व्यक्तित्व शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है, व्यक्तित्व शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

व्यक्तित्व से अभिप्राय सामान्यतः: व्यक्ति के रूप, रंग, कद, लंबाई, मोटाई, पतलापन अर्थात् शारीरिक संरचना व्यवहार तथा मृदुभाषी होने से लगाया जाता हैं। थे समस्त गुण व्यक्ति के समस्त व्यवहार के दर्पण हैं । व्यक्तित्व की अनेक धारणाएँ प्रचलित हैं | बोलचाल की भाषा में ‘व्यक्तित्व’ शब्द का प्रयोग शारीरिक बनावट और सौंदर्य के लिये किया जाता है। कुछ लोग व्यक्ति और व्यक्तित्व को एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द मानते हैं |

व्यक्तित्व एक व्यापक शब्द है । यह कई प्रकार के गुणों व तत्वों का समाहार है। ये गुण व तत्व वैचारिकता, आस्थाएं, संस्कार, आनुवंशिकता तथा पर्यावरण हैं । इन्हें किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास के प्रेरक तत्व भी कहा जाता है। व्यक्तित्व निर्माण के ये तत्व व्यक्ति के जीवन के अन्तः व बाह्य दोनों ही पक्षों से ग्रहण किए जाते हैं तथा ये दोनों ही एक-दूसरे के पूरक रूप में कार्य भी करते हैं । इस प्रकार मनुष्य व्यवहार के विराट दर्शन को व्यक्तित्व की संज्ञा से अभिहित किया जाता व्यक्तित्व आचार-विचार, अंग-प्रत्यंग, शरीर-आत्मा, आहार-विहार तथा हृदय-मस्तिष्क आदि का बृहद् सम्मिश्रण है, जिससे किसी व्यक्ति का सम्पूर्ण व्यवहार परिलक्षित होता है । अतः व्यक्तित्व सम्पूर्ण शारीरिक व मानसिक गुणों का संगठित व संयोजित रूप है ।

व्यक्तित्व को विभिन्न भाषाओं में विविध नामों से जाना गया है। हिन्दी में 'व्यक्तित्व', अंग्रेजी में 'पर्सनैल्टी', उर्दू में 'शख़्सियत, फ्रेंच में 'परसोनैलिटी' (Personalite), जर्मनी में 'Personlichkeit, इटालिक में Personalita' आदि । व्यक्तित्व शब्द का अर्थ विभिन्न शब्दकोशों में विद्वानों ने स्पष्ट किया है।

व्यक्तित्व का शाब्दिक अर्थ हरदेव बाहरी ने इस प्रकार स्पष्ट किया है, "व्यक्तित्व शब्द अंग्रेजी शब्द 'पर्सनैल्टी' के हिन्दी रूपांतर से आया है, जिसकी उत्पत्ति लेटिन भाषा के शब्द 'परसोना' से हुई है, जिसका अर्थ है मुखौटा, - मनुष्यत्व, निजी अस्तित्व, निजीपन, अपनापन, व्यक्तित्व विशिष्ट सत्ता और व्यक्तित्व मतारोपण आदि।'' अर्थात् व्यक्तित्व व्यक्ति के अपने विशिष्ट गुण, प्रवृत्ति, निजी अस्तित्व हैं, जो उसे विशेष या अलग बनाते हैं ।

'मानक अंग्रेजी - हिन्दी कोश के अनुसार, “पर्सनैल्टी का अर्थ है - व्यक्तित्व, शख्सियत, व्यक्तिगत अस्तित्व, विशिष्ट वैयक्तिक चरित्र, व्यक्तिगत या व्यक्तिगत आरोप।"" कहने का अभिप्राय है कि व्यक्तित्व व्यक्ति के विशेष गुण हैं, जिनसे उसका चरित्र निर्माण होता है, उसका व्यक्तित्व झलकता है।

