प्रतिलोम विवाह इस प्रकार के विवाह में लड़की उच्च वर्ण, जाति, उपजाति, कुल या वंश की होती है और लड़का निम्न वर्ण, जाति, उपजाति, कुल या वंश का। इसे परिभाषित करते हुए कपाड़िया लिखते हैं, एक निम्न वर्ण के व्यक्ति का उच्च वर्ण की स्त्री के साथ विवाह प्रतिलोम विवाह कहलाता था। उदाहरण के लिए, यदि एक ब्राह्मण लड़की का विवाह किसी क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र लडके से होता है तो ऐसे विवाह को हम प्रतिलोम विवाह कहेंगे। हिन्दू विवाह अधिनियम, 1949 एवं 1955 के हिन्दू विवाह अधिनियम में अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाह दोनों को ही वैध माना गया है।
अनुलोम विवाह क्या है
जब एक उच्च वर्ण, जाति, उपजाति, कुल एवं गोत्र के लडके का विवाह ऐसी लड़की से किया जाय जिसका वर्ण, जाति, उपजाति, कुल एवं वंश के लडके से नीचा हो तो ऐसे विवाह को अनुलोम विवाह कहते हैं।
दूसरे शब्दों में इस प्रकार के विवाह में लड़का उच्च सामाजिक समूह का होता है और लड़की निम्न सामाजिक समूह की। उदाहरण के लिए, एक ब्राह्मण लडके का विवाह क्षत्रिय या वैश्य लड़की से होता है तो इसे हम अनुलोम विवाह कहेंगे। वैदिक काल से लेकर स्मृति काल तक अनुलोम विवाह का प्रचलन रहा है।