खरगौन जिले का इतिहास, प्रमुख स्थल

मध्यप्रदेश के 51 जिलों में से एक खरगौन जिला है। खरगौन मध्यप्रदेश के इन्दौर संभाग के अन्तर्गत आता है। खरगौन को सफेदसोना (कपास) उत्पादक जिला के रूप में जाना जाता है। खरगौन जिले को सफेद सोना (कपास) क्षेत्र कहा जाता है। खरगौन को पूर्व में पश्चिय निमाड़ क्षेत्र के रूप में जाना जाता है । खरगौन सफेद सोने अर्थात् कपास के व्यवसाय के लिए प्रसिद्ध है। खरगौन जिला मध्यप्रदेश की दक्षिणी पश्चिमी सीमा पर स्थित है। इसका क्षेत्रफल लगभग 8030 वर्ग कि.मी. है। इस जिले के उत्तर में धार, इंदौर व देवास, दक्षिण में महाराष्ट्र, पूर्व में खण्डवा, बुरहानपुर तथा पश्चिम में बड़वानी है। नर्मदा घाटी के लगभग मध्य भाग में स्थित इस जिले के उत्तर में विंध्याचल एवं दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत श्रेणियाँ है । नर्मदा नदी जिले में लगभग 50 कि.मी. बहती है। खरगौन जिला 09 विकासखण्ड (जनपद पंचायत) से मिलकर बना है। 

खरगौन जिला मध्यप्रदेश की दक्षिणी पश्चिमी सीमा पर स्थित है। इसका क्षेत्रफल लगभग 8030 वर्ग कि.मी. है। इस जिले के उत्तर में धार, इंदौर व देवास, दक्षिण मे महाराष्ट्र पूर्व में खण्डवा, बुरहानपुर तथा पश्चिम में बड़वानी है। नर्मदा घाटी के लगभग मध्य भाग में स्थित इस जिले के उत्तर में विंध्याचल एवं दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत श्रेणियाँ है । खरगौन जिला 21 अंश –22 मिनिट 22 अंश 35 मिनिट (उत्तर) अक्षांश से 74 अंश 25 मिनिट - 76 अंश 14 मिनिट (पूर्व) देशांश के बीच यह जिला फैला है। नर्मदा नदी जिले की मुख्य नदी है। नर्मदा नदी से यहाँ पर विस्तृत क्षेत्र में सिंचाई की जाती है। इसके अतिरिक्त कुंदा तथा वेदा अन्य प्रमुख नदियाँ है। 

खरगौन जिले का इतिहास

इतिहासकारों के अनुसार नर्मदा घाटी की सभ्यता अत्यंत प्राचीन है। रामायणकाल, महाभारतकाल, सातवाहन, कनिष्क, अभिरोहर्ष, चालुक्य, भोज, होलकर, सिंधिया, मुगल तथा ब्रिटिश आदि से यह क्षेत्र जुड़ा रहा है। प्राचीन स्थापत्य कला में अवशेष इस क्षेत्र के ऐतिहासिक गाथाओं को व्यक्त करने में आज भी सक्षम हैं। इस क्षेत्र में प्राप्त पाषाण कालीन शस्त्रों से भी यह सिद्ध होता है।

भारत के उत्तर व दक्षिण प्रदेशों को जोड़ने वाले प्राकृतिक मार्ग पर बसा यह क्षेत्र सदैव ही महत्वपूर्ण रहा है। इतिहास के विभिन्न कालखण्डों में यह क्षेत्र महेश्वर के हैहय, मालवा के परमार, असीरगढ़ के अहीर, माण्डू के मुस्लिम शासक, मुगल तथा पेशवा व अन्य मराठा सरदारों, होल्कर, शिंदे, पवार के साम्राज्य का हिस्सा रहा है। 1 नवम्बर 1956 को मध्यप्रदेश राज्य के गठन के साथ ही यह जिला "पश्चिम निमाड" के रूप में अस्तित्व में आ गया था। दिनांक 25 मई, 1998 को "पश्चिम निमाड़" को दो जिलों खरगौन जिला एवं बड़वानी जिला में विभाजित किया गया।

खरगौन जिले का ऐतिहासिक नाम

ऐसा अनुमान है कि आर्य एवं अनार्य सभ्यताओं की मिश्रित भूमि होने के कारण यह क्षेत्र “निमार्य” नाम से जाना जाने लगा जो कि कालांतर में अपभ्रंष होकर "निमार' एवं फिर “निमाड़” में परिवर्तित हो गया। इस क्षेत्र में नीम के वृक्षों की अधिकता होने के कारण इसका नाम निमाड़ पड़ा ऐसा माना जाता है।

खरगौन के प्रमुख स्थल

खरगौन-जिला मुख्यालय - कुंदा नदी के तट पर बसा यह शहर अत्यंत प्राचीन नवग्रह मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर कपास एवं जिनिंग कारखानों का प्रमुख केन्द्र हैं।