कॉलिन्स कोबिल्ड इंग्लिश डिक्शनरी में 'व्यक्तित्व का अर्थ स्पष्ट किया गया है, "व्यक्ति का सम्पूर्ण चरित्र एवं प्रकृति उसका व्यक्तित्व है। 2 अतः स्पष्ट है कि व्यक्ति के चरित्र के आन्तरिक व प्रकृति के बाह्य गुणों से उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है। व्यक्तित्व के अन्तर्गत व्यक्ति के आन्तरिक व बाह्य सभी गुण आ जाते हैं।

डॉ० धर्मपाल मैनी 'व्यक्तित्व' के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं, "व्यक्ति+त्व व्यक्तित्व । व्यक्तित्व शब्द में व्यक्ति से भावार्थक त्व प्रत्यय है। - व्यक्ति की व्युत्पत्ति है- वि + अक्+क्ति। जिसके अर्थ हैं दृश्यमन्ता, वास्तविक रूप या प्रकृति, अकेला मनुष्य, पुरुष । व्यक्तित्व होने का भाव है- व्यक्ति का असामान्य गुण या विशिष्टता, असामान्य विशेषता । कहने का अभिप्राय व्यक्ति के विशिष्ट गुण 'व्यक्तित्व' से ही है, जो उसे औरों से अलग व असामान्य बनाता है। इसी गुण के कारण ही व्यक्ति की अलग पहचान बनती है। मुरारी लाल ने व्यक्तित्व का अर्थ इस प्रकार स्पष्ट किया है, "व्याकरण के अनुसार 'व्यक्ति' शब्द 'व्यक्ति जातिवाचक संज्ञा का 'त्व' प्रत्यय से निर्मित भाववाचक रूप है। व्यक्तित्व रूप में व्यक्तित्व शब्द व्यक्ति की अपेक्षा अधिक गरिमामय है, वस्तुतः व्यक्तित्व ही व्यक्ति का परिचायक होता है। अतः स्पष्ट होता है कि व्यक्तित्व से ही व्यक्ति विशेष बनता है । व्यक्तित्व से ही उसकी एक विशिष्ट जगह निर्धारित होती है। एक प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण व्यक्ति-व्यक्ति में अन्तर स्पष्ट होता है।

अतः हम कह सकते हैं कि 'व्यक्तित्व' एक ऐसा शब्द जिसमें व्यक्ति के आन्तरिक व बाह्य बहुत सारे गुणों व तत्वों का समावेश होता है। ये वे गुण व तत्व हैं, जिनसे किसी व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यवहार को देखा जा सकता है। अपने इन्हीं विशिष्ट गुणों से व्यक्ति समाज में विशेष पहचान बनाता है। व्यक्तित्व को विभिन्न विद्वानों-समीक्षकों ने परिभाषित किया है।

रामचन्द्र वर्मा ने 'मानक हिन्दी कोश' में 'व्यक्तित्व को परिभाषित करते हुए लिखा है, "किसी व्यक्ति की निजी विशिष्ट क्षमता, गुण, प्रवृत्तियाँ आदि जो उसके कार्यों व्यवहारों आदि में प्रकट होती हैं और जिनसे उस व्यक्ति का सामाजिक स्वरूप स्थिर होता है।" अतः स्पष्ट होता है कि व्यक्तित्व व्यक्ति विशेष के वे गुण व प्रवृत्तियाँ हैं, जो उसके कार्य व्यापार तथा व्यवहार में परिलक्षित होते हैं। इन्हीं गुणों के माध्यम से व्यक्ति की अनन्यता स्थापित होती है।

'ज्ञान शब्दकोश' में व्यक्तित्व को परिभाषित करते हुए लिखा गया है, "व्यक्ति की अपनी विशेषता, गुण वह विशेषता किसी व्यक्ति में असामान्य रूप में पाई जाए, व्यक्तित्व कहलाता है।" 2 अर्थात् व्यक्ति के गुण जो उसकी विशेषता दर्शाते हैं, व्यक्तित्व नाम से जाना जाता है। यह अन्तः और बाह्य दोनों का मिश्रित रूप होता है।

