हिन्दी के व्यंग्यकारों ने अनेक ऐसी रचनाएँ दी है जिनमें न प्रत्यक्ष हास्य है, न आक्रोश और न करूणा । वे विशुद्ध बौद्धिक और चिन्तन - प्रधान रचनाएँ है जो पाठक में सामाजिक सजगता उत्पन्न करती है। व्यंग्यकार की भूमिका एक सुधारक, नियामक और न्यायाधीश की होती ह…