ऊन :- यह स्थान खरगौन से लगभग 20 कि.मी. दूर पर है। परमार युग का शिव–मंदिर तथा जैन मंदिरों का प्रमुख स्थान प्रसिद्ध है। एक बहुत प्राचीन महालक्ष्मी नारायण मंदिर भी यहाँ स्थित । खजुराहों के अतिरिक्त केवल यही परमार कालीन प्राचीन मंदिर है।

• नन्हेश्वर :- खरगौन से लगभग 21 कि.मी. दूर यह स्थान भी प्राचीन शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।

• सिरवेल महादेव :- खरगौन से लगभग 60 कि.मी. दूर इस स्थान के बारे में मान्यता है कि रावण ने महादेव शिव को अपने 10 सिर यहीं अर्पण किये थे । इसीलिए यह नाम पड़ा है। यह स्थान महाराष्ट्र की सीमा से बहुत ही पास है । महावशिवरात्रि पर म.प्र. एवं महाराष्ट्र के अनेक श्रद्धालु यहाँ दर्शन के करने आते है।

• महेश्वर : - इस शहर में हैहयवंश के राजा सहस्रार्जन, रह चुके है जिन्होंने रावण को पराजित किया था । महेश्वर देवी अहिल्याबाई होल्कर की भी राजधानी रहा है। नर्मदा नदी के किनारे बसा यह शहर अपने बहुत ही सुंदर व भव्य घाट तथा महेश्वरी साड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। घाट पर अत्यंत कलात्मक मंदिर है । जिसमें से राजराजेश्वर मंदिर प्रमुख है। आदिगुरू शंकराचार्य तथा पंडित मण्डन मिश्र का प्रसिद्ध शास्त्रार्थ यही हुआ । यह जिले की एक तहसील का मुख्यालय भी है। यह प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है, जोकि खरगौन से लगभग 62 कि.मी. दूर है।

• मण्डलेश्वर :- यह शहर भी नर्मदा नदी के किनारे ही बसा है। नर्मदा पर जल-विद्युत परियोजना व बाँध का निर्माण हुआ है। यहाँ से समीप ही चोली नामक स्थान पर प्राचीन शिव मंदिर है । जहाँ पर भव्य शिवलिंग स्थित है।

बड़वाह व सनावद :- ये शहर नर्मदा के दोनों ओर बसे हैं। उत्तर की ओर बड़वाह तथा दक्षिण की ओर सनावद हैं। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग जाने के लिए यहाँ से ही जाना पड़ता है। पुनासा में इंदिरा सागर - जल विद्युत परियोजना भी सनावद के पास है। विश्व प्रसिद्ध लाल मिर्ची की मण्डी बैड़िया सनावद के पास है ।

• बकावाँ एवं रावेरखेडी :- बाजीराव पेशवा की समाधी रावेरखेड़ी में स्थित है । उत्तर भारत के लिए एक अभियान के समय उनकी मृत्यु यहीं नर्मदा किनारे हो गई थी।

बकावाँ में नर्मदा के पत्थरों को तराश कर शिव-लिंग बनाए जाते है। जोकि पूरे भारत में प्रसिद्ध है।

देजला–देवड़ा :– कुंदा नदी पर एक बड़ा बाँध है। जिससे आसपास के क्षेत्रों में सिंचाई होती हैं।

खरगौन जिले की जलवायु

जलवायु :- किसी स्थान के अनेक वर्षों के मौसम के मध्यमान को वहाँ की जलवायु कहते है। अर्थात् किसी भी क्षेत्र में लंबे समय तक पाये जाने वाले तापमान की स्थिति, वर्षा का समय, मात्रा, वायु की आर्द्रता एवं हवा की गति आदि की औसत अवस्था सभी जलवायु के मुख्य तत्व होते हैं। खरगौन जिले की जलवायु उष्ण है। प्रदेश एवं जिले मुख्य रूप से तीन ऋतुएँ होती है :

  1. ग्रीष्म ऋतु
  2. वर्षा ऋतु
  3. शीत ऋतु

1. ग्रीष्म ऋतु :- ग्रीष्म ऋतु का आगमन खरगौन मे मार्च से शुरू होता है जो लगभग जून तक रहता है। क्षेत्र में अप्रैल-मई व जून के महीने में सर्वाधिक गर्मी रहती है। यहाँ का उच्चतम तापमान 46 ° के लगभग रहता है।

2. वर्षा ऋतु :- खरगौन जिले में वर्षा की स्थिति प्राकृतिक मानसूनी रहती है। वर्षा का आगमन जून माह में शुरू होता है। यहाँ जुलाई-अगस्त माह में अधिक वर्षा होती है। सितम्बर-अक्टूबर में अपेक्षाकृत कम वर्षा होती है। जिले की औसत वर्षा 726.50 मि.मी. है।

3. शीत ऋतु :- नवंबर, दिसंबर जनवरी माह शीत ऋतु का है। शीत ऋतु में काफी ठंड पड़ती हैं। यहाँ दिसम्बर व जनवरी माह अपेक्षाकृत अधिक ठंड पड़ती है, कभी-कभी न्यूनतम तापमान 4 अंश तक चला जाता है। 

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