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जी डब्ल्यू ऑलपोर्ट 'व्यक्तित्व को परिभाषित करते हुए कहते हैं, "व्यक्तित्व व्यक्ति की मनोशारीरिक पद्धतियों का एक ऐसा आन्तरिक क्रियात्मक संगठन है, जो मनुष्य को उसके एक विशेष प्रकार के पर्यावरण के साथ समायोजन को निर्धारित करता है। अतः स्पष्ट है कि व्यक्तित्व वह विशेष गुणों का समूह है, जो व्यक्ति को उसके पर्यावरण व समाज में समायोजन में सहायता प्रदान करता है। परिवार व परिवेशगत मिले संस्कारों से समाज में एक विशिष्ट स्थान बनाता है।

भाई योगेन्द्रजीत ने व्यक्तित्व के सम्बन्ध में लिखा है, "व्यक्तित्व शब्द व्यक्ति से बना है। इस दृष्टि से व्यक्तित्व का तात्पर्य उन गुणों से है, जिनके आधार पर व्यक्ति-व्यक्ति में अन्तर किया जा सकता है। ये गुण आन्तरिक और बाह्य दो प्रकार के हो सकते हैं। 1 अर्थात् व्यक्ति के विशिष्ट आन्तरिक व बाह्य गुणों के कारण ही समाज में उसकी अलग पहचान बनती है। इन्हीं गुणों से समग्रता भी प्राप्त होती है।

नॉरमन एल० मन लिखते हैं, “व्यक्तित्व एक सामाजिक संदर्भ की वस्तु है ।" 2 अर्थात् किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के माध्यम से उसके सामाजिक व्यवहार को देखा व मापा जा सकता है।

राहुल सांकृत्यायन व्यक्तित्व को परिभाषित करते हुए कहते हैं, "सीप में जैसे मोती का विकास होता है, उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास उसके सामाजिक वातावरण में होता है।" अर्थात् व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास में मुख्य घटक समाज व पर्यावरण हैं। कोई भी व्यक्ति इनके अभाव में सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता।

उदयशंकर ने व्यक्तित्व के सम्बन्ध में लिखा है, "व्यक्तित्व मनोदैहिक व्यवस्थाओं का वह गत्यात्मक संगठन है, जो सम्पूर्ण वातावरण से सम्पर्क स्थापित करता हुआ आत्मा से उदय होता है। 4 कहने का अभिप्राय हैं कि व्यक्तित्व आत्मिक और शारीरिक दोनों विशेषताओं का संकलन है। इसमें स्थायित्व ही नहीं निरन्तर गतिशीलता भी विद्यमान रहती है। इस परिवर्तनशीलता में उसका वातावरण भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

पीयूष गुलेरी व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं, "मानव व्यक्तित्व एक इकाई है, उसका विभाजन संभव नहीं है। व्यक्तित्व के दो पक्ष हैं- अंतः पक्ष और बाह्य पक्ष । दोनों को एकदम पृथक-पृथक नहीं किया जा सकता, क्योंकि इनका अन्योन्याश्रित संबंध है। इसलिए मनुष्य व्यवहार के विराट दर्शन ही को व्यक्तित्व कहा जा सकता है। अर्थात् व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में शारीरिक, मानसिक दोनों रूपों का योगदान है। व्यक्ति के व्यवहार, वृत्तियों, रुचियों, धारणाओं, योग्यताओं व कुशलताओं आदि का लाक्षणिक समायोजन ही व्यक्तित्व है।

अशोक कुमार यादव व्यक्तित्व को परिभाषित करते हुए कहते हैं, “व्यक्तित्व को खंडित करके नहीं देखा जा सकता, वह एक समग्र और पूर्ण इकाई है । व्यक्तित्व बाहरी आकृति वेशभूषा के साथ-साथ सही अर्थों में व्यक्ति की भीतरी सम्पदा का नाम है। यह सम्पदा है- अनुभव, अनुभूति की विचार और चिन्ता की, दर्शन और दृष्टि की। व्यक्ति इसी के आधार पर जीवन को समझता है, उसके प्रति प्रतिक्रिया करता है और अपने अनुसार जीवन को रूपायित करता है।" कहने का अभिप्राय है कि व्यक्तित्व अखण्ड गुण या इकाई है, जो व्यक्ति के विचारों, अनुभवों के साथ-साथ उसकी आकृति व वेशभूषा में भी लक्षित होता है ।

