हम जो कुछ भी अपनी आंखों से देखते हैं उसकी छाप हमारे मस्तिष्क में बनती जाती है तथा समय बीतने के साथ ही ये छाप धूमिल पड़ने लगती है। देखे गए दृश्यों को स्वयं तो कुछ हद तक याद करके दोहराया जा सकता है लेकिन किसी और को उसी दृश्य के बारे में बताना हो तो शायद…