यह संचार की वह प्रक्रिया है जिसमें मनुष्य खुद से ही संचार करता है अर्थात् इसकी परिधि में मनुष्य स्वयं होता है। दरअसल यह एक मनोवैज्ञानिक क्रिया है जिसमें मनुष्य स्वयं ही चिंतन-मनन करता रहता है। इसमें संचारक और प्रापक दोनों की भूमिका एक ही मनुष्य की होत…