासन के सम्बन्ध में ह्निग विचारधारा की आलोचना की गयी है।

‘पे्रफगमेण्ट्स आन गवर्नमेण्ट’ ग्रन्थ मुख्य रूप से आलोचनात्मक था, लेकिन बेन्थम ने एक अन्य प्रमुख ग्रन्थ
‘इण्ट्रोडक्शन टू दि प्रिंसिपल्स आफ मारेल्स एण्ड लेजिस्लेशन’ में पुनर्निर्माण की भी कोशिश की है। इस ग्रन्थ में
हैल्वेटियस द्वारा प्रतिपादित शैली पर मनोविज्ञान, नीतिशास्त्र और न्यायशास्त्र को संयुक्त किया गया।

बेंथम का योगदान

अनेक अन्तर्विरोधों व सम्भ्रान्तियों के बावजूद बेंथम राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में एक श्रेष्ठ विचारक के रूप में गिना जाता है। उसने उन्नीसवीं शताब्दी के घटनाचक्र को इंगलैंड तथा अन्य देशों में सुधारने के रूप में इतना अत्यधिक प्रभावित किया, उतना अन्य किसी विचारक ने नहीं किया। उसके सुधारों सम्बन्धी सुझाव सम्पूर्ण संसार के लिए उपयोगी सिद्ध हुए हैं उसकी रचनाओं का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया और उसने रूस, स्पेन, पुर्तगाल व दक्षिणी अमेरिका की राजनीतिक विचारधारा को भी प्रभावित किया। उसका राजनीतिक चिन्तन के विकास में योगदान है :-

1. राज्य व सरकार का कल्याणकारी लक्ष्य - बेंथम ने राज्य व सरकार का लक्ष्य अधिकतम लोगो को अधिकतम सुख प्रदान करना बताया है। बेंथम ने कहा कि राज्य मनुष्य के लिए है न कि मनुष्य राज्य के लिए है। उसने कहा कि वही राज्य उत्तम हो सकता है जो अपने प्रजाजनों का अधिकतम हित चाहता हो। उसने राज्य व सरकार की सफलता की कसौटी व्यक्तियों को अधिक से अधिक सुख प्रदान करने को माना है। बेंथम ने राज्य व सरकार को कल्याणकारी संस्थाएँ माना है। 

उसका कहना है कि राज्य व सरकार की उत्पत्ति मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ही होती है और इनका अस्तित्व इन आवश्यकताओं की पूर्ति पर ही निर्भर है। इसलिए उसने राज्य व सरकार को जनता की भलाई के लिए अधिकतम प्रयास कर अपने अस्तित्व को न्यायसंगत सिद्ध करने के लिए कहा है। उसका ‘अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख’ का लक्ष्य आधुनिक राज्यों व सरकारों का भी लक्ष्य है। अत: यह बेंथम की शाश्वत देन है।

2. न्याय-व्यवस्था में सुधार - बेंथम ने ब्रिटिश न्याय प्रणाली की कटु आलोचना करते हुए न्यायिक सुधार के सुझाव दिए हैं। उसने कहा है कि न्याय अमीरों को ही मिलता है, गरीबों को नहीं। उसने गरीबों के लिए बनाने का सुझाव दिया। उसने न्यायिक कार्यवाहियों को सरल व सस्ता बनाने का जो सुझाव दिया, वह आज भी अनेक देशों की न्यायिक व्यवस्थाओं में अपनाया गया है। इंगलैण्ड की सरकार ने भी बेंथम के सुझावों पर ही अपनी न्याय-प्रणाली का विकास किया है।

3. कानूनों का सुधार - बेंथम ने कानून के क्षेत्र में अविलम्ब तथा स्थायी प्रभाव डाला है। उसने कानून में सरलता, स्पष्टता व व्यावहारिकता लाने का जो सुझाव दिया था, वह ब्रिटिश सरकार द्वारा बाद में अपनाया गया। उसने कानूनों को नागरिक, फौजदारी तथा अन्तरराष्ट्रीय कानून के रूप में बाँटकर कानूनशास्त्र को एक नई दिशा दी। अमेरिका, रूस तथा अन्य देशों ने उसके संहिताकरण के आधार पर ही अपनी कानून व्यवस्था को ढालने का प्रयास किया है। उसके प्रयत्न से ही कानून के मौलिक सिद्धान्तों के चिन्तन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। भारत में भी उसके सुधारों का व्यापक प्रभाव पड़ा है।

4. दण्ड व्यवस्था में परिवर्तन - बेंथम ने दण्ड व्यवस्था में सुधार के अनेक उपायों को प्रस् किया है। उसने जेलों में सुधार के अनेक उपायों को प्रस् किया है। उसने जेलों में सुधार की जो योजना सुझाई थी, वह आज भी अनेक देशों में व्यावहारिक रूप ले चुकी है।