अतः कहा जा सकता है कि व्यक्तित्व व्यक्ति का वह विशिष्ट गुण है, जिसके माध्यम से उसकी एक अलग पहचान बनती हैं। यह गुण व्यक्ति को उसके परिवार, समाज व पर्यावरण में रहकर परम्परागत रूप में प्राप्त होता है तथा इन्हीं के बीच रहकर व्यक्ति अपने इस विशिष्ट गुण का विकास भी करता है। किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व को हम उसके क्रिया- व्यापारों से समझ सकते हैं। व्यक्ति-विशेष के विचार आचरण, उसका कार्य करने का ढंग आदि उसके व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। यही वे विशिष्ट गुण हैं, जो दूसरों के मनोजगत् पर अमिट प्रभाव छोड़ते हैं तथा उसे समाज में औरों से अलग बनाते हैं।

व्यक्तित्व के दो अंग माने जाते हैं- बाह्य और आन्तरिक । बाह्य अंग व्यक्ति के रूप, रंग, स्वास्थ्य, मुखाकृति, कंठ, स्वर तथा उसके वस्त्र धारण करने की प्रक्रिया है । आन्तरिक स्वरूप से अभिप्राय व्यक्ति के स्वभाव व व्यवहार से है। बाह्य व्यक्तित्व बाह्य जगत् को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। आन्तरिक व्यक्तित्व दूसरों के मनोजगत् को प्रभावित करता है। इस प्रकार पूर्ण सामाजिक व्यवहार के लिए बाह्य व आन्तरिक दोनों ही व्यक्तित्व का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है।

व्यक्तित्व शब्द की उत्पत्ति

‘व्यक्तित्व' अग्रेजी के पर्सनेल्टी ( Personality) शब्द का रूपांतर है । अंग्रेजी के इस शब्द की उत्पत्ति युनानी भाषा के पर्सोना (Persona ) शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है- 'नकाव' (Mask )। जैसे जैसे वक्त बीतता गया पर्सोना का अर्थ भी परिवर्तित होता चला - गया। ईसा पूर्व पहली शताब्दी में रोम के प्रसिद्ध लेखक और कूटनीतिज्ञ सिसरो ने पर्सोना को पर्सनेल्टी में रूपांपतरित कर दिया ।

व्यक्तित्व में एक मनुष्य के न केवल शारीरिक और मानसिक गुणों का वरन् उसके सामाजिक गुणों का भी समावेश होता है, पर यह भी पूर्ण रूप व्यक्तित्व नहीं कहा जाता है। “मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि व्यक्तित्व - मानव के गुणों, लक्षणों, क्षमताओं, विशेषताओं आदि की संगठित इकाई है । 

मन के शब्दों में - व्यक्तित्व की परिभाषा, व्यक्तित्व के ढ़ाँचे, व्यवहार की विधियों रूचियों, अभिवृत्तियों, क्षमताओं, योग्यताओं, और कुशलताओं के सबसे विशिष्ट एकीकरण के रूप में की जा सकती है ।

आधुनिक मनोवैज्ञानिक व्यक्तित्व को संगठित इकाई न मानकर गतिशील संगठन और एकीकरण की प्रक्रिया मानते हैं । थार्प व शामलर के अनुसार “ जटिल पर एकीकृत प्रक्रिया के रूप में व्यक्तित्व की धारणा आधुनिक व्यावहारिक मनोविज्ञान की देन है। 

ऑलपोर्ट के अनुसार - व्यक्तित्व व्यक्ति में उन मनेशारीरिक अवस्थाओं का गतिशील संगठन है, जो उसके पर्यावरण के साथ उसका अद्वितीय सामंजस्य निर्धारित करता है | 

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