धर्म

ईश्वर शब्द का अर्थ

शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि से ईश्वर शब्द ईश धातु में वरच् प्रत्यय लगाकर बना है जिसका अर्थ है ऐश्वर्य युक्त, समर्थ, शक्तिशाली, स्वामी, प्रभु, मालिक, राजा, शासक आदि। हिन्दी संस्कृत कोश के अनुसार ईश्वर शब्द का प्रयोग परमेश्वर, जगदीश्वर, परमात्मन, परमेश, …

हिन्दू धर्म के मूल सिद्धांत

हिन्दू धर्म भारत का सबसे प्राचीनतम धर्म है। प्रारम्भ में इसे आर्य धर्म भी कहा जाता था। वेदों की रचना के साथ इसे वैदिक धर्म और पुराणों एवं स्मृतियों की रचना के बाद इसे पौराणिक धर्म कहा गया। जब भारत को हिन्दुस्तान कहा जाने लगा तो यहां के निवासीयों द्वार…

धर्म की उत्पत्ति के सम्बंध में दो मुख्य सिद्धान्त-आत्मावाद तथा प्रकृतिवाद का उल्लेख

विभिन्न मानवशास्त्रियों तथा समाजशास्त्रीयों ने धर्म की उत्पत्ति से संबंधित अपनी-अपनी मान्यताएं प्रस्तुत की हैं। 19 वीं शताब्दी में धर्म का समाजशास्त्र दो प्रमुख प्रश्नों पर केन्द्रित रहा। धर्म किस प्रकार शुरू हुआ तथा धर्म का विकास कैसे हुआ? धर्म की उत…

हिन्दू धर्म के सम्प्रदाय एवं मत

हिन्दू धर्म किसी सम्प्रदाय विशेष के विचारों को व्यक्त करने वाला अथवा केवल अलौकिक सत्ता के सम्बन्ध में विश्वासों को प्रकट करने वाला धर्म नही है। इसके सम्बन्ध में स्वामी विवेकानन्द कहते हैं, 'अन्य धर्मों के समान हिन्दू धर्म भिन्न-भिन्न प्रकार के मत-…

धर्म किसे कहते हैं धर्म की कुछ मौलिक विशेषताएं?

धर्म आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास पर आधारित एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें प्रथाएं एवं पवित्रता से सम्बद्ध मूल्य पाये जाते हैं। यह अलौकिक इकाइयों एवं शक्तियों से सम्बन्धित होता है, जिन्हें मानव समूहों सांसारिक अस्तित्व का अन्तिम लक्ष्य माना जाता है। मनुष्…

हिन्दू धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय कौन - कौन से हैं?

उपास्य देवों की उपासना पद्धतियों में आंतरिक भिन्नता होने के कारण प्रत्येक मत में कालक्रम से अनेक सम्प्रदायों का प्रवर्तन होना स्वभाविक है। मत की अपेक्षा सम्प्रदाय में वैचारिक संकीर्णता तथा एकदेशीयता की प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है। डा. राधकृष्णन के मत…

हिंदू सामाजिक जीवन में धर्म के महत्व की विवेचना

हिन्दू धर्म अगणित रूपों में हिन्दुओं के सामाजिक जीवन को अनुप्राणित करता रहा है। वह जन्म से लेकर मृत्यु तक सामान्यतः प्रत्येक हिन्दू के जीवन को अनेक धार्मिक विश्वासों, विधि- संस्कारों, आराधना विधियों और कर्तव्य पालन में दृढ़ आस्था आदि रूपों में प्रभावि…

वैष्णव धर्म का उद्भव एवं विकास

वैष्णव धर्म का विकास भागवत धर्म से हुआ। मान्यता के अनुसार इसके प्रवर्तक वृष्णि (सत्वत) वंशी कृष्ण थे जिन्हें वसुदेव का पुत्र होने के कारण वासुदेव कृष्ण कहा गया। छान्दोग्य उपनिषद में उन्हें देवकी-पुत्र कहा गया है तथा घोर अंगिरस का शिष्य बताया गया है। क…

शैव धर्म क्या होता है || शैव धर्म के प्रमुख संप्रदाय

भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने वालों को शैव कहते हैं। शैव धर्म शिव से सम्बद्ध धर्म को शैव धर्म कहा जाता है जिसमें शिव को इष्टदेव मानकर उनकी उपासना की जाती है। संभवतः शैव धर्म भारत का प्राचीनतम धर्म था। सैन्धव सभ्यता की खुदाई में मोहनजोदड़ों से एक…

धर्म का उद्गम स्थान व अनादित्व

धर्म शब्द की उत्पत्ति ‘धृ’ धातु से हुई है, जिसका तात्पर्य है- धारण करना, पालन करना, इसी धातु के अर्थ को मूलाधार मानते हुये भारतवर्ष के अनेक ऋषि-मुनियों व विद्वानों ने धर्म शब्द की परिभाषा देते हुए उसका निर्वाचन किया है, जो इस प्रकार है -  ‘‘धृयते धार्…

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