5. समानता का विचार - बेंथम ने कहा है कि “एक व्यक्ति को एक ही गिनना चाहिए।” इस विचार स े समानता के सिद्धान्त का जन्म होता है। प्रत्येक व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब, कानून की दृष्टि में समान है। उसका समानता का विचार प्रतिनिधि लोकतन्त्र का आधार है।

6. लोकतन्त्र का संस्थापक - बेंथम ने गुप्त मतदान, प्रेस की आजादी, वयस्क मताधिकार, धर्मनिरपेक्षता आदि विचारों का समर्थन करके लोकतन्त्र को सुदृढ़ आधार प्रदान किया है। आधुनिक युग में भी सभी प्रजातान्त्रिक देशों में इनका वही महत्त्व है जो बेंथम ने सुझाया था। अत: बेंथम लोकतन्त्र के संस्थापक हैं।

7. अनुसंधान व गवेषणा की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन -  बेंथम ने ही सर्वप्रथम इस बात पर बल दिया कि राज्य की नीति सोच-विचार करके ही निश्चित की जानी चाहिए। उसने ही गवेषणात्मक पद्धति को सर्वप्रथम राजनीतिशास्त्र में लागू किया। उसने दर्शनशास्त्र के अनुभववाद तथा आलोचनात्मक पद्धति को राजनीति, शासन और कानून के क्षेत्र में लागू करने का प्रयास किया। उसने कहा कि राज्य के सिद्धान्त, परम्परा व कल्पनावादी अन्त:करण पर आधारित नहीं हो सकते। ये अनुसन्धान व प्रमाण पर ही आधारित होने चाहिए। इसी धारणा को आगे चलकर अनेक राजनीतिशास्त्र के विचारकों ने अपनाया है। इसलिए यह उसकी एक महत्त्वपूर्ण देन है।

8. उपयोगितावादी सिद्धान्त को दार्शनिक आधार प्रदान किया - बेंथम ने सर्वप्रथम दार्शनिक सम्प्रदाय की स्थापना करके उसे वैज्ञानिक रूप देने का प्रयास किया है। यद्यपि उसने अपने उपयोगितावाद के मूल सिद्धान्त प्रीस्टले व हचेसन जैसे विद्वानों से ग्रहण किए हैं लेकिन इनको व्यवस्थित रूप प्रदान करने का श्रेय बेंथम को ही जाता है।

9. मध्यकालीन राजनीतिक विचारों का खण्डन -  बेंथम ने सामाजिक समझौता सिद्धान्त का खण्डन किया और कहा कि राज्य किसी काल्पनिक समझौते का परिणाम नहीं है। उसने प्रजाजनों द्वारा स्वाभाविक रूप से आज्ञापालन को राज्य का आधार बताया है। उसने कहा कि मनुष्य राज्य की आज्ञा का पालन अपने लाभ के लिए करते हैं। इसी तरह उसने मध्ययुग में प्रचलित राज्य की उत्पत्ति के दैवी सिद्धान्त का भी खण्डन किया है। उसने अपने अनुभववाद पर आधारित विचारों द्वारा मध्ययुगीन अन्धकार व रहस्यवाद के जाल में फँसी राजनीतिक व्यवस्था को नई आशा की किरण दिखाई।

10. राजनीतिक स्थिरता का सिद्धान्त - बेंथम ने तीव्र परिवर्तनों की अपेक्षा धीरे-धीरे होने वाले सुधारों से ब्रिटिश प्रणाली में स्थिरता का गुण पैदा करने के सुझाव दिए। उसने सुधारों को क्रान्तियों की तुलना में अधिक वांछनीय और स्पृहणीय बताया। उसके सुझावों को ब्रिटिश सरकार द्वारा बाद में मान लिया गया। इससे ब्रिटिश राजनीति में स्थिरता के युग का सूत्रपात हुआ।

11. व्यक्तिवाद का आरक्षक - बेंथम ने व्यक्ति को राज्य के सर्वसत्ताकारवादी पाश से मुक्त कराने का प्रयास किया है। उसने स्पष्ट कहा है कि राज्य व्यक्ति के लिए है, न कि व्यक्ति राज्य के लिए। उसने राज्य को मनुष्यों की उपयोगिता की कसौटी पर परखने का सुझाव देकर व्यक्तिवाद की आधारशिला मजबूत की हैं आधुनिक युग में अनेक सरकारें व्यक्ति की उपयोगितावादी धारणा के आधार पर ही कार्य कर रही हैं। व्यक्ति आधुनिक युग में राज्य के प्रत्येक कार्य का केन्द्र-बिन्दु है।
    बेंथम ने अप्रत्यक्ष रूप से समाजवाद के विकास में भी योगदान दिया है। उसने स्वतन्त्र व्यापार तथा अहस्तक्षेप के सिद्धान्त का समर्थन करके समाजवाद का ही पोषण किया है।

    अत: निष्कर्ष तौर पर कहा जा सकता है कि बेंथम का राजनीति-दर्शन के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। उसकी महत्त्वपूर्ण देनों को भुलाया नहीं जा सकता। उसके विचार शाश्वत सत्य के हैं जो आधुनिक युग में